कॉकरोच (Cockroach) : वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, संरचना, क्षेत्रीयकरण|hindi


कॉकरोच (Cockroach) : र्गीकरण, प्राकृतिक वास, संरचना, क्षेत्रीयकरण 

कॉकरोच (Cockroach) : वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, संरचना, क्षेत्रीयकरण|hindi

भारत में कॉकरोच की तीन प्रमुख जातियाँ मिलती हैं- (1) पेरिप्लैनेटा अमेरिकाना (Periplaneta americana), (2) ब्लैटा ओरिएन्टैलिस (Blatta orientalis) तथा (3) ब्लैटेला जरमैनिका (Blatella germanica) । पे० अमेरिकाना सबसे अधिक व्यापक और बड़ा होता है। इसे अमेरिकी कॉकरोच, बम्बइया पीतचटकी (canary), जलपोत (ship) कॉकरोच या तिलचट्टा भी कहते हैं। इसी पर आधारित वर्णन यहाँ दिया गया है।


वर्गीकरण (Classification)

संघ (Phylum)            -    आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)
उपसंघ (Subphylum) -    मैन्डीबुलैटा (Mandibulata)
वर्ग (Class)                 -    इनसेक्टा (Insecta)
उपवर्ग (Subclass)      -    टेरीगोटा (Pterygota)
विभाजन (Division)    -    एक्सोप्टेरीगोटा  (Exopterygota)
गण (Order)               -     ऑर्थोप्टेरा (Orthoptera)
श्रेणी (Genus)             -     पेरिप्लैनेटा (Periplaneta)




प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Habitat and Habits)

घरों की अँधेरी कोठरियों, रसोईघर, भण्डारगृह आदि में वस्तुओं के पीछे छिपा तथा गन्दी मोरियों में प्रायः मिलने वाला भूरा पंखदार तिलचट्टा ही कॉकरोच होता है। जहाँ अँधेरा, गरमी एवं खाने की वस्तुएँ होती हैं, वहीं यह पाया जाता है। यह घरों के अतिरिक्त, बेकरीज (bakeries), रेल के डिब्बों, भोजनालयों, पंसारी एवं हलवाई की दुकानों, सार्वजनिक शौचालयों, सीवर (sewer) आदि में भी यह मिलता है।

कॉकरोच (Cockroach) : वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, संरचना, क्षेत्रीयकरण|hindi

कॉकरोच रात्रिचर (nocturnal) और सर्वाहारी (omnivorous) होते हैं। दिन में ये अँधेरे स्थानों में छिपे रहते हैं और रात्रि में बाहर निकलकर रोटी, फल, सब्जी, माँस आदि की खोज में आँगन, कमरों आदि में घूमते हैं। अत: सामान्यतः ये घर की सफाई करते हैं। हाँ ! उपयुक्त भोजन न मिलने पर ये जूतों, पुस्तकों, कपड़ों आदि को कुतरकर हमें हानि भी पहुँचाते हैं। रात्रि-भ्रमण में कॉकरोच बहुत सजग रहता है। जरा से खतरे पर तेजी से दौड़कर या पंखों द्वारा उड़कर, यह अपने छिपने के स्थान में चला जाता है। छिपकलियाँ, पक्षी तथा बड़ी मकड़ियाँ आदि भोजन के लिए इसका शिकार करती हैं। कॉकरोच को भगाने के लिए डी० डी० टी०, पाइरीथ्रिन (pyrethrin), गैमेक्सेन (gammexane) आदि कीटनाशक दवाइयाँ छिड़कते हैं।


कॉकरोच के बाह्य लक्षण (External Features)

आकृति, माप एवं रंग (Shape, Size and Colour)

कॉकरोच का शरीर लगभग 3 से 4.5 सेमी लम्बा तथा 1.5 से 2 सेमी चौड़ा  ऊपर-नीचे अर्थात् पृष्ठ एवं अधर (dorsoventrally) सतहों पर चपटा तथा खण्डयुक्त होता है। नर एवं मादा कॉकरोच अलग-अलग होते हैं। नर कुछ छोटा और अधिक चपटा होता है। दोनों में शरीर का रंग चमकीला भूरा होता है। पृष्ठतल गहरे भूरे पंखों से ढका रहता है।


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कॉकरोच के शरीर का क्षेत्रीयकरण (Regionation)

इससे पंखों को हटा दें तो शरीर के तीन भाग (regions or tegmata) : सिर, वक्ष एवं उदर (head, thorax and abdomen)–स्पष्ट दिखाई देते हैं। एक छोटी-सी, कोमल एवं लचीली ग्रीवा (neck or cervicum) सिरे को thorax से जोड़ती है।
  1. सिर (Head) : यह अण्डाकार-सा, कुछ चपटा होता है और अधोहनु अवस्था (hypognathous position) में, अर्थात् शरीर की लम्ब अक्ष से 90° के कोण पर, नीचे झुका हुआ होता है। कोमल व लचीली गर्दन के कारण, इसे चारों ओर घुमाया जा सकता है। इसके प्रत्येक पार्श्व में एक बड़ा काला संयुक्त नेत्र (compound eye) होता है। प्रत्येक नेत्र के निकट पृष्ठतल पर स्थित गवाक्ष या फेनेस्ट्रा या ऑसेलर चिन्ह (fenestra or ocellar spot) नामक हल्के रंग का एक छोटा-सा क्षेत्र होता है। गवाक्षों को अविकसित सामान्य नेत्र (simple eyes or ocelli) मानते हैं। सिरे के नुकीले छोर पर मुखद्वार होता है। सिर की गुहा एक बड़े-से ऑक्सिपिटल रन्ध्र (occipital foramen) द्वारा ग्रीवा की गुहा से जुड़ी रहती है।
  2. वक्ष (Thorax) : यह ग्रीवा के ठीक पीछे, चौड़ा एवं कठोर-सा, शरीर की लम्बाई का लगभग 2/5 भाग होता है।
  3. उदर (Abdomen) : यह वक्ष के पीछे, सबसे चौड़ा, लम्बा एवं कोमल-सा चपटा भाग होता है। इसके पीछे के छोर पर गुदा (anus) होती है।

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विखण्डन (Segmentation)

भ्रूणीय परिवर्धन से पता चलता है कि कॉकरोच का शरीर 20 खण्डों का बना होता है-6 सिर में, 3 वक्ष में तथा 11 उदर में। परिवर्धन के समय ही कुछ खण्डों में पूरा या अधूरा समेकन (fusion) हो जाने से वयस्क में स्पष्ट खण्डों की संख्या कम हो जाती है। सिर में सभी खण्डों का पूरा समेकन हो जाता है और विखण्डन दिखाई नहीं देता। वक्ष तथा उदर भागों में विखण्डन स्पष्ट होता है। वक्ष के प्रथम खण्ड को प्रोथोरैक्स (prothorax), दूसरे को मीसोथोरैक्स (mesothorax) तथा तीसरे को मेटाथोरैक्स (metathorax) कहते हैं। वयस्क के उदर में केवल 10 खण्ड होते हैं। इनमें से भी मादा में पहले 7 तथा नर में पहले 9 ही स्पष्ट होते हैं; शेष छोटे होकर अन्तिम स्पष्ट खण्ड में घुसे रहते हैं और जनन-सम्बन्धी रचनाओं में बदल जाते हैं। 10वें खण्ड के पश्च छोर पर गुदा होती है।

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