संघ एकाइनोडर्मेटा (Phylum Echinodermata): परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण|hindi


संघ एकाइनोडर्मेटा (Phylum Echinodermata): परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण
संघ एकाइनोडर्मेटा (Phylum Echinodermata): परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण|hindi

परिचय एवं परिभाषा (Introduction and Definition)
यह द्विपार्श्वीय एवं ड्यूटरोस्टोमी यूसीलोमैट यूमेटाजोआ होते हैं जिनकी खुरदरी, दृढ़ एवं चिम्मड़ त्वचा में कैल्सियमयुक्त अस्थिकाएँ (ossicles) एवं कण्टिकाएँ  होती हैं तथा मूल द्विपाश्र्वय सममिति वयस्क अवस्था में पंचतयी अरीय सममिति (pentamerous radial symmetry) में बदल जाती है। हम इन्हें इस तरह समझ सकते हैं- (Gr., echinos = spiny + dermatos = skin)। इसकी लगभग 5,500 विद्यमान और 20,000 विलुप्त जातियाँ ज्ञात है। इसकी विद्यमान जातियाँ सब समुद्री हैं। यह अधिकांश समुद्रतल के वासी होते हैं।


संक्षिप्त इतिहास (Brief History)
इस संघ को यह नाम जैकब क्लीन (Jacob Klein, 1738) ने दिया। लिनियस ने इसके सदस्यों को संघ मोलस्का में रखा। लैमार्क ने इन्हें वर्ग रेडिएटा के गण एकाइनोडर्मिस (Echinodermes) में रखा। ल्यूकर्ट (Leuckart, 1847) ने इस समूह को संघ का दर्जा दिया।


लक्षण (Characters)
इस संघ के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  1. इस संघ के जंतुओं का शरीर गोल, नालवत् या तारेसदृश, त्रिस्तरीय, खण्डविहीन होता है। इसकी सममिति (symmetry) शिशु प्रावस्था में द्विपार्श्वय होती है परन्तु वयस्क में पंचतयी अरीय (pentamerous radial)। 
  2. इनके शरीर में स्पष्ट शीर्ष (head) होता है किंतु मस्तिष्क का अभाव रहता है।
  3. इनका मुखवर्ती तल (oral surface) पाँच अरीय ऐम्बुलैकल (ambulacral) तथा पाँच अन्तरा-ऐम्बुलैकल (interam bulacral) क्षेत्रों में विभेदित रहता है।
  4. इनके शरीर की खुरदरी, दृढ़ व चिम्मड़ देहभित्ति में कैल्सियमयुक्त अस्थिकाओं या कण्टिकाओं का अन्तःकंकाल होता है। 
  5. इनकी देहगुहा वास्तविक एन्टीरोसीलिक सीलोम द्वारा बनी रहती है। यह रोमाभि (ciliated) पेरीटोनियम द्वारा घिरी तथा अनेक नलिकाओं एवं पात्रों (sinuses) में बँटी रहती है जिनसे कि तीन विशिष्ट तन्त्र (systems) बनते हैं-जल-संवहनी (water-vascular), हीमल (haemal) तथा पेरीहीमल (perihaemal)।
  6. इनमें गमन के लिए जल-संवहनी तन्त्र से सम्बन्धित विशेष प्रकार के छोटे-छोटे खोखले प्रवर्ध, अर्थात् नालपाद (tube feet) उपस्थित रहते हैं। जो भोजन ग्रहण, संवेदना ग्रहण तथा प्रायः श्वसन में भी सहायक होते हैं।
  7. इस संघ के जीवों के शरीर में उपस्थित हीमल एवं पेरीहीमल तन्त्रों का सम्बन्ध रुधिर संचरण से होता है।
  8. इनका पाचन तन्त्र सरल होता है तथा इनकी आहारनाल प्रायः कुण्डलित रहती है।
  9. इनमें विशिष्ट उत्सर्जन अंगों का अभाव रहता है। लेकिन विशिष्ट श्वसनांग अनेक जीवों में उपस्थित रहते हैं।
  10. इनके शरीर में तन्त्रिका तन्त्र तथा संवेदांग अपेक्षाकृत कम विकसित रहते हैं। इनमें कोई केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र नहीं होता है।
  11. इस संघ के जंतुओं में जनन मुख्यतः लैंगिक होता है तथा इनमें जननांग प्रायः एकलिंगी होते हैं। इस संघ के जंतुओं में पुनरुत्पादन (regeneration) की क्षमता बहुत अधिक होती है। 
  12. इनमें निषेचन प्रायः जल में होता है तथा इनके जीवन वृत्त में एक द्विपार्श्वीय, रोमाभयुक्त शिशु प्रावस्था होती है। इसके रूपान्तरण से वयस्क का विकास होता है।
संघ एकाइनोडर्मेटा (Phylum Echinodermata): परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण|hindi



वर्गीकरण (Classification)
शरीर की आकृति, त्वक् कंकाल के लक्षणों, गुदा की स्थिति, जल-संहवनी तन्त्र के कार्यों तथा पाचन तन्त्र के आधार पर संघ की विद्यमान जातियों को तीन उपसंघों और पाँच वर्गों में बाँटते हैं-

1. उपसंघ क्राइनोजोआ (Subphylum Crinozoa)
इस उप संघ के सभी वर्तमान सदस्य एक ही वर्ग में उपस्थित रहते हैं। जो इस प्रकार हैं-

वर्ग क्रिनॉइडिया (Class Crinoidea): इस वर्ग के जंतुओं के लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इस वर्ग के जंतुओं का शरीर चपटा, पंचतयी; एक छोटे, वृत्ताकार से केन्द्रीय विम्ब (central disc) और बिम्ब से निकली पाँच या अधिक (पाँच के बहुगुणों में) लम्बी, पतली, शाखान्वित व लचीली अरीय भुजाओं में विभेदित रहता है। 
  • इसके केन्द्रीय बिम्ब के चारों ओर कैल्सियमयुक्त प्लेटों का बना प्याली या पुटकनुमा दृढ़ खोल होता है जिसे कैलिक्स (calyx) कहते हैं। कैलिक्स एक वृन्त (staik) या निचली, अपमुखीय (aboral) सतह द्वारा किसी वस्तु से चिपका रहता है। 
  • इनमें उपस्थित कैलिक्स की ऊपरी सतह पर मध्य में मुखद्वार तथा एक ओर गुदा रहता है। इनके मुख से पाँच ऐम्बुलैक़ल खाँचें भुजाओं के छोरों तक फैलीं रहती हैं। 
  • इनमें नालपाद केवल केन्द्रीय बिम्ब पर होता है, चूषक सदृश होता है जो भोजन ग्रहण में भी प्रायः सहायक होता है। 
  • इनकी त्वचा में पेडिसिलेरी एवं कण्टिकाओं का अभाव रहता है। उदाहरण समुद्री लिलीज (Sea Lilies) तथा पंख-तारे (Feather stars) जैसे ऐन्टीडॉन (Antedon)।

2. उपसंघ एकाइनोजोआ (Subphylum Echinozoa)
इस उप संघ के जंतुओं का शरीर गोल-सा स्वतन्त्र एवं वृन्तविहीन होता है। इनका मुख प्रायः निचली (अधर) सतह पर होता है। इस उप संघ की विद्यमान जातियाँ दो वर्गों में वर्गीकृत–

1. वर्ग होलोथुरॉइडिया (Class Holothuroidea) :
इस वर्ग के जंतुओं का प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  • किस वर्ग के जंतुओं का शरीर भुजाओं में बँटा नहीं होता है, वरन् लम्बा, मोटा एवं ककड़ी की भाँति नालवत्-सा होता है। 
  • इनके अग्र छोर पर मुखद्वार तथा पश्च छोर पर गुदा होती है। 
  • इनमें मुखद्वार के चारों ओर खोखले स्पर्शक (tentacles) उपस्थित रहते हैं। 
  • इनमें नालपाद प्रायः उपस्थित रहती है जो चूषकयुक्त होती है।
  • इनकी त्वचा अपेक्षाकृत कोमल होती है, परन्तु चीमड़ जैसी होती है अर्थात इसमें कण्टिकाओं एवं पेडिसिलेरी का अभाव होता है।
  • इनके शरीर में कंकाल त्वचा में धँसी सूक्ष्म एवं पृथक् कैल्सियमयुक्त अस्थिकाओं (ossicles) का बना होता है। 
  • इनमें श्वसन एवं उत्सर्जन के लिए अवस्कर मार्ग (cloaca) से सीलोम में फैली दो लम्बी शाखान्वित नलिकाएँ (श्वसन वृक्ष-respiratory trees) होती है।
  • इनमें शिशु प्रावस्था होती है जो ऑरीकुलेरिया (Auricularia) लार्वा के द्वारा बनता है। उदाहरण- विविध समुद्री खीरे (sea cucumbers) जैसे होलोथूरिया (Holothuria), कुकुमेरिया (Cucumaria), आदि।

2. वर्ग एकाइनॉइडिया (Class Echinoidea):
इस वर्ग के जंतुओं का प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
  • इनका शरीर भुजाओं में बँटा नहीं होता है, वरन् गोल गेंद-सदृश या चपटा, वृत्ताकार-सा होता है। 
  • इसकी सतह पर बड़े-बड़े हिलने-डुलने वाले काँटे उपस्थित रहते हैं।
  • इनमें मुखद्वार निचले ध्रुव पर उपस्थित रहता है जो पाँच कठोर दाँतों द्वारा ढ़का रहता है जो भोजन को चबाने के लिए “ऐरिस्टॉटल की लालटेन (Aristotle's lantern)” नामक उपकरण (apparatus) बनाते हैं।
  • इनमें गमन चूषकयुक्त नालपादों द्वारा होता है।
  • इनकी त्वचा का कंकाल ठोस डिब्बे की भाँति होता है।
  • इनकी त्वचा में तीन जबड़ों वाली पेडिसिलेरी उपस्थित रहती है। 
  • इनके शरीर में गुदा उपस्थित रहता है। 
  • इनमें शिशु प्रावस्था प्लूटियस (Pluteus) या एकाइनोप्लूटियस (Echinopluteus) लार्वा होती है। उदाहरण— -समुद्री अर्चिन्स (sea urchins) जैसे एकाइनस (Echinus), साल्मैसिस (Salmacis), आदि।


3. उपसंघ ऐस्टीरोजोआ (Subphylum Asterozoa) 
इस उप संघ के जंतु स्वतन्त्रतापूर्वक गमनशील होते हैं। इनकी भुजाएं अत्यधिक विकसित होती हैं। इस उप संघ को दो प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

1. वर्ग ऐस्टीरॉइडिया (Class Asteroidea) : इसके अंतर्गत तारा मछलियाँ (starfishes) आती है। इस वर्ग के जंतुओं के लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इनका शरीर चपटा, पंचतयी, तारेसदृश अर्थात तारे जैसा दिखाई देता है।
  • इनमें भुजाएँ (arms) पाँच या पाँच के बहुगुणों में, अपेक्षाकृत छोटी व अशाखित होती हैं। 
  • इनके शरीर में मुखद्वार केन्द्रीय भाग की निचली सतह पर मध्य में तथा गुदा ऊपरी सतह पर उपस्थित रहता है। 
  • इनमें नालपाद चूषकयुक्त होते हैं।
  • इनकी त्वचा का कंकाल पृथक् व लचीली अस्थिकाओं का बना होता है जिसमें अनेक सूक्ष्म चिमटीसदृश पेडिसिलेरी (pedicellariae) एवं कण्टिकाएँ शरीर-सतह से उभरी रहती हूं। 
  • इनकी शिशु प्रावस्था बाइपिनैरिया (bipinnaria) तथा ब्रेकिओलैरिया (Brachiolaria) होती है। उदाहरण- तारा मछली-पेन्टासिरॉस (Pentaceros), ऐस्टीरियस (Asterias) तथा अन्य प्रकार की तारा मछलियाँ।

2. वर्ग ऑफियुरॉइडिया (Class Ophiuroidea): इसके अंतर्गत ब्रिटिल तारे (Brittle stars) आते हैं। इस वर्ग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इनका शरीर एक छोटे व चपटे केन्द्रीय बिम्ब जैसा होता है तथा इससे निकली पाँच, लम्बी, लचीली वं सन्धित (jointed) अनेक सदस्यों में शाखान्वित,भुजाओं में विभेदित रहती है। 
  • इनमें मुखद्वार केन्द्रीय भाग की ऊपरी सतह पर तथा मध्य में उपस्थित रहता है। 
  • इनके शरीर में गुदा एवं पेडिसिलरी का अभाव रहता है; मैड्रीपोराइट अपमुखीय सतह पर उपस्थित रहते हैं। 
  • इनमें नालपाद दो-दो शृंखलाओं में होते हैं जो चूषकयुक्त नहीं होते हैं। ये गमन में भाग नहीं लेते है।
  • इनकी शिशु प्रावस्था में ऑफियोप्लूटियस (Ophiopluteus) लार्वा होता है। उदाहरण-ब्रिटिल तारा ऑफिओथ्रिक्स (Ophiothrix)।


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