ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत


ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

ऊर्जा के स्रोत (Sources of Energy)
ऊर्जा के स्रोत वे होते हैं जिनके द्वारा घरेलू तथा औद्योगिक गतिविधियों को पूरा किया जाता है। किसी भी देश के औद्योगिकीकरण में कारखानों को चलाने के लिए किसी न किसी चालक या शक्ति के साधन की आवश्यकता होती है। वे पदार्थ जिनसे मशीनों को चलाने के लिए शक्ति प्राप्त होती है वह ऊर्जा के स्रोत कहलाते हैं । प्राचीन काल से ही मानव ने शक्ति के साधनों को खोजने का कार्य जारी रखा है। सर्वप्रथम वे छोटे-मोटे कार्यों के लिए लकड़ी के कोयले का प्रयोग करते थे, बाद में उसने पत्थर के कोयले, खनिज तेल, वायुजल तथा जल विद्युत द्वारा उद्योगों का संचालन करना भी सीख लिया।
भारत के शक्ति स्रोतों का अभी पूर्ण रूप से विकास नहीं हुआ है। भारत अपनी आवश्यकता के अनुसार खनिज तेल और जल विद्युत शक्ति के उत्पादन की मात्रा को बढ़ाता रहता है, किंतु विश्व के उन्नतशील देशों की तुलना में भारत में शक्ति का उत्पादन अभी कम है। वे संसाधन जो पृथ्वी के अंदर से प्राप्त होते हैं उनकी मात्रा सीमित होती है इसलिए उनका उपयोग में दिव्यता के साथ करना चाहिए। इन पदार्थों को सामान्यतः ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कहते हैं आज हम नीचे ऊर्जा के इन्हीं नवीकरणीय तथा  अनवीकरणीय स्रोतों के बारे में जानेंगे।

ऊर्जा के स्रोत के प्रकार (type of energy source)
आपने पढ़ा होगा कि ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों में कुछ स्रोत ऐसे होते हैं जो सीमित अवधि के लिए होते हैं और समाप्त हो जाते हैं लेकिन कुछ स्त्रोत ऐसे होते हैं जो समाप्त नहीं होते हैं। कोयला और पेट्रोलियम तथा अन्य खनिज प्रकृति में धीमी गति से निर्मित होते हैं। कोयला पेट्रोलियम आदि जिनका प्रयोग हम वर्तमान समय में कर रहे हैं यह अरबों वर्षों पूर्व अपघटित हो रहे पेड़ों तथा पशु व छोटे पक्षियों के अवशेषों से निर्मित होते हैं। जबकि पवन प्रवाहित जल सूर्य का प्रकाश ज्वार भाटा इत्यादि ऐसे ऊर्जा के स्रोत हैं जो कभी समाप्त नहीं हो सकते हैं। ऊर्जा के स्रोतों को हम दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं
  • ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत 
  • ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत

ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत (Renewable Sources of Energy)
ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

ऊर्जा के स्रोत जो प्रकृति में लगातार उत्पन्न होते रहते हैं और मानवीय गतिविधियों द्वारा प्रायः समाप्त नहीं होते हैं ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं। इन स्रोतों को ऊर्जा के अनिःशेष स्रोत भी कहते हैं। उदाहरण पवन, प्रवाहित जल, सूर्य का प्रकाश, ज्वार भाटा, भूतापीय ऊर्जा तथा जीव भार ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत हैं। यह स्रोत है जो कभी नष्ट नहीं हो सकते हैं चाहे मनुष्य इन्हें कितना ही इस्तेमाल क्यों ना कर ले।

ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के कुछ लाभ होते हैं यह अनवीकरणीय स्रोतों की तुलना में,
• कभी समाप्त नहीं होते हैं।
• यह प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।
• यह बिना किसी खर्चे के उपलब्ध हो जाते हैं।


ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत (Non-renewable Sources of Energy)
ऊर्जा के स्रोत जो उपयोग के पश्चात परिपूर्ण नहीं होते हैं और निश्चित अवधि के पश्चात समाप्त हो जाते हैं ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं। ऊर्जा के इन अनवीकरणीय स्रोतों को निःशेष स्रोत भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए पेट्रोलियम, कोयला, प्राकृतिक गैस, तथा यूरेनियम ऊर्जा के कुछ अनवीकरणीय स्रोत हैं।

ऊर्जा के कुछ नवीकरणीय स्रोत (Some Renewable Sources of Energy)
सौर ऊर्जा (Solar Energy)
सौर ऊर्जा, ऊर्जा का अक्षय साधन है। यह प्रकाश और ऊष्मा का अनवरत स्रोत है। सूर्य से हमें अधिक मात्रा में ऊर्जा मिलती है। यही प्रकाश और ऊष्मा सौर ऊर्जा कहलाती है। सौर ऊर्जा सस्ती, प्रदूषण रहित नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। यह विशाल संभावनाओं वाला साधन है। इस क्षेत्र में सौर चूल्हा का विकास एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इससे बिना खर्चे के भोजन पकाया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा से छोटे बिजली घरों की भी योजना चल रही है। आजकल खाना पकाने, पानी गर्म करने, फसलों को सुखाने और सौर ऊर्जा के लालटेन का भी प्रयोग चल रहा है। यह एक ऐसा साधन है जो कभी भी समाप्त होने वाला नहीं है। सूरज पिछले लगभग 5 करोड सालों से हमें ऊष्मा और प्रकाश देता आ रहा है और अनुमान लगा ले कि वह अगले 5 करोड़ सालों तक लगातार ऐसा करता ही रहेगा। पृथ्वी को 1 दिन में प्राप्त होने वाले सौर ऊर्जा पूरी दुनिया में 1 वर्ष में व्यय होने वाली ऊर्जा के 50,000 गुना अधिक है।
सौर ऊर्जा को निम्नलिखित विधियों द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है-
• सौर हीटर व सौर कुकर के प्रयोग द्वारा प्रत्यक्ष ऊष्मा और खाना पकाने के लिए।
• सौर सेलों की मदद से इसे विद्युत में परिवर्तित करके।

सौर ऊर्जा के उपयोग के आधार पर कुछ उपकरणों का उल्लेख इस प्रकार है-
  • सौर कुकर (solar cooker) : सौर कुकर सूर्य के प्रकाश में उपस्थित अवरक्त विकिरण (Infrared radiation) द्वारा ऊष्मा प्राप्त करता है। बक्से के आकार का यह सौर कुकर 2 घंटे के समय में लगभग 120 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक ऊष्मा प्राप्त कर लेता है।
यह एक बक्से के समान होता है जो जिसका ढक्कन कांच का होता है तथा साथ ही ऊष्मा रोधी बक्से से निर्मित होता है। एक चप्टा दर्पण बक्से के ऊपर, सूर्य किरणों को केंद्रित करने के लिए लगाया जाता है।
सौर कुकर की आंतरिक तथा बर्तनों की बाहरी सतह काले रंग से पुती हुई होती है ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि काली सता अधिक ऊष्मा अवशोषित करती है। सौर कुकर में हम चावल, दाल, सब्जी पका तथा उबाल सकते हैं तथा बिस्कुट, ब्रेड आदि सेंक भी सकते हैं किंतु इसका उपयोग चपाती बनाने अथवा भूनने के लिए नहीं किया जा सकता है।

  • सौर जल तापक (solar water heater) : सौर जल तापक का उपयोग ऊर्जा की सहायता से पानी गर्म करने के लिए किया जाता है। सौर जल तापक सर्पिलाकार, पतली तांबे की नली का बना होता है जो चपटे धातु की शीट पर अवस्थित होती है। शीट और तांबे की नलियां काले रंग से पुती होती है और एक कांच के ढक्कन युक्त बक्से में बंद होती हैं।
नली के निचले सिरे से पानी अंदर प्रविष्ट होता है। जब यह पानी तांबे की नलियों से अंदर गुजरता है तब सूर्य प्रकाश से ऊष्मा अवशोषित कर, गर्म हो जाता है। गर्म पानी को अवरोधक भंडारण टैंक में एकत्र कर लिया जाता है। टैंक में गर्म जल के विकास के लिए नल लगा होता है। सौर जल तापक नहाने, कपड़े व बर्तन धोने के लिए गर्म पानी उपलब्ध कराता है। यह अस्पतालों प्रयोगशालाओं आदि के लिए बहुत ही उपयोगी होता है।
  • सौर शुष्कन (Solar Drying) : सौर शुष्कनों का प्रयोग अनाज, फल तथा सब्जियों आदि सुखाने के लिए किया जाता है।
ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

  • सौर भट्टी (Solar Furnace) : सूर्य से आते प्रकाश को परवलयिक दर्पणों द्वारा एक छोटे से क्षेत्र में बहुत अधिक ऊष्मा प्राप्त करने के लिए संकेंद्रित किया जा सकता है। ऐसे उपकरण को सौर भट्टी कहते हैं। सौर भट्टियों का तापमान 3000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है किंतु इनका निर्माण कुछ महंगा होता है।
  • सौर सेल (Solar Cell) : सौर सेल सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित कर सकती है। सौर सेल का निर्माण अति उच्च किस्म के परिशुद्ध सिलीकान से किया जाता है। वर्तमान सौर सेल कुछ महंगे होते हैं। एकल सौर सेल कुछ विद्युत धारा उत्पन्न कर लेती है। लघु इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे केलकुलेटर और घड़ियां सौर सेलों से चलते हैं। सौर सेलों को व्यवहारिक उपयोग में लाने के लिए अनेक सौर सेलों को एक साथ जोड़ कर सौर पैनल बनाया जाता है। विभिन्न क्षमताओं वाले सौर पैनलों को बनाया जा सकता है।
सौर पैनलों का उपयोग-
• दूरस्थ क्षेत्रों में पानी का पंप चलाने तथा गलियों में प्रकाशित करने के लिए होता है।
• उपग्रहों तथा अंतरिक्षयानों पर उपकरणों को चलाने के लिए विद्युत उत्सर्जित करने में किसका प्रयोग होता है।


सौर ऊर्जा के लाभ (Benefits of Solar Energy
)
सौर ऊर्जा के कई लाभ होते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं
• सौर ऊर्जा ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
• सौर ऊर्जा शक्ति तथा वर्ष के लंबे समय के लिए सरलता से उपलब्ध होती है।
• सौर ऊर्जा किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं चलाती है।
• सौर ऊर्जा के द्वारा भोजन पकाया जा सकता है।
• सौर ऊर्जा शक्ति प्रदूषण रहित तथा नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है।



पवन ऊर्जा (Wind Power)
वायु एक अन्य प्राकृतिक नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है। प्रवाहित वायु पवन कहलाती है। पवन ऊर्जा का प्रयोग पानी खींचने के लिए किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि हेतु सिंचाई की परम आवश्यकता पड़ती है पवन ऊर्जा इसी कार्य में सहायक है। पवन ऊर्जा के व्यवहारिक उपयोग के लिए पवन का न्यूनतम 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से लगातार प्रवाहित होना अत्यंत आवश्यक है। इसका उपयोग करके 2000 मेगावाट तक की बिजली उत्पन्न की जा सकती है। 
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गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उड़ीसा इसके लिए उपयुक्त राज्य हैं। 1987 तक 1750 पवन चक्कियां लगाई जा चुकी थी। अब इस बिजली को ग्रिड प्रणाली में सम्मिलित कर लिया गया है। गतिमान होने के कारण पवन में गतिज ऊर्जा होती है। पवन की इसी गतिज ऊर्जा का उपयोग नौकाओं द्वारा मनुष्य तथा सामान ढोने व आवागमन के लिए किया जाता है। पवन ऊर्जा का उपयोग पवन चक्कियों को चलाने में भी होता है। जब पवन, पवन चक्किओं के पंखों से टकराती है तब इसकी घूर्णन-मशीन घूमना आरंभ कर देती है। पवन चक्की की इस घूर्णन गति का उपयोग बलकृत कार्य जैसे, अनाज पीसना, कुएं से पानी निकालना इत्यादि में किया जाता है। डायनेमो जोड़कर विद्युत उत्पन्न करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। पवन ऊर्जा सस्ती और प्रदूषण रहित होती है।

पनबिजली ऊर्जा (Hydroelectric Power)
प्रवाहित जल में गतिज ऊर्जा होती है और उस जल की इसी गतिज ऊर्जा का उपयोग बलकृत कार्यों को करने के लिए किया जाता है। जब प्रवाहित जल को जल चक्की की पंखुड़ियों पर ऊपर से गिराया जाता है तब यह घूमने लगती है।
जल चक्की कि इस घूर्णन गति का उपयोग, विद्युत उत्सर्जन में, बर्तन बनाने में, अनाज पीसने में किया जाता है।
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प्रवाहित जल की गतिज ऊर्जा द्वारा उत्पन्न विद्युत को पनबिजली ऊर्जा कहते हैं।
पानी के संचयन हेतु, व्यवसायिक स्तर पर  नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाए जाते हैं। बांधों में संचित पानी में, भूमि से ऊंचाई के कारण स्थितिज ऊर्जा होती है।
बांधों में संचित पानी सुरंगों द्वारा गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर बहता है जब वह नीचे की ओर प्रवाहित होता है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। प्रवाहित जल विद्युत उत्सर्जित करने के लिए टरबाइन घुमाता है।
भारत में कुल विद्युत का लगभग 20% पनबिजली से उत्पन्न किया जाता है।

जीवभार (Biomass)
जीव भार ऊर्जा का प्राचीनतम स्रोत है। कृषि अथवा पशु अपशिष्ट पदार्थ जिसे ईंधन अथवा ईंधन के स्रोत रूप में प्रयोग किया जा सके, जीवभार कहलाता है।
कुछ जीव भार इस प्रकार हैं :
• सूखी पत्तियां, टहनियां, रसोईघर का अपशिष्ट।
• कोई गन्ने का रस निकालने के पश्चात बचा अपशिष्ट।
• मलजल।
• गोबर
• लकड़ी की छीलन व टुकड़े।
ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

जीव भार का प्रयोग दो प्रकार से किया जा सकता है:
* ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए सूखे जीव भार को जलाना- सूखे उपले, सूखी पत्तियां, कृषीय अपशिष्ट आदि को ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए जलाया जाता है।

* जीवभार को अधिक उपयोगी ईंधनों में परिवर्तित करके।
उदाहरण के लिए,
• गोबर को अधिक उपयोगी इंधन, गोबर गैस अथवा बायोगैस में परिवर्तित करके।

• शेहरों के मलजल से मेथेन गैस उत्पन्न करके।

जीवभार, जैसे गोबर को बायोगैस में परिवर्तित करना किसानों के लिए वरदान से तो हुआ है क्योंकि इससे गोबर को निपटाने की समस्या का समाधान हो गया है। गोबर गैस को जलाने से धुआं उत्पन्न नहीं होता है अतः इससे वायु प्रदूषण नियंत्रित रहता है। बायोगैस संयंत्र में बचा घोल, उर्वरक की तरह उपयोग में लाया जा सकता है।


बायोगैस (Biogas)
बायोगैस दाह्या गैसों का सम्मिश्रण है। यह मुख्यतः मेथेन से निर्मित होती है। बायोगैस एक स्वच्छ इंधन है क्योंकि यह धूमरहित नीली लौ के साथ जलता है तथा जलने के पश्चात किसी प्रकार की राख नहीं बचती है। यह अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न करता है।
ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

बायोगैस का उत्पादन बायोगैस गोबर तथा अन्य कृषि अपशिष्ट से प्राप्त किया जाता है। गोबर तथा अन्य अपशिष्टों को पानी के साथ मिलाकर पाचित्र (digester) में डाल दिया जाता है। वायु की अनुपस्थिति में जीवभार अपघटित होता है तथा दाह्य गैस उत्पन्न करता है यह गैस बायोगैस कहलाती है। बचा हुआ अवशेष बायोगैस को निकाले जाने के पश्चात पौधों के लिए उर्वरक की तरह प्रयोग किया जाता है।

बायोगैस के उपयोग (Uses of Biogas
)
• खाना पकाने तथा खाना गर्म करने के लिए घरेलू ईंधनों के रूप में।
• ट्यूबवेल तथा आटे की चक्की के इंजन को चलाने के लिए।
• घर तथा गलियों में प्रकाश के लिए।

हमारे देश में ग्रामीण क्षेत्रों में खादी तथा ग्रामोद्योग सीमित व अन्य संस्थाएं बायोगैस संयंत्र की संरचनाओं को बढ़ावा देने में तत्परता से प्रयासरत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, इन बायोगैस संयंत्रों को लगाने के पश्चात ऊर्जा की लगभग 75% आवश्यकता पूरी की जा सकती है।



ऊर्जा के कुछ अनवीकरणीय स्रोत :
कोयला (Coal)
कोयला उपयोग में लाया जाने वाला प्राचीनतम जीवाश्म ईंधन है। यह पृथ्वी की भूपर्पटी के नीचे विविध गहराइयों में पाया जाता है। कोयले की तहों में प्रायः बड़ी मात्रा में मीथेन गैस होती है। यह शक्ति का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है तथा किसी भी देश में इसकी उपस्थिति उस देश की प्रगति की सूचक है। इसका उपयोग शक्ति के संसाधन के रूप में और उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इसकी इतनी उपयोगिता है कि लोग इसे काला सोना या काला हीरा (Black Diamond) कहते हैं।

भारत कोयला उत्पादन में विश्व में छठे स्थान पर है। यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक देश है। चीन और अमेरिका के बाद भारत सबसे अधिक कोयला उत्पन्न करता है। भारत में कोयले के भंडार मुख्यतः झारखंड 20%, उड़ीसा 20%, मध्य प्रदेश 14.0% तथा पश्चिमी बंगाल 11.3% में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान, तमिलनाडु, असोम, मेघालय, उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों पर भी कोयले के भंडार पाए जाते हैं।

भारत में कोयले की तीन किस्में पाई जाती हैं एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, लिग्नाइट। इनमें से लिग्नाइट नरम कोयला होता है बिटुमिनस डामर युक्त कोयला होता है इस कोयले का प्रयोग घरों में किया जाता है। तथा एन्थ्रेसाइट अधिकतम कठोर कोयला होता है जिसमें अधिकतम कार्बन उपस्थित रहता है यह कोयले का शुद्धतम प्रकार होता है।

भारत में कोयले का उपयोग भारत में कोयला ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। यह देश की ऊर्जा की 67% खपत को पूरा करता है। इसका उपयोग इस्पात और कार्बो रसायनिक उद्योगों में भी होता है। भारत में कोयले से ताप विद्युत भी पैदा की जाती है। इसके उपयोग द्वारा उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर ताप विद्युत केंद्र स्थापित किए गए हैं।

कोयले का संरक्षण (Conservation of Coal
)
भारत में निम्न उपायों द्वारा कोयले का संरक्षण किया जा सकता है-

1. कोयले की खुदाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कोयले के चूरे कम हों यदि हों भी तो उनकी टिकली बनाकर उपयोग करें।
2. कोयला खान को बाढ़ के पानी से बचाना चाहिए।
3. कोयले की खदानों को आग से बचाना चाहिए क्योंकि इससे काफी श्रमिकों की मौत हो जाती है।
4. खानों की खुदाई करते समय पूरा कोयला निकाल लेना चाहिए।
5. कोयले की खान को नमी व वर्षा से बचाना चाहिए क्योंकि गीला होने पर कोयले से ज्यादा धुआँ निकलता है।
6. कोयले को खुले स्थान पर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे उसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
7. कोयले को जिस भट्टी में जलाया जाय उनकी चिमनी ऊँची होनी चाहिए।
8. कोयले से तापीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उसको अधिक उन्नत करके उसका संरक्षण किया जा सकता है। 
9. कोयले की खदानों में गैस के इकट्ठा हो जाने से विस्फोट होता है जिससे कोयले का भण्डार नष्ट हो जाता है और श्रमिकों की मौत हो जाती है।

उत्पादन एवं व्यापार (Production and Trade)
2006-2007 में 34.83 करोड़ टन, 2007-2008 में 38.44 करोड़ टन एवं 2011-12 में 583 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ। भारत से बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मॉरीशस तथा म्यांमार आदि देशों को कोयला निर्यात भी किया जाता है। निर्यात के साथ भारत लोहा-इस्पात बनाने के लिए कोकिंग किस्म का कोयला आयात करता है।



पेट्रोलियम (Petroleum)
खनिज तेल अथवा पेट्रोलियम भी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण साधन है। एक गाड़ी गहरे रंग का प्रतिदीप्ति द्रव होता है। इसकी गंध बहुत विचित्र तथा अप्रिय होती है। पेट्रोलियम पृथ्वी के अंदर अवसादी चट्टानों के रूप में होता है। भूगर्भ से यह कीचड़ के समान काले तेल के रूप में प्राप्त होता है खनिज तेल को शुद्ध करने के बाद इससे पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, मोम, ग्रीस आदि पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं। पेट्रोलियम शब्द का अर्थ होता है चट्टानों का तेल क्योंकि यह पृथ्वी के बहुत अंदर गहरी चट्टानों में उपस्थित रहता है। पेट्रोलियम को कच्चा तेल भी कहते हैं।
पेट्रोलियम की विरचना (Formation of Petroleum)
ऊर्जा के स्रोत क्या होते हैं?(Sources of Energy in hindi):ऊर्जा के नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत

ऐसा विश्वास किया जाता है कि पेट्रोलियम का निर्माण पृथ्वी के अन्दर मृत पौधों तथा समुद्री जीवों के उच्च तापमान व उच्च दाब के अन्तर्गत, वायु की उपस्थिति में हुआ। इस प्रकार से निर्मित पेट्रोलियम अप्रवेश्य शैलों में रहता है। पेट्रोलियम का वाष्पशील संघटक जिसमें गैसीय मिश्रण अधिक रहता है, प्राकृतिक गैस कहलाती है।
पेट्रोलियम का खनन (Mining of Petroleum)
पृथ्वी में पेट्रोलियम कुछ सौ मीटर से लगभग 2-3 किलोमीटर तक की गहराई में उपस्थित रहता है। पृथ्वी की भूपर्पटी को बेधित कर उनमें पाइप डाला जाता है, जब तक पाइप पेट्रोलियम भण्डार तक न पहुँच जाएँ।
कच्चा तेल आन्तरिक प्राकृतिक गैस के दाब के कारण तेजी से ऊपर की ओर निकलने लगता है। बाद में, पेट्रोलियम को पम्प की मदद से बाहर निकाला जाता है।
पेट्रोलियम का परिष्करण (Refining of Petroleum)
पेट्रोलियम (कच्चा तेल) असंख्य संतृप्त हाइड्रोकार्बन है जो समुद्री जल तथा चिकनी मिट्टी में मिले रहते हैं, उनसे निर्मित होता है। इसे इसकी प्राकृतिक अवस्था में प्रयोग नहीं किया जा सकता। फिर भी भंजक आसवन द्वारा पेट्रोलियम को विविध उपयोगी उत्पादों में पृथक किया जा सकता है।

पेट्रोलियम को प्रभाजित आसवन द्वारा विविध उपयोगी उत्पादों में बाँटने के उपक्रम को पेट्रोलियम का परिष्करण कहते हैं। पेट्रोलियम के परिष्करण को पेट्रोलियम का प्रभाजित आसवन भी कहते हैं।

पेट्रोलियम का परिष्करण विशाल, लम्बे स्टील के बने प्रभाजक स्तम्भ, जिसमें छिद्रित शेल्फ रहते हैं, में किया जाता है। कच्चे तेल को भट्टी में 400°C तक गर्म किया जाता है और भाप को टंकी में स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
भाप के ऊपर उठने पर, उच्च क्वथनांक वाले संघटक संघनित होकर टंकी के निचले भाग में आ जाते हैं। निम्न क्वथनांक वाले संघटक ऊपर की ओर उठते हैं और टंकी के ऊपरी भाग में रह जाते हैं। असंघनित प्रभाजक गैस रूप ऊपरी निकास से बाहर निकल जाते हैं। टंकी से बाहर निकलने वाली गैस, पेट्रोलियम गैस कहलाती है। पेट्रोलियम के निम्न वाष्पशील प्रभाजकों को टंकी के निचले निकास से एकत्र कर लिया जाता है। विविध प्रभाजकों का क्वथनांक अलग-अलग होता है, जिन्हें अलग-अलग ऊँचाइयों पर बने निकास से बाहर लिया जाता है।


खनिज तेल का उपयोग (Use of Mineral Oil
)
  1. खनिज तेल का उपयोग वायुयान, जलयान, रेलगाड़ियों, मोटर एवं अन्य वाहनों को चलाने के लिए किया जाता है।
  2. इससे निकले पदार्थों से फिल्म, प्लास्टिक, वार्निश, पॉलिश, मोमबत्ती और वैसलीन बनायी जाती है। गैसोलिन जैसे उपयोगी पदार्थ
  3. खनिज तेल को साफ करके पेट्रोल, मिट्टी का तेल, मोबिल आयल, मोम, ग्रीस, डीजल, प्राप्त किये जाते हैं।

खनिज तेल का संरक्षण (Conservation of Petroleum)
भारत में खनिज तेल के संरक्षण के लिए निम्न उपाय करने चाहिए
  1. खनिज तेल का भण्डार सीमित है इसलिए इसका उपयोग आवश्यक कार्यों में करें। मशीनों की नियमित सफाई व ग्रीसिंग करें जिससे तेल की खपत कम हो।
  2. देश में हमेशा नये तेल क्षेत्रों की खोज होती रहनी चाहिए। जिससे भविष्य में इसकी कमी ना हो।
  3. खनिज तेल को आग से बचाना चाहिए। क्योंकि इससे बहुत जल्दी आग लगती है।
  4. तेल के स्थान पर दूसरे साधन द्वारा ऊर्जा प्राप्त करना चाहिए जिससे तेल का संरक्षण हो सके।
  5. खाना पकाने के लिए गैस का इस्तेमाल करें जिससे खनिज तेल की बचत होगी।
  6. तेल के टैंकरों एवं पाइप लाइनों को समय-समय पर चेक करना चाहिए जिससे उनमें रिसाव न हो।
  7. समुद्र एवं भू-गर्भ से तेल निकालते समय बर्बादी को रोकना चाहिए।
  8. विद्युत् व पेट्रोलियम के भण्डारण के उन्नत तरीकों को अपनाकर 15% तक ऊर्जा बचायी जा सकती है।
  9. खनिज तेल के प्रयोग की प्रौद्योगिकी में सुधार कर तेल के प्रयोग करने की ऐसी तकनीक विकसित की जाय जिससे इसकी क्षमता बढ़ सके।

प्राकृतिक गैस और सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस [Natural Gas and Compressed Natural Gas (CNG)]
प्राकृतिक गैस पृथ्वी के भीतर बहुत गहराई में अकेली अथवा पेट्रोलियम को आवृत्त किए हुए तेल क्षेत्र में उपस्थित रहती है। प्राकृतिक गैस मुख्यतः मेथेन (CH) से निर्मित होती है। यह नीली धुँए रहित लौ के साथ जलती है और जलने के पश्चात् किसी प्रकार की राख नहीं छोड़ती। अतः प्राकृतिक गैस एक आदर्श ईंधन मानी जाती है। प्राकृतिक गैस का, संभरण प्राय: जमीन के नीचे बिछी पाइप लाइनों के द्वारा होता है। प्राकृतिक गैस ऊर्जा का नवीन स्रोत है इसका उपयोग घरेलू है। भारत में प्राकृतिक गैस का पता तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग एवं ऑयल इंडिया लिमिटेड ने किया था। 1 अप्रैल 2000 को उपयोग करने योग्य से गैस भंडार 647 अरब घन मीटर था।
दाबानुकूलित प्राकृतिक गैस को सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) कहते हैं। (CNG) एक आदर्श ईंधन क्योंकि यह किसी प्रकार का वायु प्रदूषण नहीं फैलाता। हमारे देश के कुछ मेट्रो नगरों में वायु प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु CNG चलित बस तथा ऑटो रिक्शा आरम्भ किये गए हैं।

प्राकृतिक गैस के उपयोग (Uses of Natural Gas)
• प्राकृतिक गैस ऊर्जा का साधन है।
• इसका उपयोग पेट्रो रसायन उद्योग में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
• इसका उपयोग रासायनिक उर्वरकों के निर्माण में किया जाता है।
• यह घरेलू ईंधन के साधन के रूप में भी प्रयोग होती है।
• इसका उपयोग वाहनों में इंधन के रूप में भी किया जाता है।


प्राकृतिक गैस का संरक्षण (Conservation of Natural Gas)
प्राकृतिक गैस का संरक्षण करना अत्यंत कठिन कार्य है लेकिन कुछ उपायों द्वारा इसका संरक्षण किया जा सकता है जैसे- प्राकृतिक गैसों को सिलेंडरों में भरकर रसोई इंधन के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है।, पेट्रो रसायन व रासायनिक खादों में इसका उपयोग करके इसे संरक्षित किया जा सकता है।, प्राकृतिक गैस का उपयोग करके भी इसे संरक्षित किया जा सकता है।

यह ऊर्जा के कुछ नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय स्रोत थे। इससे हमें यह पता चला कि यह पृथ्वी पर किस अवस्था में पाए जातें हैं तथा इनका संरक्षण कैसे किया जाना चाहिए। साथ ही साथ हमें ऊर्जा के स्रोतों की जानकारी भी मिली।अतः हमारे पर्यावरण तथा मानव जीवन के लिये हमें इसे बचने की आवश्यकता हैं। 

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