लाभदायक कीट कौन से होते हैं?: नाम तथा उनका प्रबंधन(Beneficial Insects)|hindi


लाभदायक कीट(Beneficial Insects)
लाभदायक कीट कौन से होते हैं?: नाम तथा उनका प्रबंधन(Beneficial Insects)|hindi

लाभदायक कीट क्या होते हैं?
ऐसे कीट जो मान तथा जीव जन्तुंओं के लिए लाभकारी साबित होते हैं उन्हें लाब्दायक कीट कहा जाता हैं जैसे रेशम का कीड़ा ,मधुमक्खी ,लाख का कीट आदि। यह सभी मानव के लिए लाभकारी होते हैं इनसे हमें बहुत कुछ प्राप्त होता है जिसके बारे में हम नीचे पढ़ेंगे।  
जब मानव अपने लिए जिस भी वस्तु का उत्पादन करता है तो कीट उसमें हिस्सा ही नहीं बँटाते, वरन् उसे नष्ट भी करते हैं। अतः हमारे लिए यह सोचना स्वाभाविक हो जाता है कि यदि कीट प्रकृति में न होते तो मानव बहुत सुखी होता। यह विचार ठीक नहीं है; कीटों की अनेक ऐसी लाभदायक जातियाँ भी होती हैं जिनके बिना हमारा जीवन अधूरा एवं दुखमय होता। इनसे होने वाले लाभों के अनुसार, कीटों को हम कई श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
  1. उपयोगी वस्तुओं के उत्पादक, 
  2. खाये जाने वाले,
  3. निरर्थक पौधों को नष्ट करने वाले,
  4. सफाई करने वाले,
  5. फूलों का परागण करने वाले,
  6. हानिकारक कीटों को नष्ट करने वाले,
  7. भूमि को उपजाऊ बनाने वाले,
  8. दीप्ति कीट ।

1. उपयोगी वस्तुओं के उत्पादक कीट (Insects producing useful goods)
कीटों की कुछ जातियों से हमें उपयोगी वस्तुएँ मिलती हैं, जैसे रेशम, मधु, मोम, लाख, रंग-रोगन, दवाइयाँ, आदि। 

(A) रेशम का पतंगा (Silkworm moth—Bombyx mori)यह पतंगा केवल दो-तीन दिन जीवित रहता है। इतने ही समय में मैथुन करके प्रत्येक पतंगी शहतूत की पत्तियों पर 300-400 अण्डों का अण्डारोपण कर देती है। प्रत्येक अण्डे से लगभग 10 दिन में एक नन्हा कैटरपिलर (caterpillar) लार्वा निकलता है। 30-40 दिन में, सक्रिय वृद्धि के फलस्वरूप, लार्वा पहले लम्बा होता है और फिर सुस्त होकर गोल-मटोल हो जाता है। अब तीन दिन तक निरन्तर अपने सिर को इधर-उधर हिलाकर यह अपने चारों ओर अपनी लार ग्रन्थियों द्वारा स्रावित पदार्थ से एक ही लम्बे धागे का खोल बनाता है जिसे कोया या ककून (cocoon) कहते हैं। 
लाभदायक कीट कौन से होते हैं?: नाम तथा उनका प्रबंधन(Beneficial Insects)|hindi

वायु के सम्पर्क में यही धागा सूखकर रेशमी धागा बन जाता है जो लगभग 1000 मीटर लम्बा होता है। कोये में बन्द लार्वा अब एक प्यूपा (pupa) में रूपान्तरित हो जाता है। साधारणतः 12 से 15 दिन में प्यूपा कायान्तरण द्वारा पूर्णक (imago) बन जाता है जो एक क्षारीय स्राव की सहायता से कोये को एक ओर से काटकर बाहर निकल जाता है। इससे कोये का रेशमी धागा अनेक टुकड़ों में टूटकर व्यर्थ हो जाता है। अतः रेशम प्राप्त करने के लिए, पूर्णकीट के बाहर निकलने - से पहले ही कोये को खौलते पानी में डालकर पूर्णकीट को भीतर-ही-भीतर मार देते हैं और धागे को अलग कर लेते हैं। चीन, जापान, इटली, फ्रांस, स्पेन, भारत आदि देशों में रेशम के पतंगों  को बड़े पैमाने पर पालते हैं। लगभग 25 हजार कोयों से एक पौंड रेशम मिलता है। संसारभर में प्रतिवर्ष लगभग पाँच करोड़ पौंड़ रेशम उत्पन्न किया जाता है। इसे रेशम उत्पादन या रेशमकीट पालन (Sericulture) कहते हैं।

अगर आप कीटों के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पढ़े - कीट क्या होते हैं

(B) मधुमक्खी (Honey Bee—Apis indica)यह दीमक की भाँति, एक सामाजिक (social) एवं बहुरूपी (polymorphic) कीट होती है और हजारों की संख्या में कॉलोनी बनाकर रहती है। प्रत्येक कॉलोनी का लगभग, 30-90 सेमी व्यास का, अपना जटिल, मोम (wax) का छत्ता (honey comb or beehive) होता है। ये छत्ते पेड़ों की शाखाओं, पुराने पेड़ों की खोखल, गुफाओं, टूटी-फूटी इमारतों आदि में मिलते हैं। प्रत्येक छत्ते में हजारों छोटे-छोटे षट्भुजीय (hexagonal) कोष्ठक (cells) होते हैं। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के अनुसार, छत्ते में कोष्ठकों की रचनात्मक व्यवस्था अच्छे-से-अच्छे भवन निर्माता (architect) की भी समझ में नहीं आ सकती। अनेक कोष्ठकों में, मधुमक्खियाँ, खाद्य-भण्डार के रूप में, बहुत-सा मधु (honey) संचित रखती हैं। अन्य कोष्ठकों में अण्डों एवं शिशु प्रावस्थाओं का पालन पोषण किया जाता है।

श्रम विभाजन एवं बहुरूपता (Division of Labour and Poly siomorphism) : मधुमक्खी की कॉलोनी बहुत ही सुव्यवस्थित बस्ती होती है। इसके हजारों सदस्य एक ही परिवार के होते हैं। बहुरूपी सदस्य तीन प्रकार के होते हैं- 
(1) केवल एक बड़ी-सी रानी मक्खी (Queen Bee) 
(2) लगभग 100 नर मक्खियाँ या ड्रोन्स (drones) 
(3) हजारों (60) हजार तक) छोटी श्रमिक मक्खियाँ (workers) 

मधुमक्खी का जीवन वृत्त (Life History)
एक नए छत्ते की सारी मधुमक्खियाँ एक ही रानी मक्खी की सन्तानें होती हैं। रानी मक्खी के अण्डे दो प्रकार के होते हैं— 
(a) निषेचित द्विगुण अण्डे (Fertilize Diploid Eggs) : इनमें गुणसूत्रों की संख्या 32 होती है। इसके द्वारा सपुंसक रानी मक्खियाँ या नपुंसक श्रमिक मक्खियाँ बनती हैं। सम्भवतः रानी मक्खी के शरीर से स्रावित एक पदार्थ निकलता है जिसके प्रभाव से श्रमिक मक्खियाँ नपुंसक हो जाती हैं।उस पदार्थ को ऐल्फा कीटोग्लूटैरिक अम्ल (alpha ketoglutaric acid) कहते हैं। 

(b) अनिषेचित एकगुण अण्डे (Unfertilized Haploid Eggs) : इनमें गुणसूत्रों की संख्या 16 होती है। इनके भ्रूणीय परिवर्धन से नर मक्खियाँ अर्थात् ड्रोन्स (drones) बनते हैं।

छत्ते में तीन प्रकार की मक्खियों के विकास हेतु भिन्न प्रकार के कोष्ठक होते हैं— श्रमिकों के लिए छोटे षट्भुजीय, ड्रोन्स के लिए मध्यम माप के षट्भुजीय तथा रानियों के लिए बड़े त्रिभुजाकार के कोष्ठ। भ्रूणीय परिवर्धन का समय भी तीनों प्रकार की मक्खियों के लिए भिन्न होता है- श्रमिक के लिए 21दिन , ड्रोन के लिए 14 दिन तथा रानी के लिए 16 दिन। प्रत्येक अण्डे से लगभग तीन दिन बाद एक छोटा-सा, सूँडी जैसा शिशु या लार्वा निकलता है जिसे ग्रब (grub) कहते हैं। दो दिन तक प्रत्येक लार्वा को आया मक्खियाँ शाही जेली खिलाती हैं। इसके बाद, रानियों की लार्वी का पोषण तो शाही जेली से ही किया जाता है, परन्तु ड्रोन्स एवं श्रमिक मक्खियों की लार्वी को केवल मधु एवं पराग दिया जाता है। सक्रिय पोषण के फलस्वरूप, प्रत्येक लार्वा में तीव्र वृद्धि होती है। इस वृद्धिकाल में लार्वा में पाँच बार त्वक्पतन (moulting or ecdysis) होता है। पाँचवे त्वपतन के बाद, प्रत्येक लार्वा के कोष्ठक को श्रमिक मक्खियाँ मोम की एक टोपी से बन्द कर देती हैं। अपने बन्द कोष्ठक में प्रत्येक लार्वा अपने चारों ओर रेशमी धागे का एक ककून (cocoon) बना लेता है और ककून के भीतर, कायान्तरण द्वारा, प्यूपा (pupa) में बदल जाता है। कायान्तरण द्वारा प्रत्येक प्यूपा शीघ्र ही एक युवा मक्खी (imago) में बदल जाता है जो अपने मैन्डीबल्स की सहायता से ककून तथा मोम की टोपी को काटकर बाहर निकल आती है।

छत्ते का झुण्ड में त्याग अर्थात् वृन्दन (Swarming) हमारे देश में, बसन्त ऋतु में, खेतों, बगीचों, जंगलों आदि में फूलों की बहार हो जाती है। अतः मधुमक्खियाँ बहुत अधिक मात्रा में पुष्परस एवं पराग एकत्रित करती हैं और रानी जल्दी-जल्दी अण्डे देती है। इससे कॉलोनी में मधुमक्खियों, मुख्यतः श्रमिक मक्खियों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ऐसी भीड़-भाड़ (overcrowding) हो जाने पर रानी मक्खी सैकड़ों या हजारों श्रमिक मक्खियों के एक दल के साथ छत्ते को छोड़कर किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर नया छत्ता बनाकर एक नई कॉलोनी की स्थापना करती है। पुराने छत्ते में इस बीच, अण्डों से, श्रमिक मक्खियों के अतिरिक्त, कई रानियों एवं ड्रोन्स का भी विकास होता है। इन नई रानियों में सबसे पहले जन्मी रानी, बाद की सभी रानियों को अपने डंक द्वारा मार कर समाप्त कर देती है। फिर यह रानी कई नर मक्खियों अर्थात् ड्रोन्स के साथ छत्ते के बाहर काफी ऊँचाई तक उड़ती है। इसी उड़ान में कोई-सा एक ड्रोन रानी से मैथुन करके इसका संसेचन (insemination) करता है और तुरन्त मर जाता है। फिर रानी शेष ड्रोन्स के साथ छत्ते में वापस लौट आती है। इसकी शुक्रधानियों में इतने शुक्राणु भरे होते हैं जो दो-तीन वर्षों तक अण्डाणुओं के निषेचन में काम आते रहते हैं। रानी के साथ लौटे ड्रोन्स का अब कोई कार्य नहीं होता। अतः श्रमिक मक्खियाँ इन्हें छत्ते के बाहर खदेड़ देती हैं और ये भूख से मर जाते हैं। कभी-कभी एक ही जननकाल में दो या अधिक पुरानी रानी मक्खियाँ छत्ते को त्यागकर अन्यत्र चली जाती हैं।


मधुमक्खी का आर्थिक महत्त्व (ECONOMIC IMPORTANCE OF HONEY BEE)

1. फूलों का परागण (Pollination of flowers) : एक से दूसरे फूलों पर बैठ-बैठकर मधुमक्खि याँ फूलों के परागण का महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।
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2. मधु (Honey) : मधुमक्खियों के छत्तों से हमें प्रतिवर्ष लाखों किलोग्राम मधु और मोम मिलता है। एक 150 ग्राम भार के छत्ते में मधु के भण्डारण हेतु लगभग 9100 मोम के कोष्ठक होते हैं जिनमें चार किलोग्राम तक मधु भरा हो सकता है। एक बड़े छत्ते से एक ऋतु में 150 किलोग्राम तक मधु मिल जाता है। एक किलोग्राम मधु बनाने के लिए एक भोजन-संग्रहकर्ता मक्खी को एक से डेढ़ लाख बार पुष्परस लाना पड़ता है। यदि फूल छत्ते से औसतन 1500 मीटर दूर हों, अर्थात् एक बार पुष्परस लाने हेतु भोजन-संग्रहकर्ता को तीन किलोमीटर उड़ना पड़े तो एक किलोग्राम मधु बनाने के लिए इसे 3,60,000 से 4,50,000 किलोमीटर, अर्थात् पृथ्वी के चारों ओर 8 से 11 बार चक्कर लगाने के बराबर उड़ना पड़ेगा।

मधु मनुष्य के लिए एक प्राकृतिक शक्तिवर्धक (tonic) एवं रोगाणुरोधक (antiseptic), अम्लीय पदार्थ होता है। इसमें औषधीय महत्त्व के लगभग 80 प्रकार के पदार्थ होते हैं। प्रमुख पदार्थ होते हैं- 
ग्लूकोस एवं फ्रक्टोस (glucose and fructose) शर्कराएँ, डायस्टेज, इन्वरटेज, कैटेलेज, परऑक्सीडेज, लाइपेज (diastase, invertase, catalase, peroxidase, lipase) आदि एन्जाइम, कई लाभदायक लवण, कार्बनिक अम्ल (मैलिक, सिट्रिक, टार्टरिक, ऑक्जैलिक—malic, citric, tartaric, oxalic acid) तथा विटामिन (vitamins)। 
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मधु को घाव पर लगा देने से घाव में रोगाणुओं का संक्रमण (infection) नहीं होता और घाव के शीघ्र ठीक होने में सहायता मिलती है। अतः फोड़ा-फुन्सी, नासूर आदि के इलाज में इसका उपयोग होता है। आँखों की सफाई के लिए इसका काजल की भाँति उपयोग करते हैं। अनेक आयुर्वेदिक दवाइयाँ मधु के साथ खाई जाती हैं। प्राचीनकाल में मृत मानव शरीर को परिरक्षित रखने हेतु इसे शहद में रखा जाता था ।

3. मधुमक्खी का मोम (Beeswax) : मधुमक्खी का पूरा छत्ता मोम का बना होता है। मोम प्रायः सफेद, कभी कभी हल्का पीला-सा होता है। विविध प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों (cosmetics) को तैयार करने में आधार पदार्थ (base material) के रूप में इसका व्यापक उपयोग होता है। कई प्रकार के औषधीय मरहम एवं तैल भी इससे बनाए जाते हैं। मूर्तियाँ और मॉडल, पेन्ट (paints), जूतों की पॉलिश, संगमरमर को जोड़ने वाला सरेस (glue), काँच पर लिखने वाली पेन्सिलों आदि को बनाने में भी इसका उपयोग होता है।

4. मधुमक्खी का विष (Bee venom or Apitoxin) : यह एक तेज अम्ल (acid) होता है जिसमें महत्त्वपूर्ण विष का प्रतिजैविक औषधि (antibiotic drug) के गुण होते हैं। रुधिर में पहुँचने पर यह विष शरीर के सुरक्षा तन्त्र (immunity) इस को सुदृढ़ बनाता है। अतः अन्य विषैले जन्तुओं के दंश, रुधिरक्षीणता (anaemia), गठिया (rheumatism), आदि कई उपचार रोगों, तन्त्रिका तन्त्र की गड़बड़ियों, कई प्रकार के नेत्र एवं चर्म रोगों, उच्च रुधिरचाप, आदि के में प्रयोग किया जाता है ।

मधुमक्खी के छत्ते के सीमेन्ट पदार्थ (propolis) तथा पराग का भी औषधीय उपयोग किया जाता रहा है। स्वयं मधुमक्खी के शरीर से बनाई गई एक औषधि डिप्थीरिया (diptheria) रोग के उपचार के लिए काम में लाई जाती है।

मधुमक्खी पालन (APICULTURE)
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व्यावसायिक स्तर पर मधु एवं मोम प्राप्त करने हेतु अब विभिन्न देशों में अनेक लोग मधुमक्खी पालन करते हैं। इसके लिए बड़े-बड़े मधुमक्खी के फॉर्म स्थापित किए जाते हैं जिन्हें मधुवाटिकाएँ (apiaries) कहते हैं। इनमें मधुमक्खी पालन वैज्ञानिक विधियों से किया जाता है। अनेक देशों में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने हेतु परिषदें (Boards) एवं निगम (Corporations) बने हुए हैं।

(C) लाही अर्थात् कोकीनियल बग (Cochineal bug - Dactylopius coccus) यह एक गहरे लाल रंग का कीट होता है । इसके सूखे शरीर को पीसकर एक लाल रंग बनाते हैं जिसे लाही या कोकीनियल कहते हैं। इस रंग से औरतें “आल्ता" या "महावर” लगाती हैं तथा सौन्दर्य प्रसाधनों के काम में लाती हैं। इसका उपयोग मदिरा और कुछ दवाइयों को रंगने तथा कुकर खाँसी (whooping cough) आदि कुछ रोगों के उपचार में भी किया जाता है। मैक्सिको, स्पेन, पीरू, ऐल्जियर्स, आदि देशों में इस बग को पाला जाता है।

(D) फफोला गुबरैला (Blister Beetle)इसके रुधिर से कैन्थराइडिन (Cantheridine) नामक दवाई बनाई जाती है। यह गुबरैला फ्रांस और स्पेन में बहुत मिलता है।

(E) लाख का कीट (Lac Insect) : यह कीट भारत और बर्मा के जंगलों में पीपल, ढाक, साल, बरगद, अंजीर, आदि वृक्षों पर प्रतिकूल ऋतुओं तथा शत्रुओं से बचने और अण्डे देने के लिए एक-दो सेंटीमीटर मोटी पपड़ी के रूप में लाख का रक्षात्मक घोंसला बनाता है। लाख का स्रावण सुर्ख रंग की मादा कीट करती है। इसका चपटा, वृत्ताकार सा शरीर पाद एवं पंखविहीन होता है। नर छोटा, परन्तु सामान्य कीट होता है। घोंसलों में अण्डों से निम्फ (nymph) निकलते हैं। हमारे देश में अनेक स्थानों पर, विशेषतौर से मिर्जापुर जिले में, बड़े पैमाने पर लाख एकत्रित किया जाता है। लगभग दो करोड़ किलोग्राम लाख का निर्यात हमारा देश प्रतिवर्ष करता है। लाख से वार्निश, पॉलिश, चमड़ा (shellac), ग्रामोफोन रिकॉर्ड, मोहरी लाख (sealing wax), बिजली का सामान, बटन, खिलौने, बर्तन, चूड़ियाँ, आदि वस्तुएँ बनाई जाती हैं। मरी हुई मादाओं के सुर्ख शरीर को सुखाकर एक रंग बनाते हैं जिसे औरतें महावर लगाने के काम में लाती हैं।

2. फूलों का परागण करने वाले कीट (Insect Pollinators)
गेहूँ, मक्का, धान, ज्वार आदि अनाज के पौधों में परागण (pollination) हवा द्वारा, परन्तु सब्जियों तथा सुन्दर पुष्पों आदि के पौधों में कीटों द्वारा होता है। इन कीटों में मधुमक्खी बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। मधु एकत्रित करने के लिए एक मधुमक्खी प्रतिदिन सैकड़ों पुष्पों पर बैठती है, जिससे पुष्पों का परागण होता है। भौंरा (bumble bee Bombus) भी अनेक फसली पौधों में परागण करता है। अनेक प्रकार की मक्खियाँ, तितलियाँ, पतंगे तथा गुबरैले (beetles) भ परागण में सहायक होते हैं।

3. खाये जाने वाले कीट (Insects as Food)
यद्यपि कीट छोटे होते हैं, परन्तु सुगमता से काफी संख्या में मिलने के कारण कुछ पक्षी एवं मछलियाँ इन्हें खाती हैं। मनुष्य फिर इन पक्षियों एवं मछलियों का शिकार करके लाभ उठाता है। कुछ मानव स्वयं कीटों को भी खाते हैं। इन कीटों में झींगुर (crickets) तथा पतंगों (moths) की हैं। कुछ जातियाँ विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।

4. हानिकारक कीटों को नष्ट करने वाले कीट (Insects that destroy harmful insects-) 
कुछ क अन्य, हानिकारक कीटों को नष्ट करके मानव को लाभ पहुँचाते हैं। इन्हें एन्टमोफैगस कीट (entomophagous insects) कहते हैं। जल में अण्डे देने वाले एक प्रकार के बड़े पतंगे ड्रैगन फ्लाई (dragon fly) अनेक हानिकारक मच्छरों को खाकर नष्ट कर देते हैं। इसी प्रकार, कुछ मक्खियाँ तथा गुबरैले (beetles) कृषि के लिए हानिकारक कीटों के अण्डों, लाव तथा वयस्कों को खाकर नष्ट करते हैं। मक्खियों तथा ततैयों की कुछ जातियाँ हानिकारक कीटों के शरीर में अण्डे देती हैं या परजीवी बनकर रहती हैं और नष्ट करती हैं। ऐसे कीट परजीव्याभ कीट (parasitoides) कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, इक्यूमॉन मक्खी (icheumon fly) कृषि के लिए हानिकारक कीटों की लार्वी एवं प्यूपा के शरीर पर अण्डे देकर इन्हें नष्ट कर देती है। इसी प्रकार, पायरगोटा मक्खी बीटल पर अण्डे देती है।

हानिकारक कीटों के बारे में और विस्तार से जानने के लिए हमारे इस लेख को पढ़े - हानिकारक कीट क्या होते हैं 


5. निरर्थक पौधों को नष्ट करने वाले कीट (Pests that destroy useless plants) 
कुछ कीट ऐसे पौधों को नष्ट करते हैं जो खेतों, बगीचों, जंगलों, आदि में बहुतायत से उगते हैं और फसलों के लिए हानिकारक होते हैं।

6. भूमि को उपजाऊ बनाने वाले कीट (Insects that make the land fertile) 
खेतिहर भूमि को उपजाऊ बनाने में कुछ कीट किसानों की सहायता करते हैं। इनमें से कुछ, केंचुओं (earthworms) की भाँति, भूमि में गहरी सुरंगें खोद-खोदकर इसे पोली बनाते हैं। कुछ कीट भूमि में उपस्थित पत्थर-कणों, लकड़ी, आदि को पीस देते हैं। इसके अतिरिक्त, कीटों का मल तथा मृत शरीर सड़कर भूमि को उपजाऊ बनाते हैं । इन सब कीटों में चीटियाँ, गुबरैले, मक्खियाँ, पतंगें, झींगुर तथा गण कोलेम्बोला (Order Collembola) के सदस्य उल्लेखनीय हैं।

7. सफाई करने वाले कीट (Scavengers) 
कुछ मक्खियों तथा गुबरैलों की लार्वी घरों एवं अन्य स्थानों पर पड़ी निरर्थक कार्बनिक वस्तुओं को गला-सड़ाकर नष्ट करतीं या सरल पदार्थों में बदल देती हैं जिससे सफाई होती रहती है।

8. दीप्ति-कीट (Luminescent Insects—Fireflies or Glow Worms)
कुछ कीटों में उदर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं। थोड़े-थोड़े समयान्तरों पर प्रकाश उत्पन्न करके नर एवं मादा कीट एक-दूसरे का मैथुन के लिए आह्वान करते हैं। फोटिनस (Photinus), लैम्पाइरिस (Lampyris) आदि श्रेणियों के कीट दीप्ति-कीट होते हैं। इनकी बहुत-सी संख्या को पारदर्शी कपड़े की थैलियों में भरकर इनके प्रकाश का पहले लोग लिखने-पढ़ने में उपयोग करते थे।

उपर्युक्त उपयोगिता के अतिरिक्त, बाग-बगीचों में अनेक रंग-बिरंगे मोहक कीट (तितलियाँ आदि) चित्रकार, कवि एवं दुखी मानव को शान्ति प्रदान करते हैं और बच्चों का मनोरंजन।

कुछ देशों में मृत कीटों की मालाएँ पहनी जाती हैं तथा इन्हें टाइपिन आदि में लगाया जाता है। अनेक कीटों को वैज्ञानिकों ने विभिन्न अनुसन्धानों के लिए चुना है।
इस प्रकार कई कीट हमारे लिए लाभदायक (Beneficial) भी होते हैं जिनके बिना हम अपना जीवन सोच नहीं सकते हैं। 


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