केंचुए की देहभित्ति का वर्णन (Body wall of earthworm)|hindi


केंचुए की देहभित्ति का वर्णन (Body wall of earthworm)
केंचुए की देहभित्ति (Body wall of earthworm)|hindi


केंचुए की देहभित्ति कुछ पतली एवं लसलसी होती है। इसमें बाहर से भीतर की ओर पाँच प्रमुख स्तर होते हैं— 
  1. उपचर्म अर्थात् क्यूटिकल,
  2. एपिडर्मिस
  3. वर्तुल पेशी स्तर
  4. अनुलम्ब या आयाम पेशी स्तर
  5. देहगुहीय एपिथीलियम

1. उपचर्म अर्थात् क्यूटिकल (Cuticle) : यह शरीर पर एक महीन एवं लचीला, कोशिकाविहीन रक्षात्मक आवरण बनाती है। इसमें समानान्तर फैले कोलैजन (collagen) तन्तुओं के दो स्तर होते हैं। इसीलिए यह चमकीली एवं हल्की पीली-सी दिखाई देती है। यह एपिडर्मिस की ग्रन्थिल कोशिकाओं के स्रावण से बनती है जिनके कि सूक्ष्म छिद्र शरीर की सतह पर खुलते हैं।

2. एपिडर्मिस (Epidermis) : यह Cuticle के ठीक नीचे, स्तम्भी कोशिकाओं के इकहरे स्तर के रूप में होती है। इसकी कोशिकाएँ निम्न चार प्रकार की होती हैं-

(i) अवलम्बन कोशिकाएँ (Supporting Cells) : ये मुग्दर के आकार की सामान्य एपिथीलियमी कोशिकाएँ होती हैं जो एपिडर्मिस स्तर का प्रमुख भाग बनाती हैं।

(ii) ग्रन्थिल कोशिकाएँ (Gland Cells) : ये Supporting Cells के बीच-बीच में स्थित कुछ बड़ी और दो प्रकार की होती हैं—(क) श्लेष्मल या चषक कोशिकाएँ (mucous or goblet cells) तथा श्वेतक अर्थात् ऐल्बूमेन कोशिकाएँ (albumen cells)चषक कोशिकाएँ संख्या में अधिक और मुग्दराकार होती हैं। ये महीन नलिकाओं द्वारा Cuticle की बाहरी सतह पर खुलती हैं। इनके द्वारा स्रावित mucous त्वचा को नम व चिकना और कृमि के बिल की दीवार को चिकनी एवं समतल बनाता है। श्वेतक कोशिकाएँ कम एवं बेलनाकार होती हैं। ये ऐल्बूमेन (albumen) का स्रावण करती हैं।

केंचुए की देहभित्ति (Body wall of earthworm)|hindi


(iii) आधारीय कोशिकाएँ (Basal Cells): ये छोटी, गोल या शंक्वाकार (conical) होती हैं तथा अन्य कोशिकाओं के आधार भागों के बीच-बीच में पाई जाती हैं।

(iv) संवेदी कोशिकाएँ (Sensory Cells) : ये पतली एवं स्तम्भी होती हैं और प्रायः छोटे-छोटे समूहों में पाई जाती हैं। प्रत्येक के स्वतन्त्र छोर पर कई महीन sensory hairs होते हैं।

3. वर्तुल पेशी स्तर (Circular Muscle Layer) : यह एपिडर्मिस के ठीक नीचे और अपेक्षाकृत पतला अविच्छिन्न (continuous) स्तर होता है। इसमें पोरफाइरिन रंगा की कणिकाएँ छितरी होती हैं।

4. आयाम अर्थात् अनुलम्ब पेशी स्तर (Longitudinal Muscle Layer) : यह वर्तुल पेशी स्तर से लगभग दुगुना मोटा होता है। त्वचा में धँसी सीटी के कारण, इसके पेशी तन्तु continuous स्तर नहीं बनाते, बल्कि संयोजी ऊतक की महीन पट्टियों द्वारा अलग एवं पास-पास सटे, समानान्तर bundles में बँटे होते हैं। अनुप्रस्थ काट में ये bundles आयताकार से दिखाई देते हैं।

5. देहगुहीय एपिथीलियम या पेरिटोनियम (Coelomic Epithelium or Peritoneum) : अनुलम्ब पेशी स्तर के ठीक नीचे देहगुहा के चारों ओर की देहगुहीय एपिथीलियम का बाहर की ओर वाला, अर्थात् कायिक या पैशएटल स्तर (parietal layer) होता है। यह चपटी मीसोडर्मी कोशिकाओं का इकहरा झिल्लीनुमा स्तर होता है।

सीटी तथा सीटा-स्यून (Setae and Setal Sacs) 
प्रत्येक सीटा देहभित्ति के एक गहरे और सँकरे थैलीनुमा सीटा-स्यून (setal or setigerous sac) में स्थित होता है। ये sac एपिडर्मिस के ही भीतर की ओर, पेशीय स्तरों तक, धँस जाने से बनते हैं। प्रत्येक sac का भीतरी छोर बन्द, कुछ फूला हुआ तथा एक ही बड़ी-सी आकारिक कोशिका (formative cells) का बना होता है जो सीटा का निर्माण करती है। सीटा एक ठोस, 'S' के आकार की, परन्तु बीच में कुछ फूली, महीन छड़ जैसी रचना होती है। फूले भाग को नोड्यूल (nodule) कहते हैं। सामान्यतः सीटा का लगभग 2/3 भाग sac में बन्द तथा शेष 1/3 भाग पीछे की ओर झुका, शरीर पर बाहर निकला रहता है। 
केंचुए की देहभित्ति (Body wall of earthworm)|hindi

सीटा को sac से बाहर निकालने तथा वापस भीतर खींचने का कार्य क्रमशः एक जोड़ी अपाकुंचक (protractor) और एक अकेली आकुंचक (retractor) पेशियाँ करती हैं। protractor पेशियाँ sac को देहभित्ति के वर्तुल पेशी स्तर से और आकुंचक पेशी इसे एक अतिरिक्त वर्तुल पेशी स्तर से जोड़ती है जो प्रत्येक खण्ड में अनुलम्ब पेशी स्तर के ठीक नीचे केवल सीटल रेखा के समानान्तर फैला होता है। इसीलिए, एक खण्ड की सीटी एक साथ ही बाहर निकाली या वापस भीतर खींची जाती हैं। गमन में बारम्बार के उपयोग से सीटी घिस जाती हैं। घिसा हुआ सीटा अपने sac से गिर जाता है। formative cells इसके स्थान पर नए सीटा का स्रावण कर देती है।


देहभित्ति के कार्य (Functions of Body Wall)
  1. यह रक्षात्मक आवरण के रूप में भीतरी अंगों की सुरक्षा करती है। 
  2. अपनी ग्रन्थिल कोशिकाओं के स्रावण तथा देहगुहीय द्रव्य को बाहर निकालकर यह सदा नम एवं लसदार बनी रहती है। इससे जन्तु को बिल बनाने में सुगमता होती है और बिल की दीवार भी चिकनी एवं समतल होती जाती है। 
  3. देहगुहीय द्रव्य और श्लेष्म त्वचा एवं भीतरी अंगों को हानिकारक जीवाणु के आक्रमण से भी बचाते हैं। 
  4. देहगुहीय द्रव्य एवं श्लेष्म के कारण सदैव नम बनी रहकर त्वचा एक महत्त्वपूर्ण श्वसनांग का काम करती है।
  5. संवेदी कोशिकाओं द्वारा त्वचा संवेदनाएँ ग्रहण करती है। 
  6. सीटी एवं पेशियों द्वारा यह गमन में महत्त्वपूर्ण सहायता देती है।

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