विकिरण ऊर्जा दैनिक जीवन में हमारे ऊपर कई प्रभाव डालती है। इन के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
- गर्मियों में सफेद तथा जाड़ों में रंगीन कपड़े सुखदायी होते हैं : सफेद कपड़े ऊष्मा के बुरे अवशोषक हैं। वे अपने ऊपर पड़ने वाली सूर्य की ऊष्मा के बहुत कम भाग का अवशोषण करते हैं और अधिकांश भाग परावर्तन द्वारा वापिस कर देते हैं। इसलिए गर्मियों में सफेद कपड़े सुखद व ठण्डे प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, रंगीन कपड़े सूर्य की ऊष्मा का अधिकांश भाग अवशोषित करके शरीर को गर्म रखते हैं, अतः जाड़ों में सुखद लगते हैं। इसी प्रकार सफेद पुते कमरे गर्मियों में ठण्डे रहते हैं तथा रंगीन डिस्टेम्पर वाले जाड़ों में गर्म रहते हैं।गर्मियों में काले कपड़े की अपेक्षा सफेद कपड़े की छतरी अधिक अच्छी रहती है। जब काले कपड़े की छतरी पर धूप पड़ती है तो उसका अवशोषण हो जाता है। ताप बढ़ जाने पर अब छतरी स्वंय ऊष्मा विकिरण करने लगती है। इसके विपरीत, सफेद कपड़ा प्रयुक्त करने पर अधिकाँश ऊष्मा का परावर्तन हो जाने से उसके नीचे गर्मी नहीं लगती।
- खाना पकाने वाले बर्तनों की तली काली तथा खुरदरी रखी जाती है : इसका कारण यह है कि काली व खुरदरी सतह अंगीठी से अधिक ऊष्मा अवशोषित करके खाना शीघ्र पका देती है।
- चाय की केतली की बाहरी सतह चमकदार बनाई जाती है: चमकदार सतह न तो बाहर से ऊष्मा का अवशोषण करती है न भीतर की ऊष्मा बाहर जाने देती है। अत: चाय देर तक गर्म बनी रहती है। प्रयोगशाला में ऊष्मामापी की बाहरी सतह को तथा इन्जन में भाप की नलियों को चमकदार बनाकर विकिरण द्वारा होने वाला ऊष्मा-ह्रास घटाया जाता है। इसी तरह पॉलिश किये हुये जूते धूप में शीघ्र गर्म नहीं होते, क्योंकि वे अपने ऊपर गिरने वाली ऊष्मा का अधिकांश भाग परावर्तित कर देते हैं ।
- रेगिस्तान दिन में बहुत गर्म तथा रात में बहुत ठण्डे हो जाते हैं: रेत ऊष्मा का अच्छा अवशोषक होता है, अतः दिन में सूर्य में की ऊष्मा को अवशोषित करके गर्म हो जाता है। रात में वह अपनी ऊष्मा को विकिरण द्वारा खोकर ठण्डा हो जाता है। इसलिए रेगिस्तान में दिन बहुत गर्म तथा राते बहुत ठंडी होती हैं।
- बादलों वाली रात, स्वच्छ आकाश वाली रात की अपेक्षा गर्म होती है: दिन में सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा रात को विकिरण द्वारा ठण्डी होती है। जब आकाश स्वच्छ होता है तो ऊष्मा विकिरण द्वारा पृथ्वी से आकाश की ओर चली जाती है। परन्तु जब आकाश में बादल छाये रहते हैं तो ऊष्मा के विकिरण बादलों से टकराते हैं। परन्तु बादल ऊष्मा के बुरे अवशोषक हैं। अतः ऊष्मा के विकिरण परावर्तित होकर पृथ्वी की ओर वापिस आ जाते हैं, जिससे पृथ्वी गर्म ही बनी रहती है।
- बहुत ठण्ड होने पर जन्तु अपने शरीर को समेट कर गोलाकार बना लेते हैं : दिये हुये आयतन के लिये गोले का क्षेत्रफल न्यूनतम होता है, अतः जन्तुओं द्वारा शरीर को समेट कर गोलाकार बना लेने पर शरीर का क्षेत्रफल न्यूनतम हो जाता है और ऊष्मा-हानि की दर घट जाती है जिससे उन्हें ठंड नहीं लगती है।
- जाड़ों में खाना अधिक खाया जाता है : जाड़ों में वायुमण्डलीय ताप कम हो जाता है, परन्तु शरीर का तापं उतना ही रहता है। अतः शरीर द्वारा अधिक ऊष्मा की हानि होती है। उसकी पूर्ति के लिये खाना (जो कि ऊष्मा का स्रोत है) अधिक खाया जाता है।
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