संघ प्रोटोजोआ (Protozoa): परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण
प्रोटोजोआ (PROTOZOA)
परिचय एवं परिभाषा (Introduction and Definition)
प्रोटोजोआ संघ के जीव एककोशिकीय (Unicellular) होते हैं तथा इनका पूरा शरीर एक सुकेन्द्रकीय कोशिका के समान होता है। सरलतम् रचना और निम्नतम् कोटि के,“प्रथम जन्तु" हुए भी ये सुगठित बहुकोशिकीय जन्तुओं के समान सभी प्रमुख जैव-क्रियाएँ करते हैं। इसीलिए इन्हें अकोशिकीय (noncellular or acellular) जन्तु भी कहते हैं। इनकी लगभग 64,000 जातियाँ (लगभग 32,000 विद्यमान और 32,000 विलुप्त) ज्ञात हैं। प्रकृति में प्रोटोजोअन जन्तुओं की कुल संख्या किसी भी अन्य संघ के सदस्यों की कुल संख्या से कहीं अधिक है।
संक्षिप्त इतिहास (Brief History)
प्रोटोजोआ का प्रथम अध्ययन लुइवेनहॉक (Leeuwenhoek, 1677) ने अपने सूक्ष्मदर्शी (microscope) की सहायता से किया।
गोल्डफस (Goldfuss, 1817) ने इस संघ को 'प्रोटोजोआ' का नाम दिया। इनके अध्ययन को प्रोटोजोआ विज्ञान (Protozoology) कहते हैं। Smith ने बताया था कि प्रोटोजोआ संघ के सभी जंतु एक कोशिकीय होते हैं।
लक्षण (Characters)
प्रोटोजोआ संघ के जंतु विभिन्न प्रकार के लक्षण दिखाते हैं जिनका विवरण इस प्रकार हैं-
- इस संघ के जंतु जल, गीली मिट्टी, सड़ी-गली कार्बनिक वस्तुओं, आदि में स्वाश्रयी अर्थात स्वतंत्र रूप से(free living) तथा अन्य जन्तुओं एवं पौधों के शरीर में सहजीवी (symbiotic), सहयोजी (commensal) या परजीवी (parasitic) के रूप में रहते हैं। एकाकी या संघीय ।
- इस संघ के जंतुओं का शरीर अतिसूक्ष्म लगभग(0.001 - 3.00 मिमी) तक होता है जिसे हम खुली आंखों से इन्हें नहीं देख सकते हैं। इन्हें प्रायः सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देखा जा सकता हैं।
- इनके शरीर की आकृति विविध प्रकार की होती है। जो प्रायः जाति के अनुसार स्थाई, कुछ वातावरणीय दशाओं में तथा कुछ आयु या गमन की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तनशील होते रहते हैं।
- इनका शरीर नग्न या महीन झिल्ली द्वारा ढका रहता है जिसे पेलिकल कहते हैं। जबकि कुछ जंतुओं में उनका शरीर कठोर खोल में बन्द रहता है।
- इनके एककोशिकीय शरीर में जटिल यौगिकों के अणुओं से बनी तथा विभिन्न कार्यों को करने के लिए विविध प्रकार की विशिष्ट रचनाएँ होती है जिन्हें अंग (organs) न कहकर अंगक (organelles) कहते हैं। ये अन्तःकोशिकीय (intracellular) “श्रम विभाजन (division of labour)” प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए प्रोटोजोआ को “जीवद्रव्य के स्तर पर गठित (protoplasmic level of body organization) जन्तु" कहते हैं।
- ऐसे संघ के जंतुओं में गमन के लिए पादाभ (pseudopodia), कशाभिकाएँ (flagella), या रोमाभ (cilia) होते हैं जिसके द्वारा यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा पाते हैं।
- इन जंतुओं में एक, दो या कई समान केन्द्रक (nuclei) होते हैं जबकि कुछ में केन्द्रक दो प्रकार के भी होते हैं।
- इन जंतुओं में पोषण की विधियां क्रमशः प्राणिसम (holozoic), पादपसम (holophytic) व मृतोपजीवी (saprophytic or saprozoic) होती है तथा कुछ जंतु परजीवी (parasitic) भी होते हैं। कई जीव ऐसे भी होते हैं जिनमें एक से अधिक पोषण विधियाँ (मिश्रपोषी-mixotrophic) होती है। प्राणिसम सदस्यों में पाचन खाद्य-धानियों (food-vacuoles) में होता है।
- इनमें गैसीय विनिमय तथा उत्सर्जन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते हैं। यह शरीर की सतह से सामान्य विसरण (diffusion) द्वारा पूरी होती है।
- आवश्यकता पड़ने पर शरीर में जल की मात्रा के नियन्त्रण (परासरण नियन्त्रण osmoregulation) के लिए एक या अधिक संकुचनशील रिक्तिकाएँ (contractile vacuoles) बनने लगती हैं। जिसके द्वारा यह अपने शरीर में जल की मात्रा को नियंत्रित करते हैं।
- वातावरणीय परिवर्तनों, अर्थात् उद्दीपनों (stimuli) के अनुसार इनकी प्रतिक्रियाशीलता (responsivity) अत्यधिक सरल होती है।
- इनमें जनन, अलैंगिक (asexual) अथवा लैंगिक (sexual) दोनों विधियों द्वारा होता है। जनन के लिए या प्रतिकूल वातावरणीय दशाओं में सुरक्षा के लिए, परिकोष्ठन (encystment) की व्यापक क्षमता का विकास होता है।
वर्गीकरण (Classification)
प्रोटोजोआ संघ में इनके गमनांगकों (Travelers) एवं केंद्रकों के आधार पर, इसे चार उप संघों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- उपसंघ सार्कोमैस्टिगोफोरा (Subphylum Sarcomastigophora)
- उपसंघ स्पोरोजोआ (Subphylum Sporozoa)
- उपसंघ निडोस्पोरा (Subphylum Cnidospora)
- उपसंघ सिलियोफोरा (Subphylum Ciliophora)
- उपसंघ सार्कोमैस्टिगोफोरा (Subphylum Sarcomastigophora)
इन्हें तीन वर्गों में बाँटा गया है-
1. वर्ग मैस्टिगोफोरा या फ्लैजेलैटा (Class Mastigophora or Flagellata) : इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
(i) गमनांगक एक या अधिक महीन धागे सदृश कशाभिकाएँ (flagella)
(ii) अनेक सदस्य पादपों की भाँति पर्णहरिमयुक्त अर्थात् क्लोरोफिलयुक्त। उदाहरण- यूग्लीना (Euglena)। परजीवी ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma) जिसके संक्रमण से अफ्रीकी निद्रारोग (sleeping sickness) हो जाता है। इसे ग्लोसाइना पाल्पैलिस (Glossina palpalis) नामक जाति का कीट फैलाता है।
2. वर्ग सारकोडिना या हाईजोपोडा (Class Sarcodina or Rhizopoda): इस वर्ग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
(i) गमनांगक पादाभ पाए जाते हैं।
(ii) शरीर की आकृति प्रायः परिवर्तनशील रहती है। उदाहरण- अमीबा (Amoeba), परजीवी एन्टअमीबा (Entamoeba)।
3. वर्ग ओपैलाइनैटा (Class Opalinata) : इस वर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
(i) इस वर्ग के सभी जंतु चपटे होते हैं जो ऐम्फीबिया वर्ग के जीवो की आँत के परजीवी के रूप में पाए जाते हैं।
(ii) कोशिकामुख (cytostome) अनुपस्थित रहते हैं।
(iii) गमनांगक अनेक रोमाभसदृश छोटी-छोटी कशाभिकाओं द्वारा होता है।
(iv) केन्द्रक दो या अधिक, सब समान।
(v) जनन संयुग्मन (conjugation) द्वारा नहीं होता है। उदाहरण- ओपैलाइना (Opalina)।
- उपसंघ स्पोरोजोआ (Subphylum Sporozoa)
स्पोरोजोआ को बीजाणुओं की उपस्थिति अनुपस्थिति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा गया हैं-
1. वर्ग टीलोस्पोरिया (Class Telosporea) : बीजाणुक (sporo zoites) लम्बवत् और प्रायः बीजा णुओं में । उदाहरण–प्लाज्मोडियम (Plasmodium); मोनोसिस्टिस (Monocystis)।
2. वर्ग पाइरोप्लाज्मिया (Class Piroplasmea): पशुओं के लाल रुधिराणुओं के अतिसूक्ष्म परजीवी जिनमें बीजाणु नहीं बनते, अर्थात् बीजाणुक नग्न होते हैं। इनसे पशुओं में टेक्सास ज्वर (Texas cattle fever) नामक रोग होता है। उदाहरण बैबेसिया (Babesia)।
- उपसंघ निडोस्पोरा (Subphylum Cnidospora)
निडोस्पोरा को भी, बीजाणुओं के विकास की विधि के आधार पर, दो वर्गों में बाँटा गया है
1. वर्ग मिक्सोस्पोरिया (Class Mixosporea) : इस वर्ग के जंतुओं के बीजाणुओं का विकास कई केन्द्रकों से होता है। इनके बीजाणु-खोल दो या तीन कपाटों (valves) के बने होते हैं। उदाहरण-सीरैटोमिक्सा (Ceratomyxa) ।
2. वर्ग माइक्रोस्पोरिया (Class Microsporea) : (i) इस बार के जंतुओं के बीजाणुओं का विकास एक केन्द्रक से होता है तथा इनके बीजाणु खोल एक ही कपाट का बना होता है। उदाहरण-नोसीमा (Nosema)।
- उपसंघ सिलियोफोरा (Subphylum Ciliophora)
इसके सारे सदस्य एक ही वर्ग में,वर्ग सिलिएटा (Class Ciliata) में आते हैं, उदाहरण- पैरामीशियम (Paramecium)।
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