खाद्य-पदार्थों का परिरक्षण (Preservation of food stuff)
कई बैक्टीरिया ऐसे होते हैं जो भोजन को दूषित कर देते हैं इसलिए बैक्टीरिया द्वारा भोजन को दूषित होने से बचाने के लिये कई विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से कुछ विधियों का वर्णन निम्नलिखित हैं:1. रेफ्रिजरेशन एवं कोल्ड स्टोरेज (Refrigeration and Cold Storage) : निम्न ताप पर बैक्टीरिया निष्क्रिय हो जाते हैं जिससे इनकी वृद्धि रुक जाती है और इनकी संख्या भी कम हो जाती है। जिस तापमान पर पानी का जमाव होता है उस तापमान पर इनकी जैविक क्रियाएँ पूर्णतः रुक जाती हैं। इस तथ्य के आधार पर रेफ्रिजिरेटर व कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया गया है। रेफ्रिजिरेटर में हम पका हुआ भोजन, सब्जी, फल व अन्य खाद्य-सामग्रियों को दूषित हुए बिना कई दिन तक रख सकते हैं। इसी प्रकार कोल्ड स्टोरेज में ताजे फल व सब्जियाँ कई-कई सप्ताहों तक संग्रहीत करके रखा जा सकता हैं।
2. निर्जलीकरण (Dehydration) : इस विधि द्वारा खाद्य-पदार्थों में से जल की अधिकांश मात्रा को निकाल लिया जाता है। ऐसे खाद्य-पदार्थों में न तो बैक्टीरिया वृद्धि कर पाते हैं और न ही एन्जाइम स्त्रावित कर पाते हैं। इस प्रकार की निर्जलीकृत खाद्य सामग्री को खाने से पहले उसे जल में भिगोकर पुनर्जलित किया जाता हैं। हरी मटर, सेम के बीज आदि को इसी विधि द्वारा preserve किया जाता है।
3. अधिक नमक, शर्बत व संघनित दूध का प्रयोग (Use of Excess of Salt, Syrups and Condensed Milk) : पूर्णतया नमक लगा हुआ मांस व मछलियाँ तथा Condensed Milk सीलबन्द डिब्बों में Refrigeration के बिना भी काफी समय तक खराब नहीं होते हैं। अचार, मुरब्बे, चटनी व शर्बत भी खाद्य पदार्थों को preserve रखने की विधियाँ हैं। इसी प्रकार जैली व शहद भी काफी समय तक खराब नहीं होते हैं। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि अत्यधिक गाढ़ापन व सान्द्रता बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं होने देता हैं।
4. पाश्चुरीकरण (Pasteurisation) : इस विधि द्वारा दूध में रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट किया जाता है। इस क्रिया में सबसे पहले दूध को लगभग 15 सेकण्ड तक 160° F तक गर्म किया जाता है और इसके बाद एकदम ठण्डा किया जाता है। इस विधि से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं किन्तु उनके एण्डोस्पोर (बीजाणु) नष्ट नहीं हो पाते हैं। लेकिन दूध में पाये जाने वाले रोगजनक बैक्टीरिया में स्पोर या बीजाणु नहीं बनते हैं इसलिए दूध रोगमुक्त हो जाता है।
5. परिरक्षक (Preservatives) : कुछ रसायन भी Preservation में उपयोगी सिद्ध हुए हैं। बेन्जोइक अम्ल व सोडियम बेन्जोएट प्रायः शर्बतों में Preservative के रूप में मिलाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ खाद्य पदार्थों को उच्च ताप पर रखकर preserve किया जाता है।
निर्जर्मीकरण (Sterilization)
किसी भी स्थान, वस्तु या शरीर के किसी भाग (हाथ आदि) को सूक्ष्मजीवों से मुक्त करने की क्रिया निर्जर्मीकरण (sterilization) कहलाती है। निर्जर्मीकरण की क्रिया किसी रसायन द्वारा (by chemical), ऊष्मा (heat) द्वारा, अथवा छानने (filter) की विधि द्वारा की जा सकती हैं।सामान्यतः अस्पतालों व प्रयोगशालाओं में निर्जर्मीकरण की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण रूप से की जाती है। यहाँ काम आने वाले विभिन्न यन्त्रों, उपकरण आदि को आटोक्लेव अथवा प्रेशर कुकर में 110-120°C ताप तथा 15 पौंड दाब पर 15 मिनट तक रखकर निर्जर्मीकरण किया जाता है।
कभी-कभी इन्जेक्शन की सुईं (नीडिल) व चाकू, स्केलपेल, कैंची आदि को भी 15 मिनट तक उबलते पानी में रखते हैं जिससे उन्हें जीवाणुमुक्त किया जा सके। प्रयोगशालाओं में निर्जर्मीकरण के लिए फिल्टर, रसायन व आटोक्लेव का प्रयोग किया जाता है। अस्पतालों में यह क्रिया दो विधि से की जाती है:
(i) अर्जम शल्य चिकित्सा (Aseptic Surgery) : इसमें शल्य क्रिया में उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को जीवाणु अथवा रोगाणुमुक्त बनाने के लिए शल्य क्रिया कक्ष (operation theater) में फिल्टर, ऊष्मा व रसायनों का प्रयोग करते हैं।
ii) प्रतिरोधी शल्य चिकित्सा (Antiseptic Surgery) : घावों को कार्बोलिक अम्ल, डिटॉल, सेवलॉन अथवा स्प्रिट से धोकर उसे रोगाणुओं से मुक्त किया जाता है।
(i) अर्जम शल्य चिकित्सा (Aseptic Surgery) : इसमें शल्य क्रिया में उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को जीवाणु अथवा रोगाणुमुक्त बनाने के लिए शल्य क्रिया कक्ष (operation theater) में फिल्टर, ऊष्मा व रसायनों का प्रयोग करते हैं।
ii) प्रतिरोधी शल्य चिकित्सा (Antiseptic Surgery) : घावों को कार्बोलिक अम्ल, डिटॉल, सेवलॉन अथवा स्प्रिट से धोकर उसे रोगाणुओं से मुक्त किया जाता है।
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