ग्रेगर जॉन मेन्डल (Gregor Johann Mendel) का परिचय
सन् 1865 में यूरोप के ऑस्ट्रिया (Austria) देश के ब्रून्न (Brunn) नामक शहर में ऑगस्टीनियन (Augustinian) ईसाईयों के पादरी, ग्रेगर जॉन मेन्डल (Gregor Johann Mendel – जीवनकाल 1822-1884), ने वंशागति के मूल नियम बनाकर आधुनिक आनुवंशिकी की नींव डाली थी।इसीलिए मेन्डल को “आनुवंशिकी या आधुनिक आनुवंशिकी का पिता (Father of Genetics For Modern Genetics)" कहते हैं।
वंशागति पर मेन्डल की खोज का वर्णन तथा उनकी परिकल्पनाएँ सन् 1866 में "Annual Proceedings of the Natural History Society of Brunn" में छपीं, परन्तु, लगभग 34 वर्षों तक वैज्ञानिकों ने इनपर ध्यान नहीं दिया। फिर सन् 1900 में जर्मनी में कार्ल कोरेन्स (Carl Correns), हॉलैण्ड में ह्यूगो डी ब्रीज (Hugo de Vries) तथा ऑस्ट्रिया में एरिक वॉन शेरमैक (Eric Von) का इन पर ध्यान गया, अर्थात् इनकी पुनर्खोज हुई।
मेन्डल का संकरण प्रयोग (Hybridization Experiment of Mendel)
अपने से पहले के वैज्ञानिकों के विपरीत, मेन्डल ने अपने संकरण प्रयोगों में पहले एकाकी आनुवंशिक लक्षणों की तुलनात्मक विभिन्नताओं की वंशागति का कई-कई पीढ़ियों तक अध्ययन किया और पूरे प्रयत्न से सही आँकड़े जुटाए। अतः वे वंशागति की विधि पर स्पष्ट निष्कर्ष निकालने और निश्चित परिकल्पनाएँ बनाने में सफल हुए।
उद्यान मटर का चयन (Selection of Garden Pea)
मेन्डल ने अपने आठ वर्षों (1856 से 1864 तक) के संकरण प्रयोगों के लिए उद्यान मटर-पाइसम सैटाइवम (garden pea— Pisum sativum)–को चुना।
उन्होंने मटर के ही पौधों का चयन इनके निम्नलिखित विशेष लक्षणों के कारण किया जो इस प्रकार हैं-
1. मटर फसली (annual) वनस्पति होती है। अतः इसके पौधे की आयु 3 से 4 महीने की ही होती है। और माप में भी मटर के पौधे छोटे होते हैं जिससे कि इन्हें सम्भालना आसान हो जाता है।
2. इसमें फूल द्विलिंगी (bisexual, monoecious or hermaphrodite) होते हैं तथा रचना में ये इस प्रकार बन्द होते हैं कि प्राकृतिक रूप से इनमें केवल स्वपरागण (self pollination or self fertilization) ही हो सकता है; परपरागण (cross pollination) की कोई सम्भावना नहीं होती है।
3. इसकी फलियों में बीजों की संख्या भी काफी होती है तथा इसकी फलियाँ और बीज कम समय में ही पक जाते हैं।
4. स्वपरागण द्वारा ही जनन होते रहने के कारण, मटर के पौधों की किसी भी आबादी में अनेक वंश परम्परागत आनुवंशिक विभिन्नताएँ होती हैं। अतः इनमें आनुवंशिक लक्षणों के स्पष्ट तुलनात्मक दृश्यरूपों को प्रदर्शित करने वाले शुद्ध नस्ली (pure breeding) पौधे काफी मिल जाते हैं।
वंश-परम्परागत लक्षणों का चयन
अपने संकरण प्रयोगों के लिए उद्यान मटर के चयन से ही मेन्डल की दूरदर्शिता एवं वैज्ञानिक प्रतिभा सिद्ध होती है। उन्होंने इन प्रयोगों के लिए मटर के, तुलनात्मक विभिन्नताओ या दृश्यरूपों (contrasting expressions) वाले, निम्नलिखित सात वंश परम्परागत आनुवंशिक लक्षणों का चयन किया। यह लक्षण इस प्रकार हैं-
लक्षण
- फूलों का रंग - बैंगनी, सफेद
- फूलों की स्थिति - अक्षवर्ती, अग्रस्त (terminal)
- तने की लम्बाई - लम्बा, छोटा (= नाटा dwarf)
- कच्ची फली का रंग - हरा, पीला
- पकी हुई फली की आकृति - फूली हुई, बीजों के बीच बीच में दबी हुई
- बीजों की आकृति - गोल, झुर्रीदार
- बीजपत्रों (cotyledons) का रंग - पीला, हरा
मेंडल ने संकरण प्रयोगों को तीन भागों में बांटा था-
- एक संकर संकरण (Monohybrid cross)
- द्वी संकर संकरण (Dihybrid cross)
- त्रिगुण संकरण (Trihybrid cross)
एक संकर संकरण (Monohybrid cross)
एक जैसे लक्षणों के तुलनात्मक दृश्यरूपों की वंशागति के अध्ययन के लिए किए गए प्रयोग को एकगुण संकरण या एक संकर संकरण कहते हैं। इसके अंतर्गत मंडल ने एक नाटे तने वाले पौधे तथा एक लंबे तने वाले पौधों के बीच में cross करवाया।
द्वी संकर संकरण (Dihybrid cross)
एकगुण संकरणों के बाद, मेन्डल ने अपने द्वारा चुने गए सात आनुवंशिक लक्षणों में से दो-दो लक्षणों की एक साथ वंशागति का अध्ययन करने के लिए मटर में द्विगुण संकरण प्रयोग किए ताकि वंशागति में विविध लक्षणों के पारस्परिक सम्बन्धों का विश्लेषण किया जा सके।
उदाहरणार्थ, उन्होंने दो ऐसे शुद्ध नस्ली P पौधों में संकरण किया जिनमें से एक में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पीले बीजपत्रों (cotyledons) वाले गोल (round) बीज (मटर के दाने) बनते थे तथा दूसरे में हरे बीजपत्रों वाले झुर्रीदार (wrinkled) बीज। इसे ही इन्होंने द्वी संकर संकरण कहा।
त्रिगुण संकरण (Trihybrid cross)
मेन्डल ने निष्कर्षों की अधिक पुष्टि के लिए तीन-तीन (या और भी अधिक) आनुवंशिक लक्षणों की एक साथ वंशागति के अध्ययन हेतु संकरण किए। उदाहरणार्थ, उन्होंने एक ऐसे शुद्ध नस्ली पौधे को छाँटा जिसमें तना लम्बा था और पीले बीजपत्रों वाले गोल बीज बनते थे (DDWWGG) और इस पौधे का संकरण उन्होंने एक ऐसे शुद्ध नस्ली पौधे से किया जिसमें तना नाटा था तथा हरे बीजपत्रों वाले झुर्रीदार बीज बनते थे (ddwwgg)।
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