पौधों में वृद्धि को नापने की अनेक विधियाँ हैं, जैसे-
- कोशाओं की बढ़ी हुई संख्या (increase in the number of cells) द्वारा
- कोशाओं, ऊतियों तथा अंगों के बड़े आकार द्वारा,
- शुष्क भार (dry weight) द्वारा,
- रेखीय नाप (length) द्वारा।
रेखीय नाप के लिये निम्नलिखित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है -
(अ) स्केल विधि (Scale method) - यह वृद्धि नापने का सबसे साधारण तरीका है। इस विधि में वृद्धि ज्ञात करने के लिये पौधे के किसी भाग को स्केल से नाप लिया जाता है।
(ब) आर्क वृद्धिमापी (Arc auxanometer) — इस यन्त्र में एक छोटी घिर्री (pulley) से एक लम्बा सूचक (pointer) लगा रहता है जो ( एक चापाकार स्केल (arc scale) के चिन्हों पर घिर्री के घूमने से चलता है। घिर्री के ऊपर से एक पतला मजबूत धागा दोनों ओर लटका रहता है। धागे का एक सिरा पौधे के शीर्ष से तथा दूसरा सिरा किसी भार (W) से बँधा होता है जिससे धागा तना रहे। जैसे-जैसे पौधे की वृद्धि होती है। सूचक (pointer) अंकित चापाकार स्केल पर घूमता है और इस प्रकार विशालित रूप से वृद्धि नाप देता है।
(स) क्षैतिज सूक्ष्मदर्शक यन्त्र द्वारा (By Horizontal micro scope) — इस यन्त्र से वृद्धि नापने के लिये पौधे के वर्धी शीर्ष पर एक चिन्ह बना देते हैं तथा उस पर सूक्ष्मदर्शक यन्त्र को फोकस (focus) कर देते हैं। तने में वृद्धि होने पर चिन्ह ऊपर की ओर उठ जाता है। अतः कुछ समय बाद क्षैतिज सूक्ष्मदर्शक यन्त्र को फिर चिन्ह पर फोकस करने के लिये ऊपर उठा लेते हैं। इस प्रकार सूक्ष्मदर्शक यन्त्र को जितना ऊपर उठाया जाये उतनी लम्बाई में वृद्धि हो जाती है।
(द) प्फैफर का वृद्धिमापी (Pfeffer's auxanometer) – इस यन्त्र में एक धुरी पर एक छोटी तथा एक बड़ी घिर्री (pulley) लगी होती है। एक धागे का एक सिरा पौधे के शीर्ष भाग पर बाँध दिया जाता है और दूसरे सिरे पर एक भार बँधा होता है। यह धागा छोटी घिर्री के ऊपर से होता हुआ दोनों ओर लटकता है। एक दूसरा धागा जिस पर एक ओर एक छोटा सूचक (pointer) बँधा रहता है बड़ी घिर्री के ऊपर से होकर दोनों ओर लटकता रहता है। इसके दोनों सिरों पर भार बँधे रहते हैं। इस यन्त्र में कालिख से पुता हुआ एक बेलन (cylinder) होता है जो घड़ी की सहायता से घूमता है। धागे से बँधा सूचक (pointer) कालिख से पुते बेलन को छूता रहता है। जैसे-जैसे पौधे की वृद्धि होती है और बेलन घूमता है बड़ी घिर्री पर लगे धागे से बँधा सूचक बेलन पर निशान बनाता रहता है। इस प्रकार वृद्धि का ग्राफ बेलन पर बन जाता है। इस ग्राफ से वृद्धि का पता तो चलता ही है, साथ में यह भी ज्ञात हो जाता है कि दिन में किस समय कम या अधिक वृद्धि होती है। घड़ी पर लगा बेलन 24 घण्टे में एक पूरा चक्कर लगाता है।
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