तापमापी (Thermometer) की परिभाषा, तापमापी के प्रकार (Types of Thermometer)
तापमापी (Thermometer) की परिभाषा
तापमापी या थर्मामीटर वह यंत्र होता हैं जिसके द्वारा हम किसी वस्तु का तापमान निकालते हैं और यह जान सकते हैं कि एक सामान ताप की दिखने वाली वस्तुओं के तापमान में कितना अंतर हैं। थर्मामीटर का प्रयोग डॉक्टर द्वारा मनुष्यों के शरीर का तापमान पता करने के लिए भी किया जाता हैं।
ताप को मापने के लिए विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है। नीचे हम कुछ थर्मामीटर के बारे में जानेंगे-
- पारे का तापमापी (Mercury Thermometer)
- ज्वरमापी (Clinical Thermometer)
पारे का तापमापी (Mercury Thermometer)
पारे को गर्म करने पर ताप के साथ-साथ उसका आयतन, एक समान रूप से बढ़ता है। इसी गुण को ताप नापने के लिये उपयोग करके पारे का तापमापी बनाया गया है।
पारे का तापमापी / थर्मामीटर बनाने की विधि - पारे का तापमापी बनाने के लिये काँच की
पारे को गर्म करने पर ताप के साथ-साथ उसका आयतन, एक समान रूप से बढ़ता है। इसी गुण को ताप नापने के लिये उपयोग करके पारे का तापमापी बनाया गया है।
पारे का तापमापी / थर्मामीटर बनाने की विधि - पारे का तापमापी बनाने के लिये काँच की
एक समान परिच्छेद वाली मोटी दीवार की एक केशनली लेते हैं। इसके एक सिरे पर बारीक दीवार का एक बल्ब फूंक कर बना लेते हैं तथा दूसरे सिरे पर कीप लगा देते हैं। कीप में थोड़ा सा शुष्क व शुद्ध पारा डाल देते हैं। अब बल्ब को हल्का सा गर्म करते हैं। इससे अन्दर की वायु फैलती है और पारे को बुलबुले देती हुई बाहर निकल जाती है। अब बल्ब को ठण्डा होने देते हैं जिससे कि अन्दर की वायु सिकुड़ती है तथा कीप से कुछ पारा बल्ब में आ जाता है। इस क्रिया को कई बार दोहराकर बल्ब को पारे से पूरा भर लेते हैं। फूंकनी की लौ द्वारा नली का ऊपरी सिरा बन्द कर देते हैं। अब केशनली के बल्ब को बर्फ के चूरे में डुबो देते हैं। जब पारे का तल स्थिर हो जाता है तो इसकी सीध में नली पर चिन्ह लगा देते हैं। तत्पश्चात् केशनली के बल्ब को उबलते हुये शुद्ध जल में डुबो देते हैं और पारे की स्थिति को नली पर चिन्हित कर देते हैं।
अन्त में जिस प्रकार के पैमाने वाला तापमापी बनाना होता है, उसी के अनुसार निश्चित बिन्दुओं के आंकिक मान लिखकर उनके बीच की दूरी को समान भागों में बाँट देते हैं।
पारे के तापमापी की सीमा : पारा 39°C पर जम जाता है तथा साधारण दाब पर 357°C पर उबलने लगता है। अतः पारे के तापमापी से इनके बीच के ही ताप नापे जा सकते हैं। पारे के ऊपर केशनली में नाइट्रोजन अथवा आरगन गैस भरने पर पारे का क्वथनांक (boiling point) बढ़ जाता है तथा इससे 450°C तक ताप नापा जा सकता है। परन्तु इस तापमापी से एक बार ऊँचा ताप नापने के बाद बहुत समय तक कोई नीचा ताप शुद्धता से नहीं नापा जा सकता क्योंकि काँच बहुत समय तक सुकड़ता रहता है।
तापमापी में पारा भरने के लाभ
ज्वरमापी (Clinical Thermometer)
यह साधारण पारे के तापमापी का एक विशेष रूप है जो कि डाक्टरों द्वारा मनुष्य के शरीर का ताप देखने के लिये काम में लाया जाता है। इसमें तीन विशेषतायें होती हैं :
अन्त में जिस प्रकार के पैमाने वाला तापमापी बनाना होता है, उसी के अनुसार निश्चित बिन्दुओं के आंकिक मान लिखकर उनके बीच की दूरी को समान भागों में बाँट देते हैं।
पारे के तापमापी की सीमा : पारा 39°C पर जम जाता है तथा साधारण दाब पर 357°C पर उबलने लगता है। अतः पारे के तापमापी से इनके बीच के ही ताप नापे जा सकते हैं। पारे के ऊपर केशनली में नाइट्रोजन अथवा आरगन गैस भरने पर पारे का क्वथनांक (boiling point) बढ़ जाता है तथा इससे 450°C तक ताप नापा जा सकता है। परन्तु इस तापमापी से एक बार ऊँचा ताप नापने के बाद बहुत समय तक कोई नीचा ताप शुद्धता से नहीं नापा जा सकता क्योंकि काँच बहुत समय तक सुकड़ता रहता है।
तापमापी में पारा भरने के लाभ
- पारा चमकीला तथा अपारदर्शी (opaque) होता है, अतः केशनली में आसानी से देखा जा सकता है।
- यह सरलता से शुद्ध अवस्था में मिल जाता है।
- इसका आयतन भिन्न-भिन्न तापों पर लगभग एकसमान रूप से बढ़ता है।
- इसका वाष्प-दाब ( vapour pressure) बहुत कम होता है। अतः पारे के ऊपर खाली जगह में वाष्प होने से तापमापी की माप पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
- पारा ऊष्मा का सुचालक है (यद्यपि काँच सुचालक नहीं है)। अतः यदि तापमापी का बल्ब पतले काँच का बना हो, तो तापमापी को किसी वस्तु के सम्पर्क में लाने पर पारा शीघ्र ही उस वस्तु का ताप ग्रहण कर लेता है।
- पारे का ताप बढ़ाने के लिये बहुत थोड़ी ऊष्मा की आवश्यकता होती है (इसकी विशिष्ट ऊष्मा बहुत कम है) । अतः यह ताप नापने के लिए जिस वस्तु के सम्पर्क में लाया जाता है उससे बहुत कम ऊष्मा लेता है। इस प्रकार उस वस्तु के ताप में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता।
- तापमापी में उतरते समय पारा नली की दीवारों से चिपका नहीं रहता। पारा 39°C पर जम जाता है तथा 357°C पर उबलने लगता है। अतः पारे के तापमापी से इनके बीच के ताप नापे जा सकते हैं।
ज्वरमापी (Clinical Thermometer)
यह साधारण पारे के तापमापी का एक विशेष रूप है जो कि डाक्टरों द्वारा मनुष्य के शरीर का ताप देखने के लिये काम में लाया जाता है। इसमें तीन विशेषतायें होती हैं :
- इसका आकार छोटा होता है। इसमें केवल 95°F से 110°F तक चिन्ह बने होते हैं क्योंकि 95°F से नीचे तथा 110°F से ऊपर मनुष्य का जीवन सम्भव नहीं है।
- इसमें बल्ब के कुछ ऊपर एक स्थान पर केशनली के छेद को कुछ मोड़कर संकीर्णित (constrict) कर देते हैं। तापमापी को मनुष्य के मुँह या बगल में लगाने पर पारा इस मोड़ में से होकर केशनली में ऊपर चढ़ जाता है। तापमापी को शरीर से हटा लेने पर मोड़ C के नीचे का पारा तो सिकुड़कर बल्ब में उतर जाता है परन्तु ऊपर वाला पारा मोड़ के कारण नीचे न उतर कर अपने स्थान पर ही बना रहता है। अतः डाक्टर उसे कभी भी पढ़ सकता है। तापमापी को झटका देने पर पारा नीचे उतर आता है।
- इस तापमापी की केशनली का छेद अत्यन्त बारीक होता है। अतः पारे की स्थिति को आसानी से पढ़ने के लिये तापमापी की नली की एक तरफ की दीवार को लेन्स जैसा आकार दे देते हैं। इससे पारे का धागा बड़ा होकर दिखाई देने लगता है। स्वस्थ मनुष्य के शरीर का ताप 98.4°F होता है। इसे तापमापी की नली पर तीर बनाकर प्रदर्शित किया जाता है।
इन दोनों थर्मामीटर का उपयोग अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग प्रकार के तापमान को मापने के लिए किया जाता है। इनके कार्य करने की प्रक्रिया तथा इनकी विशेषताएं अलग-अलग होती हैं।
No comments:
Post a Comment