केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण(Reproduction in earthworms)|hindi


केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण (Reproduction and cocoon formation in earthworms)

केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण(Reproduction in earthworms)|hindi

द्विलिंगी होने पर भी केंचुए में cross-fertilization होता है, अर्थात् एक सदस्य के अण्डाणुओं का निषेचन दूसरे के शुक्राणु करते हैं। शुक्राणु अण्डाणुओं से पहले परिपक्व हो जाता है।
केंचुओं में जनन बरसात में होता है। केंचुए बिलों से निकलकर मैथुन (Copulation) करते हैं। 


मैथुन (Copulation)

इस क्रिया में निकटवर्ती बिलों से दो केंचुए आधे-आधे बाहर निकलकर अधरतलों द्वारा इस प्रकार उल्टे सटते हैं कि एक का मुखद्वार दूसरे की गुदा की ओर तथा एक के नर जनन छिद्र दूसरे के किसी एक जोड़ी के spermathecal pores पर होते हैं। प्रत्येक नर छिद्र के चारों ओर की त्वचा उभरकर एक शंक्वाकार papilla बनाती है जो सामने वाले spermathecal pore में फिट हो जाता है। अब दोनों में से प्रत्येक केंचुए के नर जनन छिद्रों से शुक्राणु तथा प्रोस्टेट पदार्थ साथी केंचुए की Spermathecae में भरने लगते हैं। 

एक जोड़ी Spermathecae के पूरा भर जाने पर दोनों केंचुए थोड़ा खिसककर papilla को दूसरी जोड़ी spermathecal pores के सामने ले आते हैं। ऐसे ही बार-बार खिसककर मैथुन द्वारा दोनों केंचुओं की सब spermathecae एक-दूसरे के sperms से भर जाती हैं। लगभग एक घण्टे के मैथुन के बाद ये केंचुए अलग हो जाते हैं। 17वें तथा 19वें खण्डों के अधरतल पर किनारे में स्थित जोड़ीदार जनन या मैथुन papilla के नीचे सहायक ग्रन्थियाँ (accessory glands) होती हैं। जो papilla पर खुलती हैं। इनसे निकलने वाला लसदार पदार्थ Copulation में सहायता करता है।
केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण(Reproduction in earthworms)|hindi


शुक्रग्राहिका में शुक्राणु इनकी डाइवर्टीकुली में एकत्रित रहते हैं। तुम्बिकाओं अर्थात् ऐम्पुली में सम्भवतः एक पोषक पदार्थ का स्रावण होता है जो शुक्राणुओं का पोषण करता है।


ककून-निर्माण तथा निषेचन

मैथुन के बाद अण्डनिक्षेपण (oviposition) एवं निषेचन (fertilization) होता हैं। ये दोनों क्रियाएँ एक थैलीनुमा ककून (cocoon) में होती हैं। क्लाइटेलम (clitellum) के खण्डों (14, 15 एवं 16) की एपिडर्मिस में ग्रन्थिल कोशिकाओं के कई स्तर होते हैं। अतः एपिडर्मिस ही मोटी होकर क्लाइटेलम बन जाती है। 

जननकाल में इसकी कोशिकाएँ एक लसदार द्रव्य निकालती हैं जो क्लाइटेलम के चारों ओर एक पेटी-सी (girdle) बना लेता है। हवा के सम्पर्क में यह पेटी सूखने व सिकुड़ने लगती है। इसी को ककून (cocoon) कहते हैं। इसके सिकुड़ने से oviducts पर दबाव पड़ता है। अतः मादा जनन छिद्र से अण्डाणु (ova) निकलकर ककून में भर जाते हैं। ककून का निर्माण करने वाली ग्रन्थियाँ केवल इन्हीं खण्डों की एपिडर्मिस में होती हैं। यदि इन्हें हटा दें तो ककून नहीं बन सकते हैं।

केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण(Reproduction in earthworms)|hindi


ककून बन जाने के बाद, केंचुआ पीछे की ओर खिसककर अपने आगे वाले भाग को धीरे-धीरे इसमें से निकालता है। जब इसका Spermathecae वाला भाग ककून में से होकर निकलता है तो spermathecal pores से अनेक शुक्राणु ककून में भर जाते हैं। जब शरीर का अगला भाग ककून में से होकर निकलता है तो इस भाग की एपिडर्मिस की ग्रन्थियों द्वारा स्रावित एल्बुमेन (albumen) ककून में भर जाता है। अन्त में केंचुए का पूरा अगला शरीर ककून में से होकर निकल आता है ओर ककून नम मिट्टी में छूट जाता है। ककून की दीवार लचीली होती है। अतः केंचुए के शरीर से अलग होते ही दीवार के सिकुड़ जाने से ककून के दोनों छिद्र बन्द हो जाते हैं।

हल्के पीले ककून गोल से, 2.0 - 2.4 मिमी व्यास के होते हैं। अण्डाणुओं का निषेचन तथा भ्रूणीय विकास इन्हीं में होता है। एक ककून में प्रायः एक ही भ्रूण का विकास होता है-अन्य अण्डाणु एवं शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं— सम्भवतः ये विकासशील भ्रूण का भोजन बन जाते हैं।

No comments:

Post a Comment