टिड्डी (Grasshopper) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


टिड्डी (Grasshopper) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन
टिड्डी (Grasshopper) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

टिड्डी (Grasshopper)
टिड्डियों की कई श्रेणियाँ एवं जातियाँ संसारभर में खुले, हरे मैदानों, खेतों, बगीचों, आदि में घास-फूस पर पाई जाती हैं। यह खेतों के लिए हानिकारक कीट मानी जाती है। कुछ के सदस्य सीमित क्षेत्रों में एकाकी (solitary); कुछ के यूथचारी (gregarious) एवं भ्रमणशील (migratory) होते हैं और ये बड़े-बड़े टिड्डी दल (locust swarms) बनाकर मीलों उड़ते हैं। इनके लक्षणों का अध्ययन हम नीचे करेंगे।

वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)              -      जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                 -      यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)               -      बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)    -      प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                 -      यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                   -      आर्थ्रोपोडा  (Arthropoda)
उपसंघ (Subphylum)        -      मैन्डीबुलैटा (Mandibulata)
वर्ग (Class)                        -      इन्सेक्टा (Insecta)
गण (Order)                      -      ऑर्थोप्टेरा (Orthoptera)

टिड्डी (Grasshopper) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


लक्षण (Characters)
टिड्डी के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  1. टिड्डी का शरीर 5 से 8 सेमी तक लम्बा, सँकरा व बेलनाकार-सा होता है। इसका शरीर हरे, पीले या भूरे-से रंग का होता है।
  2. इनका शरीर सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित होता है। इनके सिर में 6, वक्ष में 3 तथा उदर भाग में 11 खण्ड होते है। सिर के खण्ड परस्पर समेकित रहते है।
  3. सिर पर एक जोड़ी ऐन्टिनी, एक जोड़ी बड़े संयुक्त नेत्र, तीन जोड़ी छोटे सरल नेत्र (ocelli) तथा भोजन को कुतरने एवं चबाने वाले मुख-उपांग ।
  4. इनके वक्ष भाग पर तीन जोड़ी पंजेयुक्त चलनपाद एवं दो जोड़ी पंख रहते हैं। तीसरी जोड़ी के पाद बड़े, मजबूत तथा उछलने के लिए उपयोजित रहते हैं। इनकी टिबिया पर उपस्थित शूकों को पंखों पर रगड़कर टिड्डे ध्वनि करते हैं।
  5. मीसोथोरैक्स एवं मेटाथोरैक्स पर एक-एक जोड़ी पंख उपस्थित रहते हैं। पहली जोड़ी के पंख सँकरे, कड़े एवं चिम्मड़ जैसे होते हैं। ये पंख उड़ने का नहीं, वरन् पिछले पंखों को ढकने का काम करते हैं। पिछले पंख बड़े एवं झिल्ली-सदृश होते हैं।
  6. प्रथम उदरखण्ड पर कर्णपटह अर्थात् टिम्पैनिक झिल्लियों (tympanic membranes) से ढके दो श्रवणांग (auditory organs) एवं उदर के पश्च छोर पर एक जोड़ी गुदलूम (anal cerci) उपस्थित रहते हैं। इनके अन्तिम उदरखण्ड पर नर में मैथुन अंगों तथा मादा में अण्डनिक्षेपण अंगों में रूपान्तरित हो जाता है।
  7. इनकी आहारनाल कॉकरोच की जैसी होती है, परन्तु हिपैटिक सीकी (hepatic caecae) शंक्वाकार-सी तथा संख्या में 12 (6 आगे तथा 6 पीछे की ओर फैलीं) होती है।
  8. इनकी देहगुहा रुधिर या हीमोलिम्फ से भरी हीमोसील होती है। इनके रुधिर में श्वसन रंगा नहीं होता है। 
  9. इनमें श्वसन श्वासनालों (tracheae) द्वारा श्वास रन्धों (spiracles) की 10 जोड़ियों द्वारा होता है जो, उदर भाग में उपस्थित रहती है। पहले 4 जोड़ी रन्ध्रों से अन्तःश्वास (inspiration) तथा अन्तिम 6 जोड़ी रन्ध्रों से उच्छ्वास (expiration) होता है। 
  10. इनमें उत्सर्जन मुख्यतः मैल्पीघी नलिकाओं द्वारा होता है।
  11. नर एवं मादा के बाह्य जननांग अपेक्षाकृत सरल होते हैं। नर में केवल एक बड़ा शिश्न (penis or aedegus) तथा मादा में तीन जोड़ी काइटिनयुक्त अण्डनिक्षेपण प्रवर्ध (ovipositor processes) उपस्थित रहता है। प्रवर्धी द्वारा मादा भूमि में गढ्ड़े खोदकर अण्डे देती है।





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