1. अलवणीय जल की अमीबी में इनका कोशिकाद्रव्य बाहरी जल से सदा उच्चवलीय (hypertonic) रहता है। अतः बाहर से काफी जल परासरण (osmosis) द्वारा निरन्तर शरीर में पहुँचता रहता है।
2. इसके अलावा खाद्य-धानियों से भी कुछ जल रिसकर कोशिकाद्रव्य में आता है और पदार्थों के ऑक्सीकर जारण में भी कुछ जल बनता है। यदि यह सब जल शरीर में ही संचित होता रहे तो शरीर शीघ्र ही फूलकर फट सकता है। अतः सभी अलवणजलीय अमीबी एवं अन्य प्रोटोजोआ में, जल की अनावश्यक मात्रा को निकालने के लिए, कुंचनशील रिक्तिका के रूप में, विशेष प्रबन्ध होता है। यह रिक्तिका आवश्यकता से अधिक जल को निरन्तर बाहर पम्प करती रहती है जिसे जल-सन्तुलन अर्थात् परासरण नियन्त्रण कहते है।
3. इसके द्वारा अमीबा तथा अन्य प्रोटोजोअन का शरीर जल से भरकर फटने से बच जाता है। नियमित समयान्तरों पर यह बाहर की ओर फटकर नष्ट तथा पुनः प्रकट होती रहती है। फटकर नष्ट हो जाने की अवस्था को सिस्टोल (systole) तथा पुनः प्रकट होकर बड़ी हो जाने की अवस्था को डायस्टोल (diastole) कहते हैं।
4. डायस्टोल में पहले कई छोटी-छोटी रिक्तिकाएँ, जल की नन्हीं बूँदों के रूप में, प्रमुख रिक्तिका के निकट प्रकट होती हैं और एक-एक करके इसमें जुड़ती रहती हैं। इन्हें सहायक रिक्तिकाएँ (accessory vacuoles) कहते हैं।
5. इस प्रकार प्रमुख रिक्तिका बड़ी होती जाती है। एक निश्चित सीमा तक वृद्धि के बाद यह शरीर के पश्च भाग में सतह के पास पहुँचकर बाहर की ओर फट जाती है। यही इसकी सिस्टोल प्रावस्था होती है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में कुंचनशील रिक्तिका के चारों ओर माइटोकॉण्ड्रिया का घना जमाव देखा गया है।
अतः स्पष्ट है कि, रिक्तिका द्वारा जल-सन्तुलन की क्रिया में ATP की काफी ऊर्जा का व्यय होता है। पहले कुंचनशील रिक्तिका को उत्सर्जन का अंग (organelle) माना जाता था किंतु अध्ययन के बाद यह निश्चित हो गया है कि इसका मुख्य कार्य जल नियंत्रण का होता है। निरंतर होती इस प्रक्रिया के द्वारा कोशिकाद्रव्य से इसमें इतना अधिक जल आता रहता है कि इस जल में कुछ घुले उत्सर्जी पदार्थों (मुख्यतः अमोनिया) का होना स्वाभाविक है।
अतः स्पष्ट है कि, रिक्तिका द्वारा जल-सन्तुलन की क्रिया में ATP की काफी ऊर्जा का व्यय होता है। पहले कुंचनशील रिक्तिका को उत्सर्जन का अंग (organelle) माना जाता था किंतु अध्ययन के बाद यह निश्चित हो गया है कि इसका मुख्य कार्य जल नियंत्रण का होता है। निरंतर होती इस प्रक्रिया के द्वारा कोशिकाद्रव्य से इसमें इतना अधिक जल आता रहता है कि इस जल में कुछ घुले उत्सर्जी पदार्थों (मुख्यतः अमोनिया) का होना स्वाभाविक है।
➤ जब किसी अलवणजलीय अमीबा को समुद्र के खारे जल में या नमक के घोल में रखा जाए तो इसके शरीर में बाहर से जल का आना बन्द हो जाएगा। जिसके फलस्वरूप इसमें परासरण नियन्त्रण की आवश्यकता नहीं रहेगी तथा कुंचनशील रिक्तिका का बनना बन्द हो जाएगा। वही इसके विपरीत यदि इसे आसुत (distilled) जल में रखा जाए तो इसके शरीर में अधिक जल आने लगेगा और कुंचनशील रिक्तिका के संकुचन की दर बढ़ जाएगी। किसी समुद्री अमीबा या अन्य समुद्री प्रोटोजॉन को अलवणीय जल में रखें तो सम्भवतः इसमें कुंचनशील रिक्तिका बन जाती है और परासरण नियन्त्रण होने लगता है।
परासरण नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक कोशिकीय जीव ओं में जल का संतुलन बना रहता है। यदि यह नियंत्रण प्रक्रिया किसी प्रोटोजोआ में नहीं होती है तो अभी जल के कारण वह फूल कर फट जाता है अतः यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
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