अमीबा का स्वभाव, जैव-क्रियाएँ या कार्यिकी (PHYSIOLOGY OF AMOEBA)|hindi


अमीबा का स्वभाव अर्थात् इसकी जैव-क्रियाएँ या कार्यिकी (PHYSIOLOGY OF AMOEBA)

अमीबा के वर्गीकरण संरचना स्वभाव आदि के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं।(अमीबा) आज हम इसके स्वभाव तथा इसमें होने वाली कई जैविक क्रियायों के बारे में पढ़ेंगे-

अमीबा का स्वभाव, जैव-क्रियाएँ या कार्यिकी (PHYSIOLOGY OF AMOEBA)|hindi

अमीबा में गमन या प्रचलन (Locomotion)

अमीबा में गमन पादाभों (pseudopodia) द्वारा होता है। पादाभ हर समय बनते रहते हैं। अतः गमन निरन्तर होता रहता है। ऐसे गमन को अमीबीय (amoeboid) गमन कहते हैं। कुछ अन्य प्रोटोजोआ तथा बहुकोशिकीय जन्तुओं की कुछ कोशिकाओं, जैसे स्पंजों की अमीबोसाइट्स तथा कशेरुकियों के श्वेत रुधिराणुओं (White Blood Corpuscles WBCs) आदि, में भी ऐसा ही गमन होता है। इसे जन्तु-गमन की सरलतम् विधि मानते हैं।

अमीबा में यह तीन मूल बातों पर निर्भर करता है—

1. आधार वस्तु से सम्पर्क : अमीबीय गमन विसर्पी (crawling) होता है। अतः इसमें शरीर का किसी ठोस आधार वस्तु से सम्पर्क आवश्यक होता है। आधार वस्तु से चिपकने में निकटवर्ती जल में उपस्थित अकार्बनिक आयनों (Ca2", 2+ Mg2", K) की सूक्ष्म मात्रा सहायक होती है।

2. सतत श्यानता रूपान्तरण (Continuous Viscosity Conversions ) : गमन में शरीर के अस्थाई पश्च छोर पर एक्टोप्लाज्म (प्लाज्माजेल) का 'सॉल' में तथा अग्र छोर पर एण्डोप्लाज्म (प्लाज्मासॉल) का 'जेल' में निरन्तर रूपान्तरण आवश्यक होता है।

3. एण्डोप्लाज्म में पीछे से आगे की ओर बहने के लिए कोई बल (force) आवश्यक होता है।

 ➤  अमीबा औसतन 0.02 - 0.03 मिमी प्रति मिनट की दर से गमन करता है। इनके पादाभ शरीर की सतह पर कहीं भी बन सकते हैं। पहले प्रत्येक पादाभ साफ, चमकीले तरल के एक छोटे-से टोपीनुमा उभार के रूप में प्रकट होता है जिसे हायलिन टोपी (hyaline cap) कहते हैं। जैसे ही यह टोपी किसी आधार वस्तु को छूती है, कणिकामय एण्डोप्लाज्म इसमें तेजी से बहता है। अतः शीघ्र ही टोपी स्पष्ट पादाभ का रूप ले लेती है। 

 ➤  प्रायः कई पादाभ एक साथ कई विभिन्न दिशाओं में बनने प्रारम्भ होते हैं, परन्तु शीघ्र ही इनमें से कोई एक अधिक बड़ा हो जाता है और शेष वापस शरीर में विलीन हो जाते हैं। बड़े पादाभ की दिशा में शरीर का थोड़ा-सा गमन हो जाता है। शीघ्र ही किसी अन्य स्थान पर नए पादाभ बनते हैं और गमन अन्य दिशा में होने लगता है। इस प्रकार, अमीबा का गमन देर तक एक ही दिशा में प्रायः नहीं होता।




पोषण (Nutrition)
पोषण एक जटिल जैव-क्रिया होती है। इसमें जन्तु वातावरण से भोजन ग्रहण करता, इसमें उपस्थित पोषक पदार्थों को पचाता, पचे हुए पोषक पदार्थों का अवशोषण करके इनका उपयोग करता तथा भोजन के अपाच्य भाग का परित्याग करता है।

 
भोजन (Food)
अमीबा पूर्णभोजी अर्थात् जन्तुसमभोजी (holozoic or zootrophic) एवं सर्वाहारी (omnivorous) होता है, अर्थात् यह सभी प्रकार के ठोस भोजन-कणों को ग्रहण कर लेता है। सामान्यतः जीवाणु, डाएटम, अन्य प्रोटोजोआ, शैवाल (algae) आदि सूक्ष्म जलीय जीव इसका भोजन होते हैं।



भोजन का अन्तर्ग्रहण (Ingestion of Food) 
भोजन ग्रहण के लिए अमीबा में कोई मुख या निर्दिष्ट स्थान नहीं होता। सामान्यतः अन्तर्ग्रहण गमन में आगे रहने वाले भाग में होता है। इसकी चार विधियाँ होती हैं-

1.  आयात अर्थात् इम्पोर्ट (Import) : यह भोजन अन्तर्ग्रहण की निश्चेष्ट (passive) विधि होती है जिसमें कि अमीबा कोई प्रयास नहीं करता। जब सूक्ष्म भोजन-कण अमीबा के सम्पर्क में आता है तो इसके कोशिकाद्रव्य में धँसता चला जाता हैं तथा ऊपर से सदा बंद हो जाती है जैसे कोई ठोस वस्तु दलदल में धँसती है।

2.  अन्तर्वलन या इन्वैजीनेशन (Invagination)जब भोजन का कण अमीबा की सतह के पास पहुंचता है तो अमीबा की सतह (प्लाज्माजेल तथा एक्टोप्लाज्म) अंदर (एण्डोप्लाज्म) की ओर धँसकर एक नली जैसी संरचना बना लेती है जिसे कहते हैं। नली में जल व भोजन का कण प्रवेश करता है और ऊपर से सतह बंद हो जाती है। इस तरह से खाद्य रिक्तिका का निर्माण होता है। यह अमीबा में भोजन ग्रहण करने की निष्क्रिय विधि है।

3.  परिप्रवाह या सरकमफ्लूएन्स (Circumfluence)जब भोजन का कण अमीबा की सतह के पास पहुंचता है तो अपनी सतह को अमीबा उस भोजन की तरफ फेंक देता है और एक कप जैसी संरचना बन जाती है जिसे Food Cup कहते हैं। इस Food Cup में भोजन का कण बैठ जाता है और अमीबा अपनी सतह को पहले की स्थिति में कर लेता है। शीघ्र ही पूरा भोजन कोशिकाद्रव्य से घिर जाता है तथा भोजन के चारों ओर की प्लाज्मालेमा और एक्टोप्लाज्म पिघलकर एण्डोप्लाज्म में बदल जाते हैं। जिस कारण खाद्य रिक्तिका का निर्माण होता है। यह अमीबा में भोजन धारण करने की सक्रिय विधि है।

4.  परिवर्धन या सरकमवैलैशन (Circumvallation) : इस विधि से सक्रिय शिकार का अन्तर्ग्रहण होता है। जब भोजन का कण अमीबा की सतह पर पहुंचता है तो भोजन के चारों और बहुत से Pseudopodia का निर्माण हो जाता है और यह Pseudopodia भोजन के कण को अंदर की ओर ढकेल देते हैं जिससे खाद्य रितिका का निर्माण होता है। यह अमीबा में भोजन ग्रहण करने की एक निष्क्रिय विधि है।

 ➤  भोजन-कण की प्रकृति के अनुसार, इसके अन्तर्ग्रहण में 1 से 2 मिनट लगते हैं। अमीबा भोजन की पहचान नहीं कर सकता, फिर भी यह कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों का भेद कर लेता है। यह यूग्लीना, पैरामीशियम आदि छोटे जन्तुओं के लिए विशेष चाव का प्रदर्शन करता है। अन्तर्ग्रहण में भोजन के साथ बाहरी जल की भी कुछ मात्रा सदैव रहती है। 


 ➤  भोजन और यही जल एण्डोप्लाज्म में खाद्य-धानी (food vacuole) बनाते हैं। सक्रिय अमीबा के एण्डोप्लाज्म में हर समय कई खाद्य-धानियाँ होती हैं। ये प्लाज्मासॉल की चक्रगति (cyclosis) के साथ इधर उधर घूमती दिखाई देती हैं। प्रत्येक के चारों ओर झिल्लीनुमा आवरण होता है। जो शरीर की जीवकला के ही टूटे हुए भाग से बनती है।



कोशिकापायन अर्थात् पिनोसाइटोसिस (Pinocytosis or Cell-drinking) : अमीबा अपने वातावरण से कोलॉएडलीय (colloidal) तरल पदार्थों, मुख्यतः प्रोटीन्स, को कोशिकापायन अर्थात् पिनोसाइटोसिस द्वारा भी ग्रहण करता है। प्लाज्मालेमा पिनोसाइटिक आशय, अर्थात् पाइनोसोम्स (pinocytic vesicles or pinosomes) बनाती हुई भीतर धँस जाती है। तरल पदार्थों से भरे ये आशय जीवकला से टूटकर कोशिकाद्रव्य में चले जाते हैं। यह क्रिया मुख्यतः पादाभों के शिखर पर होती है।



भोजन का पाचन (Digestion of Food)

 ➤  अमीबा में भोजन का पाचन खाद्य रितिका में होता है। ये बड़े जन्तुओं की आहारनाल के बराबर होते हैं, अमीबा की धानियों वाला अन्त:कोशिकीय (intracellular)। पाचन एन्जाइम कोशिकाद्रव्य में बन-बनकर लाइसोसोमों (lysosomes) में एकत्रित होते रहते हैं। 

 ➤  लाइसोसोम खाद्य-धानियों (food-vacuoles) से जुड़ जुड़कर इनमें एन्जाइमों को पहुँचाते हैं। प्रत्येक एन्जाइम खाद्य-धानी में हाइड्रोजन आयनों की एक विशेष सान्द्रता (pH) पर ही क्रियाशील होता है।

 ➤  बड़े जन्तुओं की भाँति, अमीबा में भी पाचन दो प्रावस्थाओं (phases) में पूरा होता है पहली अम्लीय (acidic) में तथा दूसरी क्षारीय (alkaline)। अम्लीय प्रावस्था में, खाद्य-धानी के जल में, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) होता है, जो इसी में, शिकार की मृत्यु से सम्बन्धित रासायनिक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप, बनता है। इस प्रावस्था में भोजन नहीं पचता है। यह केवल ढीला होकर फूल जाता और अर्धपारदर्शक हो जाता है। 

 ➤  अब लाइसोसोम्स धानियों (vacuoles) से जुड़ जुड़कर इनमें पाचन एन्जाइम पहुँचाते हैं। अतः धानियों (vacuoles) में माध्यम क्षारीय हो जाता है। एन्जाइमों में प्रोटीन-पाचक ट्रिप्सिन (trypsin), पैप्टीडेज (peptidase) एवं प्रोटीनेज (proteinase), वसा पाचक लाइपेज (lipase) तथा कार्बोहाइड्रेट-पाचक ऐमाइलेज़ेज (amylases) होते हैं। 

 ➤  एन्जाइम प्रोटीन्स को ऐमीनो अम्लों, वसाओं को वसीय अम्लों और ग्लिसरॉल तथा कार्बोहाइड्रेट्स को ग्लूकोस में विखण्डित कर देते हैं। इससे धानियों में परासरणी सान्द्रता (osmotic concentration) बढ़ जाती है। अतः कोशिकाद्रव्य से कुछ जल रिसकर इनमें वापस आ जाता है और ये फिर पहले जितनी बड़ी हो जाती हैं।



स्वांगीकरण (Assimilation) 

 ➤  एण्डोप्लाज्म में प्रत्येक खाद्य-धानी 15 से 30 घण्टे तक रहती है, क्योंकि इतने ही समय में इसमें उपस्थित भोजन का पूरा पाचन हो पाता है। इस दौरान धानी (vacuoles) प्लाज्मासॉल में, चक्रगति (cyclosis) के कारण, निरन्तर इधर-उधर घूमती रहती है। 

 ➤  अतः पचे हुए पोषक पदार्थ इसमें से निरन्तर रिस-रिसकर पूरे कोशिकाद्रव्य में वितरित हो जाते हैं और उपापचयी प्रतिक्रियाओं में भाग लेने लगते हैं। यही इनका स्वांगीकरण कहलाता है। आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों का, शर्कराओं में बदलकर, ग्लाइकोजन के रूप में तथा वसाओं का भी अमीबा संचय करता है।


बहिःक्षेपण (Egestion) 

भोजन के अपाच्य भाग को शरीर से बाहर निकालना बहिः क्षेपण कहलाता है। अमीबा में इसके लिए भी कोई निर्दिष्ट स्थान नहीं होता। जिस खाद्य-धानी में पाचन समाप्त हो जाता है, वह इधर उधर न बहकर स्थिर हो जाती है और गमनशील शरीर आगे बढ़कर इसे पीछे छोड़ देता है। अस्थाई पिछले छोर पर ऐसी धानी के सम्पर्क में आते ही प्लाज्मालेमा अकस्मात् फटकर इसे बाहर का मार्ग दे देती है और फिर तुरन्त वापस जुड़ जाती है।



श्वसन (Respiration)

 ➤  अमीबा को भी जैव-क्रियाएँ करने के लिए ऊर्जा (energy) की आवश्यकता होती है जिसे यह ग्लूकोस एवं अन्य “ईंधन” पदार्थों के ऑक्सीकरण (oxidation) से प्राप्त करता है। ऑक्सीजन (O2) बाहरी जल से घुली अवस्था में ली जाती है तथा इसके फलस्वरूप बनी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी घुली अवस्था में शरीर से बाहर निकलती है। 

 ➤  O2 एवं CO2 का लेन-देन जीवकला के आर-पार, साधारण विसरण (diffusion) द्वारा होता है। उपापचय के कारण कोशिकाद्रव्य में बाहरी जल की तुलना में O2 की मात्रा सदैव कम तथा CO2 की मात्रा अधिक रहती है। अतः यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जीवकला इन गैसों के लिए सदा पारगम्य (permeable) बनी रहती है।



उपापचय (Metabolism)

वृद्धि एवं ऊर्जा उत्पादन हेतु अमीबा में, अन्य कोशिकाओं की भाँति, रासायनिक अभिक्रियाओं का चक्र अर्थात् उपापचय निरन्तर चलता रहता है। जीनी नियन्त्रण (genic control) में ऐमीनो अम्ल द्वारा नई कोशिकाओं के निर्माण एवं मरम्मत तथा वृद्धि के लिए संरचनात्मक और एन्जाइमों के रूप में क्रियात्मक प्रोटीन्स बनती हैं। ग्लिसरॉल एवं वसीय अम्लों से वसाएँ बनती हैं जिनका प्रयोग भी कोशिकांगों के निर्माण में होता है। शर्कराओं से मुक्त हुई ऊर्जा माइटोकॉण्ड्रिया में ATP के अणुओं में जाकर जुड़ जाती हैं। कोशिकाद्रव्य में ATP को ADP में बदलकर उच्च ऊर्जा बन्ध (high energy bond) की ऊर्जा का जैव-क्रियाओं में उपयोग किया जाता है।

अमीबा के शरीर में जैविक क्रियाओं के लिए कोई विशेष अंग नहीं होता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अमीबा के शरीर द्वारा ही होता है।



No comments:

Post a Comment