मलेरिया का परिचय (Introduction of Malaria)
विज्ञान की प्रगति के बावजूद आज भी संसार में मलेरिया (Malaria) से प्रतिवर्ष करोड़ों व्यक्ति मर जाते है। अकेले भारत में ही प्रतिवर्ष 5 से 7 लाख मनुष्य मलेरिया (Malaria) के शिकार हो जाते हैं। यह इतनी जल्दी फैलता है कि प्रभावित प्रदेश की अधिकांश जनता इससे ग्रसित हो जाती है। मृत्यु से बच जाने वाले रोगी भी बहुत कमजोर हो जाते हैं। बच्चों की मानसिक एवं शारीरिक वृद्धि कम हो जाती है। इस प्रकार, पूरे समाज की उन्नति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
मलेरिया का संक्षिप्त इतिहास (Brief History)
19 वीं सदी के मध्य तक लोग समझते रहे कि मलेरिया (Malaria) रोग दलदलीय स्थानों से निकली गन्दी व नम हवा के कारण होता है इसीलिए इसका नाम मलेरिया (mal = गन्दी + aria = हवा) रखा गया। मच्छर से इसके सम्बन्ध को लान्सिसी (Lancisi–1717) ने खोजा था। इसके बाद लैवरॉन (Laveran-1880) ने पता लगाया कि मनुष्य में मलेरिया (Malaria) प्लाज्मोडियम नामक परजीवी प्रोटोजोअन के संक्रमण से होता है। इन्होंने ही सबसे पहले प्लाज्मोडियम को मनुष्य के लाल रुधिराणुओं में देखा।
उद्भवन काल (Incubation Period)
➤ दौरा (Paroxysm) : मलेरिया (Malaria) का प्रथम आक्रमण कई प्रारम्भिक एरिथ्रोसाइटिक चक्रों के बाद होता है लेकिन इसके बाद यह प्रत्येक एरिथ्रोसाइटिक चक्र के पूरा होने पर होने लगता है। अतः स्पष्ट है कि रक्त में हीमोज्वॉएन एवं अन्य विषैले पदार्थों के काफी मात्रा में मुक्त हो जाने के कारण ऐसा होता है।
➤ तृतीयक मलेरिया या सामान्य जूड़ी बुखार (Tertain Malaria or Common Ague): इसमें दौरा प्रति 48 घण्टे बाद (हर तीसरे दिन) आता है। यह संक्रमण मुख्यतः प्लाज्मोडियम वाइवैक्स, प्ला० फैल्सीपैरम तथा प्ला० ओवेल के द्वारा होता है। प्ला० वाइवैक्स तथा प्ला० ओवेल के संक्रमण से हल्का तृतीयक मलेरिया (benign tertian malaria) होता है। इसमें मृत्यु दर कम होती है, क्योंकि नष्ट होने वाले अधिकांश RBCs पुराने व कमजोर होते हैं।
➤ चतुर्थक मलेरिया (Quartan Malaria) : इसमें दौरा प्रति 72 घण्टे बाद (हर चौथे दिन) आता है। यह प्ला० मलैरी के संक्रमण से होता है।
➤ दैनिक मलेरिया (Quotidian Malaria): इसमें दौरा प्रतिदिन आने लगता है। यह तब होता है जब प्लाज्मोडियम की एक से अधिक जातियों का संक्रमण होता है तथा तब जब रोग अधिक बिगड़ जाता है।
➤ आवर्ती मलेरिया (Relapse Malaria) : प्ला० वाइवैक्स, प्ला० ओवेल तथा प्ला० मलैरी में बाह्य रुधिराणु चक्रों के निरन्तर चलते रहने से एक बार रोग ठीक हो जाने के बाद चाहे जब रोग का दुबारा आक्रमण हो सकता है।
मनुष्य पर रोग के विशिष्ट प्रभाव (Effects of Malaria)
रोकथाम एवं उन्मूलन (Control and Eradication)
कुछ वर्षों से हमारे देश में मलेरिया (Malaria) की पूरी रोकथाम के लिए एक वृहद् मलेरिया (Malaria) उन्मूलन योजना (National Malaria Eradication Programme NMEP or Malaria Eradication Scheme MES) चल रही है। इसमें तीन विधियाँ अपनाई जाती हैं—
1. मच्छरों का संहार (Destruction of Mosquitoes)
➤ घरों में डी०डी०टी० या फ्लिट छिड़ककर मच्छरों से निजात पाया जा सकता है। इसके अलावा गन्धक पाइरीथ्रम (Sulphur pyrethrum), नैफ्था (naphtha) एवं तार-केम्फर (tar-camphor) इत्यादि को जलाकर भी वयस्क मच्छरों का संहार किया जाता है।
➤ शहरों, गाँवों तथा अपने घर के आस-पास जल भराव को रोकना तथा गड्ढों को भरना ताकि उसमें पानी एकत्रित ना हो पाए क्योंकि मच्छर ठहरे हुए जल में अण्डे देते हैं और जल में ही इनके शिशु (larvae) रहते हैं।
➤ यदि मच्छरों के अण्डों व शिशु ऐसी नालियों और तालाबों में जिन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में समय-समय पर उन जलाशयों की सफाई की जानी चाहिए तथा यदा-कदा इनके जल की सतह पर तैल आदि का छिड़काव किया जाए ताकि मच्छर की लार्वी साँस न ले सकें।
2. रोग से बचाव (Prevention from Infection or Prophylaxis)
➤ पहली विधि में घरों को ऊँचे स्थानों पर बनाकर, इनके बाहर भीतर सफाई रखकर तथा खिड़कियों एवं दरवाजों में जाली लगाकर मच्छरों को घरों में आने से रोकना चाहिए। मच्छरदानी लगाकर सोना तथा सोते समय शरीर के खुले भागों पर सरसों आदि का तैल या मच्छर-प्रतिकर्षी क्रीम (mosquito repellent cream) लगाकर मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचना चाहिए।
➤ दूसरी विधि में मनुष्यों को, विशेषतः मलेरिया (Malaria) वाले क्षेत्रों में, कुनैन, डैराप्रिम आदि निरोधकारी औषधियों (prophylatic drugs) का नियमित उपयोग करते रहना चाहिए।
3. रोगियों का उपयुक्त उपचार (Treatment of Patients)
गॉल्जी (Golgi – 1885) ने प्लाज्मोडियम मलैरी की कुछ प्रावस्थाओं को मनुष्य के लाल रुधिराणुओं में देखा था जिसके बाद उन्होंने लैवरॉन की खोज का समर्थन किया। इसके बाद सन् 1897 में भारतीय सेना के डॉ० रोनाल्ड रॉस (Ronald Ross) ने मादा ऐनोफेलीज में प्लाज्मोडियम की ओअसिस्ट्स देखीं। मलेरिया (Malaria) पर की गई इस महत्त्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें 1902 में नोबेल पुरस्कार मिला। ग्रासी (Grassi-1900) तथा उनके सहयोगियों ने सर्वप्रथम् ऐनोफेलीज के आमाशय में प्लाज्मोडियम के जीवन-चक्र का वर्णन किया।
उद्भवन काल (Incubation Period)
मानव पोषद के शरीर में प्लाज्मोडियम के स्पोरोज्वॉएट्स के प्रवेश से लेकर उसके द्वारा किए गए रोग के प्रथम आक्रमण तक के समय को उद्भवन काल (incubation period) कहते हैं। यह उद्भवन काल (incubation period) प्लाज्मोडियम की सभी जातियों में अलग अलग होता है जैसे प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (P. vivax) एवं प्ला० ओवेल (P. ovale) में औसतन 14 जबकि प्ला० मलैरी (P. malariae) में 28 तथा प्ला० फैल्सीपैरम (P. falciparum) में 12 दिन का होता है।
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रोग के लक्षण (Symptoms) एवं रोग की प्रावस्थाएँ (Stages)
➤ पूर्वलक्षण (Prodromal Symptoms) : मलेरिया (Malaria) में बुखार चढ़ने से पहले रोगी की भूख मर जाती है। इसके बाद रोगी में कई लक्षण दिखते हैं जैसे- कब्ज हो जाना, मुँह सूखने लगना, सिर, पेशियों और जोड़ों में दर्द होना तथा जी मिचलाने लगना आदि। ये इस रोग के पूर्वलक्षण (prodromal symptoms) होते हैं।
➤ दौरा (Paroxysm) : मलेरिया (Malaria) का प्रथम आक्रमण कई प्रारम्भिक एरिथ्रोसाइटिक चक्रों के बाद होता है लेकिन इसके बाद यह प्रत्येक एरिथ्रोसाइटिक चक्र के पूरा होने पर होने लगता है। अतः स्पष्ट है कि रक्त में हीमोज्वॉएन एवं अन्य विषैले पदार्थों के काफी मात्रा में मुक्त हो जाने के कारण ऐसा होता है।
➤ रोग का दौरा प्रायः दोपहर के बाद होता है। इसमें पहले रोगी को ठण्ड लगकर कँपकँपी आती है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, कमर व सिर में दर्द होने लगता है। इसे दौरे की जूड़ी प्रावस्था (rigor stage) कहते हैं। लगभग एक घण्टे बाद कँपकँपी तो बन्द हो जाती है लेकिन शरीर का तापमान बढ़कर 104-105°F तक पहुँच जाता है। इस प्रावस्था को दौरे की ज्वरजन्य (febrile) प्रावस्था कहते हैं। कुछ घण्टे बाद शरीर से अत्यधिक पसीना निकलता है जिससे तापमान कम हो जाता है और रोगी, थकावट और कुछ कमजोरी के अतिरिक्त स्वस्थ अनुभव करने लगता है। इसे दौरे की स्थगन (defervescent) प्रावस्था कहते हैं।
रोग के प्रकार (Types of Malaria)
दौरे की मियाद के आधार पर मलेरिया (Malaria) रोग तीन प्रकार का होता है:
रोग के प्रकार (Types of Malaria)
दौरे की मियाद के आधार पर मलेरिया (Malaria) रोग तीन प्रकार का होता है:
➤ तृतीयक मलेरिया या सामान्य जूड़ी बुखार (Tertain Malaria or Common Ague): इसमें दौरा प्रति 48 घण्टे बाद (हर तीसरे दिन) आता है। यह संक्रमण मुख्यतः प्लाज्मोडियम वाइवैक्स, प्ला० फैल्सीपैरम तथा प्ला० ओवेल के द्वारा होता है। प्ला० वाइवैक्स तथा प्ला० ओवेल के संक्रमण से हल्का तृतीयक मलेरिया (benign tertian malaria) होता है। इसमें मृत्यु दर कम होती है, क्योंकि नष्ट होने वाले अधिकांश RBCs पुराने व कमजोर होते हैं।
जबकि प्ला० फैल्सीपैरम के संक्रमण से होने वाला मलेरिया (Malaria) घातक तृतीयक मलेरिया (malignant or pernicious, or tropical, or cerebral malaria) होता है। इसमें मृत्यु-दर बहुत अधिक होती है, क्योंकि संक्रमित हुआ लाल रुधिराणु समूहों में चिपककर रुधिर केशिकाओं में रुधिर के मार्ग को अवरुद्ध कर देते हैं जिससे रोगी के अंगों में रुधिर परिसंचरण बाधित हो जाता है।
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➤ चतुर्थक मलेरिया (Quartan Malaria) : इसमें दौरा प्रति 72 घण्टे बाद (हर चौथे दिन) आता है। यह प्ला० मलैरी के संक्रमण से होता है।
➤ दैनिक मलेरिया (Quotidian Malaria): इसमें दौरा प्रतिदिन आने लगता है। यह तब होता है जब प्लाज्मोडियम की एक से अधिक जातियों का संक्रमण होता है तथा तब जब रोग अधिक बिगड़ जाता है।
➤ आवर्ती मलेरिया (Relapse Malaria) : प्ला० वाइवैक्स, प्ला० ओवेल तथा प्ला० मलैरी में बाह्य रुधिराणु चक्रों के निरन्तर चलते रहने से एक बार रोग ठीक हो जाने के बाद चाहे जब रोग का दुबारा आक्रमण हो सकता है।
मनुष्य पर रोग के विशिष्ट प्रभाव (Effects of Malaria)
जब किसी व्यक्ति को मलेरिया (Malaria) हो जाता है तो उसे बार-बार पड़ने वाले दौरों के कारण कुछ ही दिनों में उसके रक्त में अगणित लाल रुधिराणु नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण रोगी को रक्तक्षीणता (anaemia) हो जाती है। रोगी का रक्त तनु (dilute) और शरीर कमजोर हो जाता है। प्रायः तिल्ली बढ़ जाती है। (“spleen index”) तथा पीलिया (jaundice) रोग भी हो जाता है। उपयुक्त इलाज न हो तो रोगी की मृत्यु हो जाती है। मच्छर पोषद के लिए प्लाज्मोडियम अरोगजनक (nonpathogenic) होता है।
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उपचार (Treatment or Therapy)
➤ मलेरिया (Malaria) रोग के उपचार के लिए 300 वर्षों से कुनैन (Quinine) नामक एक परम्परागत औषधि बनी हुई है। जो डच ईस्ट इण्डीज, भारत, पेरू, लंका आदि देशों में सिन्कोना (Cinchona) वृक्ष की छाल के सत से बनाई जाती है। यह रोगी के रुधिर में उपस्थित प्लाज्मोडियम की सभी प्रावस्थाओं को नष्ट कर देती है।
➤ कुनैन से मिलती-जुलती कई कृत्रिम औषधियाँ है जो आजकल मलेरिया (Malaria) के उपचार के लिए प्रचलित हैं जैसे - ऐटीब्रिन (Atebrine), बेसोक्विन (Basoquine), एमक्विन (Emquine), मैलोसाइड (Malocide), मेलुब्रिन (Melubrin), निवाक्विन (Nivaquine), क्लोरोक्विन (Chloroquine) आदि।
➤ पेल्यूड्रिन, मेपाक्रीन, पैन्टाक्विन, डैराप्रिम, प्राइमाक्विन एवं प्लाज्मोक्विन (Paludrine, Mepacrine, Pentaquine, Daraprim, Primaquine and Plasmoquine) रोगी के यकृत में उपस्थित प्लाज्मोडियम की प्रावस्थाओं को भी नष्ट करती हैं। Read more - हैजा
रोकथाम एवं उन्मूलन (Control and Eradication)
कुछ वर्षों से हमारे देश में मलेरिया (Malaria) की पूरी रोकथाम के लिए एक वृहद् मलेरिया (Malaria) उन्मूलन योजना (National Malaria Eradication Programme NMEP or Malaria Eradication Scheme MES) चल रही है। इसमें तीन विधियाँ अपनाई जाती हैं—
- मच्छरों का संहार
- रोग से बचाव
- रोगियों का उपयुक्त उपचार।
1. मच्छरों का संहार (Destruction of Mosquitoes)
यह तीन प्रकार से किया जाता है-
➤ घरों में डी०डी०टी० या फ्लिट छिड़ककर मच्छरों से निजात पाया जा सकता है। इसके अलावा गन्धक पाइरीथ्रम (Sulphur pyrethrum), नैफ्था (naphtha) एवं तार-केम्फर (tar-camphor) इत्यादि को जलाकर भी वयस्क मच्छरों का संहार किया जाता है।
➤ शहरों, गाँवों तथा अपने घर के आस-पास जल भराव को रोकना तथा गड्ढों को भरना ताकि उसमें पानी एकत्रित ना हो पाए क्योंकि मच्छर ठहरे हुए जल में अण्डे देते हैं और जल में ही इनके शिशु (larvae) रहते हैं।
➤ यदि मच्छरों के अण्डों व शिशु ऐसी नालियों और तालाबों में जिन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में समय-समय पर उन जलाशयों की सफाई की जानी चाहिए तथा यदा-कदा इनके जल की सतह पर तैल आदि का छिड़काव किया जाए ताकि मच्छर की लार्वी साँस न ले सकें।
➤ इसके अलावा जल में मच्छरों की लावीं को खाने वाली मछलियाँ (larvicidal fishes), जैसे मिन्नोज (minnows), ट्राउट (trout), स्टिकिलबैक (stickleback), गैम्बूसिया (Gambusia) तथा बत्तखें छोड़ी जाएँ। कुछ कीटभक्षी पौधे, जैसे यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) आदि, भी ऐसे जलाशयों में छोड़े जाने चाहिएँ।
2. रोग से बचाव (Prevention from Infection or Prophylaxis)
दो विधियों से मनुष्य रोग-ग्रस्त होने से बच सकता है–
➤ पहली विधि में घरों को ऊँचे स्थानों पर बनाकर, इनके बाहर भीतर सफाई रखकर तथा खिड़कियों एवं दरवाजों में जाली लगाकर मच्छरों को घरों में आने से रोकना चाहिए। मच्छरदानी लगाकर सोना तथा सोते समय शरीर के खुले भागों पर सरसों आदि का तैल या मच्छर-प्रतिकर्षी क्रीम (mosquito repellent cream) लगाकर मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचना चाहिए।
➤ दूसरी विधि में मनुष्यों को, विशेषतः मलेरिया (Malaria) वाले क्षेत्रों में, कुनैन, डैराप्रिम आदि निरोधकारी औषधियों (prophylatic drugs) का नियमित उपयोग करते रहना चाहिए।
3. रोगियों का उपयुक्त उपचार (Treatment of Patients)
देश के एक बड़े भाग में सभी रोगियों का एक साथ उपयुक्त उपचार किया जाना चाहिए। जब इस भाग में मच्छरों को मनुष्य से प्लाज्मोडियम की प्रावस्थाएँ ही नहीं मिलेंगी तो रोग स्वतः समाप्त हो जाएगा।
उपर्युक्त तरीकों को अपनाकर मलेरिया (Malaria) के रोग से बचा जा सकता है। इसके अलावा रोगी को पौष्टिक आहार देना चाहिए जिससे उसे ऊर्जा मिल सके।
उपर्युक्त तरीकों को अपनाकर मलेरिया (Malaria) के रोग से बचा जा सकता है। इसके अलावा रोगी को पौष्टिक आहार देना चाहिए जिससे उसे ऊर्जा मिल सके।
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