सरल आवर्त गति जब किसी कण की अपनी साम्य स्थिति के इधर-उधर एक सरल रेखा में गति इस प्रकार की होती है कि इस पर लग रहा त्वरण (अथवा बल) प्रत्येक स्थिति में कण के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती रहता है तथा सदैव साम्य स्थिति की ओर दिष्ट होता है तो कण की गति को सरल आवर्त गति कहते हैं।
सरल लोलक के आवर्तकाल का व्यंजक
नीचे चित्र में एक सरल लोलक दर्शाया गया है जिसकी प्रभावी लम्बाई l है तथा उसके गोलक का द्रव्यमान m है। गोलक को बिन्दु S से लटकाया गया है तथा गोलक की साम्य स्थिति है। मान लीजिए दोलन करते समय गोलक किसी क्षण स्थिति A में है जबकि इसका विस्थापन OA = x है। इस स्थिति में धागा ऊर्ध्वाधर से θ कोण बनाता है तथा गोलक पर निम्नलिखित दो बल लगते हैं-
नीचे चित्र में एक सरल लोलक दर्शाया गया है जिसकी प्रभावी लम्बाई l है तथा उसके गोलक का द्रव्यमान m है। गोलक को बिन्दु S से लटकाया गया है तथा गोलक की साम्य स्थिति है। मान लीजिए दोलन करते समय गोलक किसी क्षण स्थिति A में है जबकि इसका विस्थापन OA = x है। इस स्थिति में धागा ऊर्ध्वाधर से θ कोण बनाता है तथा गोलक पर निम्नलिखित दो बल लगते हैं-
(1) गोलक का भार mg जो उसके गुरुत्व केन्द्र पर ठीक नीचे की ओर ऊर्ध्वाधर दिशा में लगता है।
(2) धागे में तनाव का बल T' जो धागे के अनुदिश निलम्बन बिन्दु S की ओर लगता है।
भार mg को दो भागों में वियोजित किया जा सकता है: घटक mg cos θ जो कि धागे के अनुदिश T' की विपरीत दिशा में लगता है तथा घटक mg sin θ जो कि धागे की लम्बवत् दिशा में लगता है। धागे में तनाव T' तथा घटक mg cos θ का परिणामी (Tmg cos 6), गोलक को / त्रिज्या के वृत्तीय पथ पर चलने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल (mv² / l) प्रदान करता है, जबकि घटक mg sin θ गोलक को साम्य स्थिति O में लौटाने का प्रयत्न करता है। यही गोलक पर कार्य करने वाला प्रत्यानयन बल (restoring force) है।
अतः गोलक पर प्रत्यानयन बल F =mg sin θ
अतः गोलक पर प्रत्यानयन बल F =mg sin θ
(जबकि θ, कोणीय विस्थापन छोटा है एवं इसे रेडियन में नापा गया।)
ऋण चिह्न यह व्यक्त करता है कि बल F, विस्थापन θ के घटने की दिशा में है अर्थात् साम्य स्थिति की ओर को दिष्ट है।
अब, चूँकि कोण =चाप / त्रिज्या अतः θ = OA / SA = x/l
अतः F= - mg (x/l)
परन्तु न्यूटन के गति-विषयक द्वितीय नियम के अनुसार, बल = द्रव्यमान × त्वरण से
त्वरण ∝ = प्रत्यानयन बल / द्रव्यमान
अथवा ∝ = F/m = - mg (x/l)/m =-g(x/l)
अथवा ∝ = - (g/l)x
इस प्रकार त्वरण = - ( g / l) x विस्थापन...... (1)
समीकरण (1) में (g/l) किसी निश्चित स्थान पर किसी दी हुई प्रभावी लम्बाई के सरल लोलक के लिए नियतांक है, अतः त्वरण ∝ - (विस्थापन)
स्पष्ट है कि गोलक का त्वरण विस्थापन के अनुक्रमानुपाती है तथा उसकी दिशा विस्थापन x के विपरीत है। क्योंकि θ का मान कम रखा जाता है, अतः चाप OA लगभग ऋजु-रेखीय होगा। इस प्रकार लोलक सरल रेखा में गति करेगा। अतः गोलक की गति सरल आवर्त गति है।
इसका आवर्तकाल T = 2π (विस्थापन/त्वरण)
परन्तु समीकरण (1) से विस्थापन / त्वरण = l/g
आवर्तकाल T = 2 π (l/g)
सरल आवर्त गति की विशेषताएं
- सरल आवर्त गति एक आवर्ती गति (periodic motion) है।
- यह गति एक निश्चित बिंदु (कण की माध्य स्थिति) के इधर - उधर होती है।
- वस्तु एक माध्य स्थिति के दोनो तरफ दोलन करती है।
- प्रत्येक दोलन समान होता है; अर्थात आवर्तकाल, आवृत्ति, आयाम सभी समान होते हैं।
- वस्तु पर कोई बल कार्य नहीँ करता।
- इसका त्वरण शून्य होता है।
- वेग अधिकतम होता है।
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