मनुष्य में दन्त-विन्यास (Dentition) : दंत सूत्र, लक्षण, सूक्ष्म संरचना|hindi


मनुष्य में दन्त-विन्यास (Dentition) : दंत सूत्र, लक्षण, सूक्ष्म संरचना
मनुष्य में दन्त-विन्यास (Dentition) : दंत सूत्र, लक्षण, सूक्ष्म संरचना|hindi

दन्त-विन्यास (Dentition)
कशेरुकी जन्तु दाँतों (teeth or dentes) से भोजन को चबाने, काटने, कुचलने आदि तथा शत्रुओं से रक्षा करने, या शिकार पर हमला करने का काम लेते हैं। निम्नतम् कशेरुकियों (साइक्लोस्टोम्स), उभयचरों के भेकशिशु अर्थात् टैडपोल तथा वयस्क प्लैटिपस में उपचर्म अर्थात् एपिडर्मिस (epidermis) से व्युत्पन्न (derived) हॉर्नी दन्त पाए जाते हैं। अन्य कशेरुकियों में चर्म अर्थात् डर्मिस (dermis) से व्युत्पन्न और जबड़ों की हड्डियों से सम्बन्धित वास्तविक दाँत (true teeth) होते हैं। स्तनियों के अतिरिक्त, अधिकांश कशेरुकियों में दाँत सब एक ही प्रकार के अर्थात् समदन्ती (homodont) होते हैं। कुछ मछलियों और अधिकांश स्तनियों में ये विविध कार्यों के अनुसार विभिन्न प्रकार के होते हैं। अन्य स्तनियों की भाँति, हमारे दाँतों की अग्रलिखित विशेषताएँ होती हैं—
  1. गर्तदन्ती या थीकोडॉन्ट (Thecodont) दन्त : प्रत्येक दाँत जबड़े की हड्डी के एक गहरे गड्ढे (alveolus or bony socket) में स्थित होता है। गड्ढे में हड्डी पर तिरछे व घने तन्तुओं का बना परिदन्तीय स्नायु (periodontal ligament or membrane) covered होता है। यह दाँत को गड्ढे में दृढ़तापूर्वक साधे रखता है और भोजन को चबाते समय दाँत के दबाव को सहता है। हड्डी के ऊपर कोमल मसूड़ा (gum or gingiva) होता है। निचले जबड़े के सभी दाँत डेन्टरी हड्डियों में तथा ऊपरी जबड़े के कृन्तक दन्त प्रीमैक्सिली हड्डियों में तथा अन्य दाँत मैक्सिली हड्डियों में होते हैं।
  2. द्विदन्ती या डाइफियोडॉन्ट (Diphyodont) : मनुष्य सहित अधिकांश वयस्क स्तनियों में, चर्वण अर्थात् मोलर दन्तों के अतिरिक्त, अन्य दाँत जीवन में दो बार निकलते हैं। पहले ये अस्थाई (deciduous) दूधिया या क्षीर दन्तों (milk or lacteal or primary teeth) के रूप में निकलते हैं। कुछ समय बाद क्षीर दन्तों में गोर्द (pulp) समाप्त हो जाता है तथा जड़ों को अस्थिभंजक (osteoclast) कोशिकाएँ नष्ट कर देती हैं। अतः ये दाँत गिर जाते हैं। जैसे-जैसे क्षीर दन्त गिरते हैं, इनके स्थान पर नए स्थाई अर्थात् द्वितीयक दन्त (permanent or secondary teeth) निकल आते हैं। अन्य अधिकांश कशेरुकियों में दाँत जीवनभर निकल सकते हैं, अर्थात् बहुदन्ती (polyphyodont teeth) होते हैं। स्लोथों ( sloths), दन्तयुक्त व्हेलों (whales) तथा कुछ अन्य स्तनियों में दाँत केवल एक ही बार निकलते हैं, अर्थात् एकदन्तीय (monophyodont) होते हैं।
  3. विषमदन्ती या हिटरोडोन्ट (Heterodont) : कार्यों के अनुसार, दाँतों का विभिन्न आकृतियों में विभेदित होना विषमदन्ती या हिटरोडोन्ट अवस्था कहलाती है। मनुष्य सहित स्तनियों में आदर्श रूप से चार प्रकार के दाँत होते हैं— कृन्तक (incisors), रदनक (canines), प्रचर्वण (premolars) तथा चर्वण (molars)

मनुष्य के दाँत (Human Dentition)

अन्य स्तनियों की भाँति, हमारे दाँत गर्तदन्ती, द्विदन्ती तथा विषमदन्ती (चार प्रकार के) होते हैं। हमारी दन्त रेखाएँ U के आकार की होती हैं। प्रीमैक्सिली हड्डियों की अनुपस्थिति के कारण, ऊपरी जबड़े के सारे दाँत मैक्सिली हड्डियों में होते हैं। हमारे क्षीर तथा स्थाई दाँतों के दन्त-सूत्र (dental formulae) निम्नलिखित होते हैं-

मनुष्य में दन्त-सूत्र (dental formulae)

क्षीर दन्त (ऊपरी जबड़े के प्रत्येक अर्ध भाग में/निचले जबड़े के प्रत्येक अर्ध भाग में)
⟶ i2/2, c1/1, pm0/0, m2/2 = 5/5 = 10 x 2 = 20

स्थाई दन्त (ऊपरी जबड़े के प्रत्येक अर्ध भाग में / निचले जबड़े के प्रत्येक अर्ध भाग में)
⟶  i2/2, c1/1, pm2/2, m3/3 = 8/8 = 16 x 2 = 32

(i = incisors; c = canines; pm = premolars; m = molars)

जैसा कि उपरोक्त दन्त-सूत्रों से स्पष्ट है, हमारे क्षीर दन्तों में 8 कृन्तक, 4 रदनक तथा 8 चर्वण दन्त होते हैं। ये सामान्यतः 6 महीने से लेकर 3 वर्ष की आयु तक निकलते और फिर 6 से 12 वर्ष की आयु तक गिर जाते हैं। स्थाई दन्तों में 8 कृन्तक, 4 रदनक, 8 प्रचर्वण तथा 12 चर्वण दन्त होते हैं। क्षीर दन्त समूह के कृन्तक तथा रदनक दन्त स्थाई दन्त समूह के कृन्तक और रदनक दन्तों के अनुरूप होते हैं, परन्तु क्षीर दन्त समूह के चर्वण दन्तों के स्थान पर स्थाई दन्त समूह के प्रचर्वण दाँत निकलते हैं। इस प्रकार, हमारे 12 स्थाई चर्वण दन्त एकदन्तीय (monophyodont) होते हैं।

दाँतों का स्फुटन (Eruption of Teeth) : हमारे दाँतों में निचले जबड़े के अधिकांश दाँत ऊपरी जबड़े के समान दाँतों से पहले निकलते हैं। विभिन्न क्षीर एवं स्थाई दाँतों के निकलने की अनुमानित आयु निम्नलिखित चार्ट में नीचे चित्र में दिखाई गई है।

मनुष्य में दन्त-विन्यास (Dentition) : दंत सूत्र, लक्षण, सूक्ष्म संरचना|hindi

दांतो के बाह्य लक्षण: हमारे कृन्तक अर्थात् छेदक दन्तों (incisors-8) का शिखर ठोस भोजन सामग्री को काटने और कुतरने के लिए पैनी कगार (sharp edge) के रूप में होता है। रदनक दन्तों (canines-4) का शिखर भोजन को चीरने-फाड़ने के लिए पैना और नुकीला-सा होता है। प्रचर्वण (premolars-8) तथा चर्वण (molar-12) दन्तों के शिखर चपटे होते हैं और इन पर भोजन को चबाने एवं पीसने के लिए क्रमशः दो-दो तथा तीन-तीन स्पष्ट उभार होते हैं जिन्हें दन्ताग्र (cusps) कहते हैं। तदनुसार, प्रचर्वण दन्तों को द्विदन्ताग्रीय (bicuspid) तथा चर्वण दन्तों को त्रिदन्ताग्रीय (tricuspid) दन्त कहते हैं। तीसरे चर्वण दन्त (4) सबसे बाद में, प्रायः 17 से 21 वर्ष की आयु अर्थात् वयस्क अवस्था में निकलते हैं। इन्हीं को अक्कल दाढ़ (wisdom teeth) कहा जाता है।


दाँतों की स्थूल एवं सूक्ष्म संरचना (Gross Structure and Ultrastructure of Teeth)
हमारे चार विभिन्न श्रेणियों के दाँतों की आकृतियों, माप तथा कार्यों में विभिन्नताएँ होती हैं, परन्तु स्थूल एवं सूक्ष्म संरचना में सभी दाँत समान होते हैं। प्रत्येक दाँत तीन भागों में विभेदित होता है—शिखर (crown), ग्रीवा (neck) एवं जड़ (root)

crown भाग मसूड़ों से बाहर निकला रहता है। जड़ जबड़े की हड्डी के गड्ढे में रहती है। neck मसूड़े में स्थित भाग को कहते हैं। प्रचर्वण एवं चर्वण दन्तों में प्रायः दो या तीन जड़ें होती हैं। दाँतों की जड़ों और जबड़ों की हड्डियों के बीच महीन व पेशीय परिदन्तीय स्नायु (periodontal ligament) होता है। दाँत के शिखर पर अत्यधिक कठोर, सफेद से एवं चमकीले इनैमल (enamel) का मोटा आवरण होता है। पूर्ण शरीर में इनैमल सबसे कठोर पदार्थ होता है। यह मुख्यतः कैल्मियम फॉस्फेट तथा कैल्सियम कार्बोनेट का बना होता है। फौलाद से टकराने पर इसमें से चिन्गारी निकलती है। दाँत के शेष भाग पर, इनैमल के बजाय, सीमेन्टम् (cementum) नामक पीले से और हड्डी से भी अधिक कठोर पदार्थ का महीन आवरण होता है। इस आवरण तथा इनैमल के नीचे, पूरा दाँत मुख्यतः कैल्सियमयुक्त डेन्टीन (dentine or ivory) नामक कठोर, परन्तु लचीले पदार्थ का बना होता है।

मनुष्य में दन्त-विन्यास (Dentition) : दंत सूत्र, लक्षण, सूक्ष्म संरचना|hindi

भीतर इसी स्तर से घिरी दाँत की गुहा होती है। इसे pulp cavity कहते हैं। डेन्टीन की पूरी मोटाई में फैली अनेक महीन एवं शाखान्वित क्षैतिज नलिकाएँ (canaliculi) होती हैं। pulp cavity जड़ के आधार सिरे पर एक छिद्र द्वारा खुलती है। इसमें भरे गाढ़े संयोजी ऊतक को गोर्द (pulp) कहते हैं। इसमें अनेक रुधिर-केशिकाओं तथा तन्त्रिका तन्तुओं का जाल होता है। pulp cavity के चारों ओर शाखान्वित दन्त कोशिकाओं का एक स्तर होता है। इन कोशिकाओं को ओडोन्टोब्लास्ट्स (odontoblasts) कहते हैं। इनके प्रवर्ध डेन्टीन की नलिकाओं में फैले रहते हैं। pulp की रुधिर केशिकाओं से उपयुक्त पोषक पदार्थ और O2 ग्रहण करके ये कोशिकाएँ डेन्टीन का निरन्तर स्रावण करती रहती हैं जिससे दाँत में वृद्धि होती है। इनैमल की उत्पत्ति भ्रूणीय एक्टोडर्म की ऐमीलोब्लास्ट (ameloblast) नामक कोशिकाओं से, परन्तु दाँतों के शेष भाग की मीसोडर्मी कोशिकाओं से होती है।

निरन्तर कार्य करते रहने से दाँत घिसते रहते हैं। पूरा बन जाने के बाद, आयु के बढ़ने के साथ-साथ, ओडोन्टोब्लास्ट कोशिकाएँ निष्क्रिय हो जाती हैं तथा pulp cavity का छिद्र सिकुड़कर छोटा हो जाता या बन्द ही हो जाता है। इसीलिए, वृद्धावस्था तक, एक-एक करके प्रायः सारे दाँत गिर जाते हैं। दाँतों के अपर्याप्त रख-रखाव एवं सफाई की कमी के कारण मसूड़ों में जीवाणुओं (bacteria) का संक्रमण (infection) हो जाता है जिससे दाँत समय से पहले ही गिर जाते हैं।
मंजन करके नियमित सफाई न की जाए तो दाँतों पर लार, बैक्टीरिया तथा भोजन के कचरे की मिश्रित पपड़िया (plaques) सी जम जाती हैं। इसी से दाँतों और जबड़ों में जीवाणुओं का संक्रमण फैलता जाता है और सड़न उत्पन्न हो जाती है।
फ्लोराइड (fluoride) नामक खनिज दाँतों के इनैमल की सुरक्षा करता है। अतः फ्लोराइडयुक्त जल पीने और फ्लोराइडयुक्त पेस्ट से दाँतों की नियमित सफाई की सलाह डाक्टर देते हैं। फ्लोराइड की आवश्यकता से अधिक मात्रा हानिकारक भी होती है। इससे दाँतों का इनैमल काले धब्बों के कारण चितकबरा हो जाता है। इसे फ्लोरोसिस (fluorosis) का रोग कहते हैं।

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