साबुन (Soap) : परिभाषा, निर्माण की विधि, स्वच्छीकारक क्रिया|hindi


साबुन (Soap) : परिभाषा, निर्माण की विधि, स्वच्छीकारक क्रिया
साबुन (Soap) : परिभाषा, निर्माण की विधि, स्वच्छीकारक क्रिया|hindi

उच्च अणु भार वाले मोनो-कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम तथा पोटैशियम लवण साबुन कहलाते हैं। ये तेलों और वसाओं के तनु NaOH या तनु KOH द्वारा जल-अपघटन से प्राप्त होते हैं।
उदाहरण के लिए-

CH2OCOC17H35                       CH₂OH    
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CHOCOC17H35    +3NaOH CHOH      + 3C17H35COONa   सोडियम स्टिऐरेट (साबुन)
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CH2OCOC17H35                       CH₂OH


तेल और वसा उच्च अणु भार वाले मोनो-कार्बोक्सिलिक अम्लों के ग्लिसरॉल के साथ बने एस्टर होते हैं। इनमें उपस्थित उच्च अणु भार वाले मोनो-कार्बोक्सिलिक अम्ल मुख्यतः स्टिऐरिक अम्ल (C17H35COOH), पामिटिक अम्ल (C15H31COOH) तथा ओलिइक अम्ल (C17H33COOH) होते हैं। अतः साबुन मुख्यतः स्टिऐरिक अम्ल, पामिटिक अम्ल तथा ओलिइक अम्ल के सोडियम तथा पोटैशियम लवण होते हैं।

तेलों और वसाओं के क्षारीय जल अपघटन से साबुन प्राप्त होने की क्रिया को साबुनीकरण (saponification) कहते हैं। तेल और वसा एस्टर होते हैं। अन्य एस्टरों के क्षारीय जल-अपघटन की क्रिया भी साबुनीकरण ही कहलाती है।

साबुन जल में विलेय होते हैं। ये अत्यन्त उपयोगी पदार्थ हैं तथा इनकी स्वच्छीकारक क्रिया (cleansing action) सर्वविदित है।

साबुन दो प्रकार के होते हैं - मृदु साबुन तथा कठोर साबुन । पोटैशियम साबुन सोडियम साबुनों की तुलना में प्राय: मुलायम होते हैं तथा मृदु साबुन कहलाते हैं। सोडियम साबुन पोटैशियम साबुनों की तुलना में प्राय: कठोर होते हैं तथा कठोर साबुन कहलाते हैं।

साबुन की कठोरता उच्च अणु भार वाले मोनो-कार्बोक्सिलिक अम्ल की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। यदि साबुन में संतृप्त अम्लों जैसे स्टिऐरिक अम्ल तथा पामिटिक अम्ल के लवण अधिक अनुपात में होते हैं, तो उसकी कठोरता अधिक होती है। यदि साबुन में असंतृप्त अम्लों जैसे ओलिइक अम्ल के लवण अधिक अनुपात में होते हैं तो उसकी कठोरता कम होती है। शेविंग क्रीम तथा शैम्पू बनाने में मुख्यतः मृदु साबुन अर्थात् किसी असंतृप्त अम्ल जैसे ओलिइक अम्ल के पोटैशियम लवण का प्रयोग करते हैं।


साबुन का निर्माण (Soap Manufacture)

साबुन के निर्माण में प्रयुक्त प्रमुख पदार्थ - साबुन बनाने के लिये निम्न पदार्थों का प्रयोग करते हैं -
  1. वनस्पति तेल - नारियल, अरण्डी, मूंगफली, जैतून, बिनौला, महुआ, सरसों का तेल, आदि।
  2. कॉस्टिक पदार्थ-कॉस्टिक सोडा तथा कॉस्टिक पोटाश जिन्हें क्रमश: सोडियम हाइड्रॉक्साइड तथा पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड भी कहते हैं। इनका जलीय विलयन लाई कहलाता है।
  3. अन्य पदार्थ
  • सोडियम सिलिकेट-इसका प्रयोग साबुन का भार बढ़ाने तथा उसे सख्त, चिकना तथा चमकदार बनाने के लिये किया जाता है। यह साबुन के साफ करने की शक्ति को भी बढ़ाता है।
  • कार्बोलिक अम्ल-इसका प्रयोग साबुन को कीटाणुनाशक बनाने के लिए किया जाता है।
  • बिरोजा या रेजिन-यह चीड़ के पेड़ से प्राप्त होता है। यह साबुन को चमकदार बनाता है, मैल को काटता है तथा झाग अधिक बनाता है।
  • रंग तथा सुगन्धित पदार्थ-साबुन को रंगीन तथा सुगन्धित बनाने के लिये चन्दन का तेल, नीबू का तेल, चमेली का तेल, आदि का प्रयोग करते हैं।

साबुन के निर्माण की तीन विधियाँ प्रमुख हैं

1. गर्म विधि (Hot Process)-इस विधि में एक बड़े डेग (kettle) में तेल या पिघला हुआ वसा लेकर उसमें उचित मात्रा में कॉस्टिक सोडा विलयन जिसे लाई (lye) भी कहते हैं, मिलाते हैं। इस मिश्रण को भाप की सहायता से गर्म करते हैं। मिश्रण उबलने लगता है। कुछ समय बाद मिश्रण में ठोस सोडियम क्लोराइड अर्थात् साधारण नमक मिलाते हैं। मिश्रण को भाप द्वारा गर्म करने की क्रिया को जारी रखते हैं। सम आयन प्रभाव के कारण साबुन अवक्षेपित हो जाता है तथा हल्का होने के कारण ऊपरी परत बना लेता है। निचली परत में ग्लिसरॉल, शेष NaOH, NaCl तथा जल होते हैं। इसे स्पैण्ट लाई (spent lye) कहते हैं तथा इससे ग्लिसरॉल को सह-उपजात (side product) के रूप में प्राप्त किया जाता है।

साबुन (Soap) : परिभाषा, निर्माण की विधि, स्वच्छीकारक क्रिया|hindi

स्पैण्ट लाई को निकास द्वार से निकाल लेते हैं। शेष मिश्रण में साबुन के अतिरिक्त अन-अपघटित तेल या वसा भी होता है। इसमें NaOH विलयन मिला कर उपरोक्त क्रिया को दोहराते हैं। इस प्रकार डेग में मुख्यतः साबुन प्राप्त होता है। गर्म अर्थात् गलित अवस्था में ही इसे पम्प की सहायता से एक दूसरे डेग में ले जाते हैं। इस दूसरे डेग में एक विलोडक (stirrer) लगा होता है। इस डेग में साबुन में रंग, सुगन्ध, कीटाणुनाशक पदार्थ तथा अन्य उपयोगी पदार्थ मिला देते हैं। विलोडक के प्रयोग से इन पदार्थों का समांगी मिश्रण प्राप्त होता है। इस मिश्रण को डेग से बाहर निकाल कर इच्छित आकार के साँचों में डाल कर ठण्डा कर लेते हैं।

2. ठण्डी विधि (Cold Process) - इस विधि द्वारा छोटे पैमाने पर कपड़े धोने का साबुन बनाया जाता है। इस विधि में तेल या पिघले हुए वसा को एक बड़े डेग में लेकर लगभग 50°C तक गर्म करते हैं। इसमें उचित मात्रा में कॉस्टिक सोडा विलयन धीरे-धीरे मिलाते हैं तथा मिश्रण को काँच या लकड़ी की छड़ से चलाते रहते हैं। तेल या वसा की NaOH से अभिक्रिया में ऊष्मा उत्पन्न होती है तथा अभिक्रिया को पूर्ण करने में सहायक होती है। प्राप्त मिश्रण को साँचों में भर कर एक-दो दिन तक ठण्डा करते हैं। इस प्रकार प्राप्त साबुन को इच्छित आकार में काट कर प्रयोग करते हैं। इस प्रकार प्राप्त साबुन में अन-अपघटित तेल या वसा, मुक्त क्षार तथा ग्लिसरॉल मिले रहते हैं तथा इस विधि से सस्ती किस्म का साबुन प्राप्त होता है।

3. आधुनिक विधि (Modern Process) - इस विधि से अच्छी किस्म का साबुन प्राप्त होता है तथा इस विधि की लागत भी कम होती है। इस विधि में सर्वप्रथम तेल या वसा का जिंक ऑक्साइड या तनु सल्फ्युरिक अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में अधिक ताप व अधिक दाब पर जल अपघटन कराया जाता है। जल-अपघटन से प्राप्त वसीय अम्लों को कम दाब पर आसवित करके पृथक् कर लेते हैं। इन अम्लों को NaOH या KOH द्वारा उदासीनीकृत करने पर साबुन प्राप्त हो जाता है।


अच्छे साबुन के गुण - अच्छे तथा उत्तम कोटि के साबुन में निम्न गुण होने चाहिये -
  1. इसमें जल की मात्रा 10% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  2. साबुन में क्षार नहीं होना चाहिये क्योंकि क्षार त्वचा तथा वस्त्रों के लिए हानिकारक है।
  3. साबुन चिकना तथा मुलायम होना चाहिए।
  4. इसमें कीटाणुनाशक पदार्थ मिले होने चाहिये।

साबुन के प्रकार- -दैनिक जीवन में साबुन दो प्रकार के होते हैं-
  1. नहाने का साबुन
  2. कपड़े धोने का साबुन

साबुन की स्वच्छीकारक क्रिया (Cleansing Action of Soap)

साबुन (RCOONa या RCOOK) को जल में घोलने पर साबुन के अणु आयनित हो जाते हैं। इसके ऋणायन (RCOO-) में दो भाग होते हैं। इसमें उपस्थित समूह R एक लम्बी श्रृंखला वाला समूह है। यह अध्रुवीय है तथा इस कारण जल-विरोधी तथा तेल-स्नेही होता है। इसमें उपस्थित कार्बोक्सिलेट समूह ध्रुवीय है तथा इस कारण जल-स्नेही होता है। इस कारण साबुन को जल में घोलने पर अनेकों RCOO- समूह कोलॉइडी कणों के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इन कोलॉइडी कणों में ऋणावेशित कार्बोक्सिलेट आयन जल के सम्पर्क में रहते हैं तथा अध्रुवीय एल्किल समूह जल से दूर रहते हैं। इस प्रकार के कणों को मिसेल (micelles) कहते हैं। इस प्रकार साबुन को जल में घोलने पर एक कोलॉइडी विलयन प्राप्त होता है।

साबुन (Soap) : परिभाषा, निर्माण की विधि, स्वच्छीकारक क्रिया|hindi

साबुन का जल में बना कोलॉइडी विलयन धूल, तेल तथा चिकनाई के कणों को अवशोषित कर लेता है। धूल, तेल तथा चिकनाई के कण मुख्यतः मिसेल के केन्द्र में समा जाते हैं। इस प्रकार धूल, तेल तथा चिकनाई की कपड़े पर पकड़ कमजोर हो जाती है। जल की धारा को बहाने पर धूल तथा चिकनाई के कण दूर हो जाते हैं। चिकनाई के साथ चिपके गन्दगी के कण भी दूर हो जाते हैं।

इसके अतिरिक्त साबुन के घनायन (Na+ तथा K+) जल में घुल कर जल के पृष्ठ तनाव (surface tension) को कम कर देते हैं जिस कारण साबुन का विलयन कपड़ों के धागों में आसानी से फैल जाता है तथा गन्दगी व चिकनाई के कणों को अवशोषित करके बाहर निकाल देता है।

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