प्रोटीन का वर्गीकरण (Classification of Proteins)|hindi


प्रोटीन का वर्गीकरण (Classification of Proteins)

प्रोटीन का वर्गीकरण (Classification of Proteins)|hindi


प्रोटीन को मुख्यतः तीन आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं—
  1. त्रिविम आकृति अर्थात् प्राकृत अनुरूपण (native conformation) के आधार पर
  2. रासायनिक संयोजन के आधार पर
  3. विशिष्ट भूमिकाओं (specific roles) के आधार पर


(A) त्रिविम आकृति के आधार पर प्रोटीन्स का वर्गीकरण

त्रिविम आकृति के आधार पर प्रोटीन की दो प्रमुख श्रेणियाँ होती हैं—
(1) तन्तुवत् (fibrous) प्रोटीन 
(2) गोलाकार (globular) प्रोटीन 



(1) तन्तुवत् प्रोटीन्स (Fibrous Proteins)

ये कोशिकाओं और ऊतकों में पाई जाने वाली fibrous or filamentous प्रोटीन होती हैं जिनके अणुओं के माप में चौड़ाई और लम्बाई का अनुपात सदैव 1 : 10 से अधिक होता है। ये संरचना में सरल, केवल द्वितीयक स्तर की प्रोटीन होती हैं। जो जल में अघुलनशील और मुख्यतः संरचनात्मक (structural) होती हैं। अतः ये ऐसी संरचनाएँ बनाती हैं जो कोशिकाओं तथा ऊतकों को दृढ़ता तथा सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसीलिए इन्हें sclero proteins कहते हैं। ये शरीर के कुल भार का आधा बनाती हैं। 

ये मुख्यतः निम्नलिखित चार प्रकार की होती हैं—

(i) ऐल्फा-किरैटिन्स (ɑ-keratins) : इनके सूत्रवत् अणुओं की त्रिविम आकृति ɑ कुण्डलिनियों के बने द्वितीयक स्तर की संरचना के कारण होती है। कशेरुकी जन्तुओं (vertebrates) में शल्क (scales), पंजे, नाखून, पर व पंख, रोम, ऊन, कछुवों के खोल, सींग, खुर आदि रचनाएँ ɑ-किरैटिन्स की ही बनी होती हैं।

(ii) बीटा-किरैटिन्स (β-keratins) : इनके अणुओं की त्रिविम आकृति antiparallel β परतों के बने द्वितीयक स्तर की संरचना के कारण होती है। रेशम की फाइब्रॉएन (fibroin) प्रोटीन के अणु ऐसे ही होते हैं। इनसे बने तन्तुक कोमल और कुछ सीमा तक लचीले होते हैं। मकड़ियों के जालों के रेशमी धागे ɑ कुण्डलिनी तथा β परत, दोनों ही प्रकार की द्वितीयक रचना वाले अणुओं के बने होते हैं।

(iii) कोलैजन (Collagen) : यह भी दृढ़, अघुलनशील fibrous प्रोटीन होती है जो केवल जन्तुओं में पाई जाती है। कशेरुकी जन्तुओं में यह विभिन्न प्रकार के संयोजी ऊतकों (connective tissues) अस्थियों (bones), उपास्थियों (cartilages), दाँतों (teeth), कण्डराओं (tendons), रुधिरवाहिनियों की दीवार, नेत्रों की कनीनिका (cornea), त्वचा की चर्म (चमड़ा), आदि-का प्रमुख भाग बनाती है। भार में शरीर की समस्त प्रोटीन का लगभग एक-तिहाई भाग (एक 70 kg व्यक्ति में लगभग 12 से 14kg) कोलैजन प्रोटीन का होता है।

कहते हैं कि ये तन्तु अपने भार से 10,000 गुणा अधिक भार उठाने की सामर्थ्य रखते हैं। जन्तुओं में दौड़ने, उछलने आदि की क्षमता अस्थि सन्धियों (bone joints) में कोलैजन तन्तुओं की अधिकता के कारण ही होती है। इनके अधिक खिंचाव से अस्थि-सन्धियाँ भंग हो जाती हैं। वृद्धावस्था में कोलैजन तन्तुओं के कुछ कठोर हो जाने के कारण जोड़ों में पीड़ा होने लगती है।

(iv) इलास्टिन (Elastin) : यह कोलैजन जैसी ही प्रोटीन होती है, परन्तु इसके ट्रोपोइलास्टिन तन्तुकों (tropoelastin fibrils) में, रबर की भाँति, दोनों ओर से खिंचाव सहने की क्षमता होती है, अर्थात् ये लचीले होते हैं। खिंचाव समाप्त होने पर ये वापस अपनी मूल दशा में आ जाते हैं। ये जन्तुओं के स्नायुओं (ligaments) तथा अन्य लचीले ऊतकों में पाए जाते हैं।

पेशियों की ऐक्टिन (actin) तथा मायोसिन (myosin) प्रोटीन , रुधिर प्लाज्मा की फाइब्रिनोजन (fibrinogen), माइक्रोट्यूब्यूल्स (microtubules) की ट्यूब्यूलिन (tubulin) प्रोटीन, आदि भी तन्तुकीय होती हैं, परन्तु ये संरचनात्मक न होकर निर्दिष्ट कार्यों की क्रियात्मक (functional) प्रोटीन होती हैं।




(2) गोलाकार प्रोटीन्स (Globular Proteins)
अधिकांश प्रोटीन के अणुओं की प्राकृत अनुरूपता (native conformation), तृतीयक एवं चतुर्थक स्तर की संरचना के कारण जटिल, गोलाकार होती है। इनकी चौड़ाई व लम्बाई का अनुपात प्रायः 1:3 या 1:4 ही होता है। अतः ये जीव पदार्थ में घुलनशील कोलॉइड (colloid) अणुओं के रूप में होते हैं और इसके सॉल-जेल परिवर्तन (sol-gel transformation) का नियन्त्रण करते हैं। 

ये सब प्रोटीन क्रियात्मक (functional) होती हैं और metabolic reactions में भाग लेती हैं। enzymes, वाहक प्रोटीन (transport proteins), कुछ हॉरमोन्स, रुधिर प्लाज्मा की प्रतिरक्षाग्लोब्यूलिन्स (immunoglobulins), globulins तथा albumins, हीमोग्लोबिन की ग्लोबिन (globin), पेशियों की मायोग्लोबिन (myoglobin), न्यूक्लिओप्रोटीन्स की हिस्टोन्स (histones), अनाज की ग्लूटैलिन्स (glutelins), दालों की प्रोलैमीन्स (prolamines), आदि सब गोलाकार प्रोटीन्स ही होती हैं। दालों में प्रोलैमीन्स इतनी संघनित होती हैं कि ये शाकाहारी मनुष्यों के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत का काम करती हैं।




(B) रासायनिक संयोजन के आधार पर प्रोटीन्स का वर्गीकरण
इस आधार पर प्रोटीन को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है-
  1. सरल प्रोटीन 
  2. संयुक्त प्रोटीन 
  3. व्युत्पन्न प्रोटीन 
(1) सरल या विशुद्ध प्रोटीन (Simple or Pure Proteins)

संरचनात्मक तथा कई क्रियात्मक प्रोटीन के संयोजन में केवल ऐमीनो अम्लों की monomeric subunits ही भाग लेती हैं। इसलिए इन्हें सरल प्रोटीन कहते हैं। सारी fibrous प्रोटीन तथा कई प्रकार की गोलाकार प्रोटीन जैसे कि ग्लोबुलिन्स, ऐल्बुमिन्स, हिस्टोन्स, ग्लूटेलिन्स, प्रोलैमिन्स आदि सरल प्रोटीन ही होती हैं।


(2) संयुक्त या अनुबद्ध प्रोटीन (Conjugated Proteins)

अनेक प्रोटीन के संयोजन में ऐमीनो अम्लों के अतिरिक्त कोई nonamino acid component भी होता है। इन्हें संयुक्त प्रोटीन तथा इनके nonamino acid components को प्रायः prosthetic group कहते हैं। prosthetic समूह की रासायनिक प्रकृति के अनुसार संयुक्त प्रोटीन की निम्नलिखित आठ श्रेणियाँ होती हैं-
  1. न्यूक्लिओप्रोटीन्स (Nucleoproteins)
  2. ग्लाइकोप्रोटीन्स (Glycoproteins)
  3. लाइपोप्रोटीन्स (Lipoproteins)
  4. फॉस्फोप्रोटीन्स (Phosphoproteins)
  5. फ्लैवोप्रोटीन्स (Flavoproteins)
  6. धातुप्रोटीन्स (Metalloproteins)
  7. क्रोमोप्रोटीन्स (Chromoproteins)
  8. हीमोप्रोटीन्स (Hemoproteins)

1.  न्यूक्लिओप्रोटीन्स (Nucleoproteins) : ये छोटी प्रोटीन होती हैं जो केन्द्रक में chromatin fibres के DNA से संयुक्त रहती हैं। इनमें प्रमुख histonesb होती हैं, परन्तु कुछ जन्तुओं के शुक्राणुओं में इनके स्थान पर protamines होती हैं। राइबोसोमी (ribosomal) प्रोटीन RNA के साथ संयुक्त होती हैं। विषाणु अर्थात् virus न्यूक्लिओप्रोटीन्स के ही बने होते हैं।

2.  ग्लाइकोप्रोटीन्स तथा म्यूकोप्रोटीन्स (Glycoproteins and Mucoproteins) : ये कार्बोहाइड्रेट्स से संयुक्त प्रोटीन होती हैं जो मुख्यतः कोशिकाओं की सतह पर या बाहर की कोशिकाओं के तरल में पाई जाती हैं। उदाहरणार्थ, फाइब्रोनेक्टिन (fibronectin), प्रोटिओग्लाइकन्स (proteoglycans) तथा म्यूसिन्स (mucins) विभिन्न संयोजी ऊतकों में पाई जाती हैं। इसी प्रकार, Immunoglobulin G रुधिर प्लाज्मा में होती है।

3.  लाइपोप्रोटीन्स (Lipoproteins) : ये लिपिड से संयुक्त प्रोटीन होती हैं। यकृत कोशिकाओं में ऐसी ही apopoliproteins बनती हैं जो रुधिर में लिपिड के परिवहन (transport) का काम करती हैं।

4.  फॉस्फोप्रोटीन्स (Phosphoproteins) : ये फॉस्फेट समूह से संयुक्त प्रोटीन होती हैं। दूध की कैसीन (casein) तथा मुर्गी के अण्डे की phosphovitin ऐसी प्रोटीन की उदाहरण हैं।

5.  फ्लैबोप्रोटीन्स (Flavoproteins) : ये फ्लैविन न्यूक्लिओटाइड्स (flavin nucleotides) से संयुक्त प्रोटीन्स होती हैं और माइटोकॉण्ड्रिया में महत्त्वपूर्ण एन्जाइमों का काम करती हैं।

6.  धातुप्रोटीन्स (Metalloproteins) : ये धातु आयनों से संयुक्त प्रोटीन्स होती हैं। इनमें निम्नलिखित काफी महत्त्वपूर्ण होती हैं—
  1. कुछ जीवाणुओं (bacteria) तथा कुछ पादप एवं जन्तु ऊतकों में लौहयुक्त फेरिटिन (ferritin) होती है। लौह तथा सल्फर युक्त फेरीडॉक्सिन (ferredoxin) लौह के भण्डारण का तथा ऑक्सीकरण-अपचयन (oxidation reduction) अभिक्रियाओं में इलेक्ट्रॉन्स के स्थानान्तरण का काम करती हैं।
  2. जिंक युक्त alcohol dehydrogenase enzyme ग्लाइकोलाइसिस में प्रयुक्त होता है।
  3. कैल्सियमयुक्त calmodulin साइटोसॉल की प्रोटीन्स का regulation करती है।
  4. ताँबा एवं लौह से संयुक्त cytochrome c एन्जाइम माइटोकॉण्ड्रिया में श्वसन शृंखला का एक घटक होता है।
  5. ताँबायुक्त haemocyanin कुछ अकशेरुकी जन्तुओं में रुधिर की रंगा होती है।
7.  हीमोप्रोटीन्स (Hemoproteins) : ये heme group अर्थात् लौह पोरफाइरिन (iron porphyrin) से संयुक्त विशेष प्रकार की धातुप्रोटीन्स होती हैं। हीमोग्लोबिन (haemoglobin), माइटोकॉण्ड्रिया का cytochrome c, तथा पेशियों की myoglobin ऐसी प्रोटीन्स होती हैं।

8.  क्रोमोप्रोटीन्स (Chromoproteins) : ये pigmented प्रोटीन होती हैं जैसे कि हरे पादपों का chlorophyll तथा नेत्रों की दृष्टिपटल की rhodopsin आदि।



(3) व्युत्पन्न प्रोटीन्स (Derived Proteins)
पाचन में जल-अपघटन (hydrolysis) द्वारा भोजन की प्रोटीन्स की पोलीपेप्टाइड्स क्रमशः छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटती हैं। सबसे बड़े, इनसे छोटे और सबसे छोटे टुकड़ों को क्रमशः Proteoses, peptones तथा small polypeptides कहते हैं। ये सब व्युत्पन्न प्रोटीन्स कहलाती हैं।





(C) विशिष्ट भूमिकाओं के आधार पर प्रोटीन्स का वर्गीकरण

कोशिकाओं की सम्पूर्ण रचना एवं सभी क्रियाएँ एक या अधिक प्रोटीन्स पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार, प्रोटीन्स ही जीवधारियों की रचना तथा जैव क्रियाओं का मुख्य भौतिक आधार होती हैं। अतः इनकी भिन्न-भिन्न विशिष्ट भूमिकाओं के आधार पर इनका वर्गीकरण अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। भूमिकाओं के आधार पर इन्हें नौ श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
  1. संरचनात्मक (Structural)
  2. एन्जाइमी (Enzymatic)
  3. नियामक (Regulatory)
  4. संकुचनशील (Contractile) एवं गतिशीलता (Motility)
  5. संवाहक (Transport)
  6. सुरक्षात्मक (Defense)
  7. पोषक एवं भण्डारण (Nutrient and Storage)
  8. संवेदग्राही (Receptor)
  9. विजातीय (Exotic)

1.  संरचनात्मक प्रोटीन्स (Structural Proteins) : ये कोशिकाओं और ऊतकों को दृढ़ता तथा सुरक्षा प्रदान करने वाली तन्तुकीय प्रोटीन्स होती हैं जैसे कि x-किरैटिन, B-किरैटिन, कोलैजन, इलास्टिन, ट्यूब्यूलिन, आदि। ये उपापचयी अभिक्रियाओं में भाग नहीं लेतीं है। शरीर का लगभग आधा भार इन्हीं के कारण होता है। शरीर की वृद्धि और मरम्मत में इन्हीं की प्रमुख भूमिका होती है।

2.  एन्जाइमी प्रोटीन्स (Enzymatic Proteins) : अधिकांश प्रोटीन्स भिन्न-भिन्न एन्जाइमों का काम करती हैं। ये लगभग प्रत्येक उपापचयी अभिक्रिया के उत्प्रेरण (catalysis) का अर्थात् इनकी गति बढ़ाने का काम करती हैं। प्रत्येक प्रकार की उपापचयी अभिक्रिया का एन्जाइम अन्य सभी एन्जाइमों से भिन्न विशेष प्रकार का (specific) होता है। इसीलिए, एन्जाइम हजारों प्रकार के होते हैं।

3.  नियामक प्रोटीन्स (Regulatory Proteins) : कुछ प्रोटीन्स हॉरमोन्स के रूप में कोशिकाओं की कुछ processes का regulation करती हैं। उदाहरण के लिए, अग्न्याशय द्वारा स्रावित इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन (glucagon) हॉरमोन्स कार्बोहाइड्रेट उपापचय का, पिट्यूटरी ग्रन्थि का वृद्धि हॉरमोन (growth hormone) शरीर की वृद्धि का तथा थाइरॉइड ग्रन्थि का थाइरॉक्सिन (thyroxine) हॉरमोन कोशिकाओं के उपापचय का regulation करता है।

4.  संकुचनशील तथा गतिशीलता प्रोटीन्स (Contractile and Motility Proteins) : यह fibrous Proteins होती है जो अंगों और शरीर की movements का regulation करती हैं। इनमें पेशियों की actin तथा myosin प्रोटीन्स आती हैं। कोशिकाओं के गमनांग (कशाभिकाएँ एवं रोमाभ-flagella and cilia) बनाने वाले माइक्रोट्यूब्यूल्स का अधिकांश भाग tubulin प्रोटीन का बना होता है।

5.  संवाहक प्रोटीन्स (Transport Proteins) : ये विशिष्ट पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भागों तक लाने ले जाने का काम करती हैं। हीमोग्लोबिन इनका एक प्रमुख उदाहरण है। यह फेफड़ों में साँस की वायु से CO2 के बदले O2 लेकर शरीर की समस्त कोशिकाओं तक इसका परिवहन करता है। इसी प्रकार, serum albulin रुधिर में वसीय अम्लों का तथा ट्रांसफेरिन (transferrin) प्रोटीन रुधिर में लौह का परिवहन करती है।

6.  सुरक्षात्मक प्रोटीन्स (Defense Proteins) : ये प्रोटीन्स विष पदार्थों (toxins) तथा रोगोत्पादक आक्रमणकारी वाइरसों (viruses), जीवाणुओं (bacteria), कवकों (fungi) आदि को नष्ट करके शरीर की सुरक्षा करती हैं। ऐसी महत्त्वपूर्ण प्रोटीन्स कशेरुकी जन्तुओं के रुधिर की lymphocyte कोशिकाओं द्वारा स्रावित antibodies होते हैं जिन्हें immunoglobulins कहते हैं। कशेरुकियों में शरीर की कोशिकाएँ इन्टरफरॉन (interferon) नामक प्रोटीन स्रावित करती हैं जो कोशिकाओं को वाइरसों के आक्रमण से बचाती है। रुधिर की थ्रॉम्बिन (thrombin) एवं फाइब्रिनोजन (fibrinogen) प्रोटीन्स चोट पर रुधिर का स्कन्दन (coagulation) करके चोट पर संक्रमण (infection) को रोकती हैं।

7.  पोषण एवं भण्डारण प्रोटीन्स (Nutrient and Storage Proteins) : कई प्रकार की प्रोटीन्स आरक्षित ऐमीनो अम्लों तथा नाइट्रोजन के भण्डारण का काम करती हैं। उदाहरण के लिए, कई प्रकार के बीजों में संग्रहित प्रोटीन्स इनके अंकुरण और पौधे की वृद्धि के समय इनके पोषण का काम करती हैं। मक्का की जाइन्स (zeins), मटर की फैसिओलिन (phaseolin) तथा गेहूँ और चावल की ग्लूटैलिन (glutellin) प्रोटीन्स ऐसी ही पोषण प्रोटीन्स होती हैं। इसी प्रकार, पक्षियों के अण्डों की सफेदी की ovalbumin प्रोटीन भ्रूण का पोषण करती है। स्तनियों में दूध की कैसीन (casein) शिशु का पोषण करती है।

8.  संवेदग्राही प्रोटीन्स (Receptor Proteins) : ये कोशिकाकला और cytoplasm में होती हैं और बाह्य वातावरण की सूचनाओं को लेकर कोशिकाओं में पहुँचाती हैं ताकि कोशिकाएँ अपने उपापचय में आवश्यक परिवर्तन करके अपनी और शरीर की अखण्डता बनाए रख सकें।

9.  विजातीय प्रोटीन्स (Exotic Proteins) : ये कुछ विलक्षण प्रोटीन्स होती हैं जो कुछ असाधारण कार्यों के लिए कुछ विशेष प्रकार के जीवों में पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी के दक्षिण एवं उत्तर ध्रुवीय महासागरों की मछलियों में रुधिर को जमने से रोकने के लिए antifreeze प्रोटीन्स होती हैं। कीटों के पंखों की हिन्ज सन्धियाँ (hinges) अत्यधिक लचीली resilin प्रोटीन की बनी होती हैं। कुछ अफ्रीकी पौधों में पाई जाने वाली मोनेलिन (monellin) सुक्रोस (sucrose) से लगभग 2000 गुणा अधिक मीठी प्रोटीन होती है जो मधुमेह रोगियों के लिए कृत्रिम शर्करा का काम करती है। कुछ समुद्री जन्तु चिपचिपी प्रोटीन्स (glue proteins) बनाते हैं जो इन्हें चट्टानों तथा अन्य दृढ़ आधार वस्तुओं पर चिपकाती हैं। 

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