श्वसन से सम्बन्धित कुछ विकृतियाँ (Some Disorders of associated with Respiration)|in hindi


श्वसन से सम्बन्धित कुछ विकृतियाँ (Some Disorders of associated with Respiration)

श्वसन से सम्बन्धित कुछ विकृतियाँ (Some Disorders of associated with Respiration)|in hindi


कई बार मनुष्यों को श्वसन से संबंधित विकृतियां हो जाती है जिससे उन्हें साँस लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं इन्हीं में से कुछ विकृतियों के बारे में:

1. अस्थमा (Asthma) 

यह एक allergic reaction है जो कई प्रकार से हो सकता है। इसके लक्षण निम्नलिखित हैं:

(a) ईडेमा (Oedema) या ब्रौकिओल्स में द्रव के इकट्ठा होने से,

(b) म्यूकस का गाढ़ा स्राव होना तथा बौकिओल्स में कुंचन आदि होना। इससे निःश्वसन (expiration) में अवरोध उत्पन्न होता है जिसके कारण फेफड़े फूल जाते हैं।



2. श्वसन विकार (Respiration Disorders):

(a) श्वासावरोध (Asphyxia): जब ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है तो यह दशा उत्पन्न हो जाती है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

(i) पानी में डूबने पर कूपिकाओं (alveoli) में पानी भरने के कारण।

(ii) न्यूमोनिया होने पर फेफड़ों में ऊतक द्रव एवं म्यूकस भरने के कारण।

(iii) साइनाइड द्वारा विषाक्त होने पर क्योंकि इसके द्वारा कोशिकाओं में ऑक्सीजन का उपयोग करने वाले एन्जाइम निष्क्रिय हो जाते हैं।

(iv) कार्बन मोनोऑक्साइड द्वारा विषाक्त होने पर क्योंकि हीमोग्लोबिन की O₂ की तुलना में CO के लिए अधिक बन्धुता होती है।




(b) प्ल्यूरिसी (Pleurisy): इस रोग में फेफड़ों के चारों ओर स्थित प्ल्यूरल मेम्ब्रेन सूज जाती है। इसके कारण दर्द व बुखार रहने लगता है, कफ व खाँसी हो जाती है तथा साँस तेज चलने लगता है।


(c) इन्फ्लूएन्जा या फ्लू (Influenza or Flu): यह एक संक्रामी रोग है। संक्रमण होने पर नाक से पानी बहने लगता है तथा गले व श्वसन पथ संक्रमित हो जाते हैं। फ्लू के बाद रोगी अत्यधिक कमजोरी महसूस करता है।


(d) काली खाँसी (Whooping Cough): यह रोग मुख्य रूप से बच्चों को होता है। यह Haemophilus pertussis द्वारा बच्चों में फैलता है। इसका प्रभाव रात के समय अधिक होता है। इसमें रोगी को लगातार खांसी होती रहता है।


(e) पर्वत रोग (Mountain Sickness): मैदानों में रहने वाले व्यक्ति जब 8,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर जाते हैं तो उनमें यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इसके कारण उनका साँस फूलने लगता है, सिर में दर्द रहने लगता है तथा मितली आती है। रोगी को मानसिक थकावट रहने लगती है तथा त्वचा, नाखून व अंगुलियाँ नीली पड़ जाती हैं। इसका कारण यह है कि ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम हो जाता है जिससे रुधिर में कम ऑक्सीजन विसरित होती है। इसी कारण पर्वतों पर रहने वाले व्यक्तियों के रुधिर में RBC अधिक संख्या में होते हैं।


(f) एम्फिसीमा (Emphysema): यह रोग प्रायः बूढ़े व्यक्तियों में वायु प्रदूषण या धूम्रपान के कारण होता है। इस रोग में एल्विओलाई की भित्ति सिकुड़कर पतली हो जाती है जिसके कारण गैसीय विनिमय क्षमता कम हो जाती है।

(g) ब्रोंकाइटिस (Bronchitis): यह रोग ब्रौंकाई (bronchi) के स्थायी रूप से फूल जाने के कारण होता है। इससे साँस लेने में कठिनाई होती है और खाँसी आने लगती है जिसमें गाढ़ा, पसयुक्त स्राव थूक के रूप में निकलता है। रोगी को डिस्पनिया (dyspnea) तथा ज्वर भी हो जाता है। डिस्पनिया का अर्थ है रुधिर में ऑक्सीजन का अभाव होना या हाइपरकैपनिया (hypercapnia) अर्थात् कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता का बढ़ जाना।

(h) सामान्य सर्दी जुकाम (Common Cold) : यह रोग विषाणुओं से होता है। इस रोग के मुख्य लक्षण हैं: नासिका की म्यूकस मेम्ब्रेन में सूजन होना, नाक बन्द होना, स्राव की अधिकता, साँस लेने में कठिनाई, ज्वर, सिरदर्द आदि। बच्चों में यह रोग अधिक होता है। 45 वर्ष की आयु से अधिक व्यक्तियों में जुकाम कम होता है। सामान्य सर्दी जुकाम लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाता है।


3. पेशा-सम्बन्धी विकृती अथवा फुफ्फुसीय रेशामयता (Occupational Disorder or Pulmonary Fibrosis) 

इस रोग में सामान्य फुफ्फुस ऊतक फाइब्रस ऊतक में बदल जाता है जिससे फुफ्फुस की कुंचनशीलता तथा वायुग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है। श्वास लेने में कष्ट, सीने में पीड़ा, खाँसी उठना व साँस फूलना आदि इस रोग के सामान्य लक्षण हैं। यह रोग खनिज खदानों में कार्य करने वाले लोगों में अधिक होता है।

4. श्वास रोध एवं श्वास क्षिप्रता (Apnoea and Tachypnoea) : बाह्य श्वसन में होने वाले रोध को श्वास रोध (apnoea) कहते हैं। इसमें श्वसन पेशियों में कोई भी गति नहीं होती जिससे फेफड़ों के आयतन में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

वयस्कों में विश्रामावस्था में श्वास तेजी से चलने को श्वास क्षिप्रता कहते हैं। सामान्य दशा में श्वसन गति 12-20 प्रति मिनट होती है जबकि श्वास क्षिप्रता में यह 20 प्रति मिनट से अधिक होती है।



कृत्रिम श्वसन (Artificial Respiration) की प्रक्रिया

जल में डूबने या बिजली का करेंट लगने पर जब किसी व्यक्ति की श्वसन क्रिया रुक जाती है तो उसे ठीक करने के लिए कृत्रिम श्वासोच्छ्वास की क्रिया का सहारा लेना पड़ता है। इसके द्वारा फेफड़ों का पुनः संचालन (ventilation) सम्भव हो जाता है।

कृत्रिम श्वसन निम्नलिखित चरणों में किया जाता है:


1. अमुक व्यक्ति को पीठ के बल लिटाकर उसकी गर्दन के नीचे हाथ रखकर उसे ऊपर उठायें, जिससे उसकी गर्दन खिंच जाये और उसका वायुमार्ग खुल जाये।

2. व्यक्ति की नाक को अंगुलियों की सहायता से बन्द करके अपना मुख उस व्यक्ति के मुख पर रखकर जोर से फूंक मारें जिससे उसके फेफड़ें फूल जायें।

3. अब मुख को हटा ले जिससे निःश्वसन सम्भव हो सके। यह क्रिया एक मिनट में 10-15 बार करनी चाहिए। इस प्रकार उस व्यक्ति में दोबारा से श्वसन की क्रिया प्रारम्भ हो सकती है।

No comments:

Post a Comment