सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड (Millipede): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड (Millipede): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन
सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड (Millipede): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड (Millipede):
सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड स्थलीय एवं रात्रिचर होते हैं। यह दिन के समय खेतों, बगीचों, जंगलों, आदि में लट्ठों, पत्थरों, पत्तियों, आदि के नीचे अँधेरे व नम स्थानों में छिपे रहते हैं तथा रात में निकलकर सड़ी-गली पत्तियों, जड़ों तथा अन्य वस्तुओं का भक्षण करते हैं।

वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)              -         जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                 -         यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)              -          बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)    -         प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                 -         यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                   -         आर्थ्रोपोडा  (Arthropoda)
उपसंघ (Subphylum)        -          मैन्डीबुलैटा (Mandibulata)
वर्ग (Class)                       -          डिप्लोपोडा (Diplopoda)
गण (Order)                      -          जूलीफॉर्मिया (Juliformia)

सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड (Millipede): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

लक्षण (Characteristic)
सहस्रपाद अर्थात् मिलिपीड के लक्षण इस प्रकार हैं -
  1. इनका शरीर 5 से 12.5 सेमी लम्बा बेलनाकार-सा तथा खण्डयुक्त होता है। जब इसे छूते हैं तो छूते ही यह कुण्डलित होकर गोल-मटोल हो जाता है। इसके ऊपर कड़े, कैल्सियमयुक्त बाह्य कंकाल का आवरण होता है।
  2. इसके अग्र छोर पर पाँच खण्डों के समेकन से बना एक शीर्ष होता है जिस पर बड़े नेत्रों, छोटे ऐन्टिनी, मैन्डीबल्स तथा मैक्सिली की एक-एक जोड़ियाँ होती हैं।
  3. इनका पूरा शरीर, अर्थात् धड़ (trunk) 50-70 खण्डों में बँटा रहता है। प्रथम खण्ड उपांगरहित होता है जिसे कोलम (collum) कहते हैं। इसके पीछे तीन खण्डों पर एक-एक जोड़ी 7-खण्डीय संयुक्त पाद (legs) होते हैं। इन पहले 4 खण्डों को वक्ष भाग मानते हैं। धड़ के शेष खण्डों पर पादों की दो-दो जोड़ियाँ होती हैं, क्योंकि प्रत्येक स्पष्ट खण्ड वास्तव में दो खण्डों के समेकन से बना हुआ होता है। इसे उदरभाग मानते हैं। इन खण्डों पर दो-दो जोड़ी श्वासरन्ध्र (spiracles) उपस्थित रहते हैं। नर में सातवें खण्ड के पाद मैथुन प्रवध (copulatory processes) में रूपान्तरित हो जाते हैं
  4. इसके अनेक खण्डों में एक-एक जोड़ी गन्ध ग्रन्थियाँ (scent glands) होती हैं। ये अपने खण्डों की टरगाइट्स पर स्थित पार्श्व छिद्रों से बाहर खुलती हैं।  
  5. इनके सिर पर स्थित मुख से लेकर पश्च छोर पर स्थित गुदा तक फैली सीधी आहारनाल होती है।
  6. इनमें श्वसन श्वासनालों (tracheae) द्वारा होता है। जिसमें श्वासरन्ध्रों की कई जोड़ियाँ उपस्थित रहती हैं। 
  7. इनमें उत्सर्जन मुख्यतः एक जोड़ी मैल्पीघी नलिकाओं (Malpighian tubules) द्वारा होता है जो पश्चान्त्र में खुलती हैं।
  8. यह जीव एकलिंगी होते हैं। प्रत्येक जीव के शरीर के पश्च भाग में, एक ही लम्बा जनद (gonad) उपस्थित होता है परन्तु जननवाहिनियाँ जोड़ीदार के रूप में उपस्थित रहती हैं। जननछिद्र दूसरी जोड़ी के पादों के निकट उपस्थित रहते हैं। इनमें भी मादाएँ ही अण्डे देती हैं।


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