सूक्ष्मजीव द्वारा रोग कैसे फैलते हैं?(Microorganisms Diseases in Hindi):प्रकार तथा रोकथाम के उपाय


सूक्ष्मजीव द्वारा रोग कैसे फैलते हैं?(Microorganisms Diseases in Hindi):इसके प्रकार तथा रोकथाम के उपाय 
सूक्ष्मजीव द्वारा रोग कैसे फैलते हैं?(Microorganisms Diseases in Hindi):इसके प्रकार तथा रोकथाम के उपाय

सूक्ष्मजीव द्वारा रोग कैसे फैलते हैं?(Microorganisms Diseases)

परिचय (Introduction)
हम कई बार बीमार पड़ते हैं। जिससे हमारा शरीर कमजोर हो जाता है। जब हम बीमार पड़ते हैं तो हमारा स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। हमारा स्वास्थ्य दो कारणों से प्रभावित होता है— आन्तरिक तथा बाह्य कारण।

भीतरी कारण जो हमारे स्वास्थ्य को कारण प्रभावित करते हैं जैसे हमारे शरीर के किसी भी अंग ,हारमोन्स, असंक्राम्य तन्त्र आन्तरिक कारण कहलाते हैं।

बाहरी कारण जो हमारे शरीर की क्रियाओं के साथ हस्तक्षेप कर हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बाह्य कारण कहलाते हैं। कुछ बाह्य कारण हैं, अपर्याप्त आहार, रोगजनित जीवाणु, पर्यावरण प्रदूषक आदि ।

इनमें से कुछ अथवा सभी कारण हमारे शरीर में रोग उत्पन्न कर सकते हैं। इस लेख में आप जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) द्वारा रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कैसे फैलता है तथा इसकी विधियां क्या क्या है इनके बारे में जानेंगे।



रोगजनित जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) (DISEASE CAUSING MICROORGANISMS)
सभी पशु और मनुष्य कभी न कभी किसी न किसी रोग से ग्रसित होते हैं। ये रोग प्रायः जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) द्वारा फैलाए जाते हैं। ये जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) हमारे शरीर में प्रवेश कर के अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं तथा शरीर की कोशिकाओं को हानि पहुंचाते हैं जिससे शरीर में रोग उत्पन्न हो जाता है और यह रोग का कारण बन जाते हैं।

रोगजनित जीवाणुओं तथा उनसे होने वाले रोगों की सूची इस प्रकार है:


जीवाणु (सूक्ष्मजीव)                   -                       रोग

      बैक्टीरिया                                             -            निमोनिया, टेटनस, तपेदिक, कुष्ठ रोग, हैजा, भोजन-विषाक्तन, आत्रज्वर शोथ तथा                                                                                       रोहिणी (Diptheria).

       कवक                                                  -            त्वचा सम्बन्धी रोग, खाद्य विषाक्तता।

     प्रोटोजोआ                                              -            मलेरिया, कालाजार, अमीबीय पेचिश

  वायरस (विषाणु)                                        -            पोलियो, चेचक, कैंसर (ल्यूकेमिया), रेबिज़, डेंगू, यकृत शोथ (Heptitis)



रोगजनित जीवाणु रोगोत्पादक जीवाणु अथवा रोगमूलक कहलाते हैं। रोगमूलक जीवाणु शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रहार कर शरीर की सामान्य क्रियाओं को विघटित कर देते हैं।

रोगोत्पादक जीवाणु हमारे शरीर में दूषित भोजन, जल वायु, त्वचा के कटने अथवा त्वचा से सीधे संसर्ग तथा मच्छरों अथवा मक्खियों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिससे हमारा शरीर बीमार हो जाता है।

सूक्ष्मजीव जो किसी विशिष्ट रोग के कारण होते हैं रोगजनित जीवाणु कहलाते हैं।



जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग (DISEASES CAUSED BY MICROORGANISMS)
जीवाणु जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस तथा प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न रोग दो प्रकार के होते हैं;

• संक्रामक अथवा सन्दूषित रोग
• असंक्रामक अथवा असन्दूषित रोग


  • संक्रामक रोग (Communicable Diseases) जो रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक परोक्ष अथवा अपरोक्ष सम्पर्क से फैलते हैं संक्रामक अथवा संदूषित रोग कहलाते हैं। अर्थात जब एक स्वस्थ व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है या फिर उसके वस्त्रों भोजन इत्यादि का इस्तेमाल करता है तो इसके कारण यह रोग संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में पहुंच जाता है इसलिए इसे संक्रामक रोग कहते हैं क्योंकि यह एक दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। जैसे तपेदिक, हैजा, आन्त्रशोथ ज्वर, मलेरिया, पेचिश कुछ सामान्य संक्रामक रोग हैं।संक्रामक रोग दूषित भोजन, जल, वायु, कीटों तथा सन्दूषित कपड़ों, बर्तनों आदि से संचरित होते हैं।
  • असंक्रामक रोग (Noncommunicable Diseases) : रोग जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक परोक्ष अथवा अपरोक्ष किसी भी माध्यम द्वारा संचरित या फैल नहीं  सकते हैं असंक्रामक अथवा असन्दूषित रोग कहलाते हैं। इस प्रकार के रोग मुख्यतः अनुवांशिक होते हैं अतः यह रोग संक्रमण की तरह एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं खेल सकते हैं लेकिन यह संभावना है कि यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैल सकते हैं। जैसे मधुमेह, श्वसनीशोथ, मोतियाबिन्द आदि असंक्रामक रोग हैं।

संक्रामक रोगों के संचरण की विधियाँ (Modes of Transmission of Communicable Diseases)
संक्रामक रोग संक्रमित व्यक्ति तथा पशुओं से परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप में संचरित होते हैं। संचरण की इन विधियों का उल्लेख नीचे किया गया है :

अपरोक्ष संचरण (Direct Transmission)
अपरोक्ष संसर्ग द्वारा : त्वचा का त्वचा से, श्लेष्मल का श्लेष्मल से अथवा श्लेष्मल का त्वचा से सम्पर्क के कारण संक्रमण हो सकता है। कुष्ठ रोग, दाद, नेत्र शोथ आदि रोग अपरोक्ष सम्पर्क द्वारा संचरित होते हैं। अतः संक्रमित व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए तथा अपने सामान को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहिए।
बिन्दुक सम्पर्क द्वारा : संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, थूकने तथा बोलते समय थूक के बिन्दुक, रोगजनित जीवाणु निर्मुक्त करते हैं। ये बिन्दुक जब अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट होते हैं तो उन्हें रोगी बना देते हैं। रोग जैसे कुकुरखाँसी, तपेदिक आदि इसी विधि द्वारा संचरित होते हैं। अतः संक्रमित व्यक्ति को हंसते खेलते समय रुमाल का प्रयोग करना चाहिए जिससे संक्रमण किसी अन्य व्यक्ति तक ना पहुंचे।
संक्रमित सूई या इन्जेक्शन के प्रयोग द्वारा : यह संक्रमण संक्रमित जानवरों के काटने अथवा संक्रमित व्यक्ति के रूधिर चढ़ाने के द्वारा भी अपरोक्ष रूप से हो सकता है। जैसे- रेबीज वायरस मनुष्य के शरीर में कुत्ते के काटने से प्रविष्ट हो जाता है वही एड्स वायरस स्वस्थ मनुष्य के शरीर में संक्रमित रूधिरदाता व्यक्ति के रूधिर आधान (transfusion) के समय प्रवेश कर सकते हैं।


परोक्ष संक्रमण (Indirect Transmission)
रोगजनित जीवाणु मनुष्य के शरीर में परोक्ष रूप से भी प्रविष्ट हो सकते हैं। परोक्ष संचरण की कई विधियाँ हैं जो इस प्रकार हैं:

• दूषित भोजन तथा जल के माध्यम से।
• किसी भी वाहक जैसे मच्छर, मक्खी, चूहे इत्यादि के माध्यम से।
• मिट्टी युक्त वस्त्रों, रोगी के तौलिए, रूमाल तथा व्यक्तिगत बर्तनों द्वारा।
• गन्दे हाथों अथवा गन्दे बर्तनों तथा बिना धुली सब्जियों / फलों के माध्यम से।


कीटों द्वारा रोगों का प्रसारण (Spread of Diseases by Insects)
हम जानते हैं कि जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) जैसे बैक्टीरिया, वायरस, कवक तथा प्रोटोजोआ द्वारा रोग उत्पन्न होते हैं। ये जीवाणु(सूक्ष्मजीव) हमारे शरीर में दूषित वायु, जल अथवा भोजन द्वारा प्रवेश करते हैं तथा हमारे शरीर को बीमार कर देते हैं। कई कीट जैसे मक्खियाँ, मच्छर तथा तिलचट्टे आदि भी हानिकारक जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) को अपने पैरों तथा बालों आदि पर ढोकर रोग फैलाते हैं।

मक्खियाँ कूड़े-कचरे तथा मनुष्यों व पशुओं के अपशिष्टों पर भोजन करती हैं और द्विगुणित होती हैं। कचरा तथा अपशिष्ट, रोगजनित जीवाणुओं(सूक्ष्मजीवों) के विकास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान है। जब मक्खियाँ कचरे अथवा अपशिष्टों पर बैठती हैं तब वहाँ उपस्थित हानिकारक जीवाणु(सूक्ष्मजीव) उनके पैरों अथवा बालों पर चिपक जाते हैं। जब मक्खियां भोज्य पदार्थों पर बैठती है तो इनके बैठने से ये रोगाणु भोजन में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस प्रकार भोजन संदूषित हो जाता है। ये रोगाणु अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं जिससे यह भोज्य पदार्थों को खराब कर देते हैं।

जब यह संदूषित भोजन किसी के द्वारा खाया जाता है, ये जीवाणु शरीर में प्रविष्ट कर जाते हैं और व्यक्ति को रोगी बना देते हैं।

मनुष्यों और पशुओं में मक्खियां लगभग बीस बीमारियाँ उत्पन्न करने की जिम्मेवार होती है। इनमें से अनेक रोग जैसे हैजा, आन्त्रशोथ, तपेदिक और पेचिश बहुत भयानक रोग हैं।

मलेरिया मादा ऐनोफीलिस मच्छर द्वारा फैलता है। मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है।

जब मादा ऐनोफीलिस रोगी व्यक्ति का खून चूसती है, तब प्रोटोजोआ प्लाज्मोडियम उसके पेट में चला जाता है। मादा मच्छर के पेट में प्रोटोजोआ गुणित होता है और जब मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तब प्रोटोजोआ मादा मच्छर से उस व्यक्ति के खून में प्रवेश कर जाता है जिससे वह व्यक्ति मलेरिया बुखार से पीड़ित हो जाता है।

मक्खी रोग जनित जीवाणुओं की सामान्य संवाहक होती है। तिलचट्टे और मच्छर भी अनेक रोग-जनित जीवाणुओं को ढोते हैं।

मादा ऐनोफीलिज़ मच्छर मलेरिया बुखार की रोगवाहक है। एक अन्य रोगवाहक मच्छर एईज (Aees) पीले स्वर (vellow fever) के लिए उत्तरदायी है।

कीट तथा अन्य पशु जो रोगजनित जीवाणुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोते हैं संवाहक  कहलाते हैं।किसी विशिष्ट जीवाणु के वाहक रोगवाहक कहलाते हैं।



जीवाणुओं से उत्पन्न रोगों से निवारण (PREVENTION OF DISEASES CAUSED BY MICROORGANISMS)
स्वयं को जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोगों से बचाने की चार विधियाँ है:

• रोगजनित जीवाणुओं को मारने के लिए उचित औषधियों के द्वारा।
• रोगजनित जीवाणुओं के वाहकों को मार कर।
• अपने घर के चारों ओर जीवाणुओं के विकास को रोक कर।
• भोजन को संदूषण से बचा कर।

निम्नलिखित सुझाव जीवाणुओं से होने वाले रोगों के बचाव में सहायक हो सकते हैं:-
• अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य को नियमित स्नान, स्वच्छ वस्त्र पहन कर व्यवस्थित रखें।
• अपना घर और आसपास का क्षेत्र साफ रख कर अपना घरेलू कचरा ढक्कन लगे कचरेदान में रखें।
• रसोईघर के कचरे आदि को सीवर में अथवा किसी अन्य स्थान पर एकत्र न होने दें।
• अपने घर आसपास के क्षेत्र तथा कूड़ेदान आदि के आस-पास नियमित अन्तराल पर उचित कीटनाशकों द्वारा छिड़काव करें।
• अपने नाखून नियमित रूप से काटें।
• सदैव स्वच्छ जल का प्रयोग करें।
• भोजन तथा अन्य भोज्य पदार्थ सदैव ढक कर रखें।
• भोजन करने से पहले बर्तनों तथा अपने हाथों को भली प्रकार साफ करें। 
• फल तथा सब्जियाँ खाने तथा पकाने से पहले अच्छी तरह धोएँ।
• शुद्ध तथा उबला हुआ पानी पिएँ, विशेषकर वर्षा के मौसम में।
• जो लोग संक्रामक रोग से पीड़ित हों उन्हें अलग रखना चाहिए और उनके अपशिष्टों जैसे मल तथा कफ आदि का उचित ढंग से निस्तारण करें।
• बच्चों को सभी रोगों से प्रतिरक्षण के लिए समय-समय पर टीका आदि लगवाएँ।
• खुले स्थान पर न तो स्वयं मल त्यागें न दूसरों को त्यागने दें।
• सन्तुलित आहार लें और नियमित रूप से व्यायाम करें। स्वस्थ व्यक्ति रोगों का अधिक क्षमतापूर्वक प्रतिरोध कर सकता है।


आपने जाना किस सूक्ष्मजीवों द्वारा रोग कैसे सिलते हैं तथा उनके वाहक कौन कौन से होते हैं और इन को दूर करने के उपाय भी जाने। सूक्ष्म जीवों द्वारा फैलाए गए रोगों से बचने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप अपने आसपास सफाई रखें तथा अपने रोजमर्रा की दिनचर्या पर ध्यान दें।

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