संघ नाइडेरिया (Cnidaria): परिचय एवं परिभाषा,लक्षण,वर्गीकरण|hindi


संघ नाइडेरिया (Phylum Cnidaria)

संघ नाइडेरिया (Cnidaria): परिचय एवं परिभाषा,लक्षण,वर्गीकरण|hindi

परिचय एवं परिभाषा (Introduction and Definition)

यह अरीय सममिति (radial symmetry) वाले “ऊतकीय स्तर" के यूमेटाजोआ होते हैं।
इस संघ को सीलेन्ट्रैटा (Coelenterata) भी कहते हैं, क्योंकि इनमें देहभित्ति से घिरी, सीलेन्ट्रॉन (coelenteron) नामक एक ही गुहा होती है जिसमें भोजन का पाचन और पचे हुए पदार्थों का वितरण दोनों ही कार्य होते हैं। इसीलिए इस गुहा को जठरवाहिनी गुहा (gastrovascular cavity) भी कहते हैं। नाइडेरिया शब्द का अर्थ है दंशकोशिका धारक (Gr, knide nettle or stinging cells)। इन जन्तुओं की लगभग 10,000 जातियाँ ज्ञात हैं।


संक्षिप्त इतिहास (Brief History)

अरस्तू (Aristotle) नाइडेरिया के दंशन-स्वभाव (stinging) से परिचित थे और इसीलिए वे इन्हें निडी (Cnidae) कहते थे। ल्यूकर्ट (Leuckart, 1847) ने इनके और स्पंजों के लिए सीलेन्ट्रैटा संघ (Phylum Coelenterata) बनाया। बाद में हैचेक (Hatschek, 1888) ने इस संघ को स्पंजियेरिया (पोरीफरा), नाइडेरिया एवं टिनोफोरा नामक संघों में बाँट दिया।

लक्षण (Characters)

इस संघ के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -

1. नाइडेरिया संघ के सभी जीव जलीय होते हैं जिनमें से अधिकांश समुद्री होते हैं। यह एकाकी या संघचारी होते हैं। 

2. इनके शरीर की आकृति आदर्श रूप से दो प्रकार की, अर्थात् द्विरूपी (dimorphic) होती है- बेलनाकार पॉलिप (polyp) और तश्तरी, प्याली या छतरीनुमा मेड्यूसा (medusa)। कुछ जीवों के जीवन वृत्त में दोनों प्रकार के सदस्य होते हैं जबकि कुछ में किसी एक प्रकार के तथा कुछ में इनके भी कई-कई भेद, अर्थात् बहुरूपता (polymorphism) पाई जाती है। 

3. इनके शरीर का अग्र भाग अधोरन्ध्र अर्थात् हाइपोस्टोम (hypostome) के रूप में फूला या बढ़ा हुआ और इसके शिखर पर मुंह अथवा चपटा या तश्तरीनुमा और इसके बीच में मुंह होता है।

4. इसका मुख आदर्श रूप से धागेनुमा संवेदी स्पर्शकों (tentacles) द्वारा घिरा रहता है।

5. इसके शरीर की radial symmetry  इसका एक विशेष लक्षण है।

6. नाइडेरिया संघ के जंतु स्पंजों से कुछ अधिक विकसित जन्तु होते हैं। इनकी कोशिकाओं में स्थाई श्रम विभाजन (division of labour)हुआ रहता है। समान कोशिकाएँ एपीथीलियमी (epithelial) ऊतक तथा इसके नीचे तन्त्रिका कोशिकाएँ एक ऊतक के रूप में तन्त्रिका जाल (nerve net) बनाती हैं। इसमें स्पष्ट एवं स्थाई अंग नहीं बनते हैं। अतः इसके शरीर का संघठन "ऊतकीय स्तर" का (tissue grade of body organization) होता है। 

7. शरीर देहभित्ति से घिरी सीलेन्ट्रॉन या जठरवाहिनी गुहा सामान्य या शाखान्वित, या खड़ी पट्टियों (mesenteries or septa) द्वारा कक्षों में विभाजित रहता है।

8. इस देहभित्ति में केवल दो प्रमुख कोशिकीय स्तर होते हैं- बाहरी को एपीडर्मिस (epidermis) तथा भीतरी को गैस्ट्रोडर्मिस (gastrodermis) कहते हैं। इनके बीच में मीसोग्लिया (mesogloea) नाम का एक जेली का स्तर होता है। अतः ये जन्तु द्विस्तरीय (diploblastic) होते हैं।

9. एपीडर्मिस तथा गैस्ट्रोडर्मिस या दोनों में ही विशेष प्रकार की दंश कोशिकाएँ (nematoblasts or stinging cells) होती हैं जो जन्तु-जगत् में अन्य किसी जंतु में नहीं मिलतीं। इन कोशिकाओं के दंश आत्मरक्षा करने में तथा किसी वस्तु से चिपकने या शिकार करने में सहायक होते हैं।

10. इन जंतुओं में निम्नतम् कोटि का जालवत् तन्त्रिका तन्त्र होता है। इसमें कोई मस्तिष्क या कोई केन्द्रीय तन्त्र नहीं होता है। जबकि कुछ में दृष्टि बिन्दु (eye spots or ocelli) तथा स्टैटोसिस्ट्स (statocysts) नामक सन्तुलन रचनाएँ होती हैं। 

11. इनमें जनन अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों विधियों द्वारा होता है। इनके जीवन-वृत्त में अलैंगिक जनन पॉलिप रूप तथा लैंगिक जनन मेड्यूसा रूप का एकान्तरण होता है जिसे मेटाजेनीसिस (metagenesis) कहते हैं।


वर्गीकरण (Classification)

इस संघ के जंतुओं के जीवन-वृत्त में प्रमुख रूपता पॉलिप तथा मेड्यूसा की होती है जिसके आधार पर इन्हें तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है—

1. वर्ग हाइड्रोजोआ (Class Hydrozoa)
 इस वर्ग के जंतुओं के लक्षण इस प्रकार हैं -

  • इस वर्ग के अधिकांश जीव समुद्री होते हैं जबकि कुछ अलवणजलीय में रहने वाले होते हैं। इसके सदस्य एकाकी या संघचारी (unionist) रूप में रहते हैं। 
  • इस वर्ग के अधिकांश सदस्यों में अलैंगिक पॉलिप तथा लैंगिक मेड्यूसा प्रावस्थाओं में पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generations) होता है। जबकि कुछ में केवल पॉलिप रूप जनन होता है।
  • इनमें मीसोग्लिया कोशिकाविहीन होती हैं।  
  • पॉलिप में खड़ी पट्टियाँ नहीं होती हैं।
  • गैस्ट्रोडर्मिस में दंश कोशिकाएँ अनुपस्थित रहती हैं।
  • मेड्यूसा में छतरीनुमा शरीर के किनारे एक पेशीयुक्त पट्टी, अर्थात् बीलम(velum; क्रेस्पीडोट– craspedote medusa) होता है। 
  • जनन कोशिकाओं की उत्पत्ति प्रायः एपीडर्मिस की इन्टरस्टीशियल (interstitial) कोशिकाओं से होती है। उदाहरण- हाइड्रा (Hydra), ओबीलिया (Obelia), फाइसेलिया (Physalia)।

2. वर्ग स्काइफोजोआ (Class Scyphozoa)
 इस वर्ग के जंतुओं के लक्षण इस प्रकार हैं -

  • इस वर्ग के सभी जीव समुद्री होते हैं अर्थात सभी जीव समुद्र में पाए जाते हैं और यह जीव एकाकी होते हैं। 
  • इस वर्ग के जीवों में लैंगिक जनन में अधिकांश स्वतन्त्र तैरने वाली मेड्यूसी होते हैं जिनमें पॉलिप प्रावस्था अनुपस्थित या अविकसित और गौण होती है। 
  • मेड्यूसा में मीसोग्लिया स्तर मोटा होता है जिससे इसका पूरा शरीर जेलीसदृश दिखाई देता है इसीलिए इन्हें जेली मछलियाँ (jelly fishes) कहते हैं। 
  • मेड्यूसा के किनारे वीलम नहीं होती (acraspedote medusa), परन्तु कटावों में स्थित आठ सन्तुलन संवेदांग होते हैं। 
  • मीसोग्लिया में कोशिकाएँ उपस्थित रहती हैं। 
  • दंश कोशिकाएँ एपीडर्मिस व गैस्ट्रोडर्मिस दोनों में उपस्थित रहती हैं। 
  • जनन कोशिकाओं की उत्पत्ति गैस्ट्रोडर्मिस की इन्टरस्टीशियल कोशिकाओं से होती है। उदाहरण ऑरीलिया (Aurelia); र्हाइजोस्टोमा (Rhizostoma)।

3. वर्ग एन्थोजोआ (Class Anthozoa) :
 इस वर्ग के जंतुओं के लक्षण इस प्रकार हैं -

  • इनके आधार वस्तुओं से चिपके केवल पॉलिप रूप के समुद्री नाइडेरिया होते हैं। 
  • यह एकाकी या संघचारी दोनों रूपों में पाए जाते हैं। 
  • इनके शरीर चपटे आधार-सिरे (basal disc) द्वारा चट्टानों, आदि पर चिपके रहते हैं। पॉलिप का स्वतन्त्र सिरा चपटे मुखबिम्ब (oral disc) के रूप में रहता है जिसके बीच में मुख तथा किनारे-किनारे खोखले स्पर्शक होते हैं। 
  • मीसोग्लिया में कोशिकाएँ तथा तन्तु होते हैं जबकि दंश कोशिकाएँ एपीडर्मिस व गैस्ट्रोडर्मिस, दोनों में पाई जाती हैं।
  • जठरवाहिनी गुहा अधूरी पट्टियों (septa or mesenteries) द्वारा कक्षों में बँटी रहती हैं। 
  • जनन कोशिकाएँ गैस्ट्रोडर्मिस में बनती हैं। 
  • अनेक एन्थोजोआ में कंकाल होता है जिसे कोरल (coral) या समुद्री झाग कहते हैं। उदाहरण-समुद्री ऐनीमॉन (Sea Anemone), ट्यूबीपोरा (Tubipora), मैड्रीपोरा (Madrepora), फन्जिया (Fungia), गॉरगोनिया (Gorgonia) ।

उपर्युक्त तथा द्वारा यह ज्ञात होता है कि नाइडेरिया संघ के जंतु मुख्यतः समुद्री होते हैं जो कि अकेले या समूह में पाए जाते हैं। इसके अलावा इन के वर्गीकरण का आधार भी ऊपर दिया गया है



FAQs

1. Cnidarians क्या खाते हैं?

Cnidarians शिकारी जीव होते हैं जो छोटे जानवरों, जैसे कि क्रस्टेशियन, मछली, और मछली के अंडे खाते हैं। वे अपने tentacles पर स्थित stinger का उपयोग शिकार को पकड़ने और उसे मारने के लिए करते हैं। Stinger में एक विष होता है जिससे शिकार को लकवा मार जाता है या वो मर जाता है।


2. Cnidarians के 4 प्रकार क्या हैं?

Cnidarians को चार वर्गों में विभाजित किया जाता है:

  • Hydrozoa: ये छोटे, तंतुमय जीव होते हैं जो अकेले या समूहों में पाए जाते हैं। कुछ हाइड्रोज़ोअन, जैसे कि हाइड्रा, मीठे पानी में पाए जाते हैं, जबकि अन्य, जैसे कि जेलीफ़िश, समुद्र में पाए जाते हैं।
  • Scyphozoa: ये जेलीफ़िश हैं जो आमतौर पर समुद्र में पाए जाते हैं। यह बड़े और चमकीले रंग के होते हैं।
  • Anthozoa: ये समुद्री एनीमोन, कोरल, और हॉर्नटेल हैं। यह आमतौर पर समुद्र में पाए जाते हैं।
  • Cubozoa: ये छोटे, खतरनाक जेलीफ़िश होते हैं जो समुद्र में पाए जाते हैं। उनके stinger में एक शक्तिशाली विष होता है जो मनुष्यों को गंभीर रूप से घायल कर सकता है।

3. Cnidarians कितने समय तक जीवित रहते हैं?

Cnidarians की उम्र उनकी प्रजाति और आवास पर निर्भर करती है। कुछ हाइड्रोज़ोअन केवल कुछ सप्ताह तक जीवित रहते हैं, जबकि कुछ कई वर्षों या दशकों तक जीवित रह सकते हैं। स्काइफ़ोज़ोअन आमतौर पर कुछ साल तक जीवित रहते हैं। एंथोज़ोआ कई वर्षों या दशकों तक जीवित रह सकते हैं। क्यूबोजोआ आमतौर पर कुछ महीने या साल तक जीवित रहते हैं।

4. Cnidaria की कितनी प्रजातियाँ हैं?

Cnidaria की लगभग 9,000 प्रजातियाँ हैं जो दुनिया भर के समुद्रों और मीठे पानी के जलाशयों में पाई जाती हैं।


5. क्या आप Cnidarians खा सकते हैं?

हां, कुछ Cnidarians खाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, समुद्री एनीमोन, कोरल, और हॉर्नटेल को भोजन के रूप में खाया जाता है। हालांकि, कुछ Cnidarians, जैसे कि जेलीफ़िश, जहरीले होते हैं और उन्हें नहीं खाना चाहिए।



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