अमीबा (AMOEBA)
वर्गीकरण (Classification)
उपसंघ (Subphylum)-सार्कोमैस्टिगोफोरा (Sarcomastigophora)
वर्ग (Class)-सार्कोडिना (Sarcodina)
उपवर्ग (Subclass)-हाइजोपोडा (Rhizopoda)
गण (Order)-अमीबाइडा (Amoebida)
श्रेणी (Genus)-अमीबा (Amoeba)
अमीबा की खोज रसेल वान रोसेनहॉफ (Russel von Rosenhoff, 1755) ने की। उन्होंने इसे "लघु प्रोटियस (Little proteus)" का नाम दिया, क्योंकि यह अँग्रेजों के एक काल्पनिक समुद्री देवता-प्रोटियस (Proteus) की भाँति प्रतिपल अपनी आकृति बदलता रहता है।
अमीबा की कई जातियाँ ज्ञात हैं लेकिन अमीबा प्रोटियस (Amoeba proteus) सबसे अधिक पाई जाती है। अन्य व्यापक जातियाँ हैं अमीबा रेडिओसा (Amoeba radiosa), अमीबा डिस्कॉइडिस (Amoeba discoides) तथा अमीबा वेरूकोसा (Amoeba verrucosa)।
प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Habitat and Habits)
अमीबा की विभिन्न जातियाँ हैं जो समुद्र, अलवणीय जल या गीली मिट्टी में पाई जाती हैं। अमीबा प्रोटियस संसारभर में तालाबों, पोखरों, नालों, झीलों आदि में, प्रायः तल और सतह पर की काई एवं तल की कीचड़ में, धीरे-धीरे तथा निरन्तर रेंगता रहता है। यह शैवाल (algae), जीवाणुओं (bacteria) आदि का भक्षण करता है तथा यह विभिन्न उद्दीपनों से प्रभावित होकर प्रतिक्रियाएँ करता है। इसमें प्रजनन सामान्य द्विविभाजन द्वारा होता है।
संवर्धन (Culture)
प्रयोगशाला अध्ययन के लिए अमीबा का संवर्धन किया जा सकता है। इसके लिए आसुत (distilled) जल पत्तियाँ, घास, गेहूँ के दाने या केले के छिलके उबालकर किसी खुले बरतन में 2-3 दिन के लिए रख देते हैं। बरतन के जल में असंख्य जीवाणु पनप जाते हैं फिर किसी तालाब या पोखर से अर्धसड़ी पत्तियाँ लाकर इन्हें थोड़ा धोते हैं और बरतन में कुछ साफ डाल देते हैं। 5-7 दिनों में ही बरतन के जल में असंख्य अमीबी बन जाती हैं। बरतन की पेंदी से ड्रॉपर द्वारा एक बूँद लेकर स्लाइड पर रखो और सूक्ष्मदर्शी से देखो।
1. आकृति, माप एवं रंग (Shape, Size and Colour): अमीबा प्रोटियस 0.6 मिमी तक का होता है। लेकिन अन्य जातियों के अमीबी 0.2 से 0.5 मिमी तक व्यास के होते हैं। सूक्ष्मदर्शी में जीवित अमीबा रंगहीन, परन्तु चमकीले व जेलीनुमा जीव पदार्थ की असममित बूँद जैसा दिखाई देता है। निरन्तर कुछ देर देखने से पता चलेगा कि इसकी आकृति हर समय बदलती रहती है।
2. पादाभ या कूटपाद (Pseudo podia) : जीवित अमीबा की सतह पर इधर-उधर जीवद्रव्य के छोटे-छोटे उभार निरन्तर बनते और वापस शरीर में विलीन होते रहते हैं। इसीलिए, शरीर की आकृति असममित एवं सदैव परिवर्तनशील होती है और शरीर का कोई स्थाई पृष्ठ या अधरतल, या अग्र या पश्च छोर नहीं होता। उभारों को पादाभ या कूटपाद (pseudopodia = “false feet”) कहते हैं, क्योंकि गमन इन्हीं के बनते रहने से निरन्तर होता रहता है। ये भोजन-ग्रहण में भी सहायक होते हैं।
- जीवकला,
- कोशिकाद्रव्य
- केन्द्रक
जीवकला (Plasma Membrane)
अमीबा के शरीर पर एक महीन जीव कला का ही आवरण होता है जिसे प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) कहते हैं। यह 1 - 2μ मोटी होती है। यह प्रोटीन तथा लिपिड अणुओं के दोहरे स्तरों से मिलकर बनी होती है इस पर म्यूकोप्रोटीन के सूक्ष्म तंतु जैसे अणुओं की झालर होती है जिसे सूक्ष्मअंकुर (Microvilli) कहते हैं जिसके कारण प्लाज्मालेमा चिपचिपी होती है। यह झिल्ली दृढ़ परंतु लचीली होती है जिसके कारण अमीबा के शरीर में वृद्धि होती रहती है। इसमें पुनरुदभवन की क्षमता भी होती है।
कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
कोशिका द्रव्य में एक आधारभूत तरल होता है जिसे मैट्रिक्स कहते हैं। यह दो भागों में विभाजित रहता है एक्टोप्लाज्म में तथा एंडोप्लाज्म।(क) कुंचनशील रिक्तिका( contractile vacuole)- यह रितिका परासरण नियंत्रण का काम करती है इसमें कोशिका द्रव्य से जल की अनावश्यक मात्रा निरंतर एकत्रित होती रहती है जिससे यह बाहर निकालती रहती है अतः यह कभी बड़ी तथा कभी छोटी दिखाई देती है।
(ग) जल रितिका (Water vacuoles) - यह एंडोप्लाज्म में कुछ छोटे-छोटे जल से भरी हुई, रंगहीन तथा पारदर्शक अकुंचनशील जल धानियाँ होती हैं।
केन्द्रक (Nucleus)
अमीबा के एंडोप्लाज्म में, इसकी केंद्रीय भाग में एक केंद्रक पाया जाता है। अमीबा की सारी कार्यिकी (उपापचय, जनन, वंशागति आदि) केन्द्रक के ही नियन्त्रण में होती है। अतः यदि अमीबा को टुकड़ों में ऐसे काटें कि कुछ टुकड़ों में केन्द्रक के अंश हों और कुछ में नहीं तो केन्द्रक के अंशों वाले टुकड़े तो पुनरुद्भवन द्वारा पूर्ण अमीबी बन जाएँगे, परन्तु अन्य टुकड़े नष्ट हो जाएँगे।
उपरोक्त कोशिकांगों (organelles) के अतिरिक्त, एण्डोप्लाज्म में कार्बोनिल डाइयूरिया (carbonyl diurea) नामक उत्सर्जी पदार्थ के नियमित आकृति के रवे होते हैं। इन्हें, आकृति के अनुसार, बाइयूरेट्स (biurets) तथा ट्राइयूरेट्स (triurets) कहते हैं।
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