रेबीज (Rabies) क्या हैं? कारण,लक्षण,संक्रमण का संचरण,निवारण


रेबीज (RABIES) क्या हैं?

रेबीज (RABIES in hindi) क्या हैं? कारण,लक्षण,संक्रमण का संचरण,निवारण

रेबीज़ का परिचय (Introduction of Rabies)

रेबीज (Rabies), केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र का अतिपाती वायरस रोग है। इसे जलान्तक / जलभिति के नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी पशुओं की बीमारी है जैसे कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़, सियार तथा भेड़िये की। लेकिन यह संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती हैं। इसका विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है और जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है तो यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। 




रेबीज़ का कारण (Cause of Rabies)

रेबीज (Rabies) लीसावायरस (Lyssavirus) नामक वायरस के कारण होता है। यह वायरस संक्रमित पशु के थूक में उपस्थित होता है। जब कोई संक्रमित जानवर किसी मनुष्य को काट लेता हैं तो यह वायरस उसके लार के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता हैं। 




रेबीज के लक्षण (Symptoms of Rabies)

रेबीज (Rabies) के लक्षण मनुष्यों में कई महीनों से लेकर कई वर्षों में दिखाई दे सकते हैं।लेकिन देखा गया है कि मनुष्यों में ये लक्षण 1 से 3 महीनों में ही दिखाई दे देते हैं। रेबीज के प्रारंभिक लक्षणों में बदलाव आ जाते हैं जैसे आलस्य में पड़ना, निद्रा आना या चिड़चिड़ापन आदि। अगर व्यक्ति में ये लक्षण प्रकट हो जाते है तो उसका जिंदा रहना मुशिकल हो जाता है।

रेबीज़ (Rabies) से ग्रसित व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण दिखलायी देते हैं:

  1. पानी से भय जलान्तक जलभीति।
  2. शुष्क गला।
  3. तेज रौशनी, आवाज से चिड़न होने लगते हैं।
  4. बोलने में बड़ी तकलीफ होती है।
  5. अचानक आक्रमण का धावा बोलना।
  6. काटे गए स्थान पर दर्द
  7. बुखार, सिरदर्द, उल्टी, थकावट।
  8. उत्तेजना तथा उदासी की एकान्तर अवस्था
  9. दौरा तथा भ्रामक स्थिति।
  10. व्याकुल होना।
  11. अजोबो-गरीबो विचार आना।
  12. कमजोरी होना तथा लकवा हों।
  13. लार व आंसुओं  का बनना ज्यादा हो जाता है।

संक्रमण बहुत अधिक हो जाने पर यह नसों तक पहुँच जाता है। जब यह नसों तक पहुँच जाता है तो निम्न लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे:
  • दो वस्तुओं का दिखाई देना। 
  • मांसपेशियों को घुमाने में परेशानी होना। जैसे मुहं की मांसपेशियां। 
  • लार का ज्यादा बनना तथा मुहं में झाग बनना। 
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रेबीज संक्रमण का संचरण (Transmission of Rabies Infection)

रेबीज (Rabies) वायरस संक्रमित कुत्ते के काटने से मनुष्यों में संचरित हो जाते हैं।पालतू पशु जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस और कई दूसरे पशु भी रेबीज (Rabies) को लोगों में फैला देते हैं। यह देखा गया है की जब रेबीज (Rabies) से संक्रमित कोई पशु किसी मनुष्य को काटता है तो रेबीज (Rabies) उसमें फैल जाता है। इसलिए जानवरों को जैसे कुत्ता, बिल्ली, घोड़े इत्यादि को रेबीज का टीकाकरण किया जाता है।लेकिन अगर इसके बाद भी यह पशु किसी व्यक्ति को काट लेते हैं तो  चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए। 



रेबीज का निवारण एवं नियन्त्रण (Rabies Prevention and Control)

पशुओं में रेबीज (Rabies) के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उनका समय समय पर टीकाकरण कराते रहना चाहिए जिससे आपको उनसे खतरा न हो। अपने पालतू जानवरों पर नजर रखें कि  उसके बर्ताव में बदलाव तो नहीं आया है और यह भी देखे कि उसे किसी जंगली जानवर द्वारा काटा तो नहीं गया हैं यदि ऐसा है तो उसे तुरंत चिकित्सक के पास ले जाएँ और उसका इलाज करवाएं। आपको खुद भी जंगली जानवरों तथा गली के जानवरों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। यदि आपको ऐसा कोई जानवर दीखता है जो संक्रमित लग रहा हो तो तो आप उसकी सूचना सरकारी कर्मचारी को दें। 

संक्रमित व्यक्ति के इलाज के लिए निम्नलिखित निर्देशों का अनुपालन करें-

(i)  नल के नीचे, अधिक पानी तथा साबुन से घाव को धोएँ।
(ii)  कोई प्रतिजैविकी (antibiotic) लगाएँ तथा रोगी को अस्पताल ले जाएँ।
(iii)  डॉक्टर द्वारा परामर्श कर रेबीज प्रतिरोधी टीके का पूरा क्रम लें।
(iv)  जिस जानवर ने काटा हो उसे 10 दिनों तक देखें।
(v)  पालतू पशुओं को भी रेबीज प्रतिरोधी टीका लगवाएँ।


अगर रेबीज (Rabies) का उपचार नहीं किया जाता है तो यह उस व्यक्ति के लिए घातक हो सकता है। सच्च यह है कि अगर किसी व्यक्ति में एक बार रेबीज (Rabies) के लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं तो उसे बचाना बहुत ही मुशिकल हो जाता है इसलिए यह जरुरी है कि जब कोई व्यक्ति किसी पशु द्वारा संक्रमित हो जाता है तो उसका उपचार कराना बहुत जरुरी है।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि रेबीज (Rabies) बहुत ही खतरनाक बिमारी है और जहाँ कहीं कोई जंगली या पालतू पशु जो कि रेबीज (Rabies) विषाणु से संक्रमित हो के मनुष्य को काट लेने पर आपे डॉक्टर कि सलाहनुसार इलाज करवाना अत्यंत ही अनिवार्य है क्योकिं इसमें देरी करने पर रोगी की जान भी सकती हैं। 


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