ज्वालामुखी क्या होता हैं? (volcano in Hindi) ज्वालामुखी के प्रकार


ज्वालामुखी क्या होता हैं? (Volcano in Hindi), ज्वालामुखी के प्रकार 

ज्वालामुखी क्या होता हैं?(volcano)
ज्वालामुखी क्या होता हैं? (volcano in Hindi) ज्वालामुखी के प्रकार

पृथ्वी की सतह पर पायी जाने वाली ऐसी दरार या मुख जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं ज्वालामुखी (Volcano) कहलाते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक ऐसा टूटा भाग होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी के अंदर से इन पदार्थों के लगातार निकलने से जमे हुए पदार्थों की एक शंक्वाकार आकृति बन जाती है जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी शब्द की उत्पत्ति रोमन आग के देवता वालकैन के नाम पर हुआ है। ज्वालामुखी इसीलिए बनते हैं की क्योंकि हमारी पूरी पृथ्वी ठोस टेक्टोनिक प्लेटों में विभाजित है और ज्वालामुखी की उदभव भी वहीं होता है जहाँ पर दो प्लेटें या तो एक दूसरे के विपरीत सरकती है या तो एक दूसरे की तरफ। 
पृथ्वी पर सबसे बड़ा ज्वालामुखी हवाई द्वीप पर मौजूद मोना लोआ  है।  संयुक्त राज्य अमेरिका में सेंट हेलेंस सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है। सौर मंडल में सबसे बड़ा ज्वालामुखी मंगल ग्रह पर है जिसका नाम ओलंपस मॉन्स  है। 

विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और इसे पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है।

ज्वालामुखी के प्रकार (Type of Volcano)
ज्वालामुखी विस्फोट की आवृत्ति के आधार पर इसे निम्न प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है : 
  1. सक्रियता के आधार पर
  2. उद्गार की प्रकृति के अनुसार

1. सक्रियता के आधार पर - 
यह ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं -

* सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी (Active or waking volcanoes) - यह वे ज्वालामुखी होते हैं जिनमे से लावा,गैस तथा विखंडित पदार्थ सदैव निकला करते हैं। भू-वैज्ञानिकों मानते हैं कि अगर कोई ज्वालामुखी वर्तमान में फट रहा हो, या उसके जल्द ही फटने की आशंका हो, या फिर उसमें गैस रिसने, धुआँ या लावा इत्यादि जैसी सक्रियता के चिह्न हों तो उसे सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है।

विश्व में जाग्रत ज्वालामुखियों की संख्या वर्त्तमान समय में लगभग 500 है जिनमें से इटली के एटना तथा स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी प्रमुख हैं। स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी भूमध्य-सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर स्थित है. इससे सदैव प्रज्वलित गैसें निकलती रहती हैं। जिससे इसके आस-पास का भाग प्रकाशमान रहता है। इसीलिए इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहते है। 

* मृत ज्वालामुखी (Dead Volcanoes) - यह वे ज्वालामुखी होते हैं जो कि कभी नहीं फटते हैं। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इनके अन्दर लावा व मैग्मा ख़त्म हो चुका है और अब इनके अंदर उगलने की गर्मी व सामग्री बची नहीं है जिसके कारण यह मृत ज्वालामुखी कहलाते हैं। ऐसे ज्वालामुखी जिनके विस्फोटक प्रकार की सक्रियता की कोई भी घटना होने की स्मृति नहीं हो तो अक्सर उसे मृत समझा जाता है। इरान के प्रमुख शांत ज्वालामुखी कोह सुल्तान तथ देवबंद है। 

* प्रसुप्त या सुप्त ज्वालामुखी (Dormant or dormant volcano) - वैज्ञानिकों ऐसा मानते हैं कि अगर मानवीय स्मृति में कोई ज्वालामुखी कभी भी इतिहास में बहुत पहले फटा हो तो उसे सुप्त ही माना जाता है लेकिन वैज्ञानिकों में अभी भी मृत (extinct) और सुप्त (dormant) ज्वालामुखियों में अंतर बता पाना कठिन है। बहुत से ऐसे ज्वालामुखी होते हैं जिन्हें एक बार फटने के बाद दूसरे विस्फोट के लिये दबाव बनाने में लाखों साल गुज़र जाते हैं तब इस दौरान इन्हें सुप्त माना जाता है। तोबा एक ऐसा ज्वालामुखी है जिसका विस्फोट आज से लगभग 70,000 वर्ष पूर्व हुआ था जिससे भारतीय उपमहाद्वीप के सभी मनुष्य मारे गये थे और जिस कारण पूरी मनुष्यजाति ही विलुप्ति की कगार थी। यह ज्वालामुखी हर 380,000 वर्षों में पुनर्विस्फोट के लिये तैयार होता रहता है।


2. उद्गार की प्रकृति के अनुसार 
इसके अनुसार यह दो प्रकार के होते हैं -

* केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी (Central Eruption Volcano) - इस  प्रकार के ज्वालामुखी में लावा के साथ अधिक मात्रा में गैस बाहर निकलती है और इसके लावा का जमाव शंकु की तरह होता हैं लेकिन यह जरुरी नहीं क्योंकि यह कभी-कभी गुम्बद या टीले के रूप में भी जमा होता है। इन्हें केंद्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखी कहते हैं। इनके मुख का व्यास 100 फीट से अधिक नहीं होता है तथा इसका आकार गोल या करीब-करीब गोल होता है। इनसे निकलने वाला गैस लावा अधिक मात्रा में विस्फोटक उद्भेदन के साथ काफी ऊँचाई तक प्रकट होते हैं। ये ज्वालामुखी अत्यधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनसे भयंकर भूकम्प आते हैं।

इन्हें विस्फोट आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

1 हवायन या हवाई तुल्य
2 स्ट्राम्बोलियन या स्ट्राम्बोली तुल्य - भूपदार्थ तीव्रता से बाहर आता है।
3 वल्कैनियन या वलकैनैनो तुल्य ज्वालामुखी - इस प्रकार के ज्वालामुखी का विस्फोट भयंकर होता है तथा इसका लावा इतना चिपचिपा होता है कि दो उद्गारों के बीच यह ज्वालामुखी छिद्र पर जमकर उसे ढक लेता है जिससे गैसों के मार्ग में अवरोध हो जाता है लेकिन जब गैसें अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है तो ये तीव्रता से इस अवरोधक को हटा देती है जिससे ज्वालामुखी काफी दूरी तक छा जाते हैं जैसे- वलकैनो ज्वालामुखी। 
4  प्लिनियन
5 पीलियन या पीली तुल्य ज्वालामुखी - यह सबसे अधिक विनाशकारी ज्वालामुखी होते है तथा इनका उद्गार सर्वाधिक विस्फोटक तथा भयंकर होता है। इसका लावा सर्वाधिक चिपचिपा होता है। विस्फोट के समय ज्वालामुखी की नली में लावा की कठोर पट्टी जमा हो जाती है जिससे जब अगला विस्फोट होता है तब गैसे इन्हें तीव्रता से हुई धरातल पर आती है जिससे भयंकर आवाज होती है।

* दरारी उद्भेदन वाले ज्वालामुखी (Volcanoes with cracks) - इस ज्वालामुखी में लावा के साथ गैस की मात्रा कम होती है जिससे लावा दरारों में होकर ध्ररातल पर जमने लगता है। कभी कभी  लावा के अधिक मात्रा में जमा होने से इसकी मोटी परत बन जाती है जिसके फलस्वरूप लावा के पठार बन जाते है। इसमें मैग्मा कम गाढ़ा होता है तथा विस्फोट के बाद यह सतह पर दूर तक फैलकर जम जाता है। भारत में दक्कन का पठारी हिस्सा एक दरारी उद्भेदन द्वारा निर्मित हुआ है और इस पर बेसाल्ट की चट्टानों के अपक्षय से काली रेगुर मिट्टी का निर्माण हुआ है।

ज्वालामुखी हमारे उपयोगी भी होता है क्योकि इससे लावे से हमें काली मिट्टी  मिलती है। लेकिन इनके बहुत अधिक विस्फोट से वातावरण में प्रदुषण भी बढ़ता है तथा जान धन की हानि भी होती है। 

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