फेरेटिमा पोस्थुमा (Pheretima posthuma) तथा कुछ अन्य जातियों के केंचुए, भ्रमणशील होने के भारतवर्ष के अधिकांश भागों में पाए जाते हैं। हमारे देश के बाहर भी ये संसारभर में फैल गए हैं, लेकिन दक्षिण-पूर्वी एशिया, मलाया, जापान तथा चीन आदि देश ही इनकी मातृ-भूमि हैं। यहाँ से ये कई विधियों द्वारा अन्य देशों में पहुँचे हैं जैसे - जल में बह जाने वाले पेड़ों से एवं टापुओं के साथ इनके ककून एवं युवा केंचुए दूर-दूर तक पहुँच जाते हैं। विभिन्न देशों के बीच होने वाले पौधों एवं जन्तुओं के आदान-प्रदान द्वारा मानव ने भी इन्हें संसारभर में फैलाया है।
केंचुए भूमि में बिल या सुरंगें (burrows) बनाकर रहते हैं। बरसात में ये भूमि के 30-45 सेमी तक के ऊपरी भाग में ही रहते हैं जिसमें कि सड़ी-गली कार्बनिक वस्तुएँ बहुत होती हैं। गरमी एवं सर्दी में ये नमी की खोज में यह भूमि में तीन मीटर तक धँस जाते हैं।
सुरंगें खोदने की विधि रोचक होती है — केंचुआ मिट्टी को खाता जाता है और सुरंग गहरी होती जाती है। खाई हुई मिट्टी में उपस्थित खाद्य पदार्थ आहारनाल में पच जाते हैं तथा महीन पिसी हुई मिट्टी गुदा से बाहर निकाल दी जाती है। इसके लिए केंचुआ बार-बार उल्टा चलकर अपने पश्च सिरे को सुरंग के छिद्र तक लाता है और भूमि पर मिट्टी को छोटे से ढेर के रूप में जमा कर देता है। मिट्टी के इन्हीं ढेरों को केंचुए की पुरीष (castings) कहते हैं। फेरेटिमा पोस्थुमा की पुरीष मिट्टी की छोटी-छोटी गोलियों (pellets or balls) के रूप में होती है। खेतों, बगीचों आदि की भूमि पर, विशेषतः वर्षा ऋतु में, इसे जगह-जगह देखा जा सकता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डारविन (Darwin) ने बताया कि एक एकड़ भूमि में लगभग 50,000 केंचुए बिल बनाकर रह सकते हैं। बाद में अन्य वैज्ञानिकों ने बताया कि एक उपजाऊ भूमि में इनकी संख्या 25 लाख तक हो सकती है। इतने केंचुए एक वर्ष में कई सौ टन नीचे की मिट्टी (subsoil) को पुरीष के रूप में ऊपर लाते हैं। इकसार फैला देने से एक एकड़ भूमि पर इस मिट्टी की कई सेन्टीमीटर मोटी तह बन जाएगी।
- भारतीय केंचुआ (Pheretima posthuma) वर्गीकरण, प्राकृतिक वास, लक्षण,चित्र का वर्णन|hindi
- केंचुए का तन्त्रिका तन्त्र (Nervous system of earthworm)|hindi
- केंचुए का प्रजनन तन्त्र (Reproductive System of earthworm)|hindi
- केंचुए में प्रजनन तथा ककून का निर्माण(Reproduction in earthworms)|hindi
- केंचुए के संवेदी अंग (Sensory Organs of Earthworm)|hindi
किसान भी हल जोतकर इसी प्रकार नीचे की मिट्टी को उथलता है। क्यों ? क्योंकि जब ऊपरी मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है तो हल द्वारा निचली सतहों की अधिक उपजाऊ मिट्टी को ऊपर लाया जाता है। स्पष्ट है कि केंचुए किसान की सहायतार्थ “प्राकृतिक हलवाहों (natural ploughmen or tillers of the soil)” का काम करते हैं। पुरीष के रूप में ऊपर आई मिट्टी वैसे भी अधिक उपजाऊ हो जाती है, क्योंकि इसमें केंचुए का मल-मूत्र मिला होता है। महीन पिसी होने के कारण इसमें बीजों का अंकुरण अच्छा होता है। यही नहीं, केंचुए भूमि में बिल बनाकर इसे खोखली एवं पोली बनाते हैं जिससे इसमें हवा जा सके। किसान भी बार-बार हल चलाकर यही काम करता है।
मानव को केंचुए से अन्य लाभ भी होते हैं। हमारे देश में इनसे गुर्दों की पथरी, बवासीर, पीलिया, पायरिया, गठिया आदि रोगों के उपचार हेतु अनेकों प्रकार की आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवाइयाँ बनाई जाती हैं। इनकी सहायता से लोग मछलियाँ पकड़ते हैं—जीवित केंचुए को मछली पकड़ने के काँटे में अटकाकर मछलियों को आकर्षित किया जाता है। केंचुओं की प्राकृतिक आयु 3.5 से 10.5 वर्ष की होती है। अनेक पक्षी इनका बड़ी संख्या में भक्षण करते रहते हैं। कुछ जीवाणु एवं अन्य जन्तु केंचुओं के शरीर में परजीवी बनकर रहते हैं। इनमें से कुछ रोगजनक (pathogenic) भी होते हैं। इनके संक्रमण से केंचुओं की मृत्यु हो जाती है।
No comments:
Post a Comment