बैक्टीरिया के आर्थिक महत्त्व क्या होते हैं (economic importance of bacteria)|in hindi


बैक्टीरिया के आर्थिक महत्त्व क्या होते हैं 

बैक्टीरिया के आर्थिक महत्त्व क्या होते हैं (economic importance of bacteria)|in hindi


जीवाणु एककोशिकीय तथा अतिसूक्ष्म जीव होते है किन्तु इनके द्वारा होने वाले लाभ एवं हानियाँ इतनी अधिक हैं कि प्रकृति में इन्होंने अपना एक प्रमुख स्थान स्थापित कर लिया है। ये पेड़-पौधों व जन्तुओं में अत्यन्त घातक एवं विनाशकारी रोग उत्पन्न करते हैं। इसके विपरीत, कई प्रकार के बैक्टीरिया मनुष्य के लिये अत्यधिक उपयोगी हैं। इनके द्वारा होने वाली हानियों व लाभों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं:

A. हानिकारक बैक्टीरिया (Harmful Bacteria)

बैक्टीरिया मनुष्य व अन्य जन्तुओं तथा पादपों में अनेक रोगों के लिये उत्तरदायी हैं। इसके अलावा ये भूमि को ऊसर बना देते हैं और भोजन को भी सड़ा देते हैं जिससे वह खाने के लायक नहीं रहता।

1. मनुष्य में रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया (Bacteria Causing Diseases in Man): बैक्टीरिया मनुष्य में क्षय रोग, तपेदिक, निमोनिया, डिप्थीरिया, हैजा, पेचिस, टाइफॉइड ज्वर, कुष्ठ रोग, टिटेनस, सिफिलिस, गोनोरिया, कनफेड़ आदि रोग उत्पन्न करते हैं जिनके फलस्वरूप प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती हैं।


2. जन्तुओं में रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया (Bacteria Causing Diseases in Animals): बहुत-से बैक्टीरिया गाय, भैंस, सूअर, भेड़, बकरी, मुर्गी, कबूतर, कुत्तों व घोड़ों आदि में रोग फैलाकर पशु-धन को हानि पहुँचाते हैं। मुर्गी के चूजों में हैजा (chiken cholera), मवेशियों में तपेदिक (tuberculosis of cattle), ब्लैक लेग ऑफ कैटल (black leg of cattle), एन्थ्रेक्स (anthrax) व निमोनिया (pneumonia) आदि रोग जन्तुओं में बैक्टीरिया द्वारा ही होते हैं।


3. पेड़-पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया (Bacteria Causing Diseases in Plants): मनुष्य व जन्तुओं के अतिरिक्त बैक्टीरिया पौधों में भी कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।


4. भूमि की उर्वरता को कम करना (To Reduce Soil Fertility): कुछ अनॉक्सी बैक्टीरिया (anaerobic bacteria), जैसे बैसीलस डिनाइट्रीफिकेन्स (Bacillus denitrificans) नम व कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता वाली भूमि में अत्यधिक सक्रिय होते हैं। ये भूमि में उपस्थिति नाइट्रेट्स को विघटित करके नाइट्रोजन को मुक्त कर देते हैं। इस प्रकार ये भूमि को ऊसर बना देते हैं जिससे उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती हैं। इस प्रकार के बैक्टीरिया को विनाइट्रीकारी बैक्टीरिया (denitrifying bacteria) कहते हैं।


5. पानी के नलों को रुद्ध करना (Choking of Water Pipes): आयरन बैक्टीरिया बड़े नगरों के जल-प्रबन्ध में बाधा उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार के बैक्टीरिया में एक मोटा आवरण होता है जिसमें फैरिक हाइड्रॉक्साइड (ferric hydroxide) जमा रहता है। इसकी मृत्यु हो जाने पर ये फैरिक ऑक्साइड छोड़ते हैं जिसके एकत्रित होने पर नल जाम हो जाते हैं।


6. खाद्य-पदार्थों को दूषित करना (Spoilage of Food) : कई मृतजीवी बैक्टीरिया मनुष्य की खाद्य सामग्री को बहुत बड़ी मात्रा में नष्ट कर देते हैं। सब्जी, फलों या मांस का सड़ना, दूध का खट्टा होना, मक्खन में से दुर्गन्ध आना आदि बैक्टीरिया के कारण ही होता है।

बैक्टीरिया केवल खाद्य-सामग्री को ही दूषित नहीं करते हैं बल्कि ये विषैले पदार्थ भी स्त्रावित करते हैं जिससे भोजन विषाक्त हो जाता हैं जिसे खाने से प्रति वर्ष हजारों मनुष्यों की मृत्यु हो जाती है।



B. उपयोगी बैक्टीरिया (Useful Bacteria)

यद्यपि बैक्टीरिया मनुष्य जाति के लिये कई प्रकार से हानिकारक हैं लेकिन यह मनुष्यों को उतने ही लाभ भी पहुंचाता है जिसके कारण इनमें मनुष्यों का मित्र कहा जाता है। इनसे होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:


1. मृत पेड़-पौधों व जन्तुओं का सड़ना (Decay of Dead Bodies of Plants and Animals)

मृतजीवी बैक्टीरिया मृतक जीव- जन्तुओं व पेड़-पौधों तथा सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों के प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स तथा अन्य कार्बनिक यौगिकों को अपघटित करते हैं। इस क्रिया में जन्तुओं व पेड़-पौधों में स्थित कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फेट्स आदि सरल यौगिकों के रूप में पुनः वायु या भूमि में वापस पहुँच जाते हैं और फिर से भोजन-संश्लेषण में कच्चे पदार्थों के रूप में काम आते हैं।



2. भूमि उर्वरता (Soil Fertility)

बैक्टीरिया भूमि की उर्वरता को बनाये रखने एवं उसमें वृद्धि करने में सहायक होते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं:

(i) अमोनीकारी बैक्टीरिया (Ammonifying Bacteria): सड़ाने वाले बैक्टीरिया जीव-जन्तु व पेड़-पौधों के प्रोटीन्स (proteins) तथा उनके अपशिष्ट पदार्थों (waste products) को एमिनो अम्ल (amino acid) में तोड़ देते हैं। एमिनो अम्ल अमोनीकारी बैक्टीरिया (ammonifying bacteria) द्वारा अमोनिया में टूट जाते हैं। अमोनिया भूमि में स्थित लवणों के साथ मिलकर अमोनियम लवण बनाती है। इस क्रिया को अमोनीकरण (ammonification) कहते हैं।

(ii) नाइट्रीकारी बैक्टीरिया (Nitrifying Bacteria): ये दो प्रकार के होते हैं: नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) तथा नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter)। नाइट्रोमोमोनास नामक नाइट्रीकारक बैक्टीरिया अमोनिया के लवणों को नाइट्स अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं। नाइट्रस अम्ल क्षारीय यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया करके KNO₂ बनाता है।

नाइट्रोबैक्टर बैक्टीरिया नाइट्राइट्स का ऑक्सीकरण करके नाइट्रेट्स बनाते हैं। नाइट्रेट्स पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। अमोनियम लवणों से नाइट्रेट्स बनाने की क्रिया को नाइट्रीकरण (nitrification) कहते हैं।

(iii) नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया (Nitrogen Fixing Bacteria): भूमि में रहने वाले कुछ बैक्टीरिया वायुमण्डल की नाइ‌ट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदल देते हैं। इस क्रिया को नाइट्रोजन-स्थिरीकरण (nitrogen fixation) कहते हैं।

एजोटोबैक्टर (Azotobacter ) तथा क्लॉस्ट्रीडियम (Clostridium) बैक्टीरिया की कुछ जातियां मि‌ट्टी के कणों के बीच स्थित वायु की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके नाइट्रोजिनस कार्बनिक यौगिक बनाती है और इस प्रकार भूमि को उपजाऊ बनाये रखती है।

कुछ सहजीवी बैक्टीरिया (symbiotic bacteria) जैसे बैसोलस रेडिसीकोला (Bacillus radicicola) (मटर, सेम, मेथी, चने इत्यादि) लैग्यूमिनेसी कुल के पौधों की जड़ों में nodules बनाकर रहते हैं। प्रत्येक ग्रन्थिका में लाखों की संख्या में बैक्टीरिया रहते हैं। ये बैक्टोरिया स्वतन्त्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके उसको नाइट्रोजनयुक्त कार्बनिक यौगिकों (नाइट्रेट्स) में परिवर्तित कर देते हैं जिनका उपयोग न केवल बैक्टीरिया करते हैं अपितु पोषक पौधों द्वारा भी किया जाता है।

लैग्यूम फसल के कटने पर जड़ों की ग्रन्थिकाएँ भूमि में रह जाती है जिससे भूमि उपजाऊ बनी रहती है। इस भूमि में गेहूं आदि की फसल बोने पर अच्छी फसल होती है। किन्तु गेहूं की फसल के बाद इस भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। इसलिए इसके बाद इसमें मटर, मैथी, चने आदि की फसल बोई जाती है जिससे यह भूमि फिर से उपजाऊ हो जाती है। फसलों के इस प्रकार बार-बार पलट कर बोने को फसलों का चक्र कहते हैं।



3. मल-निर्यास (Sewage Disposal) 

अपशिष्ट पदार्थों में मल के अतिरिक्त कारखाने के अपशिष्ट पदार्थ तथा नगरों से बहकर आने वाला सम्पूर्ण जल भी सम्मिलित होता हैं। इसमें उपस्थित ठोस कार्बनिक पदार्थों को सड़ने के लिये भूमि में पाये जाने वाले बैक्टीरिया चाहिए होता है।



4. औद्योगिक महत्त्व (Industrial Importance)

उपापचयों क्रियाओं से उत्पत्र पदार्थों के कारण बैक्टीरिया विभिन्न उद्योगों में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें से कुछ निम्न प्रकार है:

(i) मक्खन तथा पनीर बनाना (Manufacture of Butter and Cheese): डेरी व्यवसाय में मक्खन और पनीर उत्पादन में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया व्यापक रूप से काम में लाये जाते हैं। इनके द्वारा स्रावित लैक्टिक एसिड के प्रभाव से दूध का प्रोटीन (casein) जम जाता है। इसी से पनीर बनाया जाता है। मक्खन बनाने में भी यही बैक्टीरिया काम में लाये जाते हैं।

(ii) एसीटोन व ब्यूटाइल ऐल्कोहॉल बनाना (Manufacture of Acetone and Butyl Alcohol): क्लॉस्ट्रीडियम (Clostridium) नामक बैक्टीरिया शर्करा के घोल का किण्वन करके एसीटोन व ब्यूटाइल ऐल्कोहॉल बनाते हैं। एसीटोन कृत्रिम रेजिन व क्लोरोफॉर्म बनाने और ब्यूटाइल ऐल्कोहॉल शर्करा, औषधियों के रंग व सुगन्धियाँ बनाने के काम आती है।

(iii) चाय तथा तम्बाकू की पत्तियों को पकाना (Curing of Tea and Tobacco Leaves): कुछ बैक्टीरिया चाय व तम्बाकू की पत्तियों पर किण्वन करके उनमें विशेष प्रकार की सुगन्ध व स्वाद उत्पन्न कर देते हैं। इसी प्रकार कॉफी व कोको के उत्पादन की विधि में भी बैक्टीरिया इस्तेमाल किया जाता हैं। कोको में चॉकलेट का स्वाद बैक्टीरिया की किण्वन क्रिया के कारण होता है।

(iv) जूट व पटसन बनाना (Retting of Hemp): पटुआ या जूट के पौधों के रेशों को अलग करने के लिये इन्हें किसी पानी के हौज में रख दिया जाता है। बैक्टीरिया की प्रतिक्रिया के कारण फ्लोएम के रेशे तने के अन्य ऊतकों से अलग हो जाते हैं। इन रेशों का प्रयोग रस्सी व अन्य कई प्रकार का सामान बनाने में किया जाता है।

(v) चमड़ा बनाना (Tanning of Leather) : पशुओं की खाल से चमड़ा बनाने में भी कुछ बैक्टीरिया काम में आते हैं। इस क्रिया में खाल को बड़े-बड़े हौजों में सड़ने दिया जाता है। बैक्टीरिया एन्जाइम स्त्रावित करते हैं जिनकी प्रतिक्रिया के कारण खाल में से बाल व मांस आदि गलकर निकल जाते हैं और खाल मुलायम पड़ जाती है।



5. सिलेज का बनाना (Silage Making)

सिलेज एक विशेष प्रकार का चारा है जो दूध बढ़ाने के लिये दूध देने वाले मवेशियों को दिया जाता है। इसमें लेक्टोबैसीलस (Lactobacillus) बैक्टीरिया इस्तेमाल किया जाता हैं। क्लोवर, अल्फा अल्फा व ओट के पौधों के बण्डल बाँधकर इन बैक्टीरिया द्वारा किण्वन होने देते हैं। किण्वन के फलस्वरूप चारे में लैक्टिक एसिड बनता है जो इन मवेशियों का दूध बढ़ाने में सहायक होता है।



6. औषधीय महत्त्व (Medicinal Importance) 

कुछ बैक्टीरिया अत्यधिक महत्त्वपूर्ण औषधियाँ व विटामिन बनाने के काम आते हैं। कवकों की भाँति कुछ बैक्टीरिया ऐसे पदार्थ बनाते हैं जो रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया की उत्पत्ति को रोकते हैं और उनको नष्ट भी करते हैं। ये पदार्थ एण्टीबायोटिक्स (antibiotics) कहलाते हैं। स्ट्रैप्टोमाइसिन (streptomycin), ऑरियोमाइसिन (aureomycin) तथा टैरामाइसिन (terramycin) इसी प्रकार के पदार्थ हैं जो बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न निमोनिया, डिप्थीरिया, तपेदिक, टाइफॉइड आदि घातक रोगों में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुए हैं। कुछ बैक्टीरिया के एण्टीजन्स चेचक, हैजा व अन्य रोगों के वैक्सीन (vaccines) बनाये जाते हैं।

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