जल संसाधन से क्या तात्पर्य है? (Water Resources in hindi):जल संसाधन को बचाने हेतु परियोजनाएं
जल संसाधन पृथ्वी पर पाए जाने वाले संसाधनों में से एक महत्वपूर्ण संसाधन है जिसके बिना हम पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आज नीचे हम यह जानेंगे कि जल संसाधन क्या होता है और जल कितने प्रकार का होता है तथा यह पृथ्वी पर इसके कितने स्रोत हैं जिससे हम जल प्राप्त करते हैं। इसके अलावा जल पर उपयोग किए जाने वाले बजट का भी हम नीचे अध्ययन करेंगे।
भूमि के बाद सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन जल है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के जल को जल संसाधन के अंदर ही रखा जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के नीचे तथा ऊपर सभी जगह पाए जाने वाले जल को जल संसाधन कहते हैं। पर्वतों पर जल ठोस अवस्था में रहता है वायुमंडल में जलवाष्प अवस्था में रहते हैं तो पृथ्वी पर जल तरल अवस्था में रहता है।
जल की आवश्यकता (Water Requirement)
पृथ्वी पर जितने भी जीवधारी उपस्थित हैं उनके संरचना में पानी का एक बहुत ही बड़ा भाग होता है। मनुष्य का शरीर 65% पानी से बना होता है अर्थात उनके शरीर में 65 प्रतिशत पानी होता है। यही नहीं बल्कि उसकी संपूर्ण क्रियाओं में और उसके स्वयं के रखरखाव में भी पानी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह हड्डियों के बीच के जोड़ को चिकना बनाए रखते हैं ताकि वे आपस में रगड़ ना खाएं और एक दूसरे को हानि ना पहुंचाएं। ऊतकों और मांसपेशियों को घेर कर उन्हें आपस में चिपकने से रोकता है। शरीर के अंदर अत्यंत महत्वपूर्ण अवयव होते हैं जैसे के हृदय, मस्तिष्क इत्यादि को पानी से बने द्रव का एक कवचल संरक्षण प्रदान करता है। यही नहीं यह शरीर के अंदर एक महत्वपूर्ण संचार माध्यम भी है और शरीर के विभिन्न हिस्सों के बीच संपर्क बनाए रखता है । यही पोषक तत्व, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का वाहक है तथा शरीर के मलिन पदार्थों को पसीने, मल और मूत्र के जरिए शरीर से बाहर ले जाता है। इसी कारण पानी की कमी मनुष्य को सहन नहीं हो पाती है और पानी की कमी से उसकी मृत्यु तक हो जाती है।
भूमि के बाद सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन जल है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के जल को जल संसाधन के अंदर ही रखा जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के नीचे तथा ऊपर सभी जगह पाए जाने वाले जल को जल संसाधन कहते हैं। पर्वतों पर जल ठोस अवस्था में रहता है वायुमंडल में जलवाष्प अवस्था में रहते हैं तो पृथ्वी पर जल तरल अवस्था में रहता है।
जल की आवश्यकता (Water Requirement)
पृथ्वी पर जितने भी जीवधारी उपस्थित हैं उनके संरचना में पानी का एक बहुत ही बड़ा भाग होता है। मनुष्य का शरीर 65% पानी से बना होता है अर्थात उनके शरीर में 65 प्रतिशत पानी होता है। यही नहीं बल्कि उसकी संपूर्ण क्रियाओं में और उसके स्वयं के रखरखाव में भी पानी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह हड्डियों के बीच के जोड़ को चिकना बनाए रखते हैं ताकि वे आपस में रगड़ ना खाएं और एक दूसरे को हानि ना पहुंचाएं। ऊतकों और मांसपेशियों को घेर कर उन्हें आपस में चिपकने से रोकता है। शरीर के अंदर अत्यंत महत्वपूर्ण अवयव होते हैं जैसे के हृदय, मस्तिष्क इत्यादि को पानी से बने द्रव का एक कवचल संरक्षण प्रदान करता है। यही नहीं यह शरीर के अंदर एक महत्वपूर्ण संचार माध्यम भी है और शरीर के विभिन्न हिस्सों के बीच संपर्क बनाए रखता है । यही पोषक तत्व, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का वाहक है तथा शरीर के मलिन पदार्थों को पसीने, मल और मूत्र के जरिए शरीर से बाहर ले जाता है। इसी कारण पानी की कमी मनुष्य को सहन नहीं हो पाती है और पानी की कमी से उसकी मृत्यु तक हो जाती है।
आज हम नीचे जल के स्रोतों तथा जल के प्रकार के बारे में विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे :
जल के स्रोत (Sources of Water)
प्राकृतिक स्रोतों में जल का सबसे अधिक महत्व है तथा पृथ्वी पर जल 75% क्षेत्र को घेरे हुए हैं। जल के प्रमुख सूत्र इस प्रकार हैं
1. महासागर तथा समुद्री जल- यह पानी खारा होता है इसलिए यह बहुत ही कम उपयोगी होता है। पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल का 93 प्रतिशत भाग समुद्री जल का है।
2. नदियों का जल- नदियों का जल अपेक्षाकृत उपयोगी होता है।
3. वर्षा का जल
4. झीलों तथा तालाबों का जल।
5. कुओं, नलों तथा नलकूपों का जल।
आज नदियों को नलों तथा नलकूपों के जल का उपयोग पौधों की शिक्षाएं तथा घरेलू आवश्यकता हेतु उपयोग किया जाता है।
जल के प्रकार (Types of Water)
जल के निम्न प्रकार होते हैं जो इस प्रकार हैं-
1. अधोभौमिक जल (Subsoil Water) - जल का कुछ भाग भूमि के द्वारा सोख लिया जाता है।पृथ्वी के जिन भागों में दरारें होती है वहां से रिफ्रेश कर जल प्रति के नीचे चला जाता है जिसे अधो भौमिक जल कहते हैं। यह अवशोषित जल पृथ्वी के नीचे अनुभव में जल के रूप में पाया जाता है जिसे भूमि जल भी कहते हैं। हैंड पाइप नलकूप और कुआं द्वारा इस अधोभौमिक जल को पृथ्वी पर बाहर निकाला जाता है।
2. वर्षा का जल (Rain Water) - वर्षा के द्वारा प्राप्त जल को वर्षा का जल कहते हैं। अधिक तापमान के कारण समुद्रों काजल भाप बनकर वायुमंडल में चला जाता है जहां वह मेल के रूप में रहता है। जमिन मेघों का भार वायु सहने में असमर्थ हो जाती है तो जल वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आ जाता है। यह जल का सदस्य शुद्ध रूप होता है। इसीलिए इस जल को संरक्षित करके इस्तेमाल किया जाता है।
3. नदी का जल (River Water) - नदी समुद्र और तालाबों में वर्षा का जल ही पाया जाता है। पृथ्वी पर बहने वाले जल की धारा को नदी या सरिता कहते हैं। उत्तर भारत में बहने वाली प्रमुख नदियां जैसे गंगा यमुना ब्रह्मपुत्र घाघरा गंडक कोसी चंबल इत्यादि नदियां पर्वतों की हिना से चोटी चोटी से निकलने के कारण वर्ष भर जल से भरी रहती है। दक्षिण भारत की नदियां नर्मदा तापी महानदी गोदावरी और कृष्णा मुख्य है नर्मदा और ताप्ती नदी पश्चिम की ओर अरब सागर में गिरती है और अन्य नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कुछ नदियां झीलों झरना बादल क्षेत्र से ही निकलती हैं।
पृथ्वी पर जल का रूप (Form of Water on Earth)
पृथ्वी पर जल हमें कई रूपों में मिलता है जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं-
* समुद्री जल (Sea Water) - समुद्री जल खारा होता है। यह जल किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त नहीं होता है। इस जल में परिवहन कार्य, मत्स्य पालन का कार्य और नमक बनाने का काम होता है। नदियां अपने साथ जो लवण बहाकर लाती हैं उसे समुद्रों में गिरा देते हैं जिससे समुद्री जल खारा हो जाता है। सागरों से जल का वाष्पीकरण होता है जिससे जल की काफी मात्रा वाष्प बनकर उड़ जाती है और लवण नीचे रह जाते हैं जिससे समुद्रों का जल और खड़ा हो जाता है। भारत के प्रायद्वीप भाग के दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में समुद्र पाया जाता है जिससे भारत में विदेशी व्यापार, मत्स्य पालन और अन्य समुद्र संसाधन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। मुंबई, कोचीन, कांधला, कोलकाता, विशाखापट्टनम आदि भारत के प्रमुख बंदरगाह है जिनसे विदेशी व्यापार भी होता है।
* तालाब का जल (Pond Water) - भूमि के निचले भागों में वर्षा का जल एकत्र होकर तालाब का रूप धारण कर लेता है। तालाब के विस्तृत रूप को झील करते हैं। कुछ तालाब प्राकृतिक होते हैं तो कुछ का निर्माण कृत्रिम रूप से भी किया जाता है। नदी के ऊपर बांध बनाने के से कृत्रिम जलाशयों का निर्माण होता है। नदी में धारा का प्रवाह निरंतर होता है जबकि जलाशयों का जलस्तर रहता है। भारत में 2,00,000 जलाशय पाए जाते हैं जिनसे सिंचाई व मत्स्य पालन किया जाता है। इनसे देश के 6.0% भागों पर सिंचाई होती है। भारत के तमिलनाडु राज्य में सबसे ज्यादा सिंचाई तालाबों से होती है। भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और पश्चिमी बंगाल में तालाबों द्वारा जल की आवश्यकता की पूर्ति की जाती है।
* बाढ़ (Flood) - भारत में मानसूनी हवाओं से लगातार वर्षा होने से नदियों में बाढ़ (Flood) की स्थिति आ जाती है। बाढ़ से खड़ी फसलों और अपार धन जन की हानि होती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम राज्य में प्रति वर्ष बाहर से काफी नुकसान होता है। जिन नदियों का क्षेत्र भूकंप और भूस्खलन से प्रभावित होता है वहां अधिक बाढ़ आती है । भारत में प्रतिवर्ष बाढ़ की वृद्धि का मुख्य कारण वनों की कटाई है। क्योंकि वर्षा की जड़ें गहराई तक मिट्टी को पकड़े रहती हैं जिससे मिट्टी बह नहीं पाती है और बाढ़ की संभावना कम हो जाती है।
- बाढ़ नियंत्रण (Flood control)
1. भूमि पर अधिक से अधिक वन लगाना जिससे भूमि का कटाव रोका जा सकता है।
2. समय-समय पर नदियों को अधिक गहरा करना जिससे उसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक हो जाए।
3. बाढ़ ग्रस्त नदियों के ऊपर तट बांध बनाए गए हैं जिससे भविष्य में बाढ़ ना आए।
4. सरकार ने 1954 में बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम बनाए और सन 1976 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की स्थापना की।
5. 1991 में 154067 किलोमीटर लंबे तट बांध बनाए गए, 857 नगर बांध बचाओ योजनाएं शुरू की गई, 5000 गांवों के तल को ऊंचा करने पर काम किया गया है।
6. बाढ़ की पूर्व चेतावनी के लिए 151 'बाढ़ पूर्व सूचना संगठन' की स्थापना की गई है।
जल का बजट और उपयोग (Water budget and Use)
भारत के कुल क्षेत्रफल और वार्षिक वर्षा के औसत के अनुसार कुल जल संसाधन 16.7 करोड़ हेक्टेयर का है। यहां प्रति व्यक्ति जल की 610 घन मीटर की मात्रा का उपभोग करता है। भारत में सिंचाई के लिए केवल 6.6 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल का ही उपयोग होता है। भारत में आर्थिक तथा प्राविधिक संसाधनों की सीमाओं को ध्यान में रखकर सन् 2010 तक जल संसाधनों के क्रमबद्ध उपयोग की सीमा निर्धारित की है। स्वतंत्रता के समय केवल 2.6 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती थी जिसे बढ़ाकर 4.2 करोड़ है हेक्टेयर कर दिया गया है। जल संसाधन की अनुभागिता क्षमता में भूमिगत जल को भी सम्मिलित किया गया है। भूमिगत जल के संभावित उपयोग के अनुमानित मात्रा 4 करोड़ हेक्टेयर है जिसमें केवल 1 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल का उपयोग हो रहा है। देश में 3 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल का उपयोग करना बाकी है। भारत में जल का संभावित बजट उपलब्ध है परंतु फिर भी राष्ट्रीय जल का बजट संतुलित अवस्था में नहीं है।
भारत में सिंचाई के कई प्रकार के साधन उपलब्ध हैं, जैसे नेहरों द्वारा सिंचाई, कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई, तालाबों द्वारा सिंचाई।
जल बजट और खाद्यान्न बजट का महत्व (Importance of Water Budget and Food Budget)
भारत में सिंचाई के कई प्रकार के साधन उपलब्ध हैं, जैसे नेहरों द्वारा सिंचाई, कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई, तालाबों द्वारा सिंचाई।
जल बजट और खाद्यान्न बजट का महत्व (Importance of Water Budget and Food Budget)
जल तथा खाद्यान्न बजट दोनों का ही महत्व बहुत अधिक है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार यहां की कृषि है इसलिए कृषि के महत्व को बढ़ाना बहुत ही आवश्यक है। भारत में वर्ष भर फसलें उत्पन्न की जाती हैं परंतु भारतीय कृषि को 'मानसून का जुआ' कहते हैं क्योंकि मानसूनी वर्षा पर ही यहां की कृषि आधारित होती है। सिंचाई के द्वारा भी खेतों को हरा-भरा किया जाता है। घरेलू कार्यों में भी जल की आवश्यकता होती है यदि हमें खाद्यान्नों में वृद्धि करनी है तो जल संसाधनों में भी वृद्धि करनी ही होगी जिससे खाद्यान्न के उत्पादन में उचित सफलता मिल सके। यदि ऐसा नहीं होता है तो खाद्यान्न बजट भी प्रभावित होगा और जल संसाधन भी प्रभावित होगा, जिससे जल विद्युत शक्ति का उत्पादन भी नहीं हो पाएगा इसलिए जल बजट और खाद्यान्न बजट में समानता बनाए रखना बहुत ही जरूरी है।
ऊपर हमने यह पड़ा कि जल संसाधन का हमारे जीवन में कितना ही अधिक महत्व है। हमने इसके स्रोतों तथा जल के प्रकार के बारे में जाना और यह भी जाना कि जल का बजट और उसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए हमें जल संसाधनों को बचाने की आवश्यकता है क्योंकि यदि यह नहीं रहे तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होगा। तो आइये अब हम जानते हैं कुछ परियोजनाओं के बारे में जिसे जल संसाधन के संरक्षण तथा जल के उचित उपयोग हेतु लागू किया गया था....
ऊपर हमने यह पड़ा कि जल संसाधन का हमारे जीवन में कितना ही अधिक महत्व है। हमने इसके स्रोतों तथा जल के प्रकार के बारे में जाना और यह भी जाना कि जल का बजट और उसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए हमें जल संसाधनों को बचाने की आवश्यकता है क्योंकि यदि यह नहीं रहे तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होगा। तो आइये अब हम जानते हैं कुछ परियोजनाओं के बारे में जिसे जल संसाधन के संरक्षण तथा जल के उचित उपयोग हेतु लागू किया गया था....
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं (Multipurpose River Valley Projects)
बहुउद्देशीय परियोजनाओं से मतलब ऐसी परियोजनाओं से होता है जिसका निर्माण कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। इन परियोजनाओं के निर्माण का मुख्य उद्देश्य भारत का चौतरफा विकास अर्थात भारत का हर तरफ से विकास करना होता है। इसके अंतर्गत सिंचाई, जल विद्युत, बाढ़ नियंत्रण, नौका वाहन और पारितंत्र का संचरण करना आता है। भारतीय कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना इसका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है। देश के बहुमुखी विकास में इन नदी घाटी योजनाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत के तीर्थ और मंदिर की संज्ञा दी है। इन बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण करने से भारत के विकास में काफी सुधार हुआ है लेकिन उतना नहीं जितना कि होना चाहिए।- नदी घाटी परियोजना के उद्देश्य (Objectives of River Valley Project)
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजन के कई उद्देश्य हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार है :
- बाढ़ पर नियंत्रण के साथ ही मिट्टी का कटाव रोकना।
- सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करना।
- जल शक्ति का उत्पादन करना।
- जल परिवहन का विकास करना।
- सस्ती बिजली प्राप्त कर औद्योगिक विकास करना।
- जलाशयों में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देना।
- इनका उद्देश्य योजनाबद्ध तरीके से वृक्षारोपण करके वन का विस्तार करना भी है।
- अकाल के समय जल को सूखे क्षेत्रों में भेजना।
- शहरी लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना।
- पशुओं के लिए हरे चारे की व्यवस्था करना।
- दलदली भागों को सुखाकर उनको उपयोगी बनाना।
- जलाशयों के निकट प्राकृतिक सौंदर्य और मनोरंजन के साधनों का विकास करना।
- इनका उद्देश्य क्षेत्रीय नियोजन के द्वारा उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण और समुचित उपयोग करके विकास करना।
बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना का महत्व (Significance of Multipurpose River Valley Project)
बहुत ऐसी नदी घाटी परियोजनाओं को भारत के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा आधार स्तंभ माना जाता है। इनके कई महत्व होते हैं जिनमें से कुछ महत्व निम्नलिखित हैं :
- नदियों पर बांध बनाकर जल विद्युत का उत्पादन होता है। यह ऊर्जा का स्वच्छ भारत और प्रदूषण मुक्त साधन है।
- बांध बनाकर जल की तीव्रता को रोका जाता है जिससे बाढ़ को रोका जा सके और मिट्टी का संरक्षण भी हो सके तथा साथ ही बाढ़ से होने वाली जनधन की हानि को भी रोका जा सके।
- नदियों पर बांध बनाकर नेहरें निकाली जाती हैं जिनमें वर्षा का जल एकत्र किया जाता है। इन बांधों के जल का प्रयोग गर्मी में सिंचाई के लिए किया जाता है जिससे यदि गर्मियों में वर्षा ना हो तो फसलें बर्बाद ना हो।
- परियोजना के तहत बने जलाशयों में मछलियां पाली जाती हैं। जिससे मत्स्य पालन को बढ़ावा मिलता है तथा इसके अंतर्गत लोगों को रोजगार भी मिलता है।
- नदियों पर बांध बनाकर पीने योग्य पानी की व्यवस्था की जाती है
- उद्योगों के विकास के लिए सस्ती बिजली की आपूर्ति की जाती है।
- बहुउद्देशीय परियोजना के अंतर्गत नदियों और नहरों में जल परिवहन का विकास किया जाता है।
- खाली पड़े स्थानों पर पार्क, उद्यान बाघ और बगीचों का निर्माण कर के प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि की जाती है।
- जल संग्रहण क्षेत्र में योजनाबद्ध रूप में वृक्षारोपण किया जाता है जिससे पारितंत्र का संरक्षण हो सके और वन्यजीवों को आश्रय मिल सकते हैं।
- परियोजनाओं की मदद से सर्वांगीण विकास कर के जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जाता है।
- जल का प्रबंधन (Water Management)
जल प्रबंधन का तात्पर्य उपलब्ध जल संसाधनों का उचित विदोहन और उपयोग करना है। प्राचीन समय में जल का उपयोग केवल सिंचाई के लिए किया जाता था परंतु वर्तमान समय में इसका व्यापक उपयोग होता है। जब तक किसी भी साधन के उपयोग की उचित व्यवस्था प्रबंध नहीं किया जाता है तब तक आपूर्ति अनिश्चित और अनियमित रहती है। जल का उपयोग सिंचाई, पीने, उत्पादन इत्यादि के लिए किया जाता है। किसी स्थान पर जल की कितनी मात्रा है, उस स्थान पर जल का उपयोग कितना है, इन सब चीजों का निर्धारण करना ही जल प्रबंधन कहलाता है। जल प्रबंधन के द्वारा हम जल का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं।
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं
बहुउद्देशीय परियोजना का मतलब होता है ऐसी परियोजना जिसका जिसके निर्माण से कई उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। इन परियोजना के निर्माण का मुख्य उद्देश्य भारत का चौतरफा विकास अर्थात हर तरफ से पास करना होता है। आज हम भारत के उन प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के वर्णन करेंगे जिनका निर्माण भारत के विकास के उद्देश्य से किया गया है।
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत हम इन निम्नलिखित परियोजनाओं का आज वर्णन करेंगे
बहुउद्देशीय परियोजना का मतलब होता है ऐसी परियोजना जिसका जिसके निर्माण से कई उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। इन परियोजना के निर्माण का मुख्य उद्देश्य भारत का चौतरफा विकास अर्थात हर तरफ से पास करना होता है। आज हम भारत के उन प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के वर्णन करेंगे जिनका निर्माण भारत के विकास के उद्देश्य से किया गया है।
भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत हम इन निम्नलिखित परियोजनाओं का आज वर्णन करेंगे
- दामोदर घाटी परियोजना
- भांगड़ा नांगल परियोजना
- हीराकुंड बांध परियोजना
- रिहंद बांध परियोजना
- तुंगभद्रा परियोजना
- नागार्जुन सागर परियोजना
- इंदिरा गांधी नहर परियोजना
- टिहरी बांध परियोजना
- दामोदर घाटी परियोजना (Damodar Valley Project)
इस परियोजना के अंतर्गत उसकी सहायक नदियां कोनार, मैथान, तिलैया, पंचमहाल, बाल पहाड़ी, बोकारो, बर्मो और दुर्गापुर स्थान पर 8 बांध बनाए गए हैं। बोकारो, दुर्गापुर और चंद्रपुरा में तीन तापीय विद्युत गृह बनाए गए हैं।
इन बांधों से 2500 किलोमीटर लम्बी दो नेहरें निकाली गई हैं जिनसे 7.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। इस परियोजना द्वारा 1,187 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। यह परियोजना छोटा नागपुर पठार के उजाड़ और वीरान क्षेत्र के लिए वरदान सिद्ध हुई है।
दामोदर घाटी के ऊपरी भाग में वन लगाकर भू-क्षरण नियंत्रित किया गया है। नहर के कारण पश्चिम बंगाल और झारखंड से कोयला अभ्रक इत्यादि को नावों द्वारा कारखानों तक पहुंचाया जाता है तथा बोकारो, सिंदरी, दुर्गापुर, कोडरमा के औद्योगिक केंद्रों पर इस परियोजना के द्वारा सस्ती जल-विद्युत भी भेजी जाती है।
भांगड़ा से 13 किलोमीटर नीचे नांगल स्थान पर नांगल बांध बनाया गया है जो 29 मीटर ऊंचा तथा 315 मीटर लंबा है। इसकी सहायता से नदी के जलस्तर को 15 मीटर ऊंचा उठाया गया है। इस बांध पर 28 निकास द्वार है। भांगड़ा बांध से पांच नेहरें निकाली गई हैं- भांगड़ा की मुख्य नहर, सरहिंद नहर, विस्त दोआब नहर, नरवाना शाखा नहर तथा नांगल जल विद्युत नहर।
दामोदर घाटी के ऊपरी भाग में वन लगाकर भू-क्षरण नियंत्रित किया गया है। नहर के कारण पश्चिम बंगाल और झारखंड से कोयला अभ्रक इत्यादि को नावों द्वारा कारखानों तक पहुंचाया जाता है तथा बोकारो, सिंदरी, दुर्गापुर, कोडरमा के औद्योगिक केंद्रों पर इस परियोजना के द्वारा सस्ती जल-विद्युत भी भेजी जाती है।
- भांगड़ा नांगल परियोजना (Bhangra Nangal Project)
भांगड़ा से 13 किलोमीटर नीचे नांगल स्थान पर नांगल बांध बनाया गया है जो 29 मीटर ऊंचा तथा 315 मीटर लंबा है। इसकी सहायता से नदी के जलस्तर को 15 मीटर ऊंचा उठाया गया है। इस बांध पर 28 निकास द्वार है। भांगड़ा बांध से पांच नेहरें निकाली गई हैं- भांगड़ा की मुख्य नहर, सरहिंद नहर, विस्त दोआब नहर, नरवाना शाखा नहर तथा नांगल जल विद्युत नहर।
इस परियोजना द्वारा 3 विद्युत गृह बनाए गए हैं जिनमें से दो गंगुवाल और कोटला में तथा तीसरा रोपड़ में है। इन विद्युत ग्रहों में 12,00 मेगावाट की बिजली पैदा की जाती है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा दिल्ली के शहरों व गांवों को इसी परियोजना के द्वारा बिजली प्राप्त होती है। भांगड़ा बांध से 1,100 किलोमीटर लंबी नहर निकाली गई है जिससे 27 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। इसका सबसे ज्यादा फायदा राजस्थान को हुआ है। इसी नहर के कारण पंजाब व हरियाणा राज्य में चावल, गेहूं, गन्ना व तिलहन की खेती में वृद्धि हुई है। इस परियोजना से राजस्थान, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के उद्योगों को विद्युत प्राप्त होती है। यह परियोजना भारत के बहुमुखी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
- हीराकुंड बांध परियोजना (Hirakud Dam Project)
हीराकुंड बांध बन जाने से महानदी में आने वाली बाढ़ पर काफी नियंत्रण पा लिया गया है जिससे वहां की मिट्टी का अपरदन भी कम हो गया है। इनके कारण कमांड क्षेत्र में पड़ने वाला अकाल खत्म हो गया है।इससे उत्पन्न जल विद्युत का उपयोग उद्योग धंधों में किया जा रहा है। इस परियोजना के द्वारा राउरकेला का लोहा इस्पात, हीराकुंड का एलुमिनियम कारखाना, राजभंगपुर का सीमेंट उद्योग, बृजराज नगर का कागज व सूती वस्त्र उद्योग काफी विकसित हो गया है। इस परियोजना से उड़ीसा के महानदी डेल्टा का बहुमुखी विकास हुआ है, इसीलिए इसे उड़ीसा का 'नया तीर्थ' कहकर पुकारा जाता है।
इस परियोजना के अंतर्गत ओबरा नामक स्थान पर ही 300 मेगावाट क्षमता का जल विद्युत शक्ति गृह बनाया गया है। जिसमें 600 किलोमीटर लंबी एक नहर निकाली गई है जिससे 6.0 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। उत्तर प्रदेश के उद्योग के विकास के लिए यह इन क्षेत्रों को सस्ती जलविद्युत भी प्राप्त कराती है। मुगलसराय व पटना के मध्य रेल गाड़ी चलाने में भी इस जल विद्युत शक्ति का प्रयोग होता है। सोन नदी के प्रवाह को कम करके मिट्टी के कटाव को रोका गया है। इस परियोजना से उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार का बहुमुखी विकास हुआ है। इसके पीछे एक कृत्रिम झील बनाई गई है जिसका नाम गोविंद बल्लभ सागर है जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
तुंगभद्रा परियोजना से मुनीराबाद, हंपी तथा हॉस्पेट में तीन विद्युत गृह बनाए गए हैं जिससे 108 मेगावाट विद्युत पैदा की जाती है और इस विद्युत का प्रयोग सिंचाई तथा उद्योग धंधों में किया जाता है। इससे खाद्यान्न और व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ा है। इस परियोजना के कारण कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का आर्थिक विकास हुआ है।
नागार्जुन बांध से निकलने वाली नहरों से 8.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इस परियोजना द्वारा उत्पन्न जलविद्युत से आंध्र प्रदेश के औद्योगिक केंद्रों के विकास में सहायता मिलती है। वन क्षेत्र का विस्तार किया गया है और मत्स्य पालन उद्योग को बढ़ाया गया है। आंध्र प्रदेश का आधुनिक स्तरीय विकास इसी नदी घाटी परियोजना से हुआ है।
परियोजना का सूत्रपात - इस महान परियोजना की आधारशिला 31 मार्च, 1958 को तत्कालीन केन्द्रीय गृह मन्त्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने रखी थी। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान के एक बड़े भाग को हरा-भरा बनाने का कार्य 1958 में प्रारम्भ हुआ।
नहर का उद्गम स्थल- इंदिरा गाँधी नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर स्थित 'हरिके बैराज' से है। मुख्य नहर की लम्बाई 649 किलोमीटर है। नहर के प्रारम्भिक भाग 204 किलोमीटर (इसे फीडर नहर कहते हैं) की प्रथम 169 किमी लम्बाई पंजाब में, 14 किमी हरियाणा में एवं शेष 21 किमी राजस्थान में है। राजस्थान में यह नहर हनुमानगढ़ जिले की टीबी तहसील में खरा गांव के निकट प्रवेश करती है। निकास स्थल पर मुख्य नहर के तल की चौड़ाई 40 मीटर है। इसमें बहने वाले पानी की गहराई 6.4 मीटर तथा इसकी जल प्रवाह क्षमता 523 घन मीटर प्रति सेकण्ड (18,500 क्यूसेक्स) है।
महत्त्व व लाभ- इस परियोजना के द्वारा हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में लगभग 18.72 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। इसके खेतों की नालियों की लम्बाई 64 हजार किलोमीटर है। इससे प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख टन खाद्यान्न तथा लाखों टन कपास फसलें जैसे दालें, तिलहन, फल, सब्जियों आदि का भी उत्पादन होता है। इस परियोजना से लगभग 30 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिला है। इसके अतिरिक्त पेय जल की समस्या का निराकरण, मरुस्थल के प्रसार पर रोक, पशुपालन, मुर्गीपालन एवं बागवानी के उत्तम अवसर मिले हैं तथा इस पिछड़े हुए मरुस्थलीय क्षेत्र का बहुमुखी विकास हुआ है। इसके द्वारा सीमावर्ती भागों में वन क्षेत्र एवं अभ्यारण्यों का विकास हुआ है जिससे सारे क्षेत्र के पर्यावरण में पूरी तरह सुधार व संतुलन प्राप्त हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस परियोजना के द्वारा आने वाले समय में विस्तृत वनस्पतिहीन बंजर तथा पिछड़े क्षेत्र का स्वरूप बदल जाएगा|
- रिहंद बांध परियोजना (Rihand Dam Project)
इस परियोजना के अंतर्गत ओबरा नामक स्थान पर ही 300 मेगावाट क्षमता का जल विद्युत शक्ति गृह बनाया गया है। जिसमें 600 किलोमीटर लंबी एक नहर निकाली गई है जिससे 6.0 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। उत्तर प्रदेश के उद्योग के विकास के लिए यह इन क्षेत्रों को सस्ती जलविद्युत भी प्राप्त कराती है। मुगलसराय व पटना के मध्य रेल गाड़ी चलाने में भी इस जल विद्युत शक्ति का प्रयोग होता है। सोन नदी के प्रवाह को कम करके मिट्टी के कटाव को रोका गया है। इस परियोजना से उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार का बहुमुखी विकास हुआ है। इसके पीछे एक कृत्रिम झील बनाई गई है जिसका नाम गोविंद बल्लभ सागर है जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
- तुंगभद्रा परियोजना (Tungabhadra Project)
तुंगभद्रा परियोजना से मुनीराबाद, हंपी तथा हॉस्पेट में तीन विद्युत गृह बनाए गए हैं जिससे 108 मेगावाट विद्युत पैदा की जाती है और इस विद्युत का प्रयोग सिंचाई तथा उद्योग धंधों में किया जाता है। इससे खाद्यान्न और व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ा है। इस परियोजना के कारण कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का आर्थिक विकास हुआ है।
- नागार्जुन सागर परियोजना (Nagarjuna Sagar Project)
नागार्जुन बांध से निकलने वाली नहरों से 8.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इस परियोजना द्वारा उत्पन्न जलविद्युत से आंध्र प्रदेश के औद्योगिक केंद्रों के विकास में सहायता मिलती है। वन क्षेत्र का विस्तार किया गया है और मत्स्य पालन उद्योग को बढ़ाया गया है। आंध्र प्रदेश का आधुनिक स्तरीय विकास इसी नदी घाटी परियोजना से हुआ है।
- इंदिरा गांधी नहर परियोजना (Indira Gandhi Canal Project)
परियोजना का सूत्रपात - इस महान परियोजना की आधारशिला 31 मार्च, 1958 को तत्कालीन केन्द्रीय गृह मन्त्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने रखी थी। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान के एक बड़े भाग को हरा-भरा बनाने का कार्य 1958 में प्रारम्भ हुआ।
नहर का उद्गम स्थल- इंदिरा गाँधी नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर स्थित 'हरिके बैराज' से है। मुख्य नहर की लम्बाई 649 किलोमीटर है। नहर के प्रारम्भिक भाग 204 किलोमीटर (इसे फीडर नहर कहते हैं) की प्रथम 169 किमी लम्बाई पंजाब में, 14 किमी हरियाणा में एवं शेष 21 किमी राजस्थान में है। राजस्थान में यह नहर हनुमानगढ़ जिले की टीबी तहसील में खरा गांव के निकट प्रवेश करती है। निकास स्थल पर मुख्य नहर के तल की चौड़ाई 40 मीटर है। इसमें बहने वाले पानी की गहराई 6.4 मीटर तथा इसकी जल प्रवाह क्षमता 523 घन मीटर प्रति सेकण्ड (18,500 क्यूसेक्स) है।
महत्त्व व लाभ- इस परियोजना के द्वारा हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में लगभग 18.72 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। इसके खेतों की नालियों की लम्बाई 64 हजार किलोमीटर है। इससे प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख टन खाद्यान्न तथा लाखों टन कपास फसलें जैसे दालें, तिलहन, फल, सब्जियों आदि का भी उत्पादन होता है। इस परियोजना से लगभग 30 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिला है। इसके अतिरिक्त पेय जल की समस्या का निराकरण, मरुस्थल के प्रसार पर रोक, पशुपालन, मुर्गीपालन एवं बागवानी के उत्तम अवसर मिले हैं तथा इस पिछड़े हुए मरुस्थलीय क्षेत्र का बहुमुखी विकास हुआ है। इसके द्वारा सीमावर्ती भागों में वन क्षेत्र एवं अभ्यारण्यों का विकास हुआ है जिससे सारे क्षेत्र के पर्यावरण में पूरी तरह सुधार व संतुलन प्राप्त हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस परियोजना के द्वारा आने वाले समय में विस्तृत वनस्पतिहीन बंजर तथा पिछड़े क्षेत्र का स्वरूप बदल जाएगा|
- टिहरी बाँध परियोजना (Tehri Dam Project)
सन् 1972 में योजना आयोग ने टिहरी बाँध परियोजना को स्वीकृति दी थी। 1978 में सिंचाई विभाग द्वारा बाँध का निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन बाँध निर्माण की धीमी गति को देखते हुए वर्ष 1989 में टिहरी जल बाँध निगम बनाकर इस निगम को निर्माण कार्य सौंपा गया। बाँध का निर्माण कार्य पूरा होने पर 2,400 मेगावाट विद्युत उत्पादन तथा 2.7 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने की सम्भावना है। बाँध के जल से दिल्ली तथा उ० प्र० के लगभग 70 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। टिहरी बाँध की लागत ₹6,500 करोड़ है। इस बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है, जिसमें 45 वर्ग किलोमीटर जल भराव होता है। टिहरी बाँध बनने पर लगभग एक लाख आबादी प्रभावित हुई है, पुनर्वास पर लगभग ₹582 करोड़ व्यय किया गया है। 30 जुलाई, 2006 को केन्द्र सरकार द्वारा 2400 मेगावाट की टिहरी बाँध परियोजना के 1000 मेगावाट के पहले चरण का लोकार्पण किया गया।
यह कुछ भारत की प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं हैं जिनके द्वारा जल संसाधन (Water Resources) का बहुत ही सही ढंग से प्रयोग किया जा रहा है। तथा इसके द्वारा जल संसाधन का संरक्षण भी हो रहा है और उस जल को सही जगह प्रयोग किया जा रहा है जिससे मानव जीवन तथा पर्यावरण सुखद है।
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