स्पंजों में नाल-प्रणाली (Canal System in Sponges)
स्पंज में कैनाल सिस्टम का उपस्थित होना एक मुख्य लक्षण है। इनमें कीप कोशिकाओं की कशाभों (flagella) की एक विशेष प्रकार की गति के फलस्वरूप जल-प्रवाह स्थापित होता है जिसमें बाहरी जल की अविरल धारा असंख्य ऑस्टिया से स्पंजगुहा में आती और ऑस्कुलम से बाहर निकलती रहती है। अतः पूरा स्पंज शरीर एक नाल प्रणाली या जल-नलिका-तन्त्र का काम करता है।
जल प्रवाह का दो विधियों से कुछ नियन्त्रण किया जाता है-
(क) मायोसाइट कोशिकाओं के संकुचन से ऑस्कुलम को
(ख) पोरोसाइट कोशिकाओं के संकुचन से ऑस्टिया को छोटा-बड़ा करके
स्पंजों की विभिन्न प्रकार की नाल प्रणालियाँ:
कुछ स्पंज रचना में सरल होते हैं अतः ऐसे स्पंजों की नाल प्रणाली बहुत सरल होती है। जबकि अन्य कुछ स्पंजों में, शरीर-गठन के विकास के साथ-साथ, यह प्रणाली भी क्रमशः जटिल होती गई है। अतः स्पंजों में कई प्रकार की नाल प्रणालियाँ होती हैं। इन्हें तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है-- ऐस्कॉन नाल- प्रणाली (Ascon Canal System)
- साइकॉन नाल-प्रणाली (Sycon Canal System)
- ल्यूकॉन नाल-प्रणाली (Leucon Canal System)
Water Current-
Out side → External Ostea → Porocyte → Internal Ostea → Spongocoel → Osculum → Outside
2. साइकॉन नाल-प्रणाली (Sycon Canal System) : यह साइकॉन और स्काइफा (Sycon or Scypha) एवं कुछ अन्य स्पंजों में होती है। इसका विकास मूलतः ऐस्कॉन स्पंज की दीवार के तहों में fold हो जाने से होता है। fold के कारण देहभित्ति सपाट न रहकर अनेक पास-पास सटी व महीन नलिकाओं का रूप ले लेती है जिन्हें अरीय नलिकाएँ (radial canals) कहते हैं।
रचना में प्रत्येक अरीय नलिका एक ल्यूकोसोलीनिया स्पंज के समान होती है। यह बाहर की ओर बन्द होती है। भीतर की ओर यह एक बड़े छिद्र द्वारा स्पंजगुहा में खुलती है जिसे ऐपोपाइल (apopyle) कहते हैं। मूल ऐस्कॉन के ऑस्टिया, जो अब अरीय नलिकाओं की दीवार में होते हैं, प्रोसोपाइल (prosopyles) कहलाते हैं।
कीप कोशिकाएँ केवल अरीय नलिकाओं की दीवार पर भीतर की ओर होती हैं जिन्हें इसीलिए कशाभी नलिकाएँ (flagellated canals) भी कहते हैं। केन्द्रीय स्पंजगुहा के चारों ओर अब पिनैकोसाइट कोशिकाओं का ही स्तर होता है जो शरीर के बाहरी स्तर से स्थानान्तरित होकर आती हैं। कुछ स्पंजों में, शरीर की सतह पर, अरीय नलिकाओं की दीवार के परस्पर समेकन से इनके बीच-बीच के रिक्त स्थान भी घिरकर अन्तर्वाही नलिकाओं (incurrent canals) का रूप ले लेते हैं।
ये स्पंजगुहा की ओर बन्द परन्तु शरीर की सतह पर खुली होती हैं। बाहरी जल अब पहले इन्हीं में आता है। यहाँ से जलधारा प्रोसोपाइल्स में होकर कशाभी नलिकाओं में और फिर ऐपोपाइल्स द्वारा स्पंजगुहा में आकर ऑस्कुलम से बाहर निकलती है।
Water Current-
Out side → Dermal Ostea → Prosopyles → Radial Canal → Apopyles → Spongocoel → Osculum → Outside
3. ल्यूकॉन नाल-प्रणाली (Leucon Canal System) : जिस प्रकार साइकॉन नाल-प्रणाली ऐस्कॉन की दीवार के folding होने से बनती है, वैसे ही ल्यूकॉन नाल-प्रणाली साइकॉन की कशाभी नलिकाएँ (flagellated canals) की दीवार के मुड़ने से बनती है। मुड़ने के फलस्वरूप इन नलिकाओं की दीवार में छोटे-छोटे गोल से कक्ष बन जाते हैं। कीप कोशिकाएँ केवल इन्हीं कक्षों की दीवार पर होती हैं। इसीलिए इन्हें कशाभी कक्ष (flagellated chambers) कहते हैं।
अब पहले की अरीय नलिकाओं की गुहाओं के चारों ओर भी, स्पंजगुहा की भाँति, पिनैकोसाइट्स का स्तर होता है। इन्हें अपवाही नलिकाएँ (excurrent canals) कहते हैं। इस प्रकार, यह प्रणाली जटिल हो जाती है। इसमें बाहरी जल पहले अन्तर्वाही नलिकाओं में, फिर प्रोसोपाइल्स से कशाभी कक्षों में, फिर ऐपोपाइल्स से अपवाही नलिकाओं में होता हुआ स्पंजगुहा में आकर ऑस्कुलम से बाहर निकलता है।
Water Current -
Out side → Dermal Ostea → Incurrent → Radial Canal → Excurrent → Spongocoel → Osculum → Outside
नाल-प्रणाली का महत्त्व
1. स्पंज शरीर में निरन्तर बहने वाली जलधारा इसके जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। इसके साथ भोजन एवं O2 शरीर में आते तथा CO2 एवं उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकलते हैं। इसीलिए, एक साधारण माप की (10 सेमी लम्बी, 1 सेमी मोटी) स्पंज की नाल प्रणाली में होकर दिनभर में अनुमानतः 20-22 लीटर जल बह जाता है।
2. जल-संचरण द्वारा ही ये निम्नकोटि के जन्तु, जिनमें गमन और भोजन-अन्तर्ग्रहण, श्वसन, उत्सर्जन आदि के लिए विशिष्ट अंग नहीं होते, अपनी जैव-क्रियाओं को चला पाते हैं।
3. यदि किसी स्पंज के सारे ऑस्टिया या ऑस्कुलम को मोम लगाकर बन्द कर दें या सारी कीप कोशिकाओं की कशाभें निकाल दें तो शरीर में जलधारा का संचरण रुक जाएगा। जिसके फलस्वरूप स्पंज के शरीर में होने वाली पूरी प्रक्रिया बन्द हो जाएगी जिससे शीघ्र ही इसकी मृत्यु हो जाएगी।
इसी प्रकार, यदि किसी स्पंज को आसुत (distilled) जल में रखें तो जलधारा का संचरण तो होगा, लेकिन इसे भोजन और O2 प्राप्त नहीं होगी। अतः इसकी मृत्यु हो जाएगी।
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