भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण (Translocation of Food Materials)
पादप शरीर में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं (जैविक क्रियाओं) के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से ही प्राप्त होती है। पत्तियों में बने हुए खाद्य उपयोग का एक अंग से दूसरे अंग तक पहुँचना आवश्यक होता है। खाद्य पदार्थों का इस प्रकार का स्थानान्तरण घुलनशील अवस्था में फ्लोएम (phloem) ऊतक द्वारा ऊपर से नीचे की ओर होता है, किन्तु विशेष अवस्थाओं में यह स्थानांतरण संचय के स्थानों से विपरीत दिशा में भी होता है । खाद्य के स्थानान्तरण का कार्य मुख्यतः चालनी-नलिकाओं (sieve tubes) तथा सहकोशिकाओं (companion cells) द्वारा होता है।मुंच परिकल्पना (Munch hypothesis)
खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण के सन्दर्भ में अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं, इनमें से मुंच परिकल्पना सर्वमान्य है। मुंच (Munch, 1927-30) ने फ्लोएम में भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में कहा है कि यह क्रिया अधिक सान्द्रता वाले स्थानों से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होती है।पर्णमध्योतकी कोशिकाओं (mesophyll cells) में निरन्तर भोज्य पदार्थों के बनते रहने के कारण परासरण दाब अधिक हो जाता है। उधर जड़ों में या अन्य स्थानों पर इन पदार्थों के उपयोग में आते रहने से सान्द्रता कम हो जाती है। अतः पर्णमध्योतक कोशिकाओं से फ्लोएम में होकर आवश्यकता के स्थानों को स्थानान्तरण, सामूहिक रूप में परासरण दाब के कारण होता है।
निम्नलिखित प्रयोग के द्वारा इस सिद्धान्त को समझने में सहायता मिलती है-
1. दो परासरणदर्शी 'A' तथा 'B' लिए गए हैं। परासरणदर्शी बनाने के लिए एक नलिका के सिरे पर अण्डे की झिल्ली या अन्य कोई अर्द्धपारगम्य झिल्ली बाँधी जाती है। दोनों परासरणदर्शियों को एक नलिका 'C' द्वारा सम्बन्धित किया गया है।
निम्नलिखित प्रयोग के द्वारा इस सिद्धान्त को समझने में सहायता मिलती है-
1. दो परासरणदर्शी 'A' तथा 'B' लिए गए हैं। परासरणदर्शी बनाने के लिए एक नलिका के सिरे पर अण्डे की झिल्ली या अन्य कोई अर्द्धपारगम्य झिल्ली बाँधी जाती है। दोनों परासरणदर्शियों को एक नलिका 'C' द्वारा सम्बन्धित किया गया है।
2. परासरणदर्शी 'A' में सान्द्र शक्कर का विलयन है तथा 'B' में सादा जल है। दोनों परासरणदर्शियों को जल से भरे पात्रों में रखा गया है। दोनों पात्रों को भी एक छोटी नलिका 'D' के द्वारा जोड़ा गया है। 'A' में अत्यधिक परासरण दाब के कारण (दोनों ओर झिल्लियों के फैलने के लिए बराबर बल चाहिए) अत्यधिक स्फीति दाब पैदा होगा और 'A' का विलयन अविरल धार के रूप में (mass flow) 'B' की ओर प्रवाहित होता है। यह प्रवाह-क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि दोनों ओर शक्कर की सान्द्रता बराबर न हो जाए। इसके फलस्वरूप 'B' परासरणदर्शी के विलयन से जल पात्र में आता रहता हे और 'A' में पात्र से जल प्रवेश करता रहेगा।
यदि 'A' में निरन्तर शक्कर की मात्रा को कम न होने दिया जाए तथा 'B' में आई हुई शक्कर को हटाया जाता रहे तो यह क्रिया निरन्तर होती रहेगी।
यदि 'A' में निरन्तर शक्कर की मात्रा को कम न होने दिया जाए तथा 'B' में आई हुई शक्कर को हटाया जाता रहे तो यह क्रिया निरन्तर होती रहेगी।
FAQs
1. द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना क्या है?
Ans. द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना, जिसे मुंच की परिकल्पना भी कहा जाता है, पौधों में भोजन के परिवहन की प्रक्रिया को समझाती है। इस परिकल्पना के अनुसार भोजन (जैसे ग्लूकोज) phloem (पोषक ऊतक) में द्रव्यमान प्रवाह के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरित होता है।
2. मुंच की परिकल्पना क्या है?
Ans. यह परिकल्पना जर्मन वनस्पति विज्ञानी अर्न्स्ट मुंच द्वारा 1930 में प्रस्तुत की गई थी। उन्होंने देखा कि phloem में भोजन की गति रंध्रों के खुलने और बंद होने से प्रभावित होती है। उन्होंने यह भी देखा कि phloem में भोजन का दबाव उच्च होता है, जो द्रव्यमान प्रवाह को गति प्रदान करता है।
3. परिकल्पना का उद्देश्य क्या है?
Ans. इस परिकल्पना का उद्देश्य पौधों में भोजन के परिवहन की प्रक्रिया को समझना था। यह समझना महत्वपूर्ण था क्योंकि यह पौधों के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक है।
4. मुंच का मतलब क्या होता है?
Ans. मुंच का मतलब है "जर्मन"। यह शब्द जर्मनी के लोगों और उनकी भाषा को संदर्भित करता है।
5. मुंच शब्द कहाँ से आया है?
Ans. यह शब्द जर्मन भाषा के शब्द "Münch" से आया है। इसका उच्चारण "मूंच" होता है।
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