ऊष्मीय विकिरण की परिभाषा
हम अपने आसपास कई प्रकार की वस्तुओं को देखते हैं जोकि अपने ताप के कारण ऊर्जा का लगातार उत्सर्जन करती रहती है। इस ऊर्जा को विकिरण-ऊर्जा अथवा 'ऊष्मीय- विकिरण' कहते हैं। यह ऊर्जा वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में प्रकाश की चाल से चलती है तथा इन तरंगों को संरचरण के लिये किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। जब ये तरंगें किसी अन्य वस्तु पर गिरती हैं तो अवशोषित हो जाती हैं और उस वस्तु का ताप बढ़ जाता है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है, फिर भी सूर्य की ऊष्मा निर्वात आकाश में चलकर हमारे पास आ जाती है। इससे सिद्ध होता है कि सूर्य से पृथ्वी पर ऊष्मा विकिरण-ऊर्जा के ही रूप में आती है ।
कोई भी वस्तु ऊर्जा का केवल उत्सर्जन ही नहीं करती बल्कि अपने आसपास के वातावरण में स्थित अन्य वस्तुओं से उत्सर्जित ऊर्जा का अवशोषण भी करती है। यदि किसी वस्तु का ताप समीपवर्ती वातावरण के ताप से ऊँचा है तो उसकी ऊर्जा-उत्सर्जन की दर ऊर्जा-अवशोषण की दर से अधिक होती है जिससे कि उसका ताप गिरता जाता है। जब उसका ताप वातावरण के ताप के बराबर हो जाता है तो ऊर्जा के उत्सर्जन व अवशोषण की दरें बराबर हो जाती है।
किसी वस्तु से प्रति सेकण्ड निकलने वाली ऊष्मीय विकिरण-ऊर्जा उसके ताप पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे वस्तु का ताप बढ़ता है, विकिरण ऊर्जा के निकलने की दर तेजी से बढ़ती जाती है। ताप कम होने पर वस्तु से निकलने वाली ऊर्जा में ऊष्मीय विकिरण अधिक तथा प्रकाश ऊर्जा कम होती है तथा ताप बढ़ने पर ऊष्मीय विकिरण कम तथा प्रकाश ऊर्जा अधिक ऊर्जा हो जाती है।
सूर्य, ऊष्मीय विकिरण एवं प्रकाश दोनों ऊर्जाओं का एक विशाल स्रोत है। साधारण तापों पर वस्तु से केवल अवरक्त (infra-red) विकिरण निकलता है जो आँख से दिखाई नहीं पड़ता। इस विकिरण से केवल गर्मी का अनुभव किया जा सकता है। जैसे-जैसे वस्तु का ताप बढ़ता है, वस्तु क्रमश: लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला से व अन्त में सभी के मिश्रण से श्वेत विकिरण (प्रकाश) निकलने लगता है।
इसे हम इस प्रक्रिया द्वारा समझ सकते हैं कि यदि हम अंधेरे कमरे में लोहे की गेंद को गर्म करें तो ताप के बढ़ते जाने पर गेंद क्रमानुसार निम्न रंगों में चमकती है।
कोई भी वस्तु ऊर्जा का केवल उत्सर्जन ही नहीं करती बल्कि अपने आसपास के वातावरण में स्थित अन्य वस्तुओं से उत्सर्जित ऊर्जा का अवशोषण भी करती है। यदि किसी वस्तु का ताप समीपवर्ती वातावरण के ताप से ऊँचा है तो उसकी ऊर्जा-उत्सर्जन की दर ऊर्जा-अवशोषण की दर से अधिक होती है जिससे कि उसका ताप गिरता जाता है। जब उसका ताप वातावरण के ताप के बराबर हो जाता है तो ऊर्जा के उत्सर्जन व अवशोषण की दरें बराबर हो जाती है।
किसी वस्तु से प्रति सेकण्ड निकलने वाली ऊष्मीय विकिरण-ऊर्जा उसके ताप पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे वस्तु का ताप बढ़ता है, विकिरण ऊर्जा के निकलने की दर तेजी से बढ़ती जाती है। ताप कम होने पर वस्तु से निकलने वाली ऊर्जा में ऊष्मीय विकिरण अधिक तथा प्रकाश ऊर्जा कम होती है तथा ताप बढ़ने पर ऊष्मीय विकिरण कम तथा प्रकाश ऊर्जा अधिक ऊर्जा हो जाती है।
सूर्य, ऊष्मीय विकिरण एवं प्रकाश दोनों ऊर्जाओं का एक विशाल स्रोत है। साधारण तापों पर वस्तु से केवल अवरक्त (infra-red) विकिरण निकलता है जो आँख से दिखाई नहीं पड़ता। इस विकिरण से केवल गर्मी का अनुभव किया जा सकता है। जैसे-जैसे वस्तु का ताप बढ़ता है, वस्तु क्रमश: लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला से व अन्त में सभी के मिश्रण से श्वेत विकिरण (प्रकाश) निकलने लगता है।
इसे हम इस प्रक्रिया द्वारा समझ सकते हैं कि यदि हम अंधेरे कमरे में लोहे की गेंद को गर्म करें तो ताप के बढ़ते जाने पर गेंद क्रमानुसार निम्न रंगों में चमकती है।
- 500°C पर मंद लाल (dull-red)
- 900° C पर चेरी-लाल (cherry-red)
- 1200° C पर नारंगी-लाल (orange-red)
- 1400°C पर पीली (yellow)
- 1600° C पर श्वेत (white)
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