जब किसी ठोस धातु या पदार्थ को ऊष्मा दी जाती है जिससे उसके आकर में वृद्धि हो तो यह वृद्धि उष्मीय प्रसार कहलाती है। ठोस तथा द्रव के ऊष्मीय प्रसार के बारे में हम पहले पढ़ चुके हैं। आज हम जानेंगे कि इन ऊष्मीय प्रसार का हमारे दैनिक जीवन में क्या महत्व होता है।
उष्मीय प्रसार के कई उदाहरण हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया हैं -
- जब भी रेल की पटरियाँ बिछाई जाती है तो इसे बिछाते समय इसके बीच-बीच में कुछ खाली जगह छोड़ दी जाती है जिससे कि गर्मियों में पटरियों को बढ़ने के लिये स्थान मिल जाये। यदि खाली जगह न छोड़ें तो पटरियाँ बढ़ने पर टेढ़ी हो जायेंगी जिससे रेलगाड़ी उलट सकती है।
- लोहे का पुल बनाते समय गर्डरों को केवल एक सिरे पर कसते हैं। उनके दूसरे सिरों को ठोस बेलनों पर रख देते हैं जिससे कि वे गर्मी में स्वतन्त्रतापूर्वक बढ़ सकें ।
- अंगीठी में लगी लोहे की छड़ों के सिरों को स्वतन्त्र छोड़ देते हैं जिससे कि वे गर्मी पाने पर बढ़ सकें, वरना वे टेढ़ी हो जायेंगी ।
- टेलीफोन के तारों को ढीला इसलिये रखते हैं जिससे कि वे जाड़ों में ठण्ड से सिकुड़कर टूट न जायें।
- लकड़ी के पहिये पर लोहे की हाल चढ़ाने के लिये हाल को पहिये से कुछ छोटा बनाते हैं। गर्म करने पर यह हाल कुछ बढ़ जाती है तथा पहिये पर चढ़ा दी जाती है। फिर उस पर ठण्डा जल डालते हैं जिससे वह सिकुड़ कर पहिये कोमजबूती से जकड़ लेती है। तोप की नली भी इसी प्रकार कई छोटी-छोटी नलियों को एक-दूसरे में फंसाकर बनाई जाती है। इस प्रकार बनी नली तोप के भीतर पाउडर के जलने पर उत्पन्न उच्च दाब को सहन कर लेती है।
- इन्जन के बॉयलर की लोहे की प्लेटों को आपस में जोड़ने के लिये उनमें सूराख करके लाल-गर्म रिवट (rivets) लगाते हैं। ठण्डा होने पर रिवट सिकुड़ते हैं जिससे प्लेटें एक दूसरे से जकड़ जाती हैं तथा उनमें से भाप बाहर नहीं निकल सकती।
- काँच की बोतल में फँसी कॉर्क को निकालने के लिये बोतल की गर्दन को बाहर से कुछ गर्म कर देते हैं ताप बढ़ने से बोतल की गर्दन का व्यास कुछ बढ़ जाता है तथा कॉर्क ढीली होकर निकल आती है। चूँकि कॉर्क की चालकता काँच की अपेक्षा बहुत कम है, अत: कॉर्क का ताप उतना शीघ्र नहीं बढ़ पाता जितना कि बोतल का बढ़ता है।
- मोटे काँच के गिलास में खौलता जल डालने पर गिलास चटख जाता है। इसका कारण यह है कि गर्म जा डालने पर गिलास की दीवार की अन्दर की सतह तुरन्त गर्म होकर बढ़ जाती है। परन्तु काँच के कुचालक होने के कारण यह ऊष्मा दीवार की 'मोटाई' को शीघ्र पार करके बाहर की सतह पर नहीं पहुँच पाती। अतः बाहर की सतह तुरन्त नहीं बढ़ पाती। इसी बीच अन्दर की बढ़ती हुई सतह बाहर की सतह पर दाब डालती है और गिलास चटख जाता है। इसीलिये हमें 'पतले' काँच के गिलास खरीदने चाहिए। यदि गिलास में चम्मच डाल दें तो गिलास नहीं चटखेगा क्योंकि काफी ऊष्मा चम्मच ही ले लेगा।
- प्लेटिनम और काँच के प्रसार-गुणांक लगभग बराबर हैं। अतः यदि कभी काँच में तार डालना हो तो काँच को गलाकर उसमें को प्लेटिनम का ही तार डालते हैं। इसका यह लाभ है कि ठंडा होने पर प्लेटिनम काँच के ही बराबर सिकुड़ेगा जिससे तार ढीला नहीं पड़ेगा। इसके अतिरिक्त यदि कभी काँच गर्म होगा तब प्लेटिनम के तार की मोटाई में भी केवल उतनी ही वृद्धि होगी जितनी कि काँच में होगी। अत: काँच चटखेगा नहीं।
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