अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रकार(Types of Meiosis)
अर्द्धसूत्री विभाजन समय एवं स्थान के आधार पर निम्न तीन प्रकार का होता है-
- युग्मनज(Zygotic)
- युग्मकी (Gametic)
- स्पोरिक (Sporic)
युग्मनज(Zygotic)
- इसे प्रारंभिक(Initial)अर्द्धसूत्री विभाजन भी कहते है। इस प्रकार का विभाजन मुख्यतः उन पौधों में होता है जिनमें जीवन चक्र मुख्यतः अगुणित(haploid-n) होता है तथा द्विगुणित अवस्था (diploid-2n) बहुत काम समय के लिए होती है उदाहरण -थैलोफाइटा (यूलोथ्रिक्स)।
- इस पौधों में दो युग्मकों के संयोजन द्वारा युग्मनज (Zygote) बनता है। इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित बीजाणु बनते हैं जिनसे नए अगुणित(n) पौधों का जन्म होता है।
युग्मकी (Gametic)
- इसे समापन (Terminal)अर्द्धसूत्री विभाजन भी कहते है।इस प्रकार का विभाजन जंतुओं में तथा कुछ पौधों (कुछ शैवाल) में होता है। इसमें मुख्या शरीर द्विगुणित(diploid-2n) होता है और अर्द्धसूत्री विभाजन युग्मक बनते समय होता है।
स्पोरिक (Sporic)
- इसे मध्यस्थित (Intermediate) अर्द्धसूत्री विभाजन भी कहते है। इस प्रकार का अर्द्धसूत्री विभाजन उच्च वर्ग के पौधों तथा कुछ थैलोफाइटा में भी होता है।
- युग्मनज से बीजाणु -उदभित (Sporophyte) बनता है जिसमें पहले बीजाणु मातृ कोशिकाएं(Spore Mother Cell) बनते हैं उनमें अर्द्धसूत्री विभाजन से एक ही प्रकार के अथवा दो प्रकार के बीजाणु बनते हैं।
- बीजाणुओं से अंकुरण के द्वारा Gametophyte बन जाता है जिस पर युग्मक बनते हैं। उदाहरण -मॉस ,फर्न ,सरसों आदि।
अर्द्धसूत्री विभाजन का महत्व(Significance of Meiosis)
अर्द्धसूत्री विभाजन के निम्नलिखित महत्त्व होते हैं -
- इसके फलस्वरूप बनी सन्तति जनन कोशिकाएँ(Germplasm cells) में गुणसूत्रों की संख्या कायिक = द्विगुणित (Vegetative = diploid) संख्या की आधी रह जाती है।
- यह लैंगिक जनन के लिए अत्यंत आवश्यक है ,क्योंकि प्रजनन मादा युग्मक (Female Gamete) और एक नर युग्मक (Male Gamete) संयुग्मन से युग्मनज(Zygote) बनता है, इसमें गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित(2n) हो जाती है।
- युग्मनज नए शरीर की रचना करता है। इस प्रकार प्रत्येक जाति के संख्या निश्चित बनी रहती है।
- प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) की Diplotene अवस्था में विनिमय (Crossing Over) होता है ,जिसके कारण चारों जनन कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या तो आधी रहती है ,परन्तु इनकी किस्मों में अंतर आ जाता है और इसके फलस्वरूप नए संयोग (New Combinations) का निर्माण होता है जिनसे प्रजातियों में विभिन्नताएं आती है। यह ही विकास का आधार है।
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