ऊष्मीय-विकिरण के मुख्य गुण वहीं होते हें जो कि प्रकाश के मुख्य गुण होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैं :
- ऊष्मीय-विकिरण निर्वात (vacuum) में से होकर चल सकते हैं। सूर्य से तथा बल्ब के जलते हुये तन्तु से ऊष्मीय- विकिरण निर्वात् में से होकर आते हैं।
- ऊष्मीय- विकिरण प्रकाश के समान सीधी रेखाओं में चलते हैं। इनके मार्ग में किसी वस्तु के आने पर उसकी छाया (shadow) बन जाती है।
- ऊष्मीय-विकिरण प्रकाश की चाल से चलते हैं। यही कारण है कि सूर्य ग्रहण के समय प्रकाश तथा ऊष्मा दोनों एकसाथ पृथ्वी पर आने बन्द हो जाते हैं।
- ऊष्मीय-विकिरण का परावर्तन प्रकाश के परावर्तन के नियमों के अनुसार होता है। यदि किसी तप्त वस्तु को अवतल दर्पण के फोकस पर रख दे तो ऊष्मीय- विकिरण दर्पण से परावर्तित होकर समान्तर किरण पुँज के रूप में फैल जाते हैं। यही कारण है कि कमरों को गर्म करने वाले विद्युत हीटर में तापक- तार की कुण्डली को एक अवतल दर्पण के फोकस पर रखते हैं।
- ऊष्मीय-विकिरण का अपवर्तन प्रकाश के अपवर्तन के नियमों के अनुसार होता है। इसीलिए जब एक काले कागज को किसी उत्तल लेन्स के फोकस पर रखकर लेन्स पर सूर्य की किरणें पड़ने देते हैं तो कागज जल उठता है।
- ऊष्मीय-विकिरण जिस माध्यम से होकर जाते हैं उसका ताप नहीं बदलता है। ऊपर किये गए प्रयोग में कागज तो जल जाता है लेकिन खुद लेंस गर्म नहीं होता है।
- ऊष्मीय-विकिरण का प्रकाश के समान प्रिज्म द्वारा स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जा सकता है।
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