यकृत कृमि–फैशिओला (LIVER FLUKE-FASCIOLA): वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन
फैशिओला जिसे यकृत कृमि भी कहते हैं मनुष्यों तथा कुछ जंतुओं जैसे भेड़ ,बकरी इत्यादि के जिगर (लिवर) में पाया जाता है। इसका शरीर चपटा होता है। इससे जुड़े अन्य तथ्यों के बारे में हम नीचे जानेंगे।
वर्गीकरण (Classification)
जगत (Kingdom) - जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch) - यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division) - बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision) - प्रोटोस्टोमिया (Protostomia)
खण्ड (Section) - ऐसीलोमैटा (Acoelomata)
संघ (Phylum) - प्लैटीहेल्मिन्थीज Platyhelminthes)
वर्ग (Class) - ट्रिमैटोडा (Trematoda)
उपवर्ग (Subclass) - डाइजीनिया (Digenea)
गण (Order) - एकाइनोस्टोमैटिडा (Echinostomatida)
शाखा (Branch) - यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division) - बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision) - प्रोटोस्टोमिया (Protostomia)
खण्ड (Section) - ऐसीलोमैटा (Acoelomata)
संघ (Phylum) - प्लैटीहेल्मिन्थीज Platyhelminthes)
वर्ग (Class) - ट्रिमैटोडा (Trematoda)
उपवर्ग (Subclass) - डाइजीनिया (Digenea)
गण (Order) - एकाइनोस्टोमैटिडा (Echinostomatida)
श्रेणी (Genus) - फैशिओला (Fasciola)
लक्षण (Characters)
फैशिओला से सम्बंधित तथ्य तथा उसके लक्षणों का वर्णन इस प्रकार हैं -
2. यह 2.5 से 6 सेमी तक लम्बे और गहरे रंग के चपटे आकार के होते हैं। इनका शरीर पत्ती-जैसा कोमल होता है जिसके अगले छोर पर एक छोटा-सा शीर्ष पिण्डक (head lobe) होता है। पिण्डक के शिखर पर, एक प्यालेनुमा मांसल मुख चूषक (oral st sucker) द्वारा घिरा, मुख। कुछ पीछे, अधरतल पर, मध्य रेखा में, एक बड़ा अधर चूषक या ऐसीटेबुलम (ventral sucker or acetabulum)। दोनों चूषक कृमि को पोषद (host) की पित्त नलियों की दीवार से चिपकने में सहायता करते हैं।
3. अधर चूषक से ठीक आगे जनन छिद्र होता है तथा इनके शरीर के पश्च छोर पर उत्सर्जन छिद्र उपस्थित रहता है।
4. इनके पाचन तन्त्र में मुखद्वार होता है जो छोटी सी मांसल ग्रसनी (pharynx), ग्रासनली तथा शाखान्वित अन्धनालों या सीका (caeca) में विभक्त आँतें होती है।
5. इनके शरीर में विशिष्ट परिसंचरण एवं श्वसन तन्त्रों का अभाव पता है।
6. इनके शरीर में उत्सर्जन पूर्ण शरीर में छितरी सूक्ष्म शिखा कोशिकाओं (flame cells) तथा इनसे सम्बन्धित छोटी-बड़ी उत्सर्जन नलिकाओं द्वारा होता है।
7. इनमें तन्त्रिका तन्त्र उपस्थित रहता है परन्तु संवेदांग अनुपस्थित होते हैं।
6. इनके शरीर में उत्सर्जन पूर्ण शरीर में छितरी सूक्ष्म शिखा कोशिकाओं (flame cells) तथा इनसे सम्बन्धित छोटी-बड़ी उत्सर्जन नलिकाओं द्वारा होता है।
7. इनमें तन्त्रिका तन्त्र उपस्थित रहता है परन्तु संवेदांग अनुपस्थित होते हैं।
8. इनमें जनन तन्त्र द्विलिंगी होता है। इनके शरीर के मध्य भाग में, दो अत्यधिक शाखान्वित वृषण (testes) तथा इनके आगे इसी प्रकार. शाखान्वित छोटा अण्डाशय (ovary) होते हैं। शरीर के पार्श्वों में अनेक छोटी-छोटी पीत या वाइटेलाइन (vitelline) ग्रन्थियाँ होती है तथा जननवाहिनियाँ बहुत विकसित होती हैं। परनिषेचन (cross-fertilization) के निमित्त एक शिश्न (penis) बनता है।
9. इनका जीवन-वृत्त बहुत जटिल व द्विपोषदीय (digenetic) होता है। इनका द्वितीयक पोषद घोंघा (snail) होता है। जीवन-वृत्त में अण्डे से मिरैसिडियम (miracidium) लार्वा बनता है जो घोंघे के लिए संक्रामक होता है। घोंघे में यह स्पोरोसिस्ट (sporocyst) लार्वा में बदलता है। स्पोरोसिस्ट में रीडिया (redia) लार्वी, फिर रीडिया में सरकेरिया (cercaria) लार्वी बनती हैं। सरकेरी घोंघे के शरीर से बाहर जल में आकर परिपुटन (encystment) करती हैं और परिकोष्ठित सरकेरी ही प्राथमिक पोषद के लिए संक्रामक होती हैं।
यकृतकृमि–फैशिओला मनुष्य के शरीर में संक्रमित मांस के खाने के द्वारा पहुंचता है। इसीलिए मांस को खाने से पहले अच्छी तरह से पका लेना चाहिए ताकि यदि उसमें कोई संक्रमण है तो वह खत्म हो जाए।अधपका मीट कभी नहीं खाना चाहिए तथा संक्रमण से बचने के लिए साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
9. इनका जीवन-वृत्त बहुत जटिल व द्विपोषदीय (digenetic) होता है। इनका द्वितीयक पोषद घोंघा (snail) होता है। जीवन-वृत्त में अण्डे से मिरैसिडियम (miracidium) लार्वा बनता है जो घोंघे के लिए संक्रामक होता है। घोंघे में यह स्पोरोसिस्ट (sporocyst) लार्वा में बदलता है। स्पोरोसिस्ट में रीडिया (redia) लार्वी, फिर रीडिया में सरकेरिया (cercaria) लार्वी बनती हैं। सरकेरी घोंघे के शरीर से बाहर जल में आकर परिपुटन (encystment) करती हैं और परिकोष्ठित सरकेरी ही प्राथमिक पोषद के लिए संक्रामक होती हैं।
यकृतकृमि–फैशिओला मनुष्य के शरीर में संक्रमित मांस के खाने के द्वारा पहुंचता है। इसीलिए मांस को खाने से पहले अच्छी तरह से पका लेना चाहिए ताकि यदि उसमें कोई संक्रमण है तो वह खत्म हो जाए।अधपका मीट कभी नहीं खाना चाहिए तथा संक्रमण से बचने के लिए साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
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