हम जानते हैं कि लैंगिक जनन (sexual reproduction) में नर व मादा युग्मक कोशिकाओं (gametes) के संयुग्मन (union) से zygote बनता है। जोकि diploid होता है। इस zygote के भ्रूणीय विकास से एक नई सन्तान का जन्म होता है।
लैंगिक जनन करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं—
(1) द्विलिंगी (hermaphrodite, bisexual or monoecious) जिनमें कि प्रत्येक सदस्य के शरीर में नर व मादा जननांग होते हैं इसके अंतर्गत अधिकांश उच्च कोटि के पौधे और कुछ निम्न कोटि के जीव-जन्तु आते हैं।
गुणसूत्र का प्ररूप अर्थात् कैरियोटाइप (Chromosomal Pattern or Karyotype)
➤ प्रत्येक जाति में गुणसूत्र जोड़ियों में होते हैं अर्थात् एक प्रकार की आकृति, माप एवं रचना के दो समान गुणसूत्र होते हैं। अतः कुल संख्या इनकी द्विगुण (diploid, 2x or 2n) संख्या होती है और आधी, अर्थात् एक सैट की संख्या एकगुण (haploid, x or n) होती है।
अन्य जन्तुओं में लिंग निर्धारण (Sex Determination in other animals)
लैंगिक जनन करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं—
(1) द्विलिंगी (hermaphrodite, bisexual or monoecious) जिनमें कि प्रत्येक सदस्य के शरीर में नर व मादा जननांग होते हैं इसके अंतर्गत अधिकांश उच्च कोटि के पौधे और कुछ निम्न कोटि के जीव-जन्तु आते हैं।
(2) एकलिंगी (unisexual or dioecious) जिनमें कि नर व मादा जननांग अलग-अलग सदस्यों में होते हैं, जैसे कि मनुष्यों में (अधिकांश उच्च जन्तु एवं कुछ पादप)। उच्च जन्तुओं में तो प्रायः नर व मादा सदस्यों की शरीर-रचना एवं कार्यिकी तक में स्पष्ट विभिन्नताएँ होती हैं। इसे लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) कहते हैं।
Read more: मेण्डल के संकरण प्रयोग
सन् 1900 में, मेन्डलवाद की पुनर्खोज के शीघ्र बाद, हैन्किंग, मैक्कलंग, विल्सन (Henking, McClung, Wilson) आदि वैज्ञानिकों ने सन्तानों के लिंग निर्धारण (Sex Determination) के वैज्ञानिक आधार का पता लगाया। मैक्कलंग (1902) ने "लिंग निर्धारण का गुणसूत्रीवाद (Chromosomal Theory of Sex Determination)" प्रस्तुत किया। इसके अनुसार, सन्तानों का लिंग लक्षण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है और अन्य आनुवंशिक लक्षणों की भाँति, मेन्डेलियन नियमों के अनुसार ही वंशागत होता है।
सन् 1900 में, मेन्डलवाद की पुनर्खोज के शीघ्र बाद, हैन्किंग, मैक्कलंग, विल्सन (Henking, McClung, Wilson) आदि वैज्ञानिकों ने सन्तानों के लिंग निर्धारण (Sex Determination) के वैज्ञानिक आधार का पता लगाया। मैक्कलंग (1902) ने "लिंग निर्धारण का गुणसूत्रीवाद (Chromosomal Theory of Sex Determination)" प्रस्तुत किया। इसके अनुसार, सन्तानों का लिंग लक्षण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है और अन्य आनुवंशिक लक्षणों की भाँति, मेन्डेलियन नियमों के अनुसार ही वंशागत होता है।
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गुणसूत्र का प्ररूप अर्थात् कैरियोटाइप (Chromosomal Pattern or Karyotype)
➤ हम यह जानते है कि, गुणसूत्रों की संख्या, उसकी आकृति, माप, रचना एवं विन्यास उसका जातीय लक्षण (specific characters) होते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि किसी भी एक जाति विशेष के अंतर्गत आने वाले सारे सदस्यों में समान गुणसूत्रों का समूह होता है जिसे गुणसूत्र प्ररूप कहते हैं।
➤ प्रत्येक जाति में गुणसूत्र जोड़ियों में होते हैं अर्थात् एक प्रकार की आकृति, माप एवं रचना के दो समान गुणसूत्र होते हैं। अतः कुल संख्या इनकी द्विगुण (diploid, 2x or 2n) संख्या होती है और आधी, अर्थात् एक सैट की संख्या एकगुण (haploid, x or n) होती है।
➤ प्रत्येक जोड़ी के दो समान गुणसूत्रों को समजात गुणसूत्र (homologous chromosomes) कहते हैं। एकलिंगी जीवों में प्रत्येक सन्तान को प्रत्येक जोड़ी का एक गुणसूत्र अण्डाणु (ovum) के द्वारा माता से और दूसरा शुक्राणु (sperm) के द्वारा पिता से प्राप्त होता है। इस प्रकार मानव जाति में 23 जोड़ी, अर्थात् 46 गुणसूत्र होते हैं। इनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्रों को ऑटोसोम्स (autosomes) कहते हैं तथा एक जोड़ी गुणसूत्रों को sex chromosome कहते हैं हैं।
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अन्य जन्तुओं में लिंग निर्धारण (Sex Determination in other animals)
स्तनियों, अधिकांश कीटों एवं उभयचरों, सभी एकलिंगी पादपों तथा कुछ मछलियों के गुणसूत्रों में वैसा ही लैंगिक भेद होता है जैसा कि मनुष्य में इसके विपरीत, पक्षियों, सरीसृपों, पतंगों व तितलियों (moths and butterflies) तथा कुछ उभयचरों और कुछ मछलियों में यह भेद उल्टा होता है, अर्थात् नर में लिंग गुणसूत्र समान (ZZ), परन्तु मादा में असमान (ZW) होते हैं।
कुछ कीटों (टिड्डों एवं बग्स bugs) में यही लिंग-भेद नर या मादा में लिंग गुणसूत्रों में से एक की अनुपस्थिति से होता है। उदाहरणार्थ, यदि मादा XX है तो नर केवल X, अर्थात् X0 (xero) होगा। अतः आधे X-युक्त होंगे और मादा सन्तान बनाएगें तथा आधे लिंग गुणसूत्ररहित (0) होंगे और नर सन्तान बनाएगें।
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