द्रव्यमान सरंक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम (Law of Conservation of Mass)|hindi


द्रव्यमान सरंक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम (Law of Conservation of Mass)

द्रव्यमान सरंक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम (Law of Conservation of Mass)|hindi

द्रव्यमान सरंक्षण या द्रव्य की अविनाशिता के नियम के अनुसार-

द्रव्य अविनाशी है। द्रव्य को न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है। अतः किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों के कुल द्रव्यमान तथा रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप बनने वाले पदार्थों के कुल द्रव्यमान में कोई अन्तर नहीं होता है।

द्रव्य की अविनाशिता के नियम को निम्नलिखित प्रयोगों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

1. जैसा कि चित्र में दिखाया गया है एक विशेष प्रकार का काँच का उपकरण लेते हैं जिसमें दो नलियाँ H के आकार में जुड़ी होती हैं। इनमें से एक नली में सिल्वर नाइट्रेट का जलीय विलयन तथा दूसरी नली में पोटैशियम क्लोराइड का जलीय विलयन लेते हैं। अब दोनों नलियों के सिरों को गर्म करके सील-बन्द कर देते हैं। अब इस उपकरण को तोल लेते हैं। इसके पश्चात् इस उपकरण को उलट-पलट देते हैं ताकि दोनों नलियों में भरे विलयन एक-दूसरे के सम्पर्क में आ जायें तथा एक-दूसरे से रासायनिक अभिक्रिया कर लें। रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप सिल्वर क्लोराइड का सफेद अवक्षेप प्राप्त होता है। रासायनिक अभिक्रिया सम्पन्न होने के बाद इस उपकरण को फिर से तोलने पर यह ज्ञात होता है कि इसके भार में कोई कमी या वृद्धि नहीं हुई है। इससे स्पष्ट है कि रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्य उत्पन्न या नष्ट नहीं होता है, केवल उसके रूप में अन्तर आ जाता है।
द्रव्यमान सरंक्षण या द्रव्य की अविनाशिता का नियम (Law of Conservation of Mass)|hindi


2. चूने के पत्थर (CaCO3) को हवा में गरम करने से कली-चूना (CaO) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 ) गैस बनते हैं। कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस वायु में मिल जाती है तथा कली-चूना ठोस अवस्था में बचा रहता है। अवशेष का द्रव्यमान प्रारम्भ में ली गई मात्रा से कम होता है। यदि प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड गैस को वायु को घुलने न दिया जाये तथा उसको एकत्र कर लिया जाये तो यह ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में ली गई चूने के पत्थर की मात्रा प्राप्त अवशेष तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस की मात्राओं के योग के बराबर है। इस प्रकार द्रव्य के अविनाशिता के नियम की पुष्टि हो जाती है।
3. लोहे को हवा में उच्च ताप पर गरम करने से यह वायु की ऑक्सीजन से संयोग करके लोहे का ऑक्साइड बनाता है। प्राप्त लोहे के ऑक्साइड का द्रव्यमान प्रारम्भ में ली गई लोहे की मात्रा से अधिक होता है तथा यह प्रतीत होता है कि लोहे का द्रव्यमान बढ़ गया है। यदि उपर्युक्त अभिक्रिया में प्रयुक्त ऑक्सीजन की मात्रा ज्ञात हो जाये तो यह भी ज्ञात हो जाता है कि में प्रारम्भ में ली गई लोहे की मात्रा तथा प्रयुक्त ऑक्सीजन की मात्रा का योग प्राप्त लोहे के ऑक्साइड की मात्रा के बराबर है। यह तथ्य भी द्रव्य के अविनाशिता के नियम के अनुरूप ही है।

डाल्टन के परमाणुवाद के आधार पर द्रव्य के अविनाशिता के नियम की व्याख्या
डाल्टन के परमाणुवाद के अनुसार सभी पदार्थ अपने अवयव तत्वों के परमाणुओं से मिल कर बने होते हैं तथा परमाणु न तो नष्ट किये जा सकते हैं और न ही उत्पन्न किये जा सकते हैं। अत: परमाणुओं से निर्मित द्रव्य को भी न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है। यही द्रव्य की अविनाशिता का नियम है।


डाल्टन के परमाणुवाद के आधार पर द्रव्य के अविनाशिता के नियम की व्याख्या
सन् 1905 तक द्रव्य की अविनाशिता का नियम अक्षरश: सही माना जाता रहा। सन् 1905 में आइन्स्टीन ने द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि द्रव्य नष्ट होता है तो उसके तुल्य ऊर्जा की मात्रा समीकरण E =mc² के अनुसार निर्मुक्त होती है। रेडियोएक्टिवता की खोज के बाद यह स्पष्ट हो गया कि नाभिकीय अभिक्रियाओं की सहायता से द्रव्य को आंशिक रूप से नष्ट किया जा सकता है तथा नष्ट हुए द्रव्य के तुल्य ऊर्जा की मात्रा को निर्मुक्त कराया जा सकता है। चूँकि रासायनिक अभिक्रियाओं में परमाणु लगभग अविभाज्य रूप में भाग लेते हैं तथा उनकी निजी सत्ता नष्ट नहीं होती है, अतः रासायनिक अभिक्रियाओं में द्रव्य नष्ट या उत्पन्न नहीं होता है।

इस आधार पर यह स्पष्ट होता है कि द्रव्य की अविनाशिता के नियम के कथन का यह भाग कि "द्रव्य अविनाशी है, द्रव्य को न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है" सदैव सत्य नहीं है। कुछ विशेष दशाओं में यह असत्य है लेकिन द्रव्य की अविनाशिता के नियम के कथन का यह भाग कि "रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों का कुल द्रव्यमान तथा रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप बनने वाले पदार्थों के कुल द्रव्यमान में कोई अन्तर नहीं होता है" सदैव सत्य है।

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