राइजोपस (Rhizopus) : वर्गीकरण, वास स्थान, संरचना, जनन|hindi


राइजोपस (Rhizopus) : वर्गीकरण, वास स्थान, संरचना, जनन
राइजोपस (Rhizopus) : वर्गीकरण, वास स्थान, संरचना, जनन|hindi

वर्गीकरण (Classification)

जगत् (Kingdom)              -     पादप (Plantae)
उपजगत् (Subkingdom)  -      थैलोफाइटा (Thallophyta)
संघ (Phylum)                   -      यूमाइकोफाइटा (Eumycophyta)
वर्ग (Class)                        -      फाइकोमाइसीट्स (Phycomycetes)
क्रम ( Order)                     -      म्यूकोरेल्स (Mucorales)
कुल (Family)                    -      म्यूकोरेसी (Mucoraceae)
प्रजाति (Genus)                 -      राइजोपस (Rhizopus) (रोटी का काला फफूँद = Black mold of bread = Pin mold = Bread mold)



वासस्थान (Habitat)
राइजोपस एक मृतोपजीवी (saprophytic) कवक है साथ यह अपना पोषण सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। प्रयोगशाला में नम रोटी के टुकड़ों को बेलजार में रखने से दो-तीन दिन में यह उत्पन्न हो जाता है। इसका कवक-जाल सफेद पतले धागों के रूप में रोटी, अचार, जूतों, शाक एवं अन्य स्थानों पर पाया जाता है। बाद में बीजाणुधानी (sporangia) बनने के कारण इसका कवक-जाल काला पड़ जाता है जिस कारण से इसे कृष्ण उर्णिका (black mold) कहते हैं। इसकी सामान्य जातियाँ राइजोपस निग्रिकेन्स (R. nigricans), राइजोपस स्टोलोनिफर (R. stolonifer) आदि हैं। राइजोपस कुछ परिस्थितियों में परजीवी भी हो जाते हैं। यह शकरकन्द में सॉफ्ट रॉट (soft rot) रोग उत्पन्न करता है।

संरचना (Structure)
राइजोपस का पादप शरीर तन्तुओं का बना होता है जो अनियमित सफेद रंग के कवक-जाल (mycelium) के रूप में आधार पर रहता है। कवक-जाल में तीन प्रकार के तन्तु (hyphae) होते हैं-
  • मूलांगी कवक तन्तु (Rhizoidal hyphae)—ये तन्तु रोटी तथा अन्य किसी आधार में प्रवेश करते हैं और उनसे भोजन प्राप्त करते हैं।
  • भूस्तारी (Stolon)—ये तन्तु आधार पर फैले रहते हैं।
  • बीजाणुधानीधर (Sporangiophore)— भूस्तारी (stolon) में जिस स्थान से नीचे की ओर मूलांगी कवक-तन्तु में निकलते हैं, वहीं से ऊपर की ओर सीधी व अशाखित शाखायें, बीजाणुधानीधर (sporangiophores) निकलती हैं, प्रत्येक बीजाणुधानीधर के शीर्ष पर बीजाणुधानी (sporangium) होता है जिसमें बीजाणु (spores) भरे रहते हैं।
कवक-सूत्र (hyphae), संकोशिकी (coenocytic), पटहीन (aseptate) तथा शाखित (branched) होता है। इनमें बहुत से केन्द्रक, तेल की बूँदें, ग्लाइकोजन (glycogen) तथा रिक्तिकाएँ (vacuoles) तथा कोशांग, आदि कोशाद्रव्य (cytoplasm) में पाये जाते हैं।


जनन (Reproduction)
Rhizopus में जनन की मुख्य तीन विधियाँ होती हैं-
  1. वर्धी जनन (Vegetative Reproduction)
  2. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
  3. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
वर्धी जनन (Vegetative Reproduction)
Rhizopus में Vagetative Reproduction fragmentation के द्वारा होता हैं। इसमें Rhizopus के hyphae खण्डों में टूट जाते है और टूटा खण्ड वृद्धि करके नया Rhizopus Hyphae बना लेता है।

अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) 
Rhizopus में अलैंगिक जनन अनुकूल परिस्थितियों में अचल बीजाणुओं (non-motile spores) द्वारा होता है।
बीजाणुधानीधर (sporangiophore) के विकास के समय कुछ कवक तन्तु वायवीय होकर ऊपर की ओर बढ़ने लगते हैं तथा इनके आगे का सिरा अधिक जीवद्रव्य एकत्रित होने के कारण फूल जाता है। इस वायवीय कवक-सूत्र को बीजाणुधानीघर तथा इनके आगे के सिरे पर फूले भाग को बीजाणुधानी (sporangium) कहते हैं। इसमें जीवद्रव्य बाहर की ओर गाढ़ा तथा केन्द्र में पतला हो जाता है। दोनों प्रकार के जीवद्रव्यों के मध्य भाग में बहुत-सी छोटी-छोटी रिक्तिकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ये रिक्तिकाएँ आपस में मिल जाती हैं जिससे दोनों जीवद्रव्यों के बीच दरार (cleft) पड़ जाती है। केन्द्र (centre) का जीवद्रव्य गुम्बद (dome) के आकार का हो जाता है तथा इस भाग को कॉल्यूमेला (columella) कहते हैं। यह बन्ध्य (sterile) होता है। बीजाणुधानी का बाह्य गाढ़े जीवद्रव्य वाला भाग उर्वर (fertile) होता है। इस भाग का जीवद्रव्य धीरे-धीरे बहुभुजाकार (polygonal) क्षेत्रों में विभक्त हो जाता है। प्रत्येक भाग में 2 से 10 केन्द्रक (nuclei) होते हैं। ये बहुभुजाकार भाग धीरे-धीरे कुछ अचल बीजाणुओं (non motile spores) में परिवर्तित हो जाते हैं। बीजाणुधानी का रंग आरम्भ में हल्का पीला तथा बाद में काला हो जाता है।
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जल के अवशोषण के कारण कॉल्यूमेला (columella) फूलने लगता है तथा दबाव पड़ने के कारण बीजाणुधानी फट जाती है और बीजाणु स्वतन्त्र हो जाते हैं। स्वतन्त्र हुए बीजाणु (spores) अनुकूल परिस्थितियों में उचित आधार (substratum) पर अंकुरण नलिका (germ tube) द्वारा अंकुरित होकर नये कवक-जाल (mycelium) का निर्माण करते हैं।



लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
Rhizopus में लैंगिक जनन favouable Condition मैं होता है। यह जनन दो बहुकेन्द्रकीय युग्मकधानियों (multinucleate gametangium) के संयोजन (fusion) द्वारा होता है। दोनों युग्मकधानियाँ बाह्य रूप से समान होती हैं परन्तु ये कार्यिकीय (physiologically) रूप से विभिन्न होती हैं, अतः इन्हें (+) एवं (-) प्रभेद् (strain- गुण) द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इसे विषम लैंगिकता (Heterothallism) कहते हैं। ए० एफ० ब्लेकेसली (A. F. Blakeslee) नामक वैज्ञानिक ने 1904 में सर्वप्रथम म्यूकर म्यूसिडो (Mucor mucedo) नामक कवक में इसे दर्शाया था।
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जिस समय दो कवक तन्तु जो क्रमशः (+) व (-) प्रभेद् के हों एक-दूसरे के समीप आते हैं तो इन कवक तन्तुओं से वृद्धियाँ (outgrowths) निकलती हैं जिन्हें प्राक्युग्मकधानियाँ (progametangia) कहते हैं। इनके अग्र सिरे फूले हुए होते हैं तथा इनमें जीवद्रव्य भरा रहता है। अब ये दोनों प्राक्युग्मकधानियाँ वृद्धि करके एक-दूसरे के अग्र सिरे से छूने लगती हैं। इस समय एक अनुप्रस्थ भित्ति द्वारा प्रत्येक प्राक्युग्मकधानी (progametangium) दो भागों में बँट जाती है। इसके अग्र भाग को युग्मकधानी (gametangium) तथा पिछले भाग को निलम्बक (suspensor) कहते हैं। युग्मकधानी के जीवद्रव्य में केन्द्रक अधिक होते हैं। इस भाग को संयुग्मक (coenogamete) भी कहते हैं।

परिपक्व युग्मकधानियों (gametangia) के बीच की भित्ति नष्ट हो जाती है और दोनों के जीवद्रव्य एक होकर युग्माणु (zygospore) बनाते हैं। युग्माणु गोल आकृति की रचना होती है जिसके चारों ओर शीघ्र ही एक मोटी व काँटेदार (warty) भित्ति बन जाती है। इस भित्ति के कारण युग्माणु पर प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रभाव नहीं होता और यह कुछ महीनों विश्राम करता है। युग्माणु में अनेक द्विगुणित (diploid) केन्द्रक होते हैं।

युग्माणु का अंकुरण (Germination of Zygospore)
अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर यह युग्माणु अंकुरित होता है। अंकुरण से पूर्व उसमें अर्ध-सूत्री विभाजन (meiosis) होता है। जिसके बाद इसके बाहर की भित्ति फट जाती है और अंतर की भित्ति एक प्राक्कवक तन्तु (promycelium) के रूप में बाहर निकल आती है। प्राक्कवक तन्तु का शीर्ष भाग फूलकर युग्माणु बीजाणुधानी (zygosporangium) बनाता है। इसमें (+) व (-) प्रभेद् के बीजाणु बनते हैं। ये बीजाणु एककेन्द्रीय (uninucleate) होते हैं। बीजाणुधानी के फटने पर बीजाणु स्वतन्त्र हो जाते हैं। अनुकूल परिस्थिति में उचित आधार मिलते ही बीजाणु अंकुरित होता है और इसी प्रभेद् (strain) के कवक-जाल (mycelium) का निर्माण करता है।

कभी- बिना संयोजन के ही युग्मक, युग्माणु जैसी रचना बनाकर नये कवक-जाल (mycelium) को बनाते हैं। इन बीजाणुओं को अयुग्माणु अथवा अनिषेक वीजाणु (Azygospores or Parthenospores) कहते हैं और इस क्रिया को अनिषेक जनन (parthenogenesis) कहते हैं।



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