जीवाणु में पोषण(Nutrition in Bacteria) | HIndi


 जीवाणु में पोषण(Nutrition in Bacteria)


जीवाणु में पोषण(Nutrition in Bacteria) | HIndi
पोषण के आधार पर जीवाणु दो प्रकार के होते हैं-
  • परपोषी (Heterotrophic)
  • स्वपोषित (Autotrophic)

परपोषी (Heterotrophic)

अधिकतर जीवाणुओं में पर्णहरिम(Chlorophyll) नहीं पाया जाता है अतः यह पौधों और जंतुओं से भोजन लेते हैं। इस आधार पर इन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है-

1. परजीवी(Parasitic)- यह जीवाणु भोजन की आवश्यकता के लिए मनुष्य तथा अन्य जीवों पर परजीवी के रूप में रहते हैं। यह मनुष्यों में टाइफाइड, टिटनेस, निमोनिया ,तपेदिक जैसे रोग फैलाते हैं। 

2. मृतोपजीवी(Saprophytic)- यह जीवाणु अमृत कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त कर लेते हैं जैसे सड़े गले पदार्थ, चमड़ा ,खाद्य पदार्थ ,अचार, रोटी ,मुरब्बा इत्यादि।

3. सहजीवी(Symbiotic)- कुछ जीवाणु दूसरे पौधों वह जंतुओं के साथ रहते हैं और एक दूसरे को लाभ पहुंचाते हैं इसे सहजीवन (Symbiosis) कहते हैं और इस प्रकार से रहने वाले दोनों जीवो को सहजीवी (Symbiotic)कहते हैं। जैसे राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम (Rhizobium leguminosarum) जीवाणु वायुमंडल की नाइट्रोजन का यौगिकीकरण(Fixation) करते हैं जो पौधों में काम आती है और बदले में पौधे जीवाणुओं को कार्बोहाइड्रेट देते हैं।


स्वपोषित (Autotrophic)

कुछ जीवाणु स्वपोषित भी होते हैं क्योंकि यह कार्बन डाइऑक्साइड व अकार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-

1. प्रकाश-संश्लेषी या प्रकाश- स्वपोषी (Photosynthetic or Photoautotrophic)कुछ Bacteria में Chlorophyll जैसी संरचनाएं होती है। बैंगनी तथा लाल जीवाणुओं में बैक्टीरिओपरप्यूरिन (Bacteriopurpurin) तथा बैक्टीरियो क्लोरोफिल (Bacterio Chlorophyll) होता है जिससे यह प्रकाश संश्लेषण करते हैं, जैसे क्रोमेटियम (Chromatium)। हरे Bacteria में क्लोरोबियम क्लोरोफिल (Chlorobium Chlorophyll) होता है जिससे यह प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया करते हैं, जैसे क्लोरोबियम(Chlorobium) । इस क्रिया में oxygen का विमोचन नहीं होता है। इस प्रकार के प्रकाश-संश्लेषण को Anoxygenic- without Producing oxygen कहते हैं।


2. रसायन-स्वपोषित या रसायन-संश्लेषी जीवाणु(Chemoautotrophic or Chemosyntheyic Bacteria) - ये जीवाणु कुछ अकार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करते हैं। इसके फलस्वरूप निकली ऊर्जा का उपयोग भोजन केनिर्माण में करते हैं। इनमें निम्नलिखित जीवाणु हैं -


नाइट्रीकारी जीवाणु (Nitrifying Bacteria) -ये बैक्टीरिया अमोनिया को नाइट्राइट में बदलते हैं ,जैसे नाइट्रोसोमोनास तथा नाइट्रोकोकस। नाइट्रोबैक्टर जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदलते हैं। 
2NH+ 3O2 ⟶ 2NO2¯ +  2H⁺  + 2H2O  + Energy
2NO2¯  + O2  ⟶  2NO3¯ +  Energy 



• लौह जीवाणु (Iron Bacteria)ये जीवाणु ऐसे जल में रहते हैं जिसमें लोहे के यौगिक उपस्थित होते हैं। यह फैरस यौगिकों को फैरिक यौगकों में बदल देते हैं, जैसे लैप्टोट्रिक्स आर्की। 

4FeCOO+ 6H2⟶ 4Fe(OH)+ 4CO+ Energy

 

• हाइड्रोजन जीवाणु (Hydrogen Bacteria)ये जीवाणु मृदा को हाइड्रोजन को मेथेन एवं जल में बदलते हैं ,जैसे बेसिलस पेंटोट्रोफस। मेथेन जिसे Swamp Gas भी कहते हैं ,अनॉक्सी वातावरण में पृथ्वी ,दलदल ,और यहाँ तक कि कुछ मनुष्यों की आंत में भी बनता है। 

4H2   +  CO2  ⟶  CH+  2H2O   +  Energy 



• गन्धक जीवाणु (Sulphur Bacteria)ये जीवाणु हाइड्रोजन सल्फाइड को जल व  गंधक में बदल देते हैं। गन्धक कोशिकाद्रव्य में संगृहीत होती जाती है,जैसे बेजियाटोआ। 
2H2S    +   CO2   ⟶  2S  +   2H2O   +  Energy 




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