केंचुआ वातावरण में होने वाले परिवर्तनों, अर्थात् उद्दीपनों (stimuli) से प्रभावित होकर प्रतिक्रियाएँ करता है। बाह्य उद्दीपनों को ग्रहण करने के लिए इसमें तीन प्रकार के संवेदांग होते हैं-
- ग्राहक अंग (Epidermal Receptors)
- मुखीय ग्राहक अंग (Buccal Receptors)
- प्रकाश ग्राहक अंग (Photoreceptors)
1. एपिडर्मल ग्राहक अंग (Epidermal Receptors) : ये केंचुए की body wall की epidermis में जगह-जगह स्तम्भी एवं सँकरी sensory cells के छोटे-छोटे समूह होते हैं। इनके ऊपर की उपचर्म कुछ उभरी हुई होती है। प्रत्येक समूह में, कई पृथक् sensory cells होती हैं। इनके स्वतन्त्र सिरों पर sensory hairs तथा बीच में केन्द्रक होता है तथा आधार सिरे से तन्त्रिका तन्तु जुड़े होते हैं। ये स्पर्श-ज्ञान ( tactile receptors or tangoreceptors) एवं रासायनिक-ज्ञान (chemoreceptors) के organs होते हैं। सिर्फ स्पष्ट स्पर्श से ही नहीं, बल्कि आस-पास की भूमि पर अन्य जन्तुओं के चलने-फिरने से उत्पन्न होने वाले कम्पन से भी ये प्रभावित हो जाते हैं।
2. मुखीय ग्राहक अंग (Buccal Receptors) : मुँह की cell की दीवार के अंदर की एपिथीलियमी स्तर में भी Epidermal Receptors की तरह के अंग होते हैं। भोजन ग्रहण करते समय केंचुआ बार-बार अपने मुख प्रकोष्ठ (front cell) को मुखद्वार से पलटकर बाहर निकालता है। अतः इससे पता चलता है कि ये ग्राहक अंग olfactory तथा स्वाद ज्ञान (taste or gustatory) के लिए होते हैं। इनके कारण केंचुआ भोजन को उसकी गन्ध तथा स्वाद से पहचान लेता है।
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