एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका(Entamoeba histolytica) वर्गीकरण, संरचना, रोगजनन, जीवन चक्र, आमातिसार की रोकथाम एवं चिकित्सा


एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका (ENTAMOEBA HISTOLYTICA) 

कुछ अमीबा जैसे प्रोटोजोआ मानव शरीर में परजीवियों (parasites) के रूप में रहते हैं। ये पोषद (host) मानव के शरीर से भोजन प्राप्त करके इसे कमजोर बनाते हैं और रोग भी उत्पन्न करते हैं। इसीलिए इन्हें रोगजनक (pathogenic) परजीवी कहते हैं। इनमें एन्टअमीबा श्रेणी (genus Entamoeba) की ए० हिस्टोलिटिका (E. histolytica or E. dysenteriae), ए० जिन्जिवैलिस (E. gingivalis) तथा ए० कोलाई (E. coli) नामक जातियाँ उल्लेखनीय हैं।

आज हम नीचे एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका (ENTAMOEBA HISTOLYTICA) का पूर्ण अध्ययन करेंगे और इसके द्वारा रोग फैलाने की प्रक्रिया को जानेंगे-


वर्गीकरण (Classification)

संघ (Phylum)          -       प्रोटोजोआ (Protozoa)
उपसंघ (Subphylum)  -    सार्कोमैस्टिगोफोरा  (Sarcomastigophora)
वर्ग (Class)                  -    सार्कोडिना (Sarcodina)
उपवर्ग (Subclass)       -    हाइजोपोडा (Rhizopoda)
गण (Order)                -    अमीबाइडा (Amoebida)
श्रेणी (Genus)              -     एन्टअमीबा (Entamoeba)
प्रजाति (Species)         -     हिस्टोलिटिका (histolytica)


एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका की खोज लैम्बल (Lamble, 1859) ने की। लॉश (Losch, 1875) ने इसकी रोगजनकता का पता लगाया। यह मनुष्य एवं कई अन्य प्राइमेट्स (Primates) स्तनियों की आँत में पाया जाता है। मानव के परजीवियों में यह “आमातिसार अमीबा (dysentery amoeba)” के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि इसके संक्रमण (infection) से पेचिस (आमातिसार) या अमीबॉयसिस (amoebiasis) नामक रोग होता है जिसमें रोगी के दस्त के साथ रक्त निकलता है।


आवास, आकृति एवं रचना (Habitat, Form and Morphology)

इसके वयस्क, अर्थात् ट्रोफो ज्वॉएट्स (trophozoites or magna forms) पोषद मानव की बड़ी आँत के अग्र भाग (कोलन—colon) में रहते हैं। इनका शरीर अण्डाकार होता है जिसका व्यास 20  से 30 तक का होता है। यह मनुष्यों की आंतों में परजीवी होते है अतः इनकी रचना अमीबा से कुछ भिन्न होती है। इस पर प्रायः एक ही मोटा एवं कुन्द (blunt) पादाभ होता है। 

यद्यपि शरीर पर प्लाज्मा लेमा का आवरण और कोशिकाद्रव्य एक्टोप्लाज्म एवं एण्डोप्लाज्म में विभेदित रहता है, लेकिन पादाभ में केवल एक्टोप्लाज्म होता है। इनके एण्डो प्लाज्म में एक गोल केन्द्रक तथा कई खाद्य-धानियाँ होती हैं। इनमें परासरण नियन्त्रण की आवश्यकता न होने के कारण कुंचनशील रिक्तिका नहीं होती तथा माइटोकॉण्ड्रिया आदि अंगक भी कम होते हैं ।


रोगजनन (Pathogenesis)

ट्रोफोज्वॉएट्स द्वारा स्रावित प्रोटीन-पाचक एन्जाइम से आँतों की दीवार की श्लेष्मिका एवं अधःश्लेष्मिका कुछ गलकर ढीली पड़ जाती हैं। अधःश्लेष्मिका की कुछ रुधिर केशिकाएँ (blood capillaries) तक फट जाती हैं। फिर ट्रोफोज्वॉएट्स आन्त्रीय दीवार में घुसकर इसके ऊतकों एवं लाल रुधिराणुओं का, पोषण के लिए, अन्तर्ग्रहण कर लेते हैं (जन्तुसमपोषण-holozoic nutrition)। 

इनमें बार-बार द्विविभाजन होता रहता है जिसके द्वारा यह संख्या में बढ़ते जाते हैं। जिसके कारण धीरे-धीरे पोषद की आँत काफी घायल हो जाती है और इसमें अनेक छोटे-छोटे फुन्सियों जैसे नासूर (ulcers) बन जाते हैं। इन नासूरों से आँव (mucus), पस (pus) एवं रक्त रिस-रिसकर दस्त के साथ बाहर निकलने लगते हैं तथा आँत में मरोड़ एवं ऐंठन से पीड़ा होने लगती है। यही अमीबी पेचिस कहलाती है। 

घावों में जीवाणु पनपकर रोग को अधिक गम्भीर बना सकते हैं। इससे पस भी बन सकता है। प्रायः आँत की दीवार में आर-पार छिद्र हो जाते हैं। रुधिर के साथ ट्रोफोज्वॉएट्स अन्य अंगों (यकृत, फेफड़े, मस्तिष्क, आदि) में पहुँचकर इन्हें भी घायल कर सकते हैं।


जीवन-चक्र (Life Cycle)

एन्टअमीबा का जीवन चक्र एकपोषदीय (monogenetic) होता है। द्विविभाजनों के फलस्वरूप बने कुछ ट्रोफोज्वॉएट्स, वृद्धि करने के बजाय, नासूरों से वापस आँत की गुहा में आ जाते हैं। ये सामान्य, वयस्क ट्रोफोज्वॉएट्स से छोटे (लगभग 12 से 15u व्यास के) होते हैं। इन्हें "लघु या प्रकोषी अमीबी (minuta forms or precystic amoebae)” कहते हैं। ये ग्लाइकोजन कणों एवं राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन्स के बने क्रोमैटॉएड कायों (chromatoid bodies) के रूप में कुछ पोषक पदार्थ संचित करके गोल हो जाते हैं। 

एन्टअमीबा हिस्टोलिटिका(Entamoeba histolytica) वर्गीकरण, संरचना, रोगजनन, जीवन चक्र, आमातिसार की रोकथाम एवं चिकित्सा

अब प्रत्येक प्रकोषी अमीबा अपने चारों ओर एक सुदृढ़ कोष्ठ (cyst) बना लेता है। परिकोष्ठित (encysted) अमीबा का केन्द्रक समसूत्रण द्वारा चार सन्तति केन्द्रकों में बँट जाता है। ये चौकेन्द्रकीय कोष्ठ (quadrinucleate cysts) पोषद मनुष्य के मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। यही कोष्ठ मनुष्य के लिए एन्टअमीबा की संक्रामक (infective) प्रावस्था होते हैं। 

गन्दे भोजन एवं जल के साथ किसी स्वस्थ मनुष्य की आँत में पहुँचने पर कोष्ठ गल जाता है और चौकेन्द्रकीय अमीबा मुक्त हो जाता है। यह मेटासिस्टिक (metacystic) अमीबा अब द्विविभाजनों द्वारा आठ छोटी अमीबी में बँट जाता है जो वृद्धि करके सामान्य वयस्क ट्रोफोज्वॉएट्स बन जाती हैं।


आमातिसार की रोकथाम एवं चिकित्सा (Prevention and Therapy of Dysentery)

अधिकांश मनुष्य ए० हिस्टोलिटिका से संक्रमित होते हैं। जिनमें से 25% पेचिस के शिकार अवश्य होते हैं। शेष में संक्रमण का विशेष प्रभाव नहीं होता, क्योंकि स्वस्थ पोषद के शरीर में आन्त्रीय दीवार में होने वाली हानि तीव्रता से ठीक होती रहती है। ऐसे पोषद परजीवी के “वाहकों (carriers)" का काम करते हैं इनके मल के साथ परजीवी के कोष्ठक निकलते रहते हैं और इनसे अन्य मनुष्यों में रोग फैलता रहता है। गरम देशों में इस परजीवी का संक्रमण अपेक्षाकृत अधिक होता है। रोग की रोकथाम के लिए तीन प्रकार की विधियाँ अपनाई जाती हैं-

  1. संक्रमण (infection) से बचाव
  2. रोगियों का उपयुक्त उपचार
  3. परिकोष्ठित अमीबा का विनाश

1. संक्रमण के बचाव के लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सबसे प्रभावशाली होती है। खाद्य वस्तुओं और बरतनों की सफाई, नियमित रूप से नाखून काटना, भोजन से पहले हाथ धोना, उबला हुआ जल पीना तथा खाद्य वस्तुओं को मक्खी आदि से बचाने के लिए ढककर रखना आवश्यक होता है।

2. आमातिसार की रोकथाम के लिए रोगियों का नियमित एवं प्रभावशाली उपचार आवश्यक है। उपचार हेतु ऐमेटीन (Emetine) के इन्जेक्शन लगाए जाते हैं। खाने के लिए दी जाने वाली दवाइयों में कुछ प्रतिजैविक (antibiotic) होती हैं तथा कुछ अन्य दवाइयाँ होती हैं जैसे-फ्यूमैजिलिन (Fumagillin), ऐमीबामैग्मा (Amebamagma), ऐमीक्लीन (Amicline), वायोमीबिक-डी (Biomebic-D), डिपेन्डाल-एम (Dependal-M) आदि की गोलियाँ दी जाती हैं।

3. परिकोष्ठित अमीबा का विनाश ही आमातिसार की रोकथाम की महत्त्वपूर्ण विधि होती है। इसके लिए, सामाजिक स्वच्छता (social or public sanitation) अत्यावश्यक है। जिसके लिए मल एवं गन्दे जल को बस्ती से दूर रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। पेयजल की समुचित स्वच्छता, सड़कों व नालियों की नियमित सफाई, बाजार में बिकने वाली वस्तुओं की स्वच्छता आदि का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।


ए० हिस्टोलिटिका से बचने का सबसे आसान तरीका साफ़ सफाई ही है। इससे बचने के लिए हमें अपने आस पास साफ़ सफाई रखनी चाहिए। यदि इसके द्वारा इन्फेक्शन हो जाता है तो इस स्थिति में डॉक्टर द्वारा सलाह लेना बहुत आवश्यक है अन्यथा यह घातक भी हो सकता है। 



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