मेण्डल ने मेण्डलवाद प्रस्तुत किया था। इन्होंने सबसे पहले हरी मटर (Pisum sativum) पर कार्य किया था जिससे इन्होंने 7 जोड़ी विपरीत लक्षणों की खोज की थी। इन्हें Genetics का जनक कहा जाता है।
मेण्डल ने आनुवांशिकी के तीन नियमों को प्रतिपादित किया था जो इस प्रकार हैं-
- प्रभावित या प्रबलता का नियम (Law of Dominance)
- पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)
- स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)
प्रभावित या प्रबलता का नियम (Law of Dominance)
इस नियम के अनुसार जब मेण्डल ने एक जोड़ा विपरीत लक्षणों के बीच में cross कराया तो प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी लक्षण ही दिखाई दिए। इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं।
जैसे- माना प्रभावी (dominant) red (RR) का क्रॉस और अप्रभावी (Recessive) सफेद (rr) के साथ कराया तो प्रथम पीढ़ी में प्रभावी (Rr) लक्षण दिखाई देंगे।
इस नियम के अनुसार जब मेण्डल ने एक जोड़ा विपरीत अनुवांशिक लक्षणों के बीच में cross कराया तो प्रथम पीढ़ी में उन्हें प्रभावी लक्षण दिखाई दिया लेकिन प्रथम पीढ़ी में दोनों प्रकार के लक्षण (Rr) उपस्थित थे जो कि self cross के बाद एक दूसरे को बिना दूषित किए हुए अलग हो गए। इसे ही पृथक्करण का नियम कहते हैं।
जैसे - जब प्रभावी (dominant) red (RR) का क्रॉस अप्रभावी (Recessive) सफेद (rr) के साथ कराया तो प्रथम पीढ़ी में प्रभावी (Rr) लक्षण दिखाई देंगे दिए। जब प्रभावी Rr का self cross कराया गया तो अगली पीढ़ी में यह एक दूसरे को बिना दूषित किए हुए पृथक हो गए।
जैसे - जब प्रभावी (dominant) red (RR) का क्रॉस अप्रभावी (Recessive) सफेद (rr) के साथ कराया तो प्रथम पीढ़ी में प्रभावी (Rr) लक्षण दिखाई देंगे दिए। जब प्रभावी Rr का self cross कराया गया तो अगली पीढ़ी में यह एक दूसरे को बिना दूषित किए हुए पृथक हो गए।
मेण्डल का यह नियम Dihybrid cross पर आधारित है। इस नियम के अनुसार जब मेण्डल ने दो जोड़े विपरीत अनुवांशिक लक्षणों के बीच में cross कराया तो प्रथम पीढ़ी में प्रभावी लक्षण दिखाई दिए। यह लक्षण एक दूसरे को बिना दूषित किए हुए पृथक हो गए। अगली पीढ़ी में इनका self cross कराने पर यह एक दूसरे से पूरी तरह से स्वतंत्र हो गए। इसे ही स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम कहते हैं।
जैसे - जब इन्होंने दो शुद्ध नस्ली P पौधों में संकरण किया जिनमें से एक में पीढ़ी-दर पीढ़ी पीले बीजपत्रों (cotyledons) वाले गोल (round) बीज (मटर के दाने) बनते थे तथा दूसरे में हरे बीजपत्रों वाले झुर्रीदार (wrinkled) बीज।
जैसे - जब इन्होंने दो शुद्ध नस्ली P पौधों में संकरण किया जिनमें से एक में पीढ़ी-दर पीढ़ी पीले बीजपत्रों (cotyledons) वाले गोल (round) बीज (मटर के दाने) बनते थे तथा दूसरे में हरे बीजपत्रों वाले झुर्रीदार (wrinkled) बीज।
प्रबलता के नियम द्वारा उन्हें यह पहले से ही पता था कि बीजों की गोल आकृति झुर्रीदार आकृति के लिए प्रबल (dominant) होती है तथा बीजपत्रों का पीला रंग हरे रंग के लिए। अतः जब इन्होंने P पौधे के बीच में cross कराया तो F1 पीढ़ी के सारे पौधों (द्विगुण संकर पौधों - dihybrids) में स्वपरागण द्वारा पीले बीजपत्रों वाले गोल बीज बने।
Read more - मेण्डल के संकरण प्रयोग
उन्होंने इन बीजों को एकत्र किया तथा इन्हें अलग स्थान पर बोकर F2 पीढ़ी के पौधे उगाए। इन पौधों में भी उन्होंने स्वपरागण होने दिया और देखा कि इनमें से 315 पौधों में पीले बीजपत्रों वाले गोल बीज, 108 में हरे बीजपत्रों वाले गोल बीज, 101 में पीले बीजपत्रों वाले झुर्रीदार बीज तथा 32 में हरे बीजपत्रों वाले झुर्रीदार बीज बने। स्पष्ट है कि इन चार प्रकार के पौधों की संख्या में क्रमशः लगभग 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात रहा।
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