स्पाइरोगायरा (Spirogyra) तथा राइजोपस (Rhizopus) के पोषण एवं जनन में अन्तर|hindi


स्पाइरोगायरा (Spirogyra) तथा राइजोपस  (Rhizopus) के पोषण एवं जनन में अन्तर
स्पाइरोगायरा (Spirogyra) तथा राइजोपस  (Rhizopus) के पोषण एवं जनन में अन्तर|hindi

स्पाइरोगायरा (Spirogyra) का परिचय
यह ताजे जल में पाए जाने वाला हरा-पीला शैवाल होता है। इसे तालाब का रेशम (Pond Silk) या जल का रेशम (Water Silk) भी कहते हैं। यह प्रायः स्थिर जलाशयों ,पोखरों तथा नालियों में मिलता है।स्पाइरोगायरा एडनेटा (Spirogyra adnata) बहते हुए झरनों ,नदियों आदि में मिलता है। 

स्पाइरोगायरा (Spirogyra) के तन्तु प्रायः जल पर तैरते हुए मिलते हैं परन्तु कुछ कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी बताया है कि इनमें Hold Fast भी होता है।स्पाइरोगायरा (Spirogyra) की लगभग 300 प्रजातियां ज्ञात है जिसमें से भारत में पाए जाने वाली मुख्य जातियां है स्पाइरोगायरा जोगेंसिस (Spirogyra jogensis), स्पाइरोगायरा क्रेसेटा (Spirogyra crassata), स्पाइरोगायरा इण्डिका (Spirogyra indica),स्पाइरोगायरा माइक्रोस्पोरा (Spirogyra microspora) इत्यादि। 

राइजोपस (Rhizopus)
का परिचय
राइजोपस एक मृतोपजीवी (saprophytic) कवक है साथ यह अपना पोषण सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। प्रयोगशाला में नम रोटी के टुकड़ों को बेलजार में रखने से दो-तीन दिन में यह उत्पन्न हो जाता है। इसका कवक-जाल सफेद पतले धागों के रूप में रोटी, अचार, जूतों, शाक एवं अन्य स्थानों पर पाया जाता है। बाद में बीजाणुधानी (sporangia) बनने के कारण इसका कवक-जाल काला पड़ जाता है जिस कारण से इसे कृष्ण उर्णिका (black mold) कहते हैं। इसकी सामान्य जातियाँ राइजोपस निग्रिकेन्स (R. nigricans), राइजोपस स्टोलोनिफर (R. stolonifer) आदि हैं। राइजोपस कुछ परिस्थितियों में परजीवी भी हो जाते हैं। यह शकरकन्द में सॉफ्ट रॉट (soft rot) रोग उत्पन्न करता है।
राइजोपस तथा स्पाइरोगाइरा में कई अंतर है जिसका वर्णन इस प्रकार है -

स्पाइरोगायरा (Spirogyra) तथा राइजोपस (Rhizopus) में अन्तर
  1. स्पाइरोगायरा में हरितलवक पाये जाते हैं। इसलिये इनमें प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया होती है। अतः यह आत्मपोषी (autotrophic) होते है। जबकि राइजोपस में हरितलवक नहीं पाये जाते। यह मृतोपजीवी (saprophyte) है
  2. स्पाइरोगायरा में मण्ड (starch) व प्रोटीन (protein) के रूप में भोजन संचित रहता है। जबकि राइजोपस में भोजन तेल, प्रोटीन व ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता है। 
  3. स्पाइरोगायरा में मुख्य रूप से वर्धी (vegetative) एवं लैंगिक (sexual) जनन होता है। अलैंगिक (asexual) जनन केवल कुछ जातियों में पाया जाता है। जबकि राइजोपस में मुख्य रूप से अलैंगिक (asexual) तथा लैंगिक (sexual) जनन होता है।
  4. स्पाइरोगायरा में लैंगिक जनन में सोपानवत् संयुग्मन (scalariform conjugation) प्रायः भिन्न-भिन्न लिंग वाले (heterothallic) सूत्रों में होता है। जबकि राइजोपस में लैंगिक जनन भिन्न-भिन्न लिंग वाले (+ तथा-) कवक सूत्रों के बीच होता है।
  5. स्पाइरोगायरा की प्रत्येक कोशिका युग्मकधानी (gametangium) का कार्य करती है। इसमें निलम्बी (suspensor) नहीं बनता है (युग्मकधानी में एक केन्द्रक होता है)। जबकि राइजोपस का सूत्र विभिन्न कोशिकाओं में विभाजित नहीं होता है और बहुकेन्द्रीय होता है। युग्मकधानी (gametangium) सूत्र के एक भाग जिसे निलम्बी (suspen sor) कहते हैं, से लगा रहता है तथा यह युग्मकधानी बहुकेन्द्रीय होती है।
  6. स्पाइरोगायरा में दो जनन कोशिकाओं को जोड़ने के लिए एक संयुग्मन नाल बनती है। जबकि राइजोपस में संयुग्मन नाल नहीं बनती है।
  7. स्पाइरोगायरा में युग्मकों की रचना एक-सी होती है, परन्तु नर युग्मक (male gamete) पक्ष्मरहित (nonciliated) तथा चल (motile) होता है एवं मादा युग्मक (female gamete) पक्ष्मरहित (nonciliated) परन्तु अचल (nonmotile) होती है। जबकि राइजोपस में संयुग्मक (isogamete) होते हैं।
  8. स्पाइरोगायरा में नर युग्मक संयुग्मन नाल से होता हुआ मादा युग्मकधानी (female gametangium) में प्रवेश करता है जहाँ संयुग्मन होता है और युग्माणु (zygospore) का निर्माण होता है। जबकि राइजोपस में दोनों युग्मक आपस में मिलकर बीच में युग्माणु (zygospore) बनाते हैं।
  9. स्पाइरोगायरा के युग्माणु में एक केन्द्रक होता है। जबकि राइजोपस के युग्माणु बहुकेन्द्रीय होता है।
  10. स्पाइरोगायरा में बीजाणु-उद्भिद् (sporophyte) अवस्था बहुत कम समय के लिये होती है। जबकि राइजोपस में बीजाणु उद्भिद् अवस्था काफी समय तक चलती है।
  11. स्पाइरोगायरा में युग्मक का केन्द्रक अर्धसूत्री विभाजन द्वारा चार केन्द्रक बनाता है जिनमें से तीन नष्ट हो जाते हैं और केवल एक ही पौधे को जन्म देता है। जबकि राइजोपस का युग्माणु जब अंकुरित होता है तो उसके केन्द्रकों में अर्धसूत्री विभाजन हो जाता है। तब उसमें ऊपर की ओर एक कवक-सूत्र बाहर निकलता है। यह कवक सूत्र अपने अग्र भाग पर एक बीजाणुधानी (sporangium) का निर्माण करता है जिसमें बाद में बहुत से बीजाणु बनते हैं जो (+) तथा (-) प्रभेद् के कवक सूत्रों को जन्म देते हैं।

No comments:

Post a Comment