संघ पोरिफेरा (Porifera) : परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण|hindi


संघ पोरिफेरा (Porifera)

संघ पोरिफेरा (Porifera) : परिचय एवं परिभाषा, लक्षण, वर्गीकरण|hindi

पोरिफेरा संघ के जंतु प्रोटोजोआ संघ के जंतुओं से पूरी तरीके से भिन्न होते हैं। आज हम पोरिफेरा  संघ के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इनके वर्गीकरण के बारे में जानेंगे-

परिचय एवं परिभाषा (Introduction and Definition)

यह निम्न कोटि के बहुकोशिकीय जन्तु या मेटाजोआ (metazoa) होते हैं जिनमें शरीर-संघठन केवल कोशिकीय स्तर का, अर्थात् ऊतकरहित होता है। इस संघ के सदस्यों को स्पंजें (sponges) कहते हैं। पानी सोखने के लिए स्पंजें अतीतकाल से प्रसिद्ध हैं। आजकल रबर, नाइलोन, आदि के नकली स्पंज बनते हैं। प्राकृतिक स्पंज पोरिफेरा के कुछ सदस्यों का कंकाल (skeleton) होता है। पोरिफेरा  शब्द का अर्थ है “छिद्र-धारक (Gr., poros = pore; ferre = to bear)। इनके शरीर पर ऑस्टिया (ostia) नामक अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनसे बाहरी जल निरन्तर शरीर में घुसता रहता है। स्पंजों की लगभग 10,000 जातियाँ ज्ञात हैं।


संक्षिप्त इतिहास (Brief History)

अरस्तू (Aristotle) को “स्पंजों" का ज्ञान था। 17वीं सदी में वैज्ञानिक इन्हें पादप समझते थे। 1765 में एलिस (Ellis) ने देखा कि ये निरन्तर बाहरी जल को शरीर में खींचकर बाहर निकालते रहते हैं। तभी इन्हें जन्तु माना गया। इनकी पौधों-जैसी आकृति के कारण लैमार्क (Lamarck, 1801) ने, सीलेन्ट्रेटा के साथ, इनके लिए "जूफाइटा (Zoophyta)” नामक समूह स्थापित किया। रॉबर्ट ग्रान्ट (Robert Grant, 1825) ने इनके लिए "पोरीफरा" नाम की स्थापना की। बाद में, वैज्ञानिकों ने, भौणिकी (embryology) के आधार पर, इन्हें अन्य मेटाजोआ से पृथक् मानकर इनके लिए पैराजोआ अध:जगत् (Subkingdom Porifera) की स्थापना की।


लक्षण (Characters )

पोरिफेरा संघ के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -

1. पोरिफेरा संघ के जीव जलीय जीव होते हैं जिनमें से अधिकांश समुद्री पत्थरों, शिलाओं, अन्य जन्तुओं के खोलों, लकड़ी के टुकड़ों, आदि पर चिपकी हुई निर्जीव-सी अपवृद्धियों (outgrowths) के रूप में दिखाई देते हैं।

2. इनका शरीर 1 से 200 सेमी तक लम्बा, नालवत्, वृत्ताकार, गोलाकार, कीपनुमा, प्याले या तश्तरीनुमा, या अनियत आकार का होता है । यह कई बार पौधों के समान शाखान्वित एवं असममित (asymmetrical) तथा सफेद या रंगीन हो सकते हैं।

3. इनके शरीर का संघठन कोशिकीय स्तर (cellular grade) का होता है, अर्थात् इनमें ऊतकों का अभाव होता है। इनके शरीर की कोशिकाओं में श्रम विभाजन (division of labour) होता है, लेकिन समान कोशिकाएँ ऊतक (tissues) नहीं बनातीं। कोशिकाओं के भेद भी अस्थाई होते हैं। इनमें तन्त्रिका तन्त्र अनुपस्थिति होता है जिसके कारण इनके कार्यों में पारस्परिक सहकारिता (co-operation) एवं समन्वयन (co-ordination) का अभाव रहता है। इस प्रकार, इनका शरीर कोशिकाओं का एक समूह मात्र होता है।

4. इनके शरीर की सकल संरचना (gross anatomy) से एक नाल प्रणाली (canal system) बनती है। इनके देहभित्ति में असंख्य सूक्ष्म छिद्र (ostia) होते हैं जिनके द्वारा बाहरी जल निरन्तर नाल प्रणाली में बहता हुआ शरीर की प्रमुख देहगुहा या स्पंजगुहा (spongocoel) में पहुंचता है तथा शरीर के स्वतन्त्र छोर पर स्थित, एक बड़े अपवाही रन्ध्र अर्थात् ऑस्कुलम (osculum) द्वारा बाहर निकलता रहता है। जब जल अंदर आता है तो भीतरी कोशिकाएँ जल-धारा से भोजन व 02 ग्रहण करती हैं और CO2 तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों को इसमें छोड़ती हैं। इस प्रकार स्पंजों में पाचन गुहा और स्पष्ट मुख नहीं होते।

5. इनका शरीर द्विस्तरीय (diploblastic) होता है जिसमें बाहर, चपटी पिनैकोसाइट (pinacocytes) कोशिकाओं का बना एक्टोडर्मल त्वचीय स्तर (dermal or pinacoderm layer) तथा भीतर, विशेष प्रकार की कीप कोशिकाओं (collared cells or choanocytes) का बना एण्डोडर्मल जठरीय स्तर (gastral layer) होता है। इन दोनों स्तरों के बीच जेली-सदृश मध्यस्तर (mesenchyme or mesohyl) होता है जिसमें दोनों स्तरों की कुछ भ्रमणशील कोशिकाएँ अर्थात अमीवोसाइट्स (amoebocytes) होती हैं। बहुकोशिकीय जन्तुओं में से केवल स्पंजों में ही कीप कोशिकाएँ होती हैं।

6. शरीर की नाल प्रणाली एवं पूर्ण शरीर को साधे रखने के लिए इनके शरीर के मध्यस्तर में कण्टिकाओं (spicules) या कोलैजन जैसी स्पंजिन नामक गन्धकयुक्त प्रोटीन के धागों (spongin fibres) या दोनों का कंकाल होता है।

7. इनका पाचन पूरा अन्तःकोशिकीय (intracellular) और खाद्य-धानियों में होता है।

8. इनमें जनन अलैंगिक एवं लैंगिक दोनों ही प्रकार का होता है। इनके जीवन-वृत्त में एक स्वतन्त्र रोमाभयुक्त (ciliated) शिशु (larva) प्रावस्था ऐम्फीब्लैस्टुला (amphiblastula) अथवा पैरेन्काइमुला (parenchymula) होती है।


वर्गीकरण (Classification)

मुख्यतः कंकाल (skeleton) के आधार पर स्पंजों को तीन वर्गों में बाँटते हैं -

1. वर्ग कैल्केरिया या कैल्सीस्पंजी (Class Calcarea or Calcispongiae-L.,)इस वर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -

इस वर्ग के समुद्री स्पंजें में कंकाल कण्टिकाएँ बड़ी और कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3) की बनी होती हैं।

• इनकी नाल प्रणाली अपेक्षाकृत सरल, ऐस्कॉन, साइकॉन या ल्यूकॉन (ascon, sycon or leucon) श्रेणी की होती हैं।

• इनका शरीर अपेक्षाकृत छोटा सफेद या भूरा-सा, 15 सेमी तक लम्बा व कण्टकीय होता है।

• इनमें कीप कोशिकाएँ अपेक्षाकृत बड़ी होती है। उदाहरण— ल्यूकोसोलीनिया (Leucosolenia), स्काइफा या साइकॉन (Scypha or Sycon)।


2. वर्ग हेक्जैक्टिनेलिडा या हायलोस्पंजी (Class Hexactinellida or Hyalospongiaeइस वर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -

• इस वर्ग के जीव समुद्री होते हैं। इनका कंकाल रंगहीन, पारदर्शक एवं चमकदार तथा सिलिका (silica) की छोटी कण्टिकाओं का बना होता है। इनकी कण्टिकाएँ आदर्श रूप से छः भुजीय होती हैं।

• इनकी नाल प्रणाली जटिल, साइकॉन या ल्यूकॉन श्रेणी की होती है। कीप कोशिकाएँ छोटी; अँगुलीनुमा कक्षों में विभाजित रहती हैं। 

• इनका शरीर लगभग 30 सेमी तक लंबा तथा रंगीन होता है। शरीर-सतह पर पृथक् पिनैकोसाइट्स के स्थान पर सिन्साइसियल (syncytial) स्तर। उदाहरण-यूप्लैक्टेला (Euplectella), हायलोनीमा (Hyalonema)|


3. वर्ग डिमोस्पंजी (Class Demospongiae): इस वर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -

• इस वर्ग के अधिकांश जीव समुद्री, कुछ अलवणीय तथा प्रायः बड़ी व असममित स्पंजें होती हैं। जिनमें से कुछ में कंकाल नहीं होता है तथा कुछ में सिलिका की कण्टिकाएँ होती हैं जबकि कुछ में गन्धकयुक्त प्रोटीन- स्पंजिन (spongin) के धागों का कंकाल होता है तथा कुछ में सिलिका की कण्टिकाएँ एवं स्पंजिन धागों, दोनों का बना कंकाल होता है। इनमें कण्टिकाएँ गोल छः-भुजीय कभी नहीं होती हैं। 

• नाल प्रणाली केवल ल्यूकॉन श्रेणी की होती है। 

• कीप कोशिकाएँ छोटी व छोटे-छोटे कक्षों में विभाजित रहती हैं । उदाहरण- समुद्री यूस्पंजिया (Euspongia), अलवणजलीय स्पंजिला (Spongilla)।

उपर्युक्त के लक्षणों द्वारा पता चलता है कि पोरिफेरा संघ के जंतुओं में क्या-क्या भिन्नता तथा क्या क्या समानताएं पाई जाती हैं। 


   

No comments:

Post a Comment