अमीबा एक एक कोशिकीय प्रोटोजोआ है। जैविक क्रिया जैसे गमन पोषण श्वसन तथा उत्सर्जन आदि के बारे में हम पहले ही पढ़ चुके हैं। आज हम जानेंगे कि इनमें प्रजनन कैसे होता है तथा इनका जीवन चक्र कैसे चलता है-
प्रजनन तथा जीवन-चक्र (Reproduction and Life Cycle)
अमीबा में प्रजनन सदैव अलैंगिक (asexual) होता है। क्योंकि इनका शरीर एक कोशिकीय होता है जिसमें किसी भी क्रिया के लिए कोई मुख्य अंग नहीं होता है इसीलिए इनके शरीर में प्रजनन भी और लैंगिक होता है। यह लैंगिक जनन चार विधियों द्वारा होता है जिनका वर्णन इस प्रकार है— द्विविभाजन, बीजाणुकजनन, बहुविभाजन तथा पुनरुद्भवन ।
1. द्विविभाजन (Binary Fission ) : यह प्रजनन की सामान्य और सबसे सरल विधि होती है। इसमें पूरा अमीबा, एक सामान्य कोशिका की भाँति, समसूत्रण (mitosis) द्वारा दो सन्तति अमीबी में बँट जाता है। अनुकूल वातावरण में अमीबा तीव्र वृद्धि करता और द्विविभाजन द्वारा जनन करता रहता है।
द्विविभाजन में वही प्रावस्थाएँ होती हैं जो सामान्य कोशिकाओं के समसूत्रण (mitosis) में होती है। परन्तु अमीबा में विभाजन के साथ-साथ इसके शरीर की आकृति भी बदलती है।
पूर्वावस्था (prophase) में शरीर सिकुड़कर गोल हो जाता है, इस पर छोटे-छोटे पादाभ बन जाते हैं, कुंचनशील रिक्तिका निष्क्रिय और स्थिर हो जाती है, केन्द्रक तर्क (spindle) के आकार का हो जाता है और इसमें जाति के अनुसार, उपस्थित 500 से 600 सूक्ष्म क्रोमीडिया द्विगुणित गुणसूत्रों (chromosomes) के रूप में दिखाई देने लगते हैं।
मध्यावस्था (metaphase) में गुणसूत्र एक अन्तःकेन्द्रकीय (intranuclear) तर्क की भूमध्य रेखा पर सजकर मध्यावस्था प्लेट (metaphase plate) बनाते हैं। पश्चावस्था (anaphase) में गुणसूत्र के क्रोमैटिड्स परस्पर पृथक् होकर तर्कनुमा केन्द्रक के विरोधी ध्रुवों पर पहुँचते हैं, पादाभ कुछ बड़े हो जाते हैं और केन्द्रक बीच में दबकर दो सन्तति केन्द्रकों में बँट जाता है। अन्त्यावस्था (telophase) में पादाभ सामान्य हो जाते हैं तथा शरीर लम्बा होकर बीच में सिकुड़ता और दो सन्तति अमीबी (daughter amoebae) में बँट जाता है। प्रत्येक सन्तति अमीबा में एक सन्तति केन्द्रक होता है। पुरानी कुंचनशील रिक्तिका एक अमीबा में रहती है जबकि दूसरे में नई रिक्तिका बन जाती है। अमीबा के पूर्ण द्विविभाजन में लगभग आधा घंटे का समय लगता है। इसके फलस्वरूप बनी सन्तति अमीबी जनक अमीबा के आधे से कुछ बड़ी होती हैं।
2. बीजाणुकजनन (Sporulation) : अमीबा में सामान्य दशाओं में ही या बार-बार द्विविभाजन करने के कारण यह कमजोर हो जाते हैं। इस दशा में जब वातावरण इनके प्रतिकूल होता है तो, अमीबा की कुछ जातियाँ इस विधि द्वारा प्रजनन करती हैं। इसमें केन्द्रककला टूट जाती है और क्रोमैटिन-कण कोशिकाद्रव्य में मुक्त होकर 2-2 या 3-3 के समूहों में बिखर जाते हैं। धीरे-धीरे प्रत्येक समूह के चारों ओर एक केन्द्रककला बन जाने से यह एक सन्तति केन्द्रक बन जाता है। फिर शरीर का पूरा कोशिकाद्रव्य नन्हें केन्द्रकों को घेरते हुए छोटे-छोटे पिण्डों में टूट जाता है।
इस प्रकार, जनक अमीबा में लगभग 200 छोटी सन्तति अमीबी (daughter amoebae) बन जाती हैं। प्रत्येक नन्हें अमीबा के कोशिकाद्रव्य का बाहरी स्तर कड़ा होकर एक बीजाणुवरण (spore membrane) बना लेता है। इस प्रकार, नन्हीं अमीबी बीजाणुओं (spores) का रूप ले है लेती हैं। जनक अमीबा का शरीर मृत होकर गल जाता है, और बीजाणु जलाशय के तल पर डूब जाते हैं। वातावरण के फिर से अनुकूल होने पर प्रत्येक बीजाणु में से, आवरण को फोड़कर, नन्हा अमीबा बाहर निकल आता है और वृद्धि करके वयस्क बन जाता है ।
3. परिकोष्ठन (Encystment) एवं बहुविभाजन (Multiple Fission) : प्रतिकूल वातावरण में अमीबा सिकुड़कर अपने चारों ओर एक सुदृढ़, त्रिस्तरीय कोष्ठ (cyst) बना लेता है। इसका केन्द्रक बारम्बार सूत्री विभाजनों द्वारा लगभग 500-600 नन्हें सन्तति केन्द्रकों में बँट जाता है। प्रत्येक केन्द्रक के चारों ओर कोशिकाद्रव्य की थोड़ी-सी मात्रा पृथक् हो जाती है। इस प्रकार, पूर्ण शरीर नन्हीं अमीबी में बँट जाता है जिन्हें अमीब्यूली (amoebulae) या बीजाणु अमीबाभ अर्थात् स्यूडोपोडिओस्पोर्स (pseudopodiospores) कहते हैं। ये सन्तति अमीबी बीजाणुओं जैसी ही लगती हैं, परन्तु इनका केन्द्रक जनक केन्द्रक के क्रोमैटिन कणों से नहीं, वरन् इसके विभाजन से बनता है। अनुकूल वातावरण में कोष्ठ की दीवार जल सोखकर फट जाती है और अमीब्यूली बाहर निकलकर स्वतन्त्र अमीबी बन जाती हैं।
परिकोष्ठन सामान्यतः प्रतिकूल वातावरण में नष्ट हो जाने से बचने के लिए होता है। कोष्ठ में बहुविभाजन के पक्के प्रमाण नहीं हैं। परिकोष्ठित अमीबा बहुत कम क्रियाशील और इतना हल्का होता है कि वायु में उड़ जाता है या जल की धाराओं के साथ बह जाता है। अतः अमीबा का दूर-दूर वितरण (dispersal) भी हो जाता है। वातावरण के अनुकूल होने पर अमीबा कोष्ठ से निकलकर फिर सक्रिय हो जाता है।
4. पुनरुद्भवन (Regeneration) : अमीबा में पुनरुद्भवन की बहुत क्षमता होती है। यदि इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दें तो सभी ऐसे टुकड़े, जिनमें केन्द्रक का अंश भी है, वृद्धि करके पूर्ण अमीबी बन जाते हैं। वे टुकड़े जिनमें केन्द्रक का अंश नहीं होता, शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
5. संयुग्मन (Conjugation) : कुछ वैज्ञानिकों ने अमीबा में संयुग्मन का भी वर्णन किया है—दो अमीबी कुछ समय के लिए परस्पर सम्पर्क में रहकर फिर पृथक् हो जाती हैं। इसे एक “कायाकल्प प्रक्रिया (rejuvenation process)” कहा गया है। इसके ठोस प्रमाण नहीं हैं।
उपर्युक्त विधियों द्वारा यह पता चलता है कि अमीबा में जनन बहुत ही साधारण होता है क्योंकि एक कोशिकीय जीव होने के कारण उन्हें जनन के लिए कोई भी विशेष अंग नहीं पाए जाते हैं।
3. परिकोष्ठन (Encystment) एवं बहुविभाजन (Multiple Fission) : प्रतिकूल वातावरण में अमीबा सिकुड़कर अपने चारों ओर एक सुदृढ़, त्रिस्तरीय कोष्ठ (cyst) बना लेता है। इसका केन्द्रक बारम्बार सूत्री विभाजनों द्वारा लगभग 500-600 नन्हें सन्तति केन्द्रकों में बँट जाता है। प्रत्येक केन्द्रक के चारों ओर कोशिकाद्रव्य की थोड़ी-सी मात्रा पृथक् हो जाती है। इस प्रकार, पूर्ण शरीर नन्हीं अमीबी में बँट जाता है जिन्हें अमीब्यूली (amoebulae) या बीजाणु अमीबाभ अर्थात् स्यूडोपोडिओस्पोर्स (pseudopodiospores) कहते हैं। ये सन्तति अमीबी बीजाणुओं जैसी ही लगती हैं, परन्तु इनका केन्द्रक जनक केन्द्रक के क्रोमैटिन कणों से नहीं, वरन् इसके विभाजन से बनता है। अनुकूल वातावरण में कोष्ठ की दीवार जल सोखकर फट जाती है और अमीब्यूली बाहर निकलकर स्वतन्त्र अमीबी बन जाती हैं।
परिकोष्ठन सामान्यतः प्रतिकूल वातावरण में नष्ट हो जाने से बचने के लिए होता है। कोष्ठ में बहुविभाजन के पक्के प्रमाण नहीं हैं। परिकोष्ठित अमीबा बहुत कम क्रियाशील और इतना हल्का होता है कि वायु में उड़ जाता है या जल की धाराओं के साथ बह जाता है। अतः अमीबा का दूर-दूर वितरण (dispersal) भी हो जाता है। वातावरण के अनुकूल होने पर अमीबा कोष्ठ से निकलकर फिर सक्रिय हो जाता है।
4. पुनरुद्भवन (Regeneration) : अमीबा में पुनरुद्भवन की बहुत क्षमता होती है। यदि इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दें तो सभी ऐसे टुकड़े, जिनमें केन्द्रक का अंश भी है, वृद्धि करके पूर्ण अमीबी बन जाते हैं। वे टुकड़े जिनमें केन्द्रक का अंश नहीं होता, शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
5. संयुग्मन (Conjugation) : कुछ वैज्ञानिकों ने अमीबा में संयुग्मन का भी वर्णन किया है—दो अमीबी कुछ समय के लिए परस्पर सम्पर्क में रहकर फिर पृथक् हो जाती हैं। इसे एक “कायाकल्प प्रक्रिया (rejuvenation process)” कहा गया है। इसके ठोस प्रमाण नहीं हैं।
उपर्युक्त विधियों द्वारा यह पता चलता है कि अमीबा में जनन बहुत ही साधारण होता है क्योंकि एक कोशिकीय जीव होने के कारण उन्हें जनन के लिए कोई भी विशेष अंग नहीं पाए जाते हैं।
इन्हें भी पढ़ें -
No comments:
Post a Comment