कीट वर्ग के प्रमुख लक्षण (Major Characteristics of Insect Class)
1. कीटों का शरीर आदर्श रूप से छोटा हल्का-फुल्का तथा खंडों में बटा हुआ होता है।
2. उनका शरीर सिर, वक्ष तथा उदर भागों में विभाजित रहता है। सिर संवेदना ग्रहण करने तथा भोजन ग्रहण करने के लिए तथा वक्ष चलने के लिए उपयोगी होता है।
3. खंडों की मूल संख्या सिर में 6, वक्ष में 3 तथा उदर में 11 या कम होती है।
4. इनके सिर पर बड़े-बड़े संयुक्त नेत्र एंटिनी तथा मुख्य के उपांग होते हैं।
5. वक्ष भाग पर आदर्श रूप से 3 जोड़ी पैर और एक या 2 जोड़ी पंख होते हैं। अपृष्ठवंशीय में से केवल कीटों में ही उड़ने की क्षमता होती है।
6. कीटों के उदर भाग में प्रायः जनन से संबंधित अंग होते हैं जिनसे यह प्रजनन करते हैं।
7. मुख उपागों से संबंधित लार ग्रंथियां पाई जाती हैं।
8. श्वसन के लिए अधिकांश कीटों में वायुनालों का एक घना जाल होता है। इनसे बाहरी वायु सीधे ऊतकों तक पहुंचती है जिसके कारण इनमें गैसीय विनिमय अधिक तीव्र दर्द से होता है। इसीलिए कीटों का रक्त रंगहीन होता है और इस रंगहीन रुधिर को रुधिरलसिका अर्थात हीमोलिम्फ कहते हैं।
9. इनकी मूल सीलोम गुहा बहुत ही छोटी होती है। जब बड़े-बड़े रुधिर कोटरों (Blood Sinuses) के मिलने पर रुधिरगुहा अर्थात् हिमोसील नामक बड़ी द्वितीयक देहगुहा बनती है जो एक "खुले परिसंचरण तंत्र" का काम करती है।
10. कीटों में उत्सर्जन मुख्यतः विशेष प्रकार की नलिका ओं के द्वारा होता है जिसे मैल्पीघी नलिकाएं कहते हैं जो आंतों में खुलती है।
11. कीट एकलिंगी होते हैं।
12. इनमें केवल लैंगिक जनन होता है । तथा इनमें सहायक जननांग बहुत अधिक विकसित होते हैं तथा संसेचन (impregnation) मादा के शरीर में होता है तथा जीवन-वृत्त में शिशु-प्रावस्थाएँ होती हैं जिनमें कायांतरण (metamorphosis) तथा त्वकपतन (epidermis) होता है।
कीटों की सफलता का कारण (The reason for the success of insects)
2. उनका शरीर सिर, वक्ष तथा उदर भागों में विभाजित रहता है। सिर संवेदना ग्रहण करने तथा भोजन ग्रहण करने के लिए तथा वक्ष चलने के लिए उपयोगी होता है।
3. खंडों की मूल संख्या सिर में 6, वक्ष में 3 तथा उदर में 11 या कम होती है।
4. इनके सिर पर बड़े-बड़े संयुक्त नेत्र एंटिनी तथा मुख्य के उपांग होते हैं।
5. वक्ष भाग पर आदर्श रूप से 3 जोड़ी पैर और एक या 2 जोड़ी पंख होते हैं। अपृष्ठवंशीय में से केवल कीटों में ही उड़ने की क्षमता होती है।
6. कीटों के उदर भाग में प्रायः जनन से संबंधित अंग होते हैं जिनसे यह प्रजनन करते हैं।
7. मुख उपागों से संबंधित लार ग्रंथियां पाई जाती हैं।
8. श्वसन के लिए अधिकांश कीटों में वायुनालों का एक घना जाल होता है। इनसे बाहरी वायु सीधे ऊतकों तक पहुंचती है जिसके कारण इनमें गैसीय विनिमय अधिक तीव्र दर्द से होता है। इसीलिए कीटों का रक्त रंगहीन होता है और इस रंगहीन रुधिर को रुधिरलसिका अर्थात हीमोलिम्फ कहते हैं।
9. इनकी मूल सीलोम गुहा बहुत ही छोटी होती है। जब बड़े-बड़े रुधिर कोटरों (Blood Sinuses) के मिलने पर रुधिरगुहा अर्थात् हिमोसील नामक बड़ी द्वितीयक देहगुहा बनती है जो एक "खुले परिसंचरण तंत्र" का काम करती है।
10. कीटों में उत्सर्जन मुख्यतः विशेष प्रकार की नलिका ओं के द्वारा होता है जिसे मैल्पीघी नलिकाएं कहते हैं जो आंतों में खुलती है।
11. कीट एकलिंगी होते हैं।
12. इनमें केवल लैंगिक जनन होता है । तथा इनमें सहायक जननांग बहुत अधिक विकसित होते हैं तथा संसेचन (impregnation) मादा के शरीर में होता है तथा जीवन-वृत्त में शिशु-प्रावस्थाएँ होती हैं जिनमें कायांतरण (metamorphosis) तथा त्वकपतन (epidermis) होता है।
कीटों की सफलता का कारण (The reason for the success of insects)
कीटों में उपस्थित उनके विशिष्ट लक्षण उन्हें प्रकृति में अद्वितीय सफलता दिलाते हैं। उनकी इस अद्वितीय सफलता कारण इस प्रकार हैं-
1. कीटों के छोटे एवं हल्के-फुल्के शरीर के कारण इन्हें आवास तथा भोजन की कठिनाई कम होती है। वायु में उड़ने की क्षमता से यह कठिनाई बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है।
2. संवेदना ग्रहण की क्षमता का, विशेषतौर से दृष्टि ज्ञान का विकास तथा वायु नालों की सहायता से श्वसनदर का बढ़ना इनके सक्रिय जीवन के अनुकूल है।
3. प्रकृति में उपलब्ध पोषक पदार्थों की विविधता के अनुकूलन इनका भोजन स्वभाव भी विविध प्रकार का होता है और भोजन को ग्रहण ठीक से करने के लिए सिर का अधिकांश उपांग भोजन स्वभाव के अनुसार उपायोजित होकर मुख उपांगों का काम करता है
4. सहायक जननांग अत्यधिक विकसित होते हैं। इससे इन में जनन क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।
कीट और मनुष्य (Insects and Humans)
1. कीटों के छोटे एवं हल्के-फुल्के शरीर के कारण इन्हें आवास तथा भोजन की कठिनाई कम होती है। वायु में उड़ने की क्षमता से यह कठिनाई बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है।
2. संवेदना ग्रहण की क्षमता का, विशेषतौर से दृष्टि ज्ञान का विकास तथा वायु नालों की सहायता से श्वसनदर का बढ़ना इनके सक्रिय जीवन के अनुकूल है।
3. प्रकृति में उपलब्ध पोषक पदार्थों की विविधता के अनुकूलन इनका भोजन स्वभाव भी विविध प्रकार का होता है और भोजन को ग्रहण ठीक से करने के लिए सिर का अधिकांश उपांग भोजन स्वभाव के अनुसार उपायोजित होकर मुख उपांगों का काम करता है
4. सहायक जननांग अत्यधिक विकसित होते हैं। इससे इन में जनन क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।
कीट और मनुष्य (Insects and Humans)
मानव के जीवन से कीटों का घनिष्ठ संबंध होता है। जहां एक और कीट संख्या एवं विविधता में प्रकृति में सबसे अधिक सफल जंतुओं है, वहीं दूसरी और मनुष्य बुद्धि के विकास में उच्चतम जंतु हैं। अतः जीवन संघर्ष (Struggle for Existence) में इन दो प्रकार के जंतुओं के बीच प्रतिस्पर्धा अवश्य ही संभव है इसलिए मानव कुशलता के दृष्टिकोण से, कीटों का ही सबसे अधिक महत्व रहा है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसके शरीर पर या रहन-सहन पर कीटों का कोई प्रभाव न पड़ा हो।
प्लेग, मलेरिया, हैजा आदि अनेकों रोगों से, कृषि से, मनुष्यों के अनेकों उद्योगों से और हमारे घर के प्रति दिन के रहन-सहन से कीटों का घनिष्ठ संबंध रहता है।
प्लेग, मलेरिया, हैजा आदि अनेकों रोगों से, कृषि से, मनुष्यों के अनेकों उद्योगों से और हमारे घर के प्रति दिन के रहन-सहन से कीटों का घनिष्ठ संबंध रहता है।
मानव के लिए कीटों का महत्व इतना अधिक है कि इस विषय पर अध्ययन कीट शास्त्र की एक पृथक उपशाखा के रूप में विकसित हो गया है जिसे आर्थिक कीटशास्त्र (Economic Entomology) कहते हैं।
मानव जीवन से संबंधित कीटों को हम दो श्रेणियों में बांट सकते हैं-
मानव जीवन से संबंधित कीटों को हम दो श्रेणियों में बांट सकते हैं-
(क) हानिकारक कीट
(ख) लाभदायक कीट
(क) हानिकारक कीट (Harmful Insects)
कुछ कीट ऐसे होते हैं जो मनुष्य को हानि पहुंचाते हैं। यह किसी मनुष्य को सीधी व्यक्तिगत हानि नहीं पहुंचाते हैं लेकिन ऐसा कोई भी नहीं होगा जिसने अनाज में घुन, सब्जियों में गिडार, घरों में मक्खियां मच्छर तथा खेत-बगीचों में टिड्डी आदि ना देखी हो। इससे हमें कीटों की हानि पहुंचाने की विशाल क्षमता का पता चलता है। यद्यपि इनकी लगभग 1.4% जातियां ही मनुष्यों के लिए हानिकारक है लेकिन यही हमें बहुत बड़ी और विविध प्रकार की हानियां पहुंचा देती हैं। इन हानिकारक कीटों को हम तीन प्रमुख श्रेणियों में बांट सकते हैं
1. कृषि के लिए हानिकारक कीट
2. मनुष्य तथा पालतू पशुओं के लिए हानिकारक कीट
3. संग्रहित खाद्य पदार्थों तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं के विनाशकारी कीट
1. कृषि के लिए हानिकारक कीट (Crop Pests)
1. कृषि के लिए हानिकारक कीट
2. मनुष्य तथा पालतू पशुओं के लिए हानिकारक कीट
3. संग्रहित खाद्य पदार्थों तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं के विनाशकारी कीट
1. कृषि के लिए हानिकारक कीट (Crop Pests)
मनुष्य भोजन के लिए कृषि द्वारा भूमि से अनाज, फल, सब्जी आदि पैदा करता है लेकिन कोई फसल ऐसी नहीं होती जिससे अनेक प्रकार के कीट अपना भोजन न प्राप्त करते हों। पेड़ पौधों की जड़ों, तनों, पत्तियों इत्यादि से कीट अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसके अंतर्गत वह कीट आते हैं जो पेड़ पौधों की जड़ों, तनों, पत्तियों, कलियों, फूलों इत्यादि पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर देते हैं।
इसके अंतर्गत हम कीटों को निम्नलिखित श्रेणियों में बांट सकते हैं-
(A) पौधों को कुतरने वाले कीट (Insect Pests) - कुछ कीट पौधों को गाय बकरी की भांति चबा चबा कर खा जाते हैं जैसे टिड्डी, आलू कटवी या कजरा पिल्लू, लाल कद्दू बीटल।
(A) पौधों को कुतरने वाले कीट (Insect Pests) - कुछ कीट पौधों को गाय बकरी की भांति चबा चबा कर खा जाते हैं जैसे टिड्डी, आलू कटवी या कजरा पिल्लू, लाल कद्दू बीटल।
(B) पौधों का रस चूसने वाले कीट (Sap-Sucking Insect) - अनेक प्रकार के कीट अपने शुण्डनुमा मुख उपांगो को पौधों में चूभोकर रस चूसते हैं जिससे पौधे सूख कर समाप्त हो जाते हैं जैसे- कपास का झाँगा, पाईरिला, गन्ने की लाही, चावल की गंदी, गोभी का चेंपा, काला सुंडर, आम का तेला या लासी।
(C) पौधों में धँसकर उन्हें खोखला बनाने वाले कीट (Burrowing Insects) - कुछ कीट ऐसे होते हैं जिनके कैटरपिलर पेड़ पौधों के भागों में घुसकर उन्हें खोखला कर देते हैं जैसे कपास का कीड़ा, ईख की गिडार, मक्का बेधक, चने की गिडार, गेहूं की हेसियन मक्खी।
2. मनुष्य एवं पालतू पशुओं के लिए हानिकारक कीट (Insects harmful to Humans and Pets)
इन्हीं निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
(A) खिजाने वाले कीट (Insect Pests) - अनेक प्रकार के कीट मनुष्य तथा पालतू पशुओं के सहवासी होते हैं, जैसे कि हमारे घरों में कॉकरोच, लाल व काली चीटियां, झिंगुर आदि। जहां मनुष्य को कोई खास हानि तो नहीं पहुंचाते हैं किंतु इनकी गंध तथा शरीर से इनका स्पर्श अच्छा नहीं होता।
(B) जहरीले कीट (Poisonous Insect) - कुछ कीट जहरीले होते हैं जिन से मनुष्य तथा पशुओं को शारीरिक पीड़ा होती है। ततैया और मधुमक्खी के डंक का अनुभव बहुत ही कटु होता है तथा चीटियां मच्छर इत्यादि के काटने से खुजली और जलन होती है।
(C) परजीवी कीट (Parasitic Insect) - कुछ कीट मनुष्य तथा पालतू पशुओं के शरीर को ही अपना घर बना लेते हैं और उन्हीं से भोजन प्राप्त करते हैं उन्हें परजीवी कीट कहते हैं इन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है- बाह्य परजीवी, अंतः परजीवी।
3. संग्रहित खाद्य पदार्थों तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं के विनाशकारी कीट (Destructive pests of stored food and other useful items)
कुछ कीट हमारी कृषि, पालतू पशुओं और हमारे शरीर को ही हानि नहीं पहुंचाते वरन हमारे खाद्य पदार्थ खाद भंडार तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं पर भी इनका काफी आक्रमण होता है। यह भोजन के लिए हमारी अनेक कार्बनिक वस्तुओं जैसे खाद्य-सामग्रियों, दवाइयों, चमड़े की वस्तुओं, वस्त्रों, कागज एवम पुस्तकों, लकड़ी के सामान इत्यादि को नष्ट कर देते हैं।
इसके अंतर्गत निम्न प्रकार के कीट आते हैं-
- खाद्य पदार्थों को नष्ट करने वाले कीट (Food Pests)- यह हमारे खाद्य भंडार में सबसे अधिक हानि अनाजों को पहुंचाते हैं। यह कीट गण कोलिओप्टेरा तथा लेपिडोप्टेरा के सदस्य होते हैं। इसके अंतर्गत गुबरौला, घुन, घोरा तथा पतंगी प्रमुख हैं। यह अनाज जैसे गेहूं, चावल, चना, मटर आदि के दानों में छेद करके इन में अंडा रोपण करते हैं। अंडों से निकली लार्वी दानों को भीतर ही भीतर खाकर खोखला कर देती है।
- वस्त्र पतंगी (Cloth Moth)- यह वस्त्रों पर आक्रमण करती है। ऊनी कपड़ों को संभाल कर ना रखने पर यह उस में जगह-जगह छेद कर देती है। यह दवाइयों, तंबाकू इत्यादि पर भी आक्रमण करती है तथा सिगार, सिगरेट इत्यादि में छेद कर कर उन्हें बरबाद कर देती है।
हानिकारक कीटों के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे इस लेख को पढ़े - हानिकारक कीट क्या होते हैं
(ख) लाभदायक कीट (Beneficial Insects)
लाभदायक कीटों के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे इस लेख को पढ़े - लाभदायक कीट कौन से होते हैं?
कई कीट हमारे लिए लाभदायक भी होते हैं। इन के बिना हमारा जीवन अधूरा एवं दुखमय होता। इन से होने वाले लाभों के अनुसार कीटों को हम कई श्रेणी में बांट सकते हैं
- उपयोगी वस्तुओं के उत्पादक - इसके अंतर्गत कीटों की कुछ जातियां आती हैं जिनसे हमें उपयोगी वस्तुएं मिलती हैं जैसे रेशम, मधु, मोम, लाख, रंग रोगन, दवाइयां आदि। रेशम का पतंगा मधुमक्खी लाख का कीट ऐसे कीट हैं जिनसे हमें लाभ होता है जैसे रेशम के पतंगे से हमें रेशम तथा मधुमक्खी से हमें मोम शहद तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं मिलती है। लाही नाम के कीट से लाल रंग बनता है जिसका प्रयोग आलता बनाने में किया जाता है साथ ही कुछ दवाइयों को बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। लाख के कीट से हमें लाख प्राप्त होती है जिसका निर्यात हमारा देश प्रतिवर्ष करता है।
- फूलों का परागण करने वाले - गेहूं, मक्का, धान, ज्वार आदि अनाज के पौधों में परागण हवा द्वारा होता है परंतु सब्जियों तथा सुंदर पुष्पों आदि में परागण कीटों के माध्यम से होता है। इन कीटों में मधुमक्खी बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह मधु एकत्र करने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों पुष्प ऊपर बैठी है जिससे फूलों का परागण होता है। इसके साथ ही भंवरा भी अनेक फसली पौधों के परागण में सहायता करता है।
- खाए जाने वाले कई कीट (Many insects Eaten) - यद्यपि कीट छोटे होते हैं परंतु सुगमता से काफी संख्या में मिलने के कारण कुछ पक्षी एवं मछलियां इन्हें खाते हैं। मनुष्य फिर इन मछलियों एवं पक्षियों का शिकार करके लाभ उठाते हैं। कुछ मानव स्वयं भी कीटों को खाते हैं। इन कीटों में झींगुर (Crickets) तथा पतंगों (Moths) की कुछ जातियां विशेष महत्वपूर्ण है।
- निरर्थक पौधों को नष्ट करने वाले कीट (Pests that destroy useless plants) - कुछ कीट ऐसे पौधों को नष्ट करते हैं जो खेतों, बगीचों, जंगलों आदि में बहुतायत से होते हैं और फसलों के लिए हानिकारक होते हैं।
- दीप्ति कीट (Glistening Insect)- कुछ कीटों में उनके उदर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं। थोड़े थोड़े समयान्तरों पर प्रकाश उत्पन्न करके नर व मादा कीट एक-दूसरे का मैथुन के लिए आवाहन करते हैं।
लाभदायक कीटों के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे इस लेख को पढ़े - लाभदायक कीट कौन से होते हैं?
उपर्युक्त उपयोगिता के अतिरिक्त बाग बगीचों में अनेक रंग बिरंगे मोहक कीट जैसे तितलियां आदि चित्रकार, कवि एवं दुखी मानव को शांति प्रदान करते हैं और बच्चों का मनोरंजन करते हैं।
कीट नियंत्रण (Pest Control)
कीट नियंत्रण (Pest Control)
हानिकारक कीटों की संख्या यदि जनन क्षमता के अनुसार बड़े तो यह कुछ ही वर्षों में मानव जाति का विनाश कर सकते हैं। किंतु वातावरणीय परिवर्तनों के द्वारा जंतुओं जीवाणुओं इत्यादि के कारण बड़ी संख्या में इनका स्वतः ही विनाश हो जाता है इस प्रकार के विनाश को प्राकृतिक की नियंत्रण कहा जा सकता है।
कृत्रिम कीट नियंत्रण (Artificial Pest Control) - इसके अंतर्गत हम कीटों को नियंत्रित करने के लिए कई विधियाँ निकालते हैं जिनमें से यांत्रिक नियंत्रण, भौतिक नियंत्रण, जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक नियंत्रण, वैज्ञानिक नियंत्रण तथा रासायनिक नियंत्रण प्रमुख हैं। इसके द्वारा हम कीटों का कृत्रिम तरीके से नियंत्रण कर सकते हैं तथा उन्हें बढ़ने से रोका जा सकता है जिससे कि वह फसलों, जानवरों तथा मनुष्यों इत्यादि को नुकसान ना पहुंचाएं।
कृत्रिम कीट नियंत्रण (Artificial Pest Control) - इसके अंतर्गत हम कीटों को नियंत्रित करने के लिए कई विधियाँ निकालते हैं जिनमें से यांत्रिक नियंत्रण, भौतिक नियंत्रण, जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक नियंत्रण, वैज्ञानिक नियंत्रण तथा रासायनिक नियंत्रण प्रमुख हैं। इसके द्वारा हम कीटों का कृत्रिम तरीके से नियंत्रण कर सकते हैं तथा उन्हें बढ़ने से रोका जा सकता है जिससे कि वह फसलों, जानवरों तथा मनुष्यों इत्यादि को नुकसान ना पहुंचाएं।
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