जीभ तथा जीभ अंकुर (Tongue):परिभाषा, संरचना, कार्य|hindi


जीभ तथा जीभ अंकुर (Tongue and Lingual Papillae) : परिभाषा, संरचना, कार्य
जीभ तथा जीभ अंकुर (Tongue):परिभाषा, संरचना, कार्य|hindi

जीभ (Tongue) : मुख-ग्रासन गुहिका के तल के अधिकांश भाग पर मोटी एवं मांसल जीभ फैली रहती है। स्तनियों में यह सबसे अधिक विकसित और चल (व्हेल के अतिरिक्त) होती है। एक उल्टे 'V' (^) की आकृति की सीमावर्ती खाँच (terminal sulcus) इसे अगले मुखीय (oral) तथा पिछले ग्रसनीय (pharyngeal) भागों में बाँटती है। पूरी जीभ का केवल थोड़ा-सा अगला भाग स्वतन्त्र होता है; शेष भाग मोटी, पेशीयुक्त जड़ (root) द्वारा हाइऔइड (hyoid) एवं निचले जबड़े के कंकाल से जुड़ा रहता है। स्वतन्त्र भाग भी, निचली सतह के बीच में, श्लेष्मिक कला के एक भंज- जीभ संधायक (frenulum linguae)–द्वारा, मुखगुहिका के तल से जुड़ा रहता है। जीभ का यही भाग गुहिका के बाहर निकाला तथा भीतर चारों ओर घुमाया जा सकता है। अतः यह भोजन को लार में सानने और चबाने के लिए बार-बार दाँतों तले लाने तथा फिर इसे निगलने में सहायता करता है। पूरी जीभ पर भ्रूणीय एण्डोडर्म से व्युत्पन्न स्तृत शल्की एपिथीलियम (stratified squamous epithelium) की बनी श्लेष्मिक कला का आवरण होता है। भीतर के ऊतक में सभी दिशाओं में फैली अन्तरस्थ रेखित पेशियाँ (intrinsic striped muscles) तथा जीभ की जड़ की बहिरस्थ रेखित पेशियाँ (extrinsic striped muscles) होती हैं। जीभ की सारी गतियाँ इन्हीं पेशियों के कारण होती हैं।

जीभ अंकुर (Lingual Papillae) : जीभ की पूरी ऊपरी सतह खुरदरी होती है। इसके लगभग दो-तिहाई अगले, मुखीय भाग में खुरदरापन अनेक सूक्ष्म जीभ अंकुरों के कारण, परन्तु शेष, ग्रसनीय भाग में लसिका ऊतक की नन्हीं नन्हीं गाँठों (lymph nodes) के कारण होता है। जीभ अंकुर चार प्रकार के होते हैं-
  1. सूत्राकार या फिलिफॉर्म अंकुर (Filiform Papillae) : ये नन्हें नुकीले धागेनुमा उभार होते हैं जो जीभ की पूरी ऊपरी सतह पर फैले रहते हैं। इनमें स्वाद कलिकाएँ नहीं होतीं।
  2. क्षत्राकार या फन्जिफॉर्म अंकुर (Fungiform Papillae) : ये सूत्राकार अंकुरों के बीच-बीच में और इनसे कुछ बड़े लाल दानों के रूप में छत्रकरूपी (mushroom-shaped) अंकुर होते हैं। ये भी जीभ  की पूरी सतह पर फैले होते हैं। इनमें से प्रत्येक में प्रायः 5 स्वाद कलिकाएँ (taste buds) होती हैं।
  3. पर्णिल अंकुर (Foliate Papillae) : सीमावर्ती खाँच के निकट, जीभ के दोनों पार्श्वों में लाल, पत्तीनुमा अंकुरों की छोटी-छोटी शृंखलाएँ होती हैं। इन अंकुरों में भी स्वाद कलिकाएँ होती हैं।
  4. परिकोटीय या सर्कमवैलेट अंकुर (Circumvallate Papillae) : ये लगभग एक दर्जन सबसे बड़े घुण्डीनुमा (knob-like) अंकुर होते हैं जो सीमावर्ती खाँच के ठीक आगे और इसी के समानान्तर उल्टे 'V' (^) की आकृति की एक ही कतार में स्थित होते हैं। इनमें से प्रत्येक में 100 से 300 तक स्वाद कलिकाएँ होती हैं।
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जीभ के कार्य (Functions of Tongue)
  1. जीभ के Fungiform, Circumvallate तथा Foliate Papillae में उपस्थित स्वाद कलिकाओं (taste buds) द्वारा जीभ स्वाद-ज्ञान का काम करती है। मनुष्य में इसका अग्र छोर मीठे, पश्च भाग कड़वे, पार्श्व किनारे खट्टे तथा अग्र छोर एवं किनारे नमकीन स्वादों का अनुभव करते हैं।
  2. भोजन के अन्तर्ग्रहण में जीभ चम्मच की भाँति कार्य करती है।
  3. इसकी श्लेष्मिका के नीचे दो प्रकार की जीभ ग्रन्थियाँ (lingual glands) होती हैं— श्लेष्म का स्रावण करने वाली श्लेष्मिक (mucous) ग्रन्थियाँ तथा एक जलीय तरल का स्रावण करने वाली सीरमी (serous) ग्रन्थियाँ। श्लेष्मिक ग्रन्थियाँ जीभ की सतह पर खुलती हैं और श्लेष्म के साथ-साथ जीभ लाइपेज (lingual lipase) नामक एन्जाइम का स्रावण करती हैं। यह एन्जाइम भोजन की सामान्य वसाओं, अर्थात् ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) का वसीय अम्लों तथा मोनोग्लिसराइड्स में विखण्डन प्रारम्भ करता है। सीरमी ग्रन्थियों की नलिकाएँ परिकोटीय अंकुरों के चारों ओर खुलती हैं। इनसे स्रावित तरल भोजन पदार्थ को घोलकर स्वाद-ज्ञान में सहायता करता है।
  4. मुखगुहिका में भोजन को इधर-उधर घुमाकर इसे पूरा लार में सानती है।
  5. भोजन को बार-बार दाँतों के बीच-बीच में लाकर इसे चबाने में सहायता करती है।
  6. भोजन को निगलने में सहायता करती है।
  7. बोलने में सहायता करती है।
  8. दाँतों के बीच-बीच में फँसे भोजन कणों को हटाकर मुखगुहिका की सफाई करती है।
  9. कुछ स्तनियों में शरीर की सतह को चाट-चाटकर इसकी सफाई करती है।
  10. कुत्तों की जीभ में रुधिरवाहिनियाँ बहुत होती हैं। हाँफने (panting) में, जीभ में रुधिर-संचरण बहुत बढ़ जाता है और श्लेष्म के वाष्पीकरण से रुधिर को ठण्डा करके शरीर-ताप का नियन्त्रण किया जाता है।



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