सायनोबैक्टीरिया में जनन (Reproduction)
सायनोबैक्टीरिया में केवल कायिक व अलैंगिक जनन होता है। इनमें लैंगिक जनन का अभाव होता है। कायिक जनन विखण्डन (fragmentation) व खण्डन द्वारा होता है। एककोशिका वाले सायनोबैक्टीरिया द्विविभाजन द्वारा गुणन करते हैं। तन्तु के रूप इसमें जनन तन्तु के टुकड़े होने के बाद होता है। तन्तु के छोटे-छोटे टुकड़ों को हॉर्मोगोनिया (hormogonia) कहते हैं, जैसे नॉस्टॉक (Nostoc) तथा ओसिलेटोरिया (Oscillatoria)।कुछ तन्तुरूपी उदाहरणों जैसे नॉस्टॉक में प्रतिकूल परिस्थितियों में कुछ कोशिकाएँ खाद्य पदार्थ को संग्रहित कर एकाइनेट (akinetes) बनाती हैं। अनुकूल परिस्थितियों के आगमन पर प्रत्येक एकाइननेट अंकुरित होकर नॉस्टॉक का तन्तु बन जाता है। ग्लिओकाप्सा (Gleocapsa) में एण्डोस्पोर्स (endospores) द्वारा अलैंगिक जनन होता है। Chamaesiphon में एक्सोस्पोर (exospores) बनते हैं। माक्रोसिस्टिस (Microcystis) में छोटे नग्न स्पोर बनते हैं।
पोषण (Nutrition)
क्लोरोफिल-a की सहायता से सायनोबैक्टीरिया जल व CO₂ से सूर्य के प्रकाश में अपने भोजन का स्वयं निर्माण करते हैं। इसे ऑक्सीजनित प्रकाश-संश्लेषण (Oxygenic photosynthesis) कहते हैं। नॉस्टॉक (Nostoc) व एनाबीना आदि सायनोबैक्टीरिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। इन्हें अविकल्पी प्रकाशस्वपोषी (obligate photoautotrophs) कहते हैं। ये अन्धकार में वृद्धि नहीं करते हैं।सायनोबैक्टीरिया प्रचीनतम प्रकाश संश्लेषी हैं। इन्होंने आदि युग में पृथ्वी के वायुमण्डल को ऑक्सीकारी बनाया था। इनके द्वारा पर्यावरण को ऑक्सीकारी बैक्टीरिया तथा यूकैरियोट्स के विकास के लिए अनुकूल बनाया गया है।
आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)
A. लाभदायक प्रभाव (Useful Effects)
1. प्राथमिक उत्पादक (Primary Photosynthesisers): सायनोबैक्टीरिया प्राथमिक प्रकाश-संश्लेषी जीव हैं। इनमें ही लगभग 300 करोड़ वर्ष पूर्व सर्वप्रथम ऑक्सीजनित प्रकाश संश्लेषण का विकास हुआ था। इनके कारण ही पृथ्वी का अनॉक्सीकारी (anaerobic) वायुमण्डल ऑक्सीकारी वायुमण्डल में परिवर्तित हो सका। स्वपोषी होने के कारण ये प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा CO₂ लेकर कार्बनिक भोजन का निर्माण करते हैं और O2 निकालते हैं। यही ऑक्सीजन वातावरण को शुद्ध करती है।2. खाद्य पदार्थ (Food Material) : मनुष्य के लिए इनका खाद्य के रूप में अधिक महत्त्व नहीं है। स्पिरुलीना (Spirullina) प्रोटीन, विटामिन, (जैसे-विटामिन B कॉम्प्लैक्स) तथा खनिजों का बहुत अच्छा स्रोत है। आजकल बाजार में यह इसी नाम से उपलब्ध है। यह गेहूँ, चावल आदि अनाजों का अच्छा विकल्प है। पाउडर किया हुआ स्पिरुलीना खाया जाता है तथा बिस्कुटों में भी डाला जाता है, नॉस्टॉक कम्यून (Nostoc commune) को चीन व जावा में खाया जाता है इसकी कॉलोनी को उबालकर खाद्य पदार्थ बनता है इसे युयुचो (Yuyocho) कहते हैं।
3. चारे के रूप में (As Fodder) : ये मछली के मुख्य भोज्य पदार्थ होते हैं। इसके अतिरिक्त, मेंढक, घोंघे आदि भी इन पर निर्भर रहते हैं।
4. खाद के रूप में (As Fertilizers) : नाइट्रोजन, पोटैशियम आदि की अधिकता के कारण इनको खाद के रूप में फॉस्फेट की कमी वाली मृदा में मिलाया जाता है। कृत्रिम खाद से नील-हरित शैवाल की जैविक खाद अधिक उत्तम होती है। नील-हरित शैवालों में अलैंगिक जनन तीव्रता से होता है। ये सम्पूर्ण खेत में कुछ ही घण्टों में फैल जाते हैं। नील-हरित शैवालों की कुछ जातियाँ वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सक्षम होती हैं, जैसे- टोलीपोथ्रिक्स (Tolypothrix), नॉस्टॉक (Nostoc), एनाबीना (Anabaena), एलोसाइरा (Aulosira) आदि। धान के खेतों में मृदा में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए इनको खाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
5. बन्जर जमीनों के लिए (Reclamation of Barren Soil): अधिक क्षारीय मृदा खेती के लिए बेकार होती है। इस पर कुछ नहीं उगाया जा सकता है। इस पर नॉस्टॉक मस्कोरम (Nostoc muscorum), एलोसाइरा फर्टिलसिमा (Aulosira fertilissima), साइटोनीमा (Scytonema) आदि उगाएँ तो ये मृदा की क्षारीयता को कम कर सकते हैं। इनके मृत होने पर कार्बनिक पदार्थों से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। कुछ वर्ष पश्चात् बन्जर भूमि खेती के योग्य हो जाती है।
6. मृदा संरक्षण में (Soil Conservation): साइटोनीमा, एलोसाइरा, नॉस्टॉक, एनाबीना आदि मृदा के कणों को आपस में बाँधने का काम करते हैं। इनकी अत्यधिक वृद्धि तथा श्लेष्मिक आच्छद के कारण मृदा के कण अलग नहीं हो पाते हैं। इस प्रकार ये मृदा संरक्षण में सहायक होते हैं।
7. प्रयोगशाला में शोध कार्यों के लिए (As Research Material in Laboratories): स्पिरुलीना (Spirullina) तथा एनासिस्टस (Anacystis) आदि को प्रयोगशालाओं में विभिन्न शोधकार्यों के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
B. हानिकारक प्रभाव (Harmful Effects)
1. पानी की टंकियों का क्षरण (Damage of Water Reservoirs) : पानी की टंकियों में अधिक मात्रा में इनकी वृद्धि होने से पानी का स्वाद खराब हो जाता है। यह पानी दुर्गन्ध युक्त हो जाता है तथा ऐसे पानी को पीने से संक्रमण का डर रहता है।2. वाटर ब्लूम (Water Bloom) : एनाबीना फ्लास एक्वे (Anabaena flos-aquaea), एनाबीनोप्सिस (Anabaenopsis), लिंग्बया (Lingbya), नॉस्टॉक (Nostoc), माइक्रोसिस्टस (Microcystis) आदि की अधिकता से पानी में CO2 की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पानी सड़ने लगता है। इसकी दुर्गन्ध से पानी में रहने वाले जन्तुओं को साँस लेने में कठिनाई होती है। जल विषाक्त हो जाता है तथा मछली तथा अन्य जन्तु मर जाते हैं। इन मरे हुए जन्तुओं की सड़न से भी पानी विषाक्त हो जाता है। इस प्रकार के जल का सेवन से गाय, घोड़े, बकरी, पक्षी आदि जानवर भी संक्रमण का शिकार हो जाते हैं।
3. मनुष्य के लिए (For Human Beings) : माइक्रोसिस्टस तथा एनाबीना की उपस्थिति वाला जल मनुष्य के लिए अति हानिकारक होता है। लिंग्बया (Lingbya) से चर्म रोग होते हैं। नमी वाले कपड़ों पर भी नील-हरित शैवाल उग जाते हैं जिससे कपड़े पर भद्दे दाग बन जाते हैं तथा कपड़ा गल जाता है।
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